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Tuesday, 24 December 2019

हंसते ही न आ जाएं कहीं, आंखों में आंसू हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग -11 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 11 Neelam Bhagi नीलम भागी


सुबह चांदनी पहले आराधना के घर नाश्ता बनाती थी। फिर कुमार के यहाँ। दोनो घर एक ही फ्लोर पर आमने सामने थे। आराधना का कॉलिज दूर था। मिसेज कुमार का स्कूल घर के पास था। उसे जल्दी कॉलेज निकलना होता था। आज छुट्टी थी, दोनो परिवारों ने चांदनी को कह रक्खा था कि छुट्टी के दिन वह नौ बजे आया करे। जैसे ही आराधना ने चांदनी को दरवाजा खोला, वो चांदनी को घूरने लगी क्योंकि चांदनी राम राम दीदी कहते हुए हंसी नहीं। चुपचाप रसोई में काम करने लगी। आराधना ने उसे कहा,’’चांदनी छोले भीगे हुए हैं। मि. मिसेज. कुमार और तूं यहीं नाश्ता करोगे, भटूरे बनेंगे। चांदनी ने मरी हुई आवाज में जवाब दिया, "जी दीदी।" दोनो अपने कामों में लग गई। नाश्ता तैयार होते ही वे भी आ गये। चारों ने नाश्ता किया फिर चांदनी ने भी किया। आज दोनो परिवारों ने बाहर जाना था। इसलिए लंच बनाने को मना कर दिया। उन्हें देर न हो जाए, इसलिए अब  सरोजा के उनके काम भी चांदनी करने लग गई। मशीन से कपड़े निकाल कर फैलाना, सूखे कपड़े तह लगाना। झाडू खटका, डस्टिंग आदि। कुमार के घर का जब वह काम करने गई तो आराधना ने मिसेज कुमार से कहा कि आज चांदनी को पता नहीं क्या हो गया है? आपको भी ऐसा लग रहा है। मिसेज कुमार ने जवाब दिया,’’ मैं समझी कि आपने इसके गुमसुम होने का कारण पूछ लिया होगा और मुझे बता दोगी।’’ये सुनते ही आराधना तो उसी समय चांदनी के पास गई, उससे पूछा,’’तेरे साथ क्या हुआ है?’’ बड़ी मुश्किल से उसने मुंह खोला। उसने बताया कि रेडियो में परशोतम की पसंद का गाना आ रहा था। अचानक मोनू टोनू लड़ पड़े। ये बोले," इन्हें बाहर ले जाकर चुप करा"। मेरे आटे में हाथ थे। हाथ धोने में तो समय लगता है न। बस उन्हे गुस्सा आ गया। सुनते ही आराधना तो उसी पर आग बबूला होने लगी। बेमतलब उसने मारा क्यूं? गलती भी होती तो भी मारने का क्या मतलब? तेरे हाथ टूटे थे, डण्डी छीन कर उसे दो मारती तो पता चलता कैसे दर्द होता है? सरोजा कहां थी? उसने कहा कि वह छत पर कपड़े फैलाने गई थी। उसी ने तो आकर मुझे बचवाया। मिसेज कुमार ने कहा कि तूं उससे दूर भाग जाती वो तुझे भाग कर तो मार नहीं सकता था। अपना कमाती है, अपना खाती है। मार मत खाया कर। दोनों ने अपने घरों से दर्द निवारक लगाने की उसे दवा दी। पिटाई काण्ड पर सरोजा ने विचार किया और यह निर्ष्कष निकाला कि मोनू, टोनू के कारण ये सब हुआ है। सड़क पार, चार अंदर के प्लॉट पर एक नया स्कूल खुला था। टोनू तो अभी छोटा था। सरोजा ने मोनू टोनू दोनों का वहां नाम लिखवा दिया। उसको बच्चे संभलवाने थे और उन पढ़े लिखों को बच्चे चाहिए थे। बच्चे आठ बजे जाते थे और एक बजे आते थे। आकर खाना खाकर सो जाते थे। सरोजा ही उन्हें लेने जाती थी और छोड़ने जाती थी। टोनू मोनू के गले में टाई देख कर उसे बहुत खुशी मिलती थी। उस कॉलौनी में पानी बिजली का बिल नाम मात्र का था। बचत के लिए प्रवासी नौकरी वाले किराए पर रहते थे। छुट्टी के दिन सरोजा किसी को भी पकड़ लेती थी। उनको मोनू टोनू का टैस्ट लेने को कहती थी। जाहिर है मोनू टोनू को कुछ नहीं लिखना पढ़ना आता था। सरोजा उनसे पूछती,’’तुम कित्ता पढ़े हो? वो बताते बी.ए.। फिर उनकी बी.ए. की फीस पूछती। जो मोनू टोनू की फीस से बहुत कम होती थी। मोनू टोनू को डांटती,’’ तुम स्कूल में क्या सीख कर आते हो?’’वो पोयम सुना देते और जो जो प्री स्कूल में सिखाया जाता सब सुनाते पर सरोजा को सब्र नहीं था। अगले दिन वह स्कूल में जाकर शिकायत करती कि तुम फीस तो बी.ए. से ज्यादा लेते हो और बच्चों को पहली की किताब पढ़नी भी नहीं आती। क्रमशः       

Sunday, 22 December 2019

रूठे सैंया, हमारे संग क्यों रूठे? हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 10 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 10 Neelam Bhagi नीलम भागी


चालीस दिन बाद चांदनी खाना बनाने गई। उसके लौटने पर सरोजा काम करने गई। मोनू  को परशोतम की गोद में देकर चांदनी घर के काम निपटाती। परशोतम की शादी के बाद सरोजा गांव ही नहीं गई थी। इसलिये छुट्टी बहुत जरुरत पड़ने पर ही लेती थी। इस कारण मैडम लोग भी खुश रहतीं थी। चांदनी  फिर हामिला हो गई। सुन कर सरोजा बहुत खुश हुई। उसके अनुसार अब परशोतम का घर मजबूती से बस गया। सरोजा ने चांदनी को समझाया कि जल्दी ही दूसरे बच्चे का पेट में आना बहुत अच्छा हुआ है। दोनो बालक साथ साथ पल जायेंगे। चांदनी को भी सास की बात ठीक लगी। वो वैसे भी आज्ञा पालन ही करती थी। बाहर का काम, घर का काम और मोनू को संभालना सब काम, वह गाना सुनते हुए ही करती थी। क्योंकि परशोतम घर में है तो रेडियो बंद नहीं हो सकता। चांदनी के काम की गति गाने की धुन के अनुसार होती थी। मसलन फास्ट म्यूजिक पर उसके हाथ तेज चलते और स्लो पर धीरे चलते थे। लेकिन दिन में एक बार परशोतम काने के खोखे पर जरुर जाता था। वह उसे बैठने को स्टूल देता था। जब उसका मन करता, तब घर लौटता। इस समय चांदनी परशोतम के बारे में सोचती। उसकी अंगुलियां ही आंखों का काम करती थीं। रुपए पैसे की सब उसे पहचान थी। अपनी पसंद की दो  सब्जी वह रोज खरीदता था। सुबह और दोपहर कौन सी बनेगी और रात को कौन सी दाल बनेगी, वो ही बताता था। एक दिन चांदनी ने उससे पूछे बिना सब्जी बना दी। परशोतम तो रुठ गया। उसने खाना नहीं खाया। न मां ने खाया। बेटा भूखा रहे तो मां के गले से भला कौर उतरता है! न न। चांदनी तो कैसे खा सकती थी? वो तो खाती ही पति और सास के बाद थी। किसी ने नहीं सोचा कि इसकी गोदी में बच्चा है जो दूध मां का दूध पीता है और यह फिर गर्भवती हुई है।  थोड़ी थोड़ी देर के बाद  क्रोधित होकर, परशोतम खड़ा हो हो कर बोलता,’’ठीक करके रख दूंगा। मुझे ऐसा वैसा आदमी मत समझना।’’ सरोजा के कहने पर चांदनी ने उसके पांव पकड़ कर माफी मांगी फिर भी मां के समझाने पर बड़ी मुश्किल से परशोतम का गुस्सा उतरा और उसने अनशन खत्म किया। आराधना और मिसेज कुमार दोनो ने आपस में सलाह की कि अगर चांदनी के फिर लाल पैदा हुआ, तो ये लोग तो चांदनी को लालों की खान बना देंगे। इन लोगों को लड़कों का बहुत क्रेज़ रहता है। लड़के ही पैदा करवाते रहेंगे। उन्होंने सरोजा को समझाया कि चांदनी के दूसरे बच्चे के बाद परशोतम का अपरेशन करवा देना क्योंकि अंग्रेजी स्कूल में बच्चे पढ़ाने का खर्चा बहुत है। पर सरोजा डिलीवरी के साथ ही चांदनी का ऑपरेशन करवाने को राजी हो गई। सरोजा के दूसरा भी पोता हुआ। उसका नाम टोनू रक्खा। कपड़ा सुखाने में दिक्कत का कह कर सरोजा ने काने से छत खाली करवा ली। बाकि तीनो किरायेदार तो पत्नियों वाले थे। काने ने छत खाली कर दी,वहीं एक कमरा किराए पर  ले लिया  लेकिन परशोतम और उसकी दोस्ती में कोई कमी नहीं आयी। पीछे वाले घरों में पत्नी को पिटने की परंपरा थी। उनका कहना था कि औरत पैर की जूती होती है, जिसकी मरम्मत होती रहती है। और बड़े बूढ़े बुढ़ियों को चलते फिरते बेमतलब उपदेश देने की आदत थी। एक दिन परशोतम ने किसी बात से नाराज होकर चांदनी की पिटाई करनी शुरु की। चांदनी चुपचाप मार खाती रही। मोनू के चीख चीख कर रोने पर सरोजा दौडी़। देखती क्या है कि वह रुई की तरह उस पर डण्डा बरसा रहा था। सरोजा मदद के लिए चिल्लाने लगी। पड़ोसियों ने आकर छुड़ाया। मर्द लोग कहने लगे ,’’इस तरह भी लुगाई को कोई पीटता है। हम भी मारते हैं पर इसने तो हद ही कर दी।’ इनमें से ही कुछ घटिया औरते बोल रहीं थीं,’’ आदमी है, गुस्सा आयेगा तो पीटेगा ही।’’ चांदनी को अकेली देख कर कुछ भली औरतों ने समझाया कि जब आदमी पीटने को आये तो जोर जोर से रो रो कर चिल्लाओ ’अरी, मैया री मार डाला री।’ पड़ोसी आ जाते हैं बचाने। ऐसे चुपचाप मार नहीं खाते
क्रमशः                       

