Search This Blog

Showing posts with label Panch Prayag] # Vyas Shukdev Sthan (Gaddi). Show all posts
Showing posts with label Panch Prayag] # Vyas Shukdev Sthan (Gaddi). Show all posts

Monday, 4 April 2022

नैमिषारण्य Naimisharanya Part 8 Neelam Bhagi






मैं जब नैमिषारण्य गई तो कड़ाके की सर्दी थी। मंदिरों में दर्शन करते हुए जरा थकान होने लगती तो मुझे कल्पना में 84 कोसी नैमिषारण्य परिक्रमा करते श्रद्धालु दिखते और मेरी थकान उतर जाती। रामचरितमानस में भी लिखा है

तीरथ वर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिद्धि दाता।

नैमिषारण्य लखनऊ से 80 किमी दूर लखनऊ क्षेत्र के सीतापुर जिला में गोमती नदी के बाएं तट पर स्थित तीर्थ है।

वाराह पुराण के अनुसार यहां भगवान द्वारा निमिष मात्र में दानवों का संहार होने से यह नैमिषारण्य कहलाया। यह पौराणिक काल से धार्मिक तीर्थ रहा है। इस प्राचीन तीर्थस्थल का उल्लेख ऋग्वेद में भी पाया गया है। महाभारत में भी इस तीर्थ का उल्लेख महान तीर्थ के रुप में किया गया है। यह अध्यात्मिक और ध्यान का केन्द्र भी है। 

अनुश्रुति महर्षि शौनक के मन में दीर्घकाल तक ज्ञान सत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें एक चक्र दिया और कहा,’’इस चक्र को चलाते चले जाओ, जहां इस चक्र की नेमि( बाहरी परिधि) गिर जाए वहीं आश्रम बना कर ज्ञान सत्र करो। गोमती के किनारे एक तपोवन में चक्र की नेमि गिर गई और चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। वह स्थान

चक्रतीर्थ कहलाता है। यह नैमिषारण्य स्टेशन से एक मील दूर है। यहां एक सरोवर है, जिसका मध्य भाग गोलकार है और उसमें बराबर जल निकलता रहता है। इसके चारों ओर मंदिर हैं। 

वाल्मिकी रामायण के युद्ध-काण्ड के पुष्पिका में नैमिशारण्य का प्राचीनतम उल्लेख प्राप्त होता है। पुष्पिका में उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों मे वाल्मीकि रचित काव्य का गान किया। शौनक जी को इसी तीर्थ में सूत जी ने अठारहों पुराणों की कथा सुनाई। 

 श्रद्धालु यहां के दर्शनीय स्थलों पर आना अपना सौभाग्य मानते हैं।

दधीचि कुण्ड वृतासुर राक्षस के वध के लिए वज्रायुध के निर्माण के लिए फाल्गुनी पूर्णिमा को जब इन्द्रादि देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों के लिए निवेदन किया तो महर्षि ने कहा कि मैं समस्त तीर्थों में स्नान कर देवताओं के दर्शन करना चाहता हूं। इंद्र ने समस्त तीर्थों और देवताओं का आव्हान किया तो समस्त तीर्थों और नदियों का जल एक सरोवर में मिश्रण हुए। महर्षि दधीचि ने इस कुण्ड में स्नान किया तब से इस कुण्ड का नाम दधीचि कुण्ड या मिश्रित तीर्थ के नाम से जाना जाता है। समस्त देवताओं ने 84 कोश के नैमिशारण्य में वास किया। महर्षि दधीचि ने सभी देवताओं के दर्शन कर, परिक्रमा करने के बाद अपनी अस्थियों का दान किया। और आज देश विदेश से परिक्रमा के लिए श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहां आते हैं। परिक्रमा फाल्गुन मास की अमावस्या के बाद की प्रतिप्रदा को शुरु होकर पूर्णिमा को सम्पन्न होती है।

पंचप्रयाग यह पक्का सरोवर है। इसके किनारे अक्षय वट है।

व्यास-शुकदेव के स्थान  एक मंदिर में अन्दर शुकदेव जी की और बाहर व्यास जी की गद्दी है।

दशाश्रवमेध घाट भगवान राम ने अश्वमेध यज्ञ यहीं से आरंभ किया था। यहां के प्राचीन मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता जी की मूर्तियां स्थापित हैं। कड़ाके की सर्दी में मोटी जुराबे पहने मंदिरों के दर्शन कर रही थी। कानों में कर्नाटक म्यूजिक की आवाज़ आ रही थी। शब्दों के अर्थ नहीं समझती पर कर्णप्रिय संगीत श्रद्धा को और बढ़ा रहा था। सुनीता और विरेश बुग्गा तो संगीत की दिशा में ही चल दिए। तभी तो कहते हैं कि संगीत की भाषा नहीं होती। क्रमशः