सम्मान समारोह से लौटने के बाद लंच के लिए हाल में एकत्रित हुए। विश्वविद्यालय से जलपान करके लौटे थे। मैंने सोचा आख़िर में लंच करूंगी। कार्यक्रम को छोड़ कर, मेरी आदत है, जब भी खाली होती हूं, मैं कहीं भी मोबाइल खोलकर उस पर लग जाती हूं और मैं लग गई। मुझे आसपास का कुछ ध्यान नहीं रहता है।
धीरज शर्मा मोंटी(ग्वालियर) मेरे पास बैठे और बोले, "नीलम जी, मोबाइल तो आपके पास हमेशा ही रहेगा लेकिन यह जो आसपास साहित्यकार हैं, अगली बार पता नहीं आपको कब मिलेंगे!" और मोंटी बहुत व्यस्त रहते हैं, यह कह कर वे चले गए। मैंने तुरंत मोबाइल पर्स में रखा और मेरे आस-पास जो थे और उनसे परिचय होने लगा। मुझे बहुत अच्छा लगा विभिन्न प्रदेश के साहित्यकारों की अपनी बातें जो किसी पुस्तक में नहीं हैं। अब तो ब्रेक में अपने रूम में भी नहीं जाती थी। किसी भी मेज पर जाकर बैठ जाती। मेरा संकोची स्वभाव पर कुछ देर बाद मुझे लगता ही नहीं था कि मैं उन्हें जानती नहीं हूं ।सब परिचित लगते । ट्रेन में मैं अपने साथ के यात्रियों से आराम से बतियाती आती हूं। साहित्य परिषद में सभी बहुत विद्वान हैं। वह आपस में किसकी कितनी किताबें छपी हैं, उस पर चर्चा करते हैं। मेरी तो एक भी नहीं छपी है। मैं यह सोचकर हीन भावना में रहती थी कि कोई मुझसे पूछेगा कि आपकी कितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं? तो मैं नालायक लगूंगी शायद इसलिए मैं अलग थलग सी रहती। मैं बैठने लगी तो देखा पुस्तक छपाई की बात तो कुछ देर में ही खत्म हो जाती है और कभी किसी ने भी मुझसे नहीं पूछा कि आपकी कितनी पुस्तक छपी है? इस सबके लिए धीरज शर्मा की अभारी हूं कि मैं मोबाइल की दुनिया से हटकर इन विद्वानों की चर्चा को शांति से सुनती । अगले सत्र में हमारी प्रदेश अनुसार टोलिया बना दीं। प्रत्येक टोली में पुरस्कृत साहित्यकारों को भी साथ किया। उनके साथ संवाद किया। उन्होंने अपने अनुभव शेयर किये। बहुत अलग सा लगा। इसमें कोई भी अपने मन की बात कर सकता था और सम्मानित साहित्यकार उसमें शामिल थे। चाय का समय हो गया है पर मस्त बैठें थे। रात्रि में हमारे लिए जगन्नाथ जी का महा प्रसाद था। वैसे तो हर जलपान, भोजन में उड़ीसा का स्थानीय व्यंजन जरूर रहता था। पर महाप्रसाद की अलग से खुशी थी। और इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति थी।
जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ! महाप्रसाद के लिए सबको नीचे बैठकर खाना था। मैं और मेरे जैसे कुछ नीचे नहीं बैठ सकते तो हमारे लिए मेज कुर्सी लगाई गई। कुछ ने मुश्किल से नीचे बैठ कर महाप्रसाद लिया। केले के पत्ते पर हाथ से महाप्रसाद खाना बहुत अच्छा लगा। महाप्रसाद के बाद हम सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने के लिए हम हॉल में गए। यहां ओडिसी लोक नृत्य और ओडिसी शास्त्रीय नृत्य गजब के प्रस्तुति थी। आज का पूरा दिन समारोह के आनंद में बीता। खूब मोटिवेट हुए और रात्रि विश्राम के लिए हमें हमारे होटल में पहुंचा दिया गया।
क्रमशः