Thursday, 19 December 2019

जहां भी देखी अच्छी सूरत , दिल उसका खो गया वहीं... हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 9 Neelam Bhagi 9 नीलम भागी


दोनो मिल कर काम करतीं थी इसलिए जल्दी घर लौट आतीं थीं। पहले परशोतम मां के आने तक घर के सब काम करके रखता था। अब घर वैसा ही मिला जैसा वे छोड़ कर गईं थीं। सरोजा को ये देख कर बड़ी खुशी मिली कि उसका लाडला जोरु का गुलाम नहीं है। चांदनी आते ही घर के काम में लग गई।  गर्म खाना खिला कर खाया। यहां उसे दोपहर को भी आराम करने को मिलता था, जिसकी उसे आदत नहीं थी। सरोजा, मैडम लोगों के घरों में देख कर तरह तरह के खाने बनाने सीख गई थी। वह चांदनी को भी सिखाती थी। सीखने की शौकीन चांदनी सब बहुत स्वाद बनाती थी। सरोजा चाहती थी कि नया काम चांदनी खाना बनाने का ही ले। खाना बनाने वाली दो ही समय आती थीं, चाहे लंच डिनर बनवालो, या डिनर ब्रेकफास्ट या  ब्रेकफास्ट लंच। आराधना और मि.कुमार दोनो परिवारों ने बच्चों के बाहर जाने पर सरोजा से कहा कि कोई खाना बनाने वाली भेजे। सरोजा ने कहा कि चांदनी बना देगी पर वह शाम  को नहीं आयेगी। उन्होंने कहा कि सुबह हमें ब्रेकफास्ट करवा दे और लंच बना कर रख जाये। सरोजा बहुत खुश थी कि  उसके साथ ही आयेगी और साथ ही जायेगी। खाने में पैसा भी ज्यादा मिलता है और मेहनत भी कम है। चांदनी को सुबह नहा कर, और साफ कपड़ो में आना पड़ता था और वह आती भी थी। उनके अच्छे दिन चल रहे थे। चांदनी को गर्भ ठहर गया। सरोजा बहुत खुश थी कि अब बेटे का घर बस गया। सास टोली उसके आस पास अपनी बच्चा जनने की कथा सुनाती, सभी के अनुभवों का एक ही परिणाम होता था कि उनके जब दिन चढ़े थे तो उन्होंने खूब काम किया था इसलिये उनको बच्चा पैदा करने में जरा भी तकलीफ़ नहीं हुई। मैडम लोग इन दिनो आराम करती हैं, बिस्तर  पर पड़ी रहतीं हैं। इसलिए डाक्टर उनका पेट चीर कर बच्चा निकालता है। अब चांदनी फुदक फुदक कर काम करती थी। सब उसके आस पास अच्छी बातें करतीं थी। मसलन सरोजा ने, पहले नाक सुनका, पल्लू से आंखें पोंची फिर गला भर कर, चांदनी को सुना कर, सखियों से बोली,’’ बहन तुमसे तो कुछ छिपा नहीं है। बंसी की आदत थी जहां भी कोई अच्छी सूरत देखी, उसका दिल वहीं  खो जाता था। चांदनी सबके लिये हलवा तो बना बेटी।’’ संतोषी बोली,’’हमारा परशोतम तो देख ही न सकें इसे तो कोई अपसरा भी क्या रिझायेगी!’’सब कोरस में बोलीं,’’ इसके दिल की रानी तो चांदनी ही रहेगी।’’ हलवा पार्टी करके, अपने आंखों वाले पतियों की दिल फेक अदाओं का वर्णन करके, सबने कहा कि चांदनी के तो बेटा होगा और सब अपने अपने घर चल दी। आराधना ने डांट डपट कर प्रसव के लिए उसका सरकारी अस्पताल में नाम लिखवाया। बस राजरानी थी जो हर महीने मुझे ये कहने से बाज नहीं आती थी कि सरोजा को समझाओ ये प्लॉट बेच दें। मैं भी अच्छा कहती। सरोजा ने डिलीवरी के समय बदले में काम करने के लिए कामवालियां भी तैयार कर रक्खीं थीं जो बाद में उसको उसका काम उसे लौटा देंगीं। समय पर चांदनी ने बड़े मोहने से बेटे को अस्पताल में जन्म दिया। उसका नाम मोनू रक्खा। सरोजा ने चांदनी को खूब घी, हरिरा, अछौनी खिलाया। साथ ही भगवान का शुक्रिया अदा करती कि उसने उसे स्वस्थ, सुन्दर, फायदेमंद बहू दी हैं। जिसने उसे पोता दिया है। बच्चे के दश्टोन(नामकरण ) तक सोहर, जच्चा गवाये। जो रोज सुन सुनकर राजरानी को सब याद हो गये। दश्टोन पर चांदनी के मां बाप नाती से मिलने आये। सरोजा ने खुशी से उन्हें गांव के घर की चाबी दे दी। साथ ही कहा कि अब तुम कच्चे मकान में मत रहना। मोनू के नाना अब उस पक्के घर में रहेंगे। सास की इस हरकत पर चांदनी की खुशी से आंखें गीली हो गईं। वे बेटी के सिर पर प्यार से हाथ फेर कर चले गये। काना उन्हें बस में बिठाने गया था। सबके जाने पर चांदनी परशोतम के चेहरे की प्रतिक्रिया देख रही थी।  जो पूरी तन्मयता से रेडिया के साथ सुर मिला कर गा रहा था ’कभी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता।’
क्रमशः

Tuesday, 17 December 2019

वक्त के सितम कम हंसीं नहीं, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 8 Neelam Bhagi 8 नीलम भागी


सजी संवरी चांदनी को देख कर सरोजा को थोड़ा भगवान पर भी मन में गिला आया कि वह परशोतम की  एक आंख तो ठीक देता। देख कर वो हैरान हो जाता कि उसकी मां उसके लिए चांद सी दुल्हिन लाई है। फिर एक लम्बी सांस छोड़ कर मन ही मन बोली,’’जोड़ी तो भगवान बनाता है। चांदनी के नसीब में परशोतम ही लिखा था और मेरे जैसी अच्छी सास लिखी थी।’’ सरोजा ने चांदनी को अपने झोले में से निकाल कर टूथब्रश दिया। और समझाया कि अब अंगुली से दांत मत मांजियों, इससे मांजियों। ब्रश हाथ में लेते ही वह खिल गई। वो खाना बनाने लगीं। सरोजा नहाने लगी। जैसे ही वह नहा कर आई, चांदनी ने परशोतम और उसके आगे थाली परोसी और तवे से उतरती फूली फूली रोटियां उनकी थाली में रखती रही। मां बेटे के खाने के बाद सरोजा ने कहा,’’चांदनी अब तूं भी खा ले गरम गरम। हम परशोतम की दादी की तरह नहीं हैं। वो क्या करे थी, आप खा के जरा सी सब्ज़ी हमारे को देती। जिस दिन सब्जी नहीं बचती तब कहती,’’अपने आप खाना ले लो।’’ हम नमक प्याज हरी मिर्च से रोटी खा लेवें थे। बहू तूं खूब जी भर के खा। ’हम अपनी सास की तरह न हैं।’ सास की हर दरियादिली के साथ उसको स्वर्गीय दादी सास का परिचय अच्छी तरह हो गया था। वो अपनी सास और पति की जी जान से सेवा करती थी। खाकर सोकर जब सरोजा मौहल्लेदारी करने जाती तो उसकी हम उम्र सखियां पहला प्रश्न पूछतीं,’’चांदनी क्या कर रही है?’’वो कहती,’’ परशोतम के पास बैठी है।’’ वो समझातीं ऐसे तो सबकी बहुएं बिगड़ जायेंगी। ख़सम के पास बैठने को रात क्या कम होवे? वो कहेंगी हम भी अपने घरवाले के पास बैठेंगी। घर का काम ही कित्ता है। कल को बाल बच्चे होंगे। उनको अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना, ट्यूशन लगाना कित्ता खर्चा!! बुढ़ापे में क्या तूं ही खटती रहेगी? सुनकर सरोजा परेशान हो जाती। इन महिलाओं का, आपस में बिना कहे एक समझौता था कि तूं मेरी को कह, मैं तेरी को कहूं। सरोजा काम पर गई। चांदनी काम निपटा कर परशोतम को समझती रहती थी कि ये बिना किसी की मदद के अपने सब काम खुद कैसे करता है! कई बार वह ऑंखें बंद करके, घर में चलने की कोशिश करती, तो चीजों से टकरा जाती थी। वह परशोतम पर बहुत हैरान होती थी। सोच सोच कर कई बार वह परेशान हो जाती थी। ऐसे में एक दिन सास की सहेली संतोषी उससे बालों में से जूएं बिनवाने आ गई। उसने सरोजा की स्तुति सुनाई की, बड़ा परिवार था बाहर का काम भी करती थी। घर का भी करती थी। सास की खूब सेवा की, उसकी असीस से भाग जागें हैं। जो तेरे जैसी लक्ष्मी बहू मिली है। वो तो चली गई। चांदनी सोचने लगी वो कैसी बहू है! सास बुढ़ापे में भी कमा रही है और वह राज कर रही है।  चांदनी ने भी निश्चय कर लिया। रात को जब सास के पांव दबाने लगी तो उसने सरोजा से कहा,’’अम्मा तुम अपनी मदद को हमें काहे नहीं साथ ले जातीं, हम दिन भर खाली ही तो रहती हैं। यही तो सरोजा चाहती थी। सुबह की तैयारी सरोजा ने रात को ही कर ली थी। दोपहर में जो सब्जी बनानी थी उसे काट कर रात को ही फ्रिज में रख दिया था। सुबह नाश्ता करवा कर और करके वो अपनी सास के साथ काम पर चल दी। रास्ते में सास ने समझाया कि किसी की कितनी भी कीमती चीज हो, उसे नहीं छूना है। मालकिन को दीदी कहना है। साहब को भइया। साहब की तरफ नहीं देखना है। क्रमशः               


