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Tuesday 10 May 2022

पशुपतिनाथ मंदिर दर्शन, लक्ष्य बत्ती नेपाल यात्रा भाग 27 नीलम भागी




   नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर यह ऐसा स्थान है। जिसके विषय में यह माना जाता है कि यहां आज भी शिव की मौजूदगी है। पशुपतिनाथ को उनके भक्त भोलेनाथ, महादेव, रुद्र, पंचमुखी, प्रभु पशुपतिनाथ कहते हैं। यहां भी कई अनोखी बातें और परंपराएं जूड़ी हैं।


कोई व्यक्ति सिर पर परात जैसे बड़े दिये में कई बत्तियां जल रहीं होतीं उन्हें लिए तेजी से जाता और उसे एक निश्चित स्थान पर रखता। किसी का बर्तन तो बहुत ही बड़ा होता। यहां लाइन में कोई बेइमानी नहीं करता इसलिए अब एक बाती ले जाने वाले के मैं पीछे चल दी। पता किया तो लाइन की व्यवस्था देख रहे रामप्रसाद गौतम ने बताया कि ये लक्षबत्ती होती है। 1000 बाती  से एक लाख तक मनोेकामना पूरी होने पर जलाते हैं। या कोई परिवार मृतक की इच्छा के अनुसार उसके मरने के एक साल बाद जलाता है।




बीच में सत्संग भी चल रहा है जिसमें भक्ति नृत्य चल रहा है। लाइन में लगे भी नाच रहें हैं। विडियो लिंक दिया है।https://youtube.com/shorts/v688zy1dL2E?feature=share

 3 घण्टे में गर्भगृह  द्वार पर पहुंच गए। यहां कैमरा मना है। 



    पशुपतिनाथ मंदिर का मुख्य परिसर नेपाली शिवालय स्थापत्य शैली(पगौड़ा शैली) में निर्मित है। मंदिर की छतें तांबे की बनी हैं और सोने से मढ़ी गईं हैं। मुख्य दरवाजे चांदी से मढ़े हैं। मंदिर का स्वर्ण शिखर गजूर कहलाता है। आंतरिक गर्भगृह में भगवान शिव की मूर्ति है। बाहरी क्षेत्र एक खुला स्थान है जो एक गलियारे जैसा दिखता है। मंदिर परिसर का मुख्य आर्कषण पशुपतिनाथ का वाहन नंदी बैल की विशाल स्वर्ण प्रतिमा है।

पशुपतिनाथ के मंदिर में लगभग 492 मंदिर, 15 शिववालय(भगवान शिव के मंदिर) और 12 ज्योर्तिलिंग(फालिग तीर्थ)हैं। परिसर के भीतर दो गर्भ ग्रह हैं। एक भीतरी और दूसरा बाहरी। मंदिर एक मीटर ऊँचे चबूतरे पर स्थापित है। मंदिर के चारों ओर पशुपतिनाथ जी के सामने चार दरवाजे हैं। दक्षिणी द्वार पर तांबे पर सोने की परत चढ़ाई गई है। बाकि तीन पर चांदी की परत है। मंदिर की संरचना चौकोर आकार की हैं। मंदिर की दोनो छतों के चार कोनों पर उत्कृष्ट कोटि की कारीगरी से सिंह की आकृति उकेरी गई है। मुख्य मंदिर में महिष रुपधारी भगवान शिव का शिरोभाग है, जिसका पिछला भाग केदारनाथ में है। इसका प्रसंग स्कंदपुराण में भी हुआ है। मंदिर का अधिकांश भाग लकड़ी से बना है। गर्भ ग्रह में पंचमुखी शिवलिंग का विग्रह है जो कहीं और नहीं है। मंदिर परिसर में अनेक मंदिर हैं, जिनमें पूर्व की ओर गणेश मंदिर है। मंदिर के प्रांगण की दक्षिणी दिशा में एक द्वार है, जिसके बाहर एक सौ चौरासी शिवलिंगों की कतारें हैं।

   पशुपतिनाथ मंदिर के दक्षिण में उन्मत्त के दर्शन होते हैं। पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख हैं और ऊपरी भाग में पांचवा मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष  की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग अलग गुण प्रकट करता हैं। पहला मुख ’अघोर’ मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को ’तत्पुरुष’ कहते हैं। उत्तर मुख ’अर्धनारीवर’ रुप है। पश्चिम मुख को ’सद्योजात’ कहा जाता है। ऊपरी मुख ’ईशान’ मुख के नाम से पुकारा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।

पशुपतिनाथ मंदिर परिसर में मंदिर और तीर्थ- यह मंदिर लगभग 264 हैक्टर क्षेत्र में फैला हुआ है। वासुकी नाथ मंदिर, उन्मत्त भैरो मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, कीर्त्तिमुख भैरव तीर्थ, बुध नीलकंठ, हनुमान मंदिर, 184 शिवलिंग मंदिर।

  पशुपतिनाथ मंदिर की सेवा-मंदिर की सेवा के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमन्त्रित किया था। बाद में ’माल्हा राजवशं’ के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त किया। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी होते रहे थे। अब कुछ परिवर्तन किया गया है।

पशुपतिनाथ मंदिर के दैनिक अनुष्ठान- सुबह 4 बजे पश्चिमी द्वार खुलता है। 8.30 पुजारियों द्वारा भगवान का श्रंृगार होता है। 9.30 बाल भोग चढ़ाया जाता है। 10 बजे से 1.45 तक लोग पुजारी से विशेष पूजा करने के लिए कहते हैं। 1.50 से पशुपतिनाथ को दोपहर का भोग लगाया जाता है। 5.15 बजे मुख्य पशुपतिनाथ जी की आरती होती है।

  दर्शन के बाद पूजा बिष्ट और सपना पाठक ने कहा कि आप शाम को आरती देखने जरुर आना।(क्रमशः)