नई जगह पर कहीं भी मैं मुंह उठा कर चल देती हूं पर एक ध्यान रखती हूं कि अपने बाएं हाथ पर रहती हुए जब नहीं समझ आता तो वैसे ही उसी लेफ्ट साइड से ही लौट आती हूं तो जहां से चलती हूं वहीं वापिस पहुंच जाती हूं। यहाँ भी चल तो पड़ी पर इस देश के नियम कायदे कुछ नहीं जानती थी। खिड़की से सामने समुद्र दिखा चल दी। ये तो अच्छा था, मेरे पीछे रेया को लेकर शिखा आ गई। मेरे हाथ में बस मोबाइल था। मैंने अण्डर पास से बाहर आकर खड़ी होकर सब देखा, पर आगे पीछे नहीं गई वैसे ही वापिस आकर कौंडो के गेट पर खड़ी हो गई। वो रेया के कारण पीछे थी। उसने गेट पर र्काड लगाया। गेट खुला मैं अंदर आई। अपने ब्लॉक में जाने के लिए पक्के रास्ते बने थे। सब उसी पर चलते थे। कच्चे में घास, पेड़ पौधे लगाए हुए थे। वहां एक इंच भी जगह बिना पौधों के नहीं थी। जो खाली दिखती उसमें बीज बो रक्खे थे। अब मैं अंदर घूमने लगी। जिम में इस समय सीनियर सीटीजन ही नज़र आ रहे थे। कार्ड स्विप करके ही जा सकते थे। मैंने शिखा से र्काड लिया, अंदर जाकर देखा बिना कोच के सब अपने आप लगे हुए थे। स्विमिंग पूल ओपन था। एक बड़ी प्यारी सी लड़की ट्रेनर, सीनीयर सीटीजन को पूल में खड़ा करके धूप में एक्सरसाइज़ करवा रही थी। स्विम सूट में सबकी फिटनैस एक सी। मुझे ये देखना बहुत अच्छा लग रहा था। पास में ही बच्चों का प्ले स्टेशन था। जहां झूलों के साथ बच्चों के लिए रेत भी थी। शिखा रेया को लेकर वहां चली गई। छाव में बैठने के लिए हट बनी हुई थी। कुछ ही देर में शिखा आई। मुझसे बोली,’’मासी रेया के सोने का समय हो गया है।’’ जबकि रेया खुशी से खेल रही थी। मैं ये सोच कर चल दी कि पहला दिन है, यहां के नियम कायदे देख लूं। ब्लॉक में जाने के लिए भी र्काड स्विप करना पड़ता था। घर का दरवाजा भी उसी र्काड से खुलता था। अंदर जाते ही उसने रेया को उसके कमरे में उसके बैड पर बिठाया, बैड के चारों ओर जालीदार ऊंची दीवार थी। जिसे पकड़ कर बच्चा खड़ा हो सकता है पर गिर कतई नहीं सकता। उसमें उसके कुछ खिलौने होते हैं। इतनी देर में शिखा उसकी दूध की बोतल ले आई। उसको तकिया लगा कर लिटा दिया और बोतल पकड़ा दी, वह पीने लगी। शिखा बाहर आ गई और मुझे भी बुला लिया। मेरा दिल कर रहा था। मैं उसे गोदी में लिटा कर पिलाऊं। उसने मेरा नाश्ता लगाया और जल्दी जल्दी घर के काम निपटाने लगी। मैं एक महीने के लिए गई थी। यहां का समय इंडिया से ढाई घण्टा आगे है। मैंने अपना समय इण्डिया का ही रक्खा हुआ था। वैसे ही रात को बारह बजे के बाद सोती, सुबह सात बजे उठती। मैं सुबह यहां के साढ़े नौ बजे सोकर उठी थी तो अर्पणा अमन ऑफिस जा चुके थे। उन्होंने मुझे बुलाया ही इस तरह था कि वृहस्पतिवार मैं शाम को पहुंची, जाते ही सो गई। आज फ्राइडे को मैरीना बे जाना था। वीकएंड पर मुझे सिंगापुर घूमाने का प्रोग्राम बनाया जाता था। एक घण्टे बाद वो रेया को उठा लाई। मैंने पूछा,’’ये उठ गई थी। उसने जवाब दिया,’’इस समय इसको एक घण्टे सोने को है। अब तीन घण्टे उसका खेलना, खाना, मालिश और नहाना हुआ। इतने समय शिखा रेया के साथ रही। नहाते ही उसे दूध की बोतल देकर उसके रुम में दो घण्टे के लिए सुला दिया। और अपने काम निपटाए। ड्रांइग रुम और मेरे कमरे और किचन फेसिंग सी थे। मैं दिन भर सागर दर्शन में ही मस्त रही। क्रमशः
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Tuesday, 19 May 2020
बाग में देश, सागर दर्शन सिंगापुर यात्रा Singapore yatra part3 भाग 3 Neelam Bhagi नीलम भागी