Monday, 16 December 2019

बोटेनिक गार्डन ऑफ इण्डिया रिपब्लिक नौएडा Botanic Garden Of India Republic Noida Neelam Bhagi नीलम भागी




पहली बार 12 मई 2018 को सायं 6 बजे यहां एक कार्यक्रम में मैं यहां आई थी। जब तक अंधेरा नहीं हुआ था, तब तक मैं यहां घूमती रही थी क्योंकि यह मेरी मनपसंद जगह जो थी। फिर थक कर प्रोग्राम में बैठ गई। बी.एस.सी. में मेरे पास बॉटनी सब्जैक्ट था। कॉलिज में बॉटनी डिर्पाटमैंट का गार्डन था। उसकी और र्चाट की मदद से हम पढ़ते थे। तब एक ही उद्देश्य होता था कि अच्छी परसेन्टेज लेना। जिसके लिए सलेबस रटते थे और एग्जाम में जाकर उगल आते थे। कार्यक्रम बोटेनिक गार्डन ऑफ इण्डिया रिपब्लिक के बारे में ही था। तभी मैंने सोच लिया था कि मैं कम से कम एक साल बाद यहां आउंगी। यहां आना जरा भी मुश्किल नहीं है। मैट्रो स्टेशन, पब्लिक ट्रांसर्पोट सब एकदम बढ़िया और पास में। सुबह 9से 5 सोमवार से शुक्रवार आप आ सकते हैं। प्रवेश निशुल्क है। तब में और अब में बहुत बदलाव देखकर लगा। यह 160 एकड़ में फैला है। 7500 किस्म की वनस्पतियां हैं। बिल्कुल व्यवस्थित है। इनको दस सेक्शन में बांटा गया है। उसको भी आगे वार्ड में बांटा गया है। जैसे अयूर सेक्शन हैं उसमें भी बॉडी सिस्टम के अनुसार, मसलन पाचन तंत्र, रक्तसंचार, मस्कुलर सिस्टम,चर्मरोग के उपचार की औषधिय वनस्पितियां हैं सभी पौधे सटीक लेबल किए हुए हैं, साथ ही उनके वनस्पतिं नाम भी हैं। भारत का एक बड़ा नक्शा 68 फीट × 61.4 फीट का जिसमें हर राज्य का पौधा है। कैक्टस हाउस, ग्रीन हाउस, ग्लास हाउस, गुलाब वाटिका,चं का पौधा,आर्थिक महत्व के पौधे, जलीय पौधे आदि सब।  यहां आना अपने आपमें में एक अलग सा अनुभव है। क्योंकि इस विशाल बाग में पर्यटन के साथ खुली हवा, ताज़गी में वनस्पतियों को जानना शामिल है। ं




















Thursday, 12 December 2019

हर कोई इंटैलीजैंट नहीं होता! राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल और ग्रीन पार्क नौएडा Rashtriye Dalit Prerna Sthal Noida Her Koi Intellegent nahi hota Neelam Bhagi नीलम भागी



हुआ यूं कि मैंने कल, ठान लिया था कि मैं राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल नौएडा देखने जरुर जाउंगी। पहली बार गर्मी के मौसम में हम शाम को गए थे, पार्किंग ढूंढ रहे थे जो वहां नहीं थी तो खोमचे वाले बोले,’’रोड पर र्पाक कर लो, यहां से कभी कोई गाड़ी नहीं उठी। फिर पता चला कि टिकट 11 बजे से शाम 5 बजे तक ही मिलते हैं। वापसी की। मेरे घर से कुल सात किमी. की दूरी है। बस यही सोच कर कि यहाँ तो मैं कभी भी आ जाउंगी। आज कल करते करते इतने दिन लग गए। कल जैसे ही 3 बजे घर से बाहर निकली सामने बस, ये सोच कर चढ़ गई कि आस पास पहुंच कर कोई और सवारी ले लूंगी। मैं सीट से उठ उठ कर बाहर देख रही थी कि कहां उतरुं! कडंक्टर ने मुुझसे पूछा,’’आपको कहां उतरना है?’’मैंने कहा,’’मुझे राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल जाना है, जहां से पास पड़ेगा वहां उतार देना। उन्होंने कहा कि आप तसल्ली से बैठ जाओ। मैं तसल्ली से बैठ गई। बॉटैनिकल गार्डन पर बस रुकी। उसने मुझे कहा कि उतर कर फुटओवर ब्रिज से अंदर जाकर 8 नम्बर बस ले लेना, वो उसके पास जाती है और ड्राइवर से बोलना,’’ बहन मायावती पार्क जाना है, वो मत बोलना जो आपने पहले बोला था| मैंने पूछा,"राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल|"उन्होंने  कहा," हाँ हाँ यही|" फिर समझाया  ,ऐसे कहना कि बहन मायावती पार्क जाना है, ये बोलने के साथ राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल भी बोल देना क्यूंकि हर कोई इंटैलीजैंट नहीं होता न।"उनको धन्यवाद देकर मैं उतर गई और उनकी बताई बस में चढ़ी, उसमें बच्चों के बड़े और भारी बैग और स्कूली बच्चे लेकर महिलाएं चढ़ीं। कण्डक्टर चिल्लाता रहा,’’ अरे पास ले लो।’’ किसी ने नहीं लिया डीटीसी की यात्रा जो मुफ्त है। मैंने कण्डक्टर से सब महिलाओं के पास लेकर, भीड़ में रास्ता बनाती, उन महिलाओं को पिंक स्लिप यानि पास पकड़ाती, ड्राइवर तक पहुंच कर उसे कहा,’’मुझे बहन मायावती पार्क के पास उतार देना।’’ उसने जवाब दिया,’’पहले बोलना था न, वो कट तो निकल गया।’’मैं स्टैण्ड पर उतरकर वापिस घर चल दी। इस बस के कण्डक्टर के बराबर मुझे सीट मिली। मैने उसे अपना सेक्टर बता कर वहां से "राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल, बहन मायावती पार्क"   का रास्ता पूछा,’’ उसने बस का नम्बर बता कर कहा कि फ्लाइओवर से पहले उतर कर ई रिक्शा ले लेना।’’ आज मैंने वैसा ही किया बस से उतरी कोई ई रिक्शा नहीं था। एक साइकिल रिक्शा दिखा। मैंने उसे चलने को कहा,’’उसने छूटते ही कहा कि बीस रुपये लूंगा। फुट ओवर ब्रिज पर उतार दूंगा, वहीं पार्क है पर टिकट पांच नम्बर गेट पर मिलती है। और उसने पूछा," क्या आज वहां कुछ है!" मैं बोली,’नहीं।’’ पास में ही ब्रिज था| उपर से ही पार्क बहुत ही सुन्दर लग रहा था। साफ फुटपाथ पर लाइन से छाया दार पेड़ लगे थे।


15रु की टिकट लेकर मैं अंदर गई। बिल्कुल साफ सुथरे फर्श, बहुत अच्छे से मेनटेन पार्क हैं। मैं देख रही थी, दर्शकों के साथ कर्मचारियों का व्यवहार बहुत अच्छा लगा।


 जो भी पूछो जवाब देते थे। विनोद कुमार बड़ी विनम्रता से दर्शकों को कहते कि वे म्यूजियम के अन्दर न जायें क्योंकि वहां रिपेयर चल रही है। सब सीढ़ियां चढ़ कर सामने से बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी, काशीराम जी और बहन मायावती जी की मूर्ति के साथ दूर से सेल्फी ले रहे थे।



 अभय सिंह से मैं प्रश्न करती जा रही थी, वे मेरे सभी प्रश्नों का जवाब दे रहे थे। कुछ परिवार पिकनिक मनाने आये हुए थे। मैंने अभय सिंह से पूछा,’’  लोग गंदगी तो नहीं फैलाते।
उन्होंनेे जगह जगह रखे डस्टबिन दिखाये। 33 एकड़ में बना पार्क है। थक गई तो देखा, बैठने के लिए बहुत सुन्दर शेड बने हुए थे। 
बिना शेड के  भी आरामदायक बैंच लगे थे। एक आदमी बैग का तकिया बना कर शॉल ओड़ कर धूप में सो रहा था। प्लेटर्फाम पर 2 घंटे का टिकट 10 रुपये का है।

 यहाँ 15 रुपये में शांत, स्वच्छ हरे भरे स्थान में आप सपरिवार दिन भर समय बिता सकते हैं। अगर आप ने 5बजे तक टिकट ले ली तो भी आप 6 बजे तक घूम सकते हैं। सातों दिन आ सकते हैं।


 एक प्रश्न मेरे दिमाग में बार बार उठ रहा था कि इतनी खूबसूरत प्रेरणा स्थल में भीड़ क्यों नहीं है? ये प्रश्न लेकर, बाहर आकर मैं उसी रास्ते से वापिस पैदल चल रहीं हूं। चलते चलते  रजनीगंधा चौक और सबसे पास  सेेक्टर 16 का मैट्रो स्टेशन आ गया। भीड़ न होने का कारण भी मुझे समझ आ गया। कनैक्टिविटी न होना है।  अगर पैदल चल सकें तो  सेक्टर 16 मैट्रो स्टेशन पास है।   




Tuesday, 10 December 2019

सजना है मुझे, सजना के लिए हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 7 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 7 Neelam Bhagi नीलम भागी



