घर में गाय पालने से सुबह ही दहीं बिलोने के बाद एक मिट्टी की चाट्टी(हण्डिया) छाछ से भर जाती। गर्मियों में छाछ कम बचती लेकिन सर्दियों में ज्यादातर बच जाती। इसलिये गर्मागर्म कढ़ी साइड डिश की तरह बनती रहती। कभी एक प्रकार की कढ़़ी नहीं बनती। कई तरह की कढ़ी बनती। लेकिन जब कभी चावल के साथ कढ़ी बनती तब पंजाबी पकौड़ों वाली कढ़ी बनती या बिना प्याज की भइया कढ़ी पकौड़ों वाली बनती।
इस कढ़ी का नामकरण ’भइया कढ़ी’ दादी द्वारा किया गया था। यू.पी. में इस तरह से बनती है। जब पहली बार ये कढ़ी बनाई। सबको बहुत पसंद आई। जिनके मुंह में एक भी दांत नहीं था। उन्होंने तो पकौड़ों की बहुत तारीफ़ की क्योंकि इसके पकौड़े मुंह में डालते ही घुल जाते हैं। इसके लिए....
एक दिन की पुरानी छाछ में बेसन घोल लेते हैं। या खट्टा दहीं मथ कर एक सार करके उसमें बेसन मिला कर, बेसन का कम से कम आठ गुना पानी मिला लेते हैं। कम लगे तो जितनी गाढ़ी बनानी हो उतना पानी और मिला लो साथ ही नमक और हल्दी। इसे आंच पर चढ़ा कर दादी हमें कलछी घुमाने का काम देेती थी। अब वो थाली में छौंक का सामान, पकौड़े बनाने की तैयारी कर लेती। परात में बेसन और पानी डाल कर कढ़ी के पास आ जाती। तब तक कढ़ी में उबाल आने लगता। अब हमें हटा कर खुद मोर्चा संभाल लेती थी और हमें बेसन फेटने को कह देती। कढ़ी के नीचे आंच मंदी कर देती। कढ़ी कढ़ती रहती। पकौड़ी के बेसन की एक बूंद पानी में डालती, अगर बेसन की बूंद पानी में ऊपर आकर तैरती
तब हमें बेसन फेंटने से छुट्टी मिल जाती। दादी उसमें नमक और अजवाइन मिला कर, एक कड़ाही में तेल गैस पर चढ़ा कर तेल अच्छा गर्म होने पर छोटी छोटी पकौड़ियां तेल में डाल देती।
घोल न पतला, न ज्यादा गाढ़ा होता। एक तरफ सिकने पर पलट देती। अच्छी तरह सिकने पर पकौड़े सब साथ के साथ कढ़ी में डालती जाती। सभी पकौड़ी कढ़ाही में डालने के बाद, जीरो वेस्टेज वाली मेरी दादी बेसन वाले बर्तन में भी पानी घुमा कर कढ़ी में मिला देती। पता नहीं क्या अंदाज था! पकौड़े निकालने के बाद शायद ही कभी कड़ाही से फालतू तेल निकाला हो। अब इसी तेल में आंच बंद कर के उसमें तेज पत्ता, मेथी दाना, जीरा, लौंग, सूखी अखा लाल मिर्च का तड़का लगा कर इसे कढ़ी में डालती, ऐसा लगता कि कढ़ी का मेकअप हो गया। पकौड़े भी खूबसूरत कढ़ी पीकर बड़े हो जाते। पर कोई भी पकौड़ा फूटता नहीं! फूटेगा मुंह के अंदर ही। आंच बंद। अब फाइनल टच,
तड़का पैन में देसी घी इतना गर्म कि जिसमें बिना धुआं छोड़े लाल मिर्च और हींग भुन जाए और थोड़ी सी कसूरी मेथी डाल कर इसे कढ़़ी में डाल देंतीं।
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