नई जगह पर कहीं भी मैं मुंह उठा कर चल देती हूं पर एक ध्यान रखती हूं कि अपने बाएं हाथ पर रहती हुए जब नहीं समझ आता तो वैसे ही उसी लेफ्ट साइड से ही लौट आती हूं तो जहां से चलती हूं वहीं वापिस पहुंच जाती हूं। यहाँ भी चल तो पड़ी पर इस देश के नियम कायदे कुछ नहीं जानती थी। खिड़की से सामने समुद्र दिखा चल दी। ये तो अच्छा था, मेरे पीछे रेया को लेकर शिखा आ गई। मेरे हाथ में बस मोबाइल था। मैंने अण्डर पास से बाहर आकर खड़ी होकर सब देखा, पर आगे पीछे नहीं गई वैसे ही वापिस आकर कौंडो के गेट पर खड़ी हो गई। वो रेया के कारण पीछे थी। उसने गेट पर र्काड लगाया। गेट खुला मैं अंदर आई। अपने ब्लॉक में जाने के लिए पक्के रास्ते बने थे। सब उसी पर चलते थे। कच्चे में घास, पेड़ पौधे लगाए हुए थे। वहां एक इंच भी जगह बिना पौधों के नहीं थी। जो खाली दिखती उसमें बीज बो रक्खे थे। अब मैं अंदर घूमने लगी। जिम में इस समय सीनियर सीटीजन ही नज़र आ रहे थे। कार्ड स्विप करके ही जा सकते थे। मैंने शिखा से र्काड लिया, अंदर जाकर देखा बिना कोच के सब अपने आप लगे हुए थे। स्विमिंग पूल ओपन था। एक बड़ी प्यारी सी लड़की ट्रेनर, सीनीयर सीटीजन को पूल में खड़ा करके धूप में एक्सरसाइज़ करवा रही थी। स्विम सूट में सबकी फिटनैस एक सी। मुझे ये देखना बहुत अच्छा लग रहा था। पास में ही बच्चों का प्ले स्टेशन था। जहां झूलों के साथ बच्चों के लिए रेत भी थी। शिखा रेया को लेकर वहां चली गई। छाव में बैठने के लिए हट बनी हुई थी। कुछ ही देर में शिखा आई। मुझसे बोली,’’मासी रेया के सोने का समय हो गया है।’’ जबकि रेया खुशी से खेल रही थी। मैं ये सोच कर चल दी कि पहला दिन है, यहां के नियम कायदे देख लूं। ब्लॉक में जाने के लिए भी र्काड स्विप करना पड़ता था। घर का दरवाजा भी उसी र्काड से खुलता था। अंदर जाते ही उसने रेया को उसके कमरे में उसके बैड पर बिठाया, बैड के चारों ओर जालीदार ऊंची दीवार थी। जिसे पकड़ कर बच्चा खड़ा हो सकता है पर गिर कतई नहीं सकता। उसमें उसके कुछ खिलौने होते हैं। इतनी देर में शिखा उसकी दूध की बोतल ले आई। उसको तकिया लगा कर लिटा दिया और बोतल पकड़ा दी, वह पीने लगी। शिखा बाहर आ गई और मुझे भी बुला लिया। मेरा दिल कर रहा था। मैं उसे गोदी में लिटा कर पिलाऊं। उसने मेरा नाश्ता लगाया और जल्दी जल्दी घर के काम निपटाने लगी। मैं एक महीने के लिए गई थी। यहां का समय इंडिया से ढाई घण्टा आगे है। मैंने अपना समय इण्डिया का ही रक्खा हुआ था। वैसे ही रात को बारह बजे के बाद सोती, सुबह सात बजे उठती। मैं सुबह यहां के साढ़े नौ बजे सोकर उठी थी तो अर्पणा अमन ऑफिस जा चुके थे। उन्होंने मुझे बुलाया ही इस तरह था कि वृहस्पतिवार मैं शाम को पहुंची, जाते ही सो गई। आज फ्राइडे को मैरीना बे जाना था। वीकएंड पर मुझे सिंगापुर घूमाने का प्रोग्राम बनाया जाता था। एक घण्टे बाद वो रेया को उठा लाई। मैंने पूछा,’’ये उठ गई थी। उसने जवाब दिया,’’इस समय इसको एक घण्टे सोने को है। अब तीन घण्टे उसका खेलना, खाना, मालिश और नहाना हुआ। इतने समय शिखा रेया के साथ रही। नहाते ही उसे दूध की बोतल देकर उसके रुम में दो घण्टे के लिए सुला दिया। और अपने काम निपटाए। ड्रांइग रुम और मेरे कमरे और किचन फेसिंग सी थे। मैं दिन भर सागर दर्शन में ही मस्त रही। क्रमशः
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4 comments:
मां नीलम जी आपने चंद शब्दों में अपनी यात्रा का वर्णन किया। और हां बहुत ही कम शब्दों में अपनी यात्रा का वर्णन करना यह आम बात नहीं है।।।।
और आप इसी तरह अपने कल के बारे में हमें मार्गदर्शन कराती रहें।।।।।
इस दुनिया के ढोल आडंम्बरों में से निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है...
और एक आप है जो सब कुछ छोड़ छाड़ के अपने अनमोल जीवन के अनमोल समय को आनंद के साथ बिता रही हैं।।।।
मेरे हिसाब से तो यही एक सही जीवन जीने का महत्व होता है।।।।।
आपकी यात्रा शुभ हो....💐
राष्ट्रीय स्वयंसेवक. ओम कुमार जी
जनपद :- हरिगढ़ U.P.
आशीर्वाद
Nice
Hardik dhanyvad
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