शादी की दावत निपट गई। सरोजा की जिंदगी में भी सुख के दिन आए। सरोजा को अब सास का पद नसीब हुआ। उसने चांदनी को बड़े प्यार से अपने पास बिठा कर गृहस्थी के नियम समझाते हुए कहा,’’मैं हमेशा अपनी सास से पहले सुबह उठती थी। सब को खिला कर, चौका समेट कर, बरतन घिस कर बैठती थी। जो सास देती, वह खाती थी। फिजूल खर्ची कभी न की, जभी तो इत्ती बड़ी बिल्डिंग बना ली। कभी सास के पांव दाबे बिना न सोई। पर मैं ऐसी न हूं। जब तुझे भूख लगे, तूं खा लियो। बस मेरे परशोतम को खुश रखियो।’’ सास के प्रवचन सुन कर चांदनी ने सिर झुका कर हामी भर दी। और उसके  पांव दाबने लगी। इतने में परशोतम ने चांदनी चांदनी का जाप शुरु का दिया। और सरोजा ने उसे सोने की परमीशन दे दी। चांदनी गर्दन झुकाए चल दी। सरोजा सोचने लगी कि उसका पति यदि उसकी सास के सामने ऐसे उसके लिए पुकार मचाता तो उसकी सास या ससुर उसे लट्ठ से पीटते। अब तो घोर कलयुग आ गया है। ये सोच कर वह सो गई, सुबह काम पर भी जाना है। मुंह अंधेरे चादंनी की नींद खुल गई। सास अभी सो ही रही थी।  पीछे कमरे में ये सो रहे थे। आगे रसोई, बाथरुम के सामने की जगह पर सरोजा सो रही थी। सास की नींद खराब न हो इसलिए वह उठ कर काम भी नहीं कर सकती थी। दोबारा नींद न लग जाये और वह सोती रह जाए, सास उसके पहले जाग गई, तो नियम का उलघंन हो जायेगा न। हंसना और रोना तो वह जन्म लेते ही सीख गई थी। पराये घर जाना है इसकी तैयारी उसकी मां ने उससे खूब काम लेकर करवा दी थी। अब जिंदगी को कैसे जीना है? ये उसे सीखना है। जैसे ही सरोजा उठने को हुई, चांदनी उसके पैरों के पास जाकर खड़ी थी। उसके बैठते ही उसने सास के पैर छू लिए और चाय नाश्ता बनाने लगी। जीवन में  पहली बार उसे नाश्ता परोसा गया था। नाश्ता करके सरोजा काम पर चली गई। खटर पटर और दो औरतों की बातों में भी परशोतम घोड़े बेच कर सोता ही रहा। परशोतम सो कर उठा। वह जो भी अपना काम करने लगता, चांदनी झटपट उसकी मदद को आती, वह गुस्से से उसका हाथ झटक देता। जब वह नहीं मानी तब उसने कठोर आवाज में कहा कि जब मैं मदद मांगूंगा तब देना। अब जब उसने नश्ता मांगा। तब उसने उसे गर्म गर्म उसे परोसा। घर के सब काम निपटा कर, नहा कर उसने दोपहर के खाने की तैयारी कर ली। सास आयेगी तो उसे गर्म रोटी खिलायेगी और ढूंढ ढूंढ के घर के काम निपटाने लगी। इतने में एक पड़ोसन सास की सहेली आई। पहले वह चांदनी को घूरने लगी, फिर घूरना स्थगित का बोली,’’क्यों री, हमारा छोरा अंधा है, तो इसका मतलब ये न है कि तूं सोक डाल के बैठी रहेगी। चल पहले श्रृंगार कर। सुहागिन है। कौन से शास्तर में लिखा है कि अंधे की लुगाई को श्रृंगार की मनाही है।" चांदनी जल्दी से सजने संवरने लगी, सास के आने से पहले ये सोच कर कि जब उसकी सहेली को इतना बुरा लगा है तो सास को कितना बुरा लगेगा उसका न सजना!! घर को सवारने में वह सुबह से ही जी जान से लगी हुई थी। अपने लिए उसने सोचा, वो सजे न सजे परशोतम को क्या र्फक पड़ेगा? पर यहां तो पति को छोड़, सबको पड़ने लगा  था। सरोजा तो घर में कदम रखते ही खिल गई। घर और बहू को सजा देख कर।  क्रमशः          

Friday, 6 December 2019

दिल ने मेरे जो कहा, मैंने वैसा ही किया, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 6 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 6 Neelam Bhagi नीलम भागी


सरोजा ने शादी तो गाँव में की थी क्योंकि बारात बांध कर सबको गांव तो वो नहीं ले जा सकती थी। उसका यहां व्यवहार बहुत था। कहीं न कहीं से उसे बुलावा रहता ही था, अब उसका बुलाने का समय आया है। परशोतम की शादी!! वो भी अर्पूव सुन्दरी से ये तो उसके मन की मुराद पूरी हुई थी। अपनी खुशी को वह सब में बांटना चाहती थी। उसने काने को आवाज लगाई। उस समय काने के खोखे पर गुटके, पान, पानमसाला और सिगरेट के ग्राहक थे। उसने भी वहीं से जवाब दिया,’’चाची ग्राहक निपटा कर आता हूँ।’’इस कालौनी में इस पीढ़ी के कुछ रिवाज थे। मसलन संबोधन में चाचा, काका, मौसी, भुआ, ताऊ आदि शब्दों से पुकारते थे। मामूली अपंग का नाम बचपन में उसके माँ बाप प्यार से बच्चे का जो मरज़ी रक्खें, पर  बड़े होने पर लोग नामकरण अपने आप अपंगता के अनुसार कर देते हैं। एक आँख खराब है तो काना, टाँग में कमी है तो लंगड़ा, मुंह पर चेचक के दाग हैं तो नाम है छेदी, छेदीलाल या छेदी राम। अगर कोई लड़का किसी लड़की को भगा कर ले जाता है और वो कुछ समय बाद लौट आते हैं और अपनी गृहस्थी बसा लेते हैं तो उस लड़की का नाम कुछ समय तक भगौड़ी रहता है। परशोतम  इस प्रकार के नामकरण से बचा हुआ था। काने का खोखा इनके घर से दिखाई देता था। काने ने इनकी छत किराये पर ले रक्खी थी। छत पर उसने तिरपाल और गत्तों से सोने और सामान रखने की जगह जगह बना रक्खी थी और अपने खोखे की रात में निगरानी भी कर लेता था। दिन में सरोजा के घर की और मौहल्ले की सूचनाएं इक्ट्ठी करके सरोजा को देता था। उसके खोखे पर हमेशा एक दो आवारा किस्म के लड़के खड़े रहते थे। उनका एक ही काम था, स्टाइल में रहना और ध्यान रखना कौन सी लड़की कितने घरों में काम करती है। उसमें से अपने लायक योग्य लड़की से इश्क कैसे लड़ाया जाये, इस पर विचार करना आदि। काने के आते ही सरोजा ने उसके आगे तश्तरी में दो लड्डू और पानी का गिलास रक्खा और चांदनी को बुला कर कहा,’’देख री, ये काना मेरे लिए बेटे से बढ़ कर है, इस नाते तेरा ये जेठ है। कोई भी काम रात के बारह बजे भी इसे कहती हूं। ये कभी जवाब नहीं देता।’’ वो तो पलक झपके बिना चांदनी को निहार रहा था। पता नहीं क्यों आज काने को अपने लिए चांदनी के सामने काना कहे जाना अच्छा नहीं लगा, उसका मुंह लटक गया। चांदनी निगाह और गर्दन दोनो नीची करके खड़ी रही। उसने काने की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा। इतने में परशोतम ने चांदनी चांदनी की पुकार मचा दी। सरोजा ने कहा,’’जाकर अंदर बैठ, चांदनी अंदर चली गई। काने के चेहरे की लटकन गायब होकर, उस पर मुस्कान लौट आई। सरोजा ने उससे सलाह की कि परशोतम की शादी की दावत कैसे करें? काने ने सलाह दी कि सोमवार को मार्किट की छुट्टी होती है। परसों ही सोमवार है। सतनारायण भगवान जी की कथा करवा कर, सबका खाना कर दो। सरोजा बोली,’’मैं जनानी जान, कैसे ये सब कर पाउंगी? बेटा तूं ही सब इंतजाम करियों और देखियो। मैं तो बस पैसे ही दे सकूं।’’वहाँ के बाशिंदे ही तो नामी हलवाइयों के कारीगर थे। हम सब को भी दावत का बुलावा था। उसने शाम का समय रक्खा था। हम लोग पहुंचे तो राजरानी वहाँ पहले से ही बैठी थी। कथा लगभग समापन पर थी। उसने इशारा करके मुझे और अराधना को अपने पास बिठाया। हमारे बैठते ही फुसफुसा कर बोली,’’दीदी चांदनी बहुत ही सुंदर है।’’सामने देखा, परशोतम के बाएं ओर घूंघट में गर्दन झुकाए चांदनी बैठी हुई थी। आरती के बाद सरोजा ने खाने के लिए हमें शामियाने  में न बिठा कर अंदर बिठाया। चांदनी ने उनके रिवाज के अनुसार हमारी घुटनों तक टांगें दबा दबा कर पांव छुए। हम उसे रोकना भूल कर, एकटक उसका चेहरा देखते रह गए। अराधना  बोली,’’इसकी तो उम्र भी कम है।’’सरोजा ने जबाब दिया,’’दीदी, बूढ़े तोते राम राम नहीं सीखते। छोटी है न जैसी चलाउंगी वैसी चलेगी।’’खाना भी ग़़ज़ब का स्वाद था।    क्रमशः     

Wednesday, 4 December 2019

ख़्वाब में झूठ क्या! और भला सच है क्या? हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 5 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 5 Neelam Bhagi नीलम भागी


