परिवार की लड़की को पढ़ने के साथ कुकिंका शौक पता नहीं कैसे हमारी ये 90 प्लस महिलायें डाल देतीं थीं। बेटी ने दाल बनाई। दाल तो गल गई पर पानी और दाल अलग है। या अगली बार दाल घुट गई। सब्जी जल गई या कच्ची रह गई। तो दादी कभी नहीं डांटती थी। किसी और समय पास में लिटा कर कोई बात शुरु करके कुकिंग पर आकर कहतीं,’’तूं तो मेरे पर गई हैं। मुझसे भी पहले तेरी तरह दाल पानी अलग, कभी कढ़ी जैसी घुटी दाल बनती थी।’’मैं खुश होकर पूछती कि आप तो अम्मा से भी स्वाद खाना बनाती हो वो कैसे?’’ जिसके जवाब में वे समझाती कि पकने और जलने के बीच का बना व्यंजन और सही मात्रा में नमक और मसालों का प्रयोग खाने को स्वाद बनाता है। बिटिया ये तो बार बार बनाने से ही आता है। सभी दाल सब्ज़ियों में सब मसाले नहीं पड़ते। क्योंकि मसालों की तासीर गर्म होती है। छोटी इलायची, लौंग, चक्रीफूल, जावित्री, बड़ी इलायची, कालीमिर्च, सफेद मिर्च, दाल चीनी, तेजपत्ता, जयफल आदि इसलिए इसे गरम मसाला कहते हैं।
सब सब्जियों में ये नहीं पड़ते। जीरा, धनिया, मेथी, सरसों, राई, सौंफ, कलौंजी, मिर्च, हल्दी आदि बेसिक मसालें हैं। सबको भूनने का अलग तापमान है जो करने से ही आयेगा। किस दाल सब्जी में कौन सा मसाला पड़ता है। कितनी आंच पर कब तक भूनना है! खाना बनाते हुए ही मसालों से खेलना आ जायेगा और तब खाना बनाना अच्छा लगेगा फिर खाना तो स्वाद बनेगा ही। घर की लड़की को पता नहीं चलता था कि कब वह उनकी शार्गिदी में आ गई। इनके खाने में कभी मिर्च मसाले तेज नहीं होते थे। मसाले खाने को सुवास करते, गार्निश करते। और तीखा खाने वालों को खाना फीका नहीं लगता। उसके लिए एक कटोरी में देसी घी में लाल मिर्च पाउडर भून कर रक्खा होता। तीखा खाने वालों की दाल की कटोरी में परोसते समय इस घी के एक दो चम्मच डाल दिए जाते। लहसून, प्याज, अदरक के अलावा हरेक दाल का घी में किसी मसाले का बघार लगता। ये बघार अम्मा ने शुरु किया क्योंकि उनके मायके कपूरथला में प्राचीन मैया मिश्र मंदिर(राधा कृष्ण) है। वहां प्याज लहसून नहीं खाया जाता था। दालों में अलग अलग छौंक लगते मसलन उड़द की दाल या उड़द चना में हींग, मेथी अजवाइन और लाल मिर्च का छौंक लगता। जिसमें अदरक या सोंठ(सूखा अदरक पाउडर) जरुर पड़ता। नई चीजों को शामिल करने की शौकीन दादी ने कभी अम्मा को ये नहीं कहा,’’हमारे यहां तो ऐसे बनता है।’’ 93 साल की अम्मा आज भी हंसते हुए एक किस्सा सुना रहीं हैं कि जब तुम्हारे पिताजी का प्रयागराज में तबादला हुआ तो वहां हमारे घर के पास एक कुंआ था। कोई यात्री वहां पानी से सतुए के लड्डू बना कर, उसे हरी मिर्च और प्याज के साथ खाने लगा। ये देख कर, तुम्हारी दादी ने भी घर आकर कच्चे बेसन में पानी डाल कर लड्डू बना कर मुंह में रखा और थू थू किया । फिर तुरंत पता लगा कर आई कि ये क्या खा रहा है? और सतुआ घर में खाना शुरु हो गया। पंजाब की दादी, यहां अनारदाना के स्थान पर, आम की खटाई, हरा धनिया से ज्यादा सोआ का इस्तेमाल करने लगी। वहां उन्हें कसूरी मेथी का प्रयोग सिखाने लगी।
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