हमारी दुकान पर दिवाली से पहले तालों की वैराइटी और ताले खूब मंगाये जाते हैं। कारण यहां ज्यादातर बाहर से नौकरी के कारण आए न्यूक्लियर परिवार हैं। पांच दिवसीय दीपावली त्यौहार पर ये अपने परिवार के साथ पर्व मनाने जाते हैं। और जाते हुए अपने घर पर मजबूत ताले लगा कर जाते हैं। पर इस बार ताले कम बिके। कोरोना संक्रमण से बचाव के कारण परिवार ने ही उन्हें यात्रा करने को मना किया। इसलिए बच्चे उदास दिखे। पेरेंटस ने सब कुछ अपनी सामर्थ्य के अनुसार लेकर दिया पर संयुक्त परिवार का प्यार और आत्मीयता नहीं दे सके।
पटाखे नहीं चलाए गए। बच्चों से रंगोली बनवाई, पौधे सजवाये|
पटाखे नहीं चलाए गए। बच्चों से रंगोली बनवाई, पौधे सजवाये| अड़ोस पड़ोस के युवाओं ने सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए पार्को में पार्टी की और अपने गांव को बहुत मिस किया।
मैंने दिवाली से अगले दिन उत्कर्षिणी को अमेरिका फोन किया वो दीवाली मना रही थी। हमारा और उसके समय में तेरह घण्टे का फर्क जो है। उसके विदेशी मित्र भी कोरोना काल में दिवाली मनाने आए थे।
उनके लिए उसने भारतीय खाना बनाया।
गीता की यूकेरियन सहेली त्यौहार पर भारतीय पोशाक में आई थी। गीता ने उसे कन्या पूजन पर बुलाया था और उसे लहंगा चोली दी थी। वही वोे इण्डियन फैस्टिवल पर पहन कर आई थी। लेकिन गीता शायद त्यौहार में भारत के अपने बड़े परिवार को मिस कर रही है। इस साल दीपावली पिछले साल से बेहतर लग रही है क्योंकि करोना का डर कुछ कम है। दित्या की पहली दिवाली है। उत्कर्षिनी धनतेरस से मिठाई नमकीन बनाने में लगी हुई है छोटी बच्ची है जब समय मिलता है तो बनाती है। मैंने पूछा बेटी तो कैसे यह सब कर रही है तो उसने कहा त्यौहार का गीता को कैसे पता चलेगा? उसकी मनपसंद मिठाई बनती है.अब मनपसंद खाना है तो विदेश में तो खुद ही बनाना पड़ेगा ना. छोटी सी गीता पकवान बनाने में मां की मदद कर रही है जैसे दहीं भल्ले की प्लेट लगाना , टेबल लगाना आदि
कपड़े भी नहीं
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