सरोजा का अब एक ही सपना था, सुन्दर सी गोरी चिट्टी बहू और प्यारे प्यारे पोते। अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने में वो जी जान से लगी हुई थी। किसी के घर से उसे जो भी मिलता, वो ले लेती। सामान तो रास्ते में ही कबाड़ी को बेच कर रुपये अंटी में कर लेती थी। कपड़े वगैरहा संभाल लेती थी। साल में दो बार सर्दी और गर्मी की छुट्टी में दस दस दिन के लिए गांव जरुर जाती। बाकि दिन वह कभी नागा नहीं करती थी। इसलिए उसकी मैडम लोग मैनेज़ कर लेतीं थीं। उसकी पांचों घरों की मैडम नौकरी वालीं थीं। गांव में उसका अपना मकान था। जिसको उसने रहने लायक कर रक्खा था। जब झोपड़ पट्टी में रहती थी तब सोचती थी कि बुढ़ापे में जाकर वहाँ रहेगी। अब शहर में मकान और रोजगार होने पर भी  इस उम्मीद से आती थी कि परशोतम का रिश्ता अच्छा हो जायेगा। परशोतम को शहर से भी रिश्ता आता था पर सरोजा का मानना था कि दिल्ली की लड़की को काम करने की आदत नहीं होती। भला घर का काम भी कोई काम है। छोटे छोटे घर में सफाई कित्ती! चौका बर्तन और कपड़े धो लिए बस। और गांव की लड़की सारा दिन खेत में काम, पशुओं का काम, घर का काम तो करना ही है। उसे काम करने की आदत होती है यानी काम करने की मशीन होती है। गांव जाते समय परशोतम के कपड़े, जूते, कच्छे बनियान तक नये होते थे। साथ में मैडम लोगों के घर सें  मिले कपड़ों के गठ्ठर ले जाती। दस दिन तक वह वहाँ कोई काम नहीं करती थी। सामने दूहा दूध, वहां पैदा होने वाली ताजी़ फल सब्जियां नगद पैसा देकर लेती थी। अच्छा खाती, अच्छा पहनती, सब उससे मिलने आते या वह जाती, जो भी उसे बुलाने जाता उसके घर जरूर जाती। अच्छी तरह ड्रैसअप होकर हैंडसम परशोतम सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा लगाये गाने सुनता रहता था। जो भी उसका काम करता उसे वह कपड़ा देती। सबसे कहती कि वो तो शहर में परशोतम की शादी तक है। उसका घर बसा कर, वह वापिस गांव में अपने लोगों के बीच में रहेगी। रहने को घर ऊपर से चार किराये और मौके का मकान है ,जिसकी कीमत अनमोल है। फिर गला भर कर नाक सुनक कर कहती,’’ बंसी की किस्मत में सुख नहीं था, उन्हेें जल्दी भगवान ने बुला लिया। परशोतम के दुख में वे चले गये। जिन्दा रहते तो देखते भगवान ने जे उसको आंख न दी तो नसीब ऐसा दिया है कि उसे काम करने की जरुरत ही न।’’ साथ ही बोलती,’’ परशोतम की शादी में मैं न कुछ दूंगी न कुछ लूंगी बस लड़की सुन्दर चाहिए।’’ उसके ठाठ देख कर शुरु शुरु में किसी ने कहा कि हमारे छोरा को ले जाकर किसी काम धंधे में लगा दो न दिल्ली में।’’ उसने दो टूक जवाब देते हुए कहा,’’हमारे यहाँ अंग्रेजी पखाना है। जिसे हमें खुद ही साफ करना पड़ता है। तुम हो जमीन पे हगने वाले, वहाँ जंगल दिशा के लिए कोई मैदान जगह नहीं है। हम न किसी का पॉट साफ करते न करवाते।’’ फिर लोगों ने कहना ही बंद कर दिया। लौटते समय अपने कपड़े भी दे आती। उसकी सूझ बूझ रंग लाई। एक खूबसूरत बेटी के गरीब पिता ने ये सोच कर कि उसकी बेटी चांदनी और उसके होने वाले बच्चों को दो वक्त की भर पेट रोटी मिलेगी। चांदनी का विवाह परशोतम से कर दिया। चांदनी सरोजा के घर में आई और उसकी सुन्दरता की चर्चा बाहर आई।   क्रमशः           

Saturday, 30 November 2019

सांस लेता सोना, हाय! मेरी इज्ज़त का रखवाला भाग 4 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 4 Neelam Bhagi नीलम भागी


राजरानी हर महीने मुझे कहती कि मैं सरोजा को समझाऊं कि वह अपना प्लॉट उसे बेच दे। एक दिन आराधना के घर सरोजा से मैंने प्लॉट न बेचने का कारण पूछा, तो बदले में उसने मुझे इस प्रकार कहानी सुनाई कि आराधना और उनके सामने के अर्पाटमैंट में जो हिसाब के मास्टर जी(मैथ लेक्चरर मि. कुमार) रहते हैं न, दोनों के घर की एक चाबी मेरे पास रहती है। मैं इनके कॉलिज से लौटने से पहले दोनो घरों के काम निपटा देती हूँ। एक दिन मुझे बुखार आ गया। मास्टर साहब घर पता करने आये कि मैं बिना बताये घर क्यों बैठ गई? मुझे बुखार में देख कर पहले डॉक्टर से दवा दिलवा कर आये। फिर फल, दूध और अण्डा लाकर पड़ोसन संतोषी को जैसे डॉक्टर ने कहा वैसे मेरा ध्यान रखने को समझाया। जब मैं ठीक होकर काम पर गई तो उस दिन छुट्टी थी। साहब ने कहा,’’सरोजा मेरी बात ध्यान से सुन। तेरा घर बहुत मौके का है। कितनी भी मुसीबत आये इसे बेचियो और बदलियो मत। ये सांस लेता सोना है। राजरानी का होलसेल का काम बहुत फैल रहा है। जितना उसके बाहर के प्लाट का रेट होगा उतना ही तेरे प्लॅाट का, तेरा उसके साथ जो मिला हुआ है। और अगर ऊपर बनायेगी तो भी पैसा ज्यादा नहीं लगेगा। नींव खोदनी नहीं, भरनी नहीं। बराबर में तीनों ओर बीम, पिलर वाले मजबूत स्टोर हैं। तीन ओर की इनकी दिवारों से चिपका कर एक  ईंट की दीवार बना सामने की नौ इंच की। ज्यादा कीमत वाली तेरी ग्राहक राजरानी है। जब भी तूं बेचेगी। वो तो अपने बिजनैस के हिसाब से तोड़ेगी ही। तूं इतनी देर किराया खा लियो। तूं समझदार है, समझ गई न। दीदी उनका हिसाब मुझे समझ आ गया। दीदी समझदार तो मैं कुछ हूं ही न। अब देखो न परशोतम के बाबू बंसी दारु तो पहले भी पीते थे। पर कभी कभी थोड़ा बहुत काम कर लेते थे, अपनी दारु और चखने लायक, थोड़ा बहुत घर में भी मदद कर देते थे। जब पता चला परशोतम देख नहीं सकता है तो दिन भर घर पर रहना , पीना और मुझे पीटना। मैंने अपनी समझदारी दिखाईं। काम से लौटते समय उसके लिए एक थैली ले आती थी। उसे पीकर पड़ा रहता था। सुबह मैं काम पर निकल जाती, बंसी परशोतम को संभालता और थैली के लिए मेरा इंतजार करता। पहले तो पैसे छीन कर भाग जाता था। जी भर के पीता था। जब नहीं मिलती तो मुझे पीटता था। आराधना गुस्से में बोली,’’अपना कमाती थी, अपना खाती थी। तूने उसे घर से निकाला क्यों नहीं?’’ सरोजा हैरान होकर बोली,’’दीदी, कैसी बांतां करती! उसके कारण माथे पर कुमकुम लगाती, गले में मंगलसूत्र पहनती न! एक थैली लाकर पिटाई से बचती। सुबह मैं काम पर आ जाती। दोपहर बाद घर जाती वो थैली देखते ही खुश हो जाता। है न मेरी समझदारी।’’आराधना बोली,’’ कुमकुम न लगाने से और मंगलसूत्र न पहनने से तूं क्या मर जाती?’’ सुन कर वो बड़े भोलेपन से बोली,’’दीदी, कुमकुम लगाने से और मंगलसूत्र पहनने से मैं दूसरे आदमियों की बुरी नज़रां से बची रहती।’’ मुझे डर था कि मुंहफट आराधना बोल न पड़े कि अब कुमकुम और मंगलसूत्र के बिना कैसे बुरी नज़रों से बची हुई है। शायद वो भी यही सोच कर चुप लगा गई होगी कि चालीस साल से कम उम्र में अपनी इस जीवन यात्रा में साठ साल की लग रही है। .’दीदी यहाँ आने से पहले बंसी मर गया। अब उसका भी खर्च बच गया है। पहली मंजिल बनानी मुश्किल पड़ी फिर तो किराये से दूसरी तीसरी चौथी बन गई। अब अपनी जिंदगी में तो मैं इसे बेचूंगी नहीं।’क्रमशः
 

Tuesday, 26 November 2019

जिंदगी ख्वाब है...... हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 3 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 3 Neelam Bhagi नीलम भागी


