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Friday, 2 December 2022

आजाद पार्क ओरछा झांसी यात्रा भाग 11 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 11 Neelam Bhagi

 



आजाद पार्क ओरछा झांसी यात्रा भाग 11 नीलम भागी हम कुछ ही कदम चले, हमें एक ई रिक्शा


मिल गया। दो सौ रुपए रिर्सोट तक के उसने हमसे मांगे, हम झट से बैठ गए। हल्की बूंदाबांदी तो हो ही रही थी। सुबह श्रीधर पराड़कर जी रास्ते भर यहाँ के बारे में बताते जा रहे थे। चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताया कि उन्होंने यहाँ अज्ञातवास बिताया। बैठक में समय से पहुँचना था इसलिए जब आजाद पार्क के सामने से गुजरे तो मैंने गाड़ी से ही फोटो ले ली थी। मेरे ज़हन में तो सुबह श्रीधर पराड़कर जी के बताए आजाद, कवि केशव और रायप्रवीण दिमाग में छा जाने वाले परिचय ही घूम रहे थे। पर ये क्या!! रिक्शावाले ने रिक्शा साइड में लगा कर आजाद पार्क के बारे में बताना शुरु किया। मैं तुरंत उतर कर चल दी। डॉ सारिका और डॉ. संजय पंकज भी आ गए। हमने वहाँ बाहर से ही तस्वीरें लीं।    

आजाद पार्क आजादपुरा(पुराना नाम ढिमरपुरा) में है।ं श्री राजाराम सरकार के दर्शन के लिए जाते हैं तो मेनरोड पर ही है।

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रतीक अमर शहीद च्ंाद्रशेखर आजाद यहाँ 1924 में ओरछा में आए थे। ओरछा में रह कर वे क्रांति के सूत्रों का संचालन करते थे। 1930 तक ये सन्यासी के भेष में ब्रह्मचारी हरिशंकर के नाम से रहते हुए, यहाँ बच्चों को पढ़ाते थे और रामायण बांचते थे। उनकी कुल सम्पत्ति एक कंबल और रामायण का गुटका था। चंद्रशेखर आजाद का कोई क्रांतिकारी साथी समझाता कि उन्हें शहर में रहना चाहिए तो उनका जवाब होता कि ओरछा के आस पास आल्हा-ऊदल की भूमि, सदाचार के साधक हरदौला का चबूतरा है। कवि केशव और उनकी शिष्या राय प्रवीण की संगीत साधना है और सबसे बड़ी बात राजा राम सरकार पास में हैं। 

 पार्क के बगल से सतारा नदी निकलती है। 31 मार्च 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आदमकद कांस्य की चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा का लोर्कापण किया। पार्क की दीवारों पर बहुत सुन्दर चित्रकारी की गई है जो दिन में बहुत सुन्दर लगती है और रात में सड़क पर चलती गाड़ियों की लाइट जब बाउण्ड्रीवाल पर पड़ती है तो ये चित्रकारी बहुत आर्कषक लगती है। हम रिक्शा पर बैठे। और मैंने रिक्शावाले की देशभक्ति को मन ही मन सराहा जिसने खराब मौसम में बिना हमारे कहे। हमारा आजाद पार्क से परिचय करवाया। क्रमशः