इस बार जब मैं सामान खरीदने गई, तो राजरानी चहकती हुई मुझे ऊपर लेकर गई। मेरे आगे मिठाई का डिब्बा रखकर बोली,’’दीदी, पहले मुंह मीठा करो फिर आपको खुशखबरी सुनाउंगी।’’मैंने बर्फी का एक पीस मुंह में डाला तो वह बोली,’’दीदी हमने पीछे वाला सुखिया का प्लॉट खरीद लिया। अब हमारा अंग्रेजी के एल शेप का, पिचत्तर स्क्वायर मीटर का प्लॉट हो गया है। भगवान सरोजा को अकल दे, वो भी अपना प्लाट बेच दे तो हमारा 100 मीटर का रोड का प्लॉट हो जायेगा। फ्रंट रोड और बैक साइड फेसिंग पार्क। आप उसे समझाओ न फिर हम दोनो प्लॉट एक साथ बनवा लेंगे।’’मैंनेे जवाब दिया कि मैं कोशिश करुंगी। अब राजरानी का कारोबार होल सेल का होने लगा था। दोपहर तक आसपास के दुकानदार सामान लेने आते थे। दोपहर बाद ये रिटेल के ग्राहक अटैंड करते थे। महीने में एक बार यहाँ आने का मेरा शौक बन गया था। उसके दोनो बेटे अब दिल्ली के नामी पब्लिक स्कूल के आर्थिक रुप से पिछडे़ आरक्षित पच्चीस प्रतिशत सीटों में एडमीशन पा गये थे। उनका स्थायी निवास झुग्गी झोपड़ी पुनिर्वास कालौनी का जो था। अब मैं दोपहर बाद ही सामान खरीदने आती। राजरानी मुझ से खूब बतियाती। उसका विषय होता था ’ये हमारे पीछे वाले’ साथ ही वहाँ की बुराइयाँ शुरु कर देती और कहती,’’दीदी बच्चों को मैं इनके साथ खेलने नहीं देती। ये लोग गालियां बहुत बकते हैं।’’ इन घरों कें आदमी तो फैक्टिरियों में काम करने वाले, असंगठित क्षेत्र के कामगार, मेनरोड पर बनी दुकानों पर काम करते थे। महिलाएं ज्यादातर घरों में या फैक्ट्ररी में काम करतीं हैं। लेकिन यहाँ रहने वालों का मकसद बच्चों को आमदनी के अनुसार  अच्छी शि़क्षा दिलाना, कोशिश अंग्रेज़ी स्कूल में दाखिला करान और घर को ऊँचे से ऊँचे बनाना है ताकि किराये की आमदनी हो सके। जो घरों में काम करती हैं, वे दोपहर को घर आकर जल्दी से अपने घर के काम निपटा कर, बच्चों को टयूशन भेज कर,पार्क में बैठ कर एक दूसरे की जुएं निकालती हुई बतियाती हैं। अपनी अपनी मैडम के घरों की बातें एक दूसरे से शेयर करती हैं। घरों में तो न धूप आती है न हवा। घर तो इन्हें आंधी पानी से बचाता है और सोने के काम आता है। मुझे तो पार्क इन सब का सांझा आंगन बन गया लगता है। प्रवासी हैं आपस में बहुत मेल मिलाप से रहते हैं। ज्यादातर ने अपनी मैडम का नाम उनके प्लैट नम्बर से रक्खा हुआ है। सभी को एक दूसरे की मैडम की पूरी जानकारी रहती है। अपनी मैडम से हमदर्दी भी रखती हैं। घर घर काम करती हुई कुछ तो मनोवैज्ञानिक हो जातीं हैं। अब जैसे आराधना का गुस्सा नाक पर रक्खा रहता है। कभी भी सरोजा को कह देगी, तू जा मुझे नहीं करवाना तुझसे काम। सरोजा के पास काम की कमी नहीं है पर अराधना जैसी मैडम भी नहीं है। सरोजा अगले दिन जाकर कहेगी,’’दीदी गुस्सा उतर गया तो काम करुं।’’और काम में लग जायेगी, ऐसे ही आठ साल हो गये हैं। सुखिया के पति ने राजरानी को प्लॉट बेचा बदले में यहाँ घर न लेकर पाँच लाख रुपये गाँव ले गया। इस बात से सब दुखी थीं। सबके अपने अपने ख्वाब हैं । सरोजा का एक ही ख्वाब था कि उसका परशोतम जल्दी से जवान हो जाये और वो उसकी शादी कर दे। कहीं से भी उसे खाने को अच्छी चीज मिलती है तो उसे लाकर बेटे को खिलाती है।  सारा घर वोे संभालता है। घर एकदम साफ सुथरा रखता है। दिन भर रेडियो पर गाने सुनता है|रात को माँ के पेैर दबाता है। सरोजा उसके खाने का विशेष ध्यान रखती है। बिना सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा लगाये उसे घर से बाहर नहीं निकलने देती । क्रमशः

Thursday, 21 November 2019

कभी ख़ुशी कभी गम, हाय! मेरी इज्ज़त का रखवाला भाग 2 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 2 Neelam Bhagi नीलम भागी

    

 कुछ समय बाद राजरानी अपने पति के साथ आई। उसने मेरे आगे पचास हजार रुपये रख कर कहा,’’दीदी निकाल दो प्लॉट।’’ चौदहा के पचास इतनी जल्दी! मैंने खुशी खुशी लाकर उनको फाइल दे दी और नोट सम्भाल लिए। अगले दिन उनके नाम पावर ऑफ एटार्नी कर दी। एक दिन मैं आराधना से मिलने उसके घर गई। वहाँ सरोजा काम कर रही थी। मुझे देखते ही चहक कर बोली,’’दीदी इसी बिल्डिंग में मुझे इतना काम मिल गया है कि मैं अकेली कर नहीं सकती। जितना शरीर सह ले उतना ही करती हूँ। मुझे आपसे जरुरी बात करनी थी। बात ये है कि राजरानी रोज मेरे पास आकर कहती है कि मैं अपना प्लाट उसे बेच दूं। वो बदले में मुझे इसी लोकेशन का कहीं और प्लाट खरीदवा देगी, साथ में पैसा भी देगी। पर मैंने सोचा पहले आप से बात कर लूं। आप ले लोगी तो आपका जोड़ा बन जायेगा। हमने तो रहना ही है। यहाँ नहीं रहे तो कहीं और दस बीस घर छोड़ कर रह लेंगे। घर के बदले घर और कुछ पैसे भी मिल जायेंगे। मैंने कहा,’’वो प्लॉट तो राजरानी ने मुझसे खरीद लिया।’’ सरोजा ने पूछा,’’कितने का और कब?’’ मैने बताया,’’पिछले महीने ही तो, पचास हजार का।’’सुनते ही सरोजा को जोर का झटका लगा। वो बोली,’’लो कर लो बात, रोड का डेढ़ लाख का रेट है। और राजरानी का तो जोड़ा रोड का बन रहा था वो तो आपको बाजार भाव से भी फालतू देती।’’ अब तो मैं अपना घर नहीं बदलूंगी। वो तो खुशी खुशी अपने काम में लग गई। और मैं तो अपने को ठगा सा महसूस कर रही थी। आराधना मुझे डांटे जा रही थी कि यहाँ आकर रेट नहीं पता कर सकती थी। मैंने कहा,’’तूं भी तो मेरठ की है। तेरा अर्पाटमैंट भी तो प्रशासन के ड्रा में निकला है। तुझे पता था ये सब! हमने मेरठ में कभी ऐसा सुना ही नहीं था। हमारे वाद विवाद के बाद मैंने अपने मन को समझाया कि मुझे तो मुंह मांगी कीमत मिली है। राजरानी तो व्यापारी है। मुझे बेचने से पहले सोचना चाहिए था। और मैंने किसी तरह मन को समझा ही लिया। राजरानी के दोनो बेटे मेरे स्कूल में पढ़ते थे। पहले उसका परचून का काम था और ऊपर बना कर उसमें  मो रहते थे मेरा प्लॉट खरीदने से अब उनका दोनो प्लॉट मिलाकर परचून और जनरल स्टोर की दुकान थी। मेरे महीने का घर का सामान उनकी दुकान से आता था। बेसमैंट से लेकर चार मंजिल उन्होंने बना लिया था। ऊपर रिहाइश थी। मैं सामान की लिस्ट लेकर जाती। राजरानी का पति उसे बुलाता, वह तुरंत आकर मुझे घर ले जाती। मेरा स्वागत सत्कार करती। सरोजा के बेटे परशोतम के लिए वह दुखी होती थी। वो बताती कि सरोजा तो सुबह काम पर चली जाती है। दोपहर बाद आती है। वो पड़ोसी होने के नाते उसके घर का, बेटे का ध्यान रखती है। मेरा सामान मेरे घर पहुंच जाता और बिल मेरे पास जिस पर टोटल पर काफी रियायत दी होती थी। मैं पेमैंट करती। हर बार मुझे एक बात राजरानी जरुर कहती कि सरोजा को आप समझाइये न। अपना प्लॉट हमें दे दे। इसकी पसंद का घर बनवा कर देंगे, साथ में कैश भी देंगे। हर महीने मुझे यहाँ आना अच्छा लगता था। सर्दी में राजरानी के साथ छत पर धूप में बैठती। पीछे के घरों में झुग्गी से आये प्रवासी लोग एक एक ईंट लगवा रहें हैं या लगा कर घर को ऊंचे से ऊंचा बना रहे होते थे। सैंपल के मकान जैसा किसी ने भी घर नहीं बनाया क्योंकि उस तरह बनाने में धूप हवा के लिए जगह छोड़नी पड़ती है। पर कोई भी अपनी एक इंच भी जगह छोड़ने को तैयार नहीं था। सबने सौ प्रतिशत एरिया कवर किया। सरोजा का घर फेसिंग पार्क है। अगर राजरानी उसे खरीद लेती है। तो रैजिडेंस में सौ प्रतिशत कवर होने पर भी उसके घर में क्रॉस वैंटिलेशन हो जाता और पार्क वो पार्किंग के लिए इस्तेमाल करती।   क्रमशः

Monday, 18 November 2019

अपने घर का सपना, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला!! भाग 1 नीलम भागी Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part Neelam Bhagi


कुछ साल पहले मेरे एक छात्र के पापा महेश मेरे पास आये और बोले,’’दीदी हमारी फैक्टरी के पीछे दिल्ली शुरु होता है। वहाँ झोपड़ पटृी वालों को नामालूम कौन सी जगह से, उनकी झोपड़ियां हटा कर, उन्हें ढाई हजार रुपए में झुग्गी के बदले पच्चीस स्क्वायर मीटर का प्लॉट सरकार ने दिया है। मैंने भी साइड रोड पर उनसे दस हजार रु में एक प्लॉट खरीद लिया है। मेन रोड के प्लॉट तो सभी बिक चुके हैं। आपके यहाँ से तो पैदल का रास्ता है। आप भी ले लो न। और सुनने में तो ये भी आ रहा है कि प्लॉट ज्यादातर दिल्ली के होलसेल मार्किट के व्यापारियों ने खरीदे हैं। इसलिए यहाँ होलसेल मार्किट बनेगी। महेश की बात मेरे दिमाग में घुस गई। छुट्टी के बाद मैं वहाँ गई। रास्ते में महेश को भी बुला लिया। वहाँ जाकर देखती हूं कि दूर तक छोटे छोटे प्लॉट नज़र आ रहे थे। हर प्लॉट में टॉयलेट सीट लगी हुई थी। एक प्लॉट पर प्राधिकरण ने दो मंजिला सैंपल मकान बना कर दिया था। जिसमें हवा, धूप का पूरा ध्यान रक्खा गया था। जो भी मकान बनाना चाहे उसकी कॉपी कर ले। इस कॉलौनी के बराबर में सैल्फ फाइनैंस के तीन बॉलकोनी वाले मल्टी स्टोरी अर्पाटमैंट थे। दो आदमी मैले कपड़ों में, जिनकी आंखों में दोपहर को भी कीचड़ था, वहाँ घूम रहे थे। मुझे देख कर मेरे पास आकर बोले,’’ आपको प्लॉट खरीदना है?’’ मैने कहा,’’हां।’’ उसने जवाब दिया,’’मेरा ले लो, चौदह हजार में।’’ महेश मुझसे बोले,’’दीदी टोकन मनी दे दो। सोचना घर जाकर।’’पर्स मैं लेकर नहीं गई थी। मुटठी में बीस रुपए थे। मैंने उसके हाथ में ब्याना दिया, वो बोला,’’कुछ और दो न।’’ मैंने कहा,’’ देखो तुमने जो मांगा, हमने मोल भाव नहीं किया। जुबान दे दी बस। कल फाइल ले आना और लिखा पढ़ी करके पूरी पेमेंट ले लेना।’’वो बोला,’’ कुछ तो और दो न।’’ मैंने अपनी चोटी से दो बाल तोड़ कर दे दिए। अगले दिन प्लॉट हमारा हो गया। मैंने महेश से पूछा,’’इनसान का अपने घर का सपना होता है। दिल्ली में इनडिपैंडैंट घर बनाने का इनको मौका मिला है, और ये बेच रहें हैं।’’ रमेश ने जवाब दिया,’’कुछ लोग ऐसे भी हैं उन्होने रोड का एक प्लाट बेच कर, अंदर के दो प्लाट ले लिए हैं।’’ मैंने पूछा,’’जो बेच रहें हैं उन्हें नहीं घर चाहिए।’’ रमेश बोले,’’ ये वो लोग हैं। जो मिलजुल के कहीं और झुग्गी डाल लेंगे और इन पैसों की दारु पी लेंगे। किस्मत में होगा तो फिर इन्हें हटाया जायेगा और बसाया जायेगा। दीदी आप कोशिश करके अपने पीछे वाला भी  खरीद लो, समझ लो आपका पचास मीटर रोड पर हो जायेगा।’’कुछ दिन बाद पता चला कि मेरे पीछे के प्लॉट पर घर बन रहा है। मॅैं ये सोच कर आई कि उनसे बेचने की बात करुंगी। आकर क्या देखतीं हूं! एक महिला और उसका  चौदहा पंद्रहा साल का बेटा था। महिला सरोजा देखते ही बोली,’’दीदी घरों में काम हो तो बताना। घर के पास ही अर्पाटमेंट में काम मिल जाय तो मुझे परशोतम की चिंता नहीं रहेगी। मैंने देखा उसका बेटा नेत्रहीन था। मेरी सहेली अराधना दो दिन पहले ही वहाँ शिफ्ट हुई थी। मैंने दोनो को मिलवा दिया। अराधना तो बहुत ही खुश हुई। उसे अपना मकान बहुत लकी लगा क्योंकि उसे आते ही बाई मिल गई। और मेरा इरादा बदल गया।दो चार महीने बाद दो महिलायें एक बच्चे का एडमीशन करवाने मेरे पास आईं। उसने मेरे प्लॉट के बराबर का पता लिखवाया। मैंने कहा कि आपके बराबर का प्लॉट मेरा है। वो तुरंत बोली,’’बेचना है?’’ मैं मेरठ से शिफ्ट हुई थी। वहाँ प्रोपर्टी के रेट बहुत धीरे बढ़ते थे। मैंने बहुत सोच कर कहा कि जब पचास हजार का होगा तब निकाल दूंगी। वो महिला मुस्कुराकर चल दी।  क्रमशः  

Friday, 15 November 2019

भक्तिकालीन साहित्य का इतिहास (पूर्वोत्तर भारत का भक्ति साहित्य) नीलम भागी


अखिल भारतीय साहित्य परिषद् न्यास द्वारा प्रकाशित
अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा आठ राज्यों से मिलकर बना क्षेत्र भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र कहलाता है। आसाम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़ कर बंगलादेेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था। इसलिये इसकी सीमाओं से सटे राज्यों में भी यहाँ के भक्ति साहित्य का प्र्रभाव है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को प्रागज्योतिच्ह के नाम से जाना जाता हे। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार उषा ने अपनी सखी चित्रलेखा द्वारा अनिरुद्ध का अपहरण करवाया था। यह बात यहाँ की दंतकथाओं में भी सुनने में आती है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ कुमार हरण के नाम से जाना जाता है। असम सात बहनों तक जाने का प्रवेश द्वार है। 
पूर्वोतर भक्ति साहित्य को जानने के लिये असम साहित्य को पाँच कालों में विभक्त किया जा सकता है।
1. वैष्णवर्पूव काल 1200-1449 ई. असमिया साहित्यिक  अभिरुचियों का प्रर्दशन 13वीं शताब्दी में कंदलि के द्रोण पर्व (महाभारत) तथा कंदलि के रामायण से आरम्भ हुआ। उपलब्ध सामग्री के अनुसार हेम सरस्वती और हरिवर विप्र असमिया के प्रारंभिेक कवि माने जा सकते हैं। हेम सरस्वती  का प्रह्लादचरित्र असमिया का प्रथम लिखित ग्रंथ माना जाता है। ये दोनो कवि  कमतातुर पश्चिमी कामरुप  के शासक दुर्लभनारायण के आश्रित थे। एक तीसरे कविरत्न सरस्वती भी थे। जिन्होंने ’जयद्रथवध’ लिखा। परंतु वैष्णवर्पूवकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि माधव कन्दली हुए, जिन्होंने महामाणिक्य के आश्रय  में रहकर अपनी रचनाएं कीं। माधव कन्दली के  रामायण के अनुवाद को विशेष ख्याति प्राप्त हुई। संस्कृत शब्द समूह को असमिया में रुपांतरित करना कवि की विशेष कला थी। लोकमानस में उस समय तंत्र मंत्र मनसापूजा आदि के विधान यहाँ की इन रचनाओं में अधिक चर्चित हुए। 
2. वैष्णवकाल     1400-1650 ई विष्णु से संबद्ध कुछ देवताओं को इस काल की पूर्ववर्ती रचनाओं को महत्व दिया गया था। परंतु आगे चल कर विष्णु की पूजा की विशेष रुप से प्रतिष्ठा हुई। स्थिति के इस परिवतर््ान में असमिया के महान कवि और र्धमसुधारक शंकरदेव(1449-1568)ई. का योग सबसे अधिक था। शंकरदेव की अधिकांश रचनाएं भागवत पुराण पर आधारित हैं। उनके मत को भागवती र्धम कहा जाता है। शंकरदेव की रचनाओं ने असमिया जनजीवन और संस्कृति को विशिष्टता में ढालने का श्रेय प्राप्त किया है। उनके साहित्य के कारण कुछ समीक्षक उनके व्यक्तित्व को केवल कवि के रुप में ही सीमित नहीं करना चाहते। वे मूलतः उन्हें धार्मिक सुधारक के रुप में मानते हैं। श्ंाकरदेव की भक्ति के मुख्य आश्रय थे श्रीकृष्ण। उनकी लगभग तीस रचनाएं हैं। जिनमें से ’कीर्तनघोष’ उनकी सर्वोत्कृष्ट कृति है। असमिया साहित्य के प्रसिद्ध नाट्यरुप ’अंकिया नाटक’ के प्रारंभकर्ता भी शंकरदेव ही हैं। उनके नाटकों में गद्य और पद्य का बराबर मिश्रण मिलता है। इन नाटकों की भाषा पर मैथिली का प्रभाव है। ’अंकिया नाटक’ के पद्यांश को ’वरगीत’ कहा जाता है, जिसकी भाषा प्रमुखतः ब्रजबुलि है।
       इस युग के दूसरे महत्वपूर्ण कवि माधवदेव हुए जो शंकरदेव के शिष्य हैं। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी था। वे कवि होने के साथ साथ संस्कृत के विद्वान, नाटकार, संगीतकार और धर्मप्रचारक भी थे। ’नामघोषा इनकी विशिष्ट कृति है। इस युग में अनंत कंदली, श्रीधर कंदली तथा भट्टदेव विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं।
 
3. गद्य बुरंजी काल 1650-1926 ई अहोम राजाओं के असम में स्थापित हो जाने पर उनके आश्रय में रचित साहित्य की प्रेरक प्रर्वती धार्मिक न होकर लौकिक हो गई। इस में कवियों ने आश्रयदाता राजाओं का यशवर्धन किया। बहुमुखी साहित्य सर्जन तो हुआ जैसे ज्योतिष, गणित, चिकित्सा, विज्ञान संबंधी ग्रंथों का सृजन हुआ। कला तथा नृत्य विषयक पुस्तके भी लिखी गई। राजाश्रय होने के कारण इसमें र्धमनिरपेक्षिता की प्रवृति स्पष्ट रुप से देखी जा सकती है। दो सूफी काव्यों कुतुबन की ’मृगावती’ तथा मंझन की ’मधुमालती’ के कथानको के आधार पर दो असमिया काव्य लिखे गये। यह युग गद्य के विकास का रहा। 17 बार यहाँ मुगलों ने आक्रमण किया। केवल दो वर्ष तक राज्य कर पाये। बाद में ब्रिटिश हकूमत का प्रभाव पड़ा। भक्ति साहित्य की रचना कम होती गई।
4. आधुनिक काल   1026-1947 ई इसे अंग्रेजी शासन के साथ जोड़ा जा सकता है। यहाँ 1826 ई. अंग्रेजी शासन के प्रारम्भ की तिथि है। 1838 ई. से ही विदेशी मिशनरियों ने सामाजिक विषमता को ध्यान में रखकर व्यवस्थित ढंग से अपना कार्य आरम्भ किया। जनता में र्धमप्रचार का माध्यम असमिया को ही बनाया। अंगेजी शासन के युग में अंग्रेजी और यूरोपीय साहित्य के अध्ययन मनन से असमिया के लेखक प्रभावित हुए। कुछ पाश्चात्य आर्दश बंगला के माध्यम से भी अपनाये गये।
5. स्वाधीनतोत्तर काल 1947 अंग्रेजी कवियों से मुख्यतः प्रेरित नये असमिया लेखकों को मुख्यतः प्रेरणा मिली।
  धार्मिक अवसरों पर गाये जाने वाले अलिखित और अज्ञात लेखकों द्वारा प्रस्तुत वस्तुतः अनेकानेक लोकगीत मिलते हैं। जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक परांपरा से सुरक्षित है इसमें भक्ति, आचारों के बीच का मौखिक साहित्य या जो जनप्रिय लोकगीतों और लोककथाओं का है या नीतिवचनों तथा मंत्रों सम्बध है। बहुत प्राचीन काल से तंत्र मंत्र की परंपरा रही है। कामरुप से घनिष्ठ संबंध होने से प्रदेश की तांत्रिक परंपरा को देखते हुए  काफी स्वाभाविक जान पड़ता है। ये साहित्य बहुत बाद में लीपिबद्ध हुआ है। जो असम से अलग हुए या जिनसे असम की सीमा लगी है। उनमें असम भक्ति साहित्य के प्रभाव की झलक मिलती है।
  मेघालय अर्थात बादलों का घर 21 जनवरी 1972 को पूर्णराज्य बना। उत्तर पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी पश्चिमी सीमाएं बंगलादेश से मिलने के कारण भक्ति साहित्य असम और बंगाल जैसा है। वर्षा अधिक होने के कारण सूर्यदेवता के सम्मान में गारो आदिवासी अक्तूबर नवम्बर में ’वांगला’ नामक त्योहार मनाते हैं। यह त्यौहार लगभग एक हफ्ते तक मनाया जाता है। मौखिक पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा से सूर्य की आराधना की जाती है। 
  मणिपुर साहित्य में वैष्णव भक्ति तथा मणिपुर की कला और संस्कृति झलकती है। दंत कथा के अनुसार रुक्मणी को भगवान कृष्ण आम भाषा में कहते हैं, भगा कर ले गये थे। ज्यादातर इसी से सम्बंधित लोक गीत, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाट्य, जनश्रुतियां पहेलियां आदि पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती हैं। आततायियों के कई आक्रमण झेल कर भी मणिपुर अपनी अस्मिता,  अपनी पहचान एवं सांस्कृतिक मूल्य सुरक्षित रख पाया है। राधा कृष्ण के मणिपुरी नृत्य विश्व प्रसिद्ध हैं। भावभंगिमाओं के साथ पोशाक बहुत आर्कषक होती है। बांग्ला लिपि में लिखी जाने वाली मणिपुरी को विष्णुप्रिया कहते हैं।
  अरुणाचल प्रदेश का गठन 20 फरवरी 1987 को हुआ था। अरुणाचल का हिन्दी अर्थ उगते सूर्य का पर्वत है। प्रदेश की सीमाएं दक्षिण में असम, दक्षिण पूर्व में नागालैंड, पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत से मिलती हैं। अलग अलग समुदायों के अलग अलग त्यौहार हैं। ज्यादाजर त्यौहारों में पशुओं की बलि चढ़ाने की पुरानी परंपरा है। मौखिक परंपरा के रुप में थोड़ा सा साहित्य है, वह भी बंगला, असमिया की सीमा लगने के कारण।
    फरवरी 1987 को यह भारत का 23वां राज्य बना। ये असम का एक जिला था। इस समय यहाँ इसाई धर्म को ही मानते हैं।
  नागालैंड का गठन 1 दिसम्बर 1963 को 16वें राज्य के रुप में हुआ था। नागालैंड की सीमा पश्चिम में असम से, उत्तर में अरुणाचल से, पूर्व में र्बमा से और दक्षिण में मणिपुर से मिलती है। 16 जनजातियां हैं । अंग्रेजी राज्य भाषा है। ईसाई धर्म है। बाकि हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन असम की तरह ही है।
   16 मई 1975 में सिक्किम औपचारिक रुप से भारतीय गणराज्य का 22वां प्रदेश बना और सिक्किम में राजशाही का अंत हुआ। सिक्किम भारत के पूर्वोतर भाग में अंगूठे के आकार का पर्वतीय राज्य है। पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण पूर्व में भूटान से लगा हुआ है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य इसके दक्षिण में है। हिन्दू तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। इसके उत्तरी पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर है।
  त्रिपुरा की सीमाएं मिजोरम, असम, बांग्लादेश से लगी हुई हैं। उत्तर, दक्षिण तथा पश्चिम में यह बांग्लादेश से घिरा हुआ है। 15 अक्तूबर 1949 को इसे भारतीय संघ में विलय किया गया। त्रिपुरा की सभ्यता के साथ यहां मनासा मंगल या कीर्तन आदि प्रसिद्ध नृत्य तथा संगीत हैं। कई पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित हैं। लगभग सभी पूर्वोतर भारत में बीहू के साथ, भक्तिभाव से दुर्गापूजा मनाते हैं। 

ब्यालीस साल की लड़की, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 17 नीलम भागी


अगले दिन कात्या मुले ने मुझसे पूछा कि मेरे परिवार में कितने लोग रहते है? मैंने बताया कि मेरी माँ, दो भाई उनकी पत्नियाँ, बच्चे, मैं मेरी बेटी। बेटी तो अब बाहर आ गई है। इसकी शादी होगी। इतने लोग रहते हैं और खाना एक जगह बनता है। मेरी बहनें भी पैदल दूरी पर ही रहती हैं| कोई भी किसी के घर कभी भी आ जा सकता है| ये सुनकर वो बोली,” मैं तो बूढ़ी होने पर जर्मनी जाकर ओल्डेज होम चली जाउंगी। फिर उसने मुझसे पूछा कि अगर वह बूढ़ी होने पर हमारे घर में रहना चाहेगी तो मैं उसे रख लूंगी। मैंने कहाकि तुम अभी चलो रहने, हमारे घर में सब तुम्हें देख कर बहुत खुश होंगे। पर तुम हमारे घर में रह नहीं पाओगी। उसने पूछा,’’क्यों?’’ मैंने कहाकि मेरे घर में सब कुछ सब की सुविधा के अनुसार चलता है| मेरी भाभियां अघ्यापिकाएं हैं और भाई व्यापार करते हैं। भाभियां सुबह पढ़ाने जाती है, दोपहर में आती हैं।  दुकान भी पैदल की दूरी पर है| भाई सुबह ग्यारह बजे जाते हैं, रात को देर से आते हैं। दोनों  बारी बारी  से घर पर आराम भी कर जाते हैं| सब की सुविधा के अनुसार परिवार चलता है। कोई ब्रेकफास्ट, लंच डिनर टाइम फिक्स नहीं है। जिन दिनों ज्यादा काम होता है तो मैं भी मदद के लिए दुकान चली जाती हूँ| खाना हम खुद बनाते हैं| बाकि कामो के लिए दो  बाईं आती हैं| वो बड़ी हैरान होकर सब सुनती रही| काफी देर चुप रह कर विचारने के बाद प्रश्न पूछने के अंदाज में एक शब्द बोली,”स्पेस |” मैंने भी पूछा,”तुम्हारे कहने का मतलब, स्पेस यानि मनमर्जी से है|” जवाब में बोली,”हाँ हाँ|” मैंने कहा कि कोई रोकटोक नहीं, पूरी मनमर्जी| अम्मा से सब बतियाते हैं| जब तक घर में सब आ नहीं जाते, अम्मा सोती नहीं हैं|  अभी मेरे लौटने में एक महीना था। उसे मेरा इण्डिया जाये, बिना वीजा बढ़वाने की चिंता सताने लगी और उस कोशिश में वो लग गई। अचानक मेरी छोटी बहन को ऑपरेशन की डेट मिल गई । उसके तीन साल के बेटे ने जिद पकड़ ली, नीनो मासी के साथ रहेगा यानि मेरे साथ। मुझे तुरंत लौटना था। कल की फ्लाइट थी। रात वो मुझे बाहर डिनर के लिए ले कर गई| मैं हरी साड़ी, जिसका काला बारीक बॉर्डर था  काले ब्लाउज के साथ मैं पहने थी। उसने मेरी तस्वीर ली। जिसे मैं हमेशा अपनी प्रोफाइल में लगाती हूं। वो बहुत उदास थी| मैंने उसे अपनी सबसे पसंद की साड़ी दी और जल्दी लौटने का वादा किया। बेटी को मुझे अकेले भेजने की चिंता सता रही थी पर मेरे तो ज़हन में भी नहीं था कि मुझे क्या तकलीफ थी? जब मैं यहां आ रही थी उस समय मेरी हालत देख, बेटी इण्डिया से लेने मुझे वो खुद आई थी। अब मैं ठीक महसूस कर रही थी। मैं कात्या मुले से जल्दी लौटने का वादा करके दुबई एयरपोर्ट गई। दस बजे की फ्लाइट, दो बजे चली । न जाने कितने गेट नम्बर बदले| जिसके कारण मैंने पूरा दुबई एअरर्पोट नाप लिया। बेटी को मैं फोन पर बताती जा रही थी। मेरे अच्छे स्वास्थ्य में कात्या मुले का सहयोग, भगवान के बराबर था। उड़ान से पहले मैंने उसे फोन किया| उसने जवाब में यही कहा कि जल्दी लौटना। मैंने उससे लौटने का वादा किया। उसकी याद और अच्छा स्वास्थ्य लेकर मैं लौटी। समाप्त