नब्बे से ज्यादा उम्र की मेरी दादी, नानी, मासियां आदि की उम्र का राज मुझे उनका खाना बनाने से लगाव होना लगता है। मैं सबके साथ रही हूं। सब में एक समानता देखी है कि बहुओं के आने पर भी किसी ने भी कुकिंग नहीं छोड़ी। मेरी 94 साल की अम्मा ने चिकनगुनिया होने पर रसोई 91की उम्र में हैंडओवर की है। कोई भी नया शाकाहारी खाना मैं जरुर ट्राई करती हूं। स्टोर से खूबसूरत गेहूं के चोकर (wheat bran) का डिब्बा ये सोचकर ले आई कि घर जाकर पढ़ूंगी शायद कोई चोकर की डिश हो। 500 रु किलो. के डिब्बे को घर लाने पर मेरा खूब मज़ाक बना क्योंकि जब गाय पालते थे तो चोकर का घर में बोरा आता था। अम्मा डिब्बा खोलते ही पूछने लगी,’’जब घर में बोरों में चोकर आता था तब तूं गाय की सानी में डालती थी, अब तूं चोकर खायेगी!!’’नौएडा में जब हमारी गाय गंगा यमुना चोरी हो गईं तो उसके बाद कभी हमने आटा छान कर रोटी नहीं बनाई। पहले आटा इसलिए छानते थे कि चोकर गाय की सानी में जो पड़ता था।
मेरे बनाये मूली के परांठों का स्वाद बहुत अलग होता है। कारण परिवार की बुजुर्ग महिलाओं को अपने लिए आलस में कुछ बनाते देखना। बड़े परिवार में चूल्हे पर दादी पटरे पर बैठी खाना बनाती थीं। अम्मा सबको परोसती थीं। दादी की निगाह दाल सब्ज़ी पर भी रहती थी। कम होती देख अम्मा से कहतीं कि मूली कद्दुकस करके दो। अम्मा देतीं। चूल्हे के आस पास सब सामान होता ताकि बार बार उठक बैठक न लगानी पड़े। मूली में नमक अजवाइन मिला कर रख देतीं और अम्मा को थाली लगा कर बोलती,’’जा खा पहले, फिर काम करना।’’ अब दादी मूली दबाकर निचोड़ती। इस मूली के पानी में जितना आटा लग जाये लगा लेती। मूली में बारीक कटी हरी मिर्च, हरा धनिया, धनिया पाउडर, मिर्च पाउडर मिलाकर भरावन तैयार करती। आटे की लोई में जितनी भरावन भर सकतीं थीं भरती, खूब मोटे दो परांठे बनातीं। पहला परांठा तवे पर डालते ही चूल्हे में उपला डालना बंद। दूसरा बेल कर तैयार कर लेतीं और तवे वाले को पलट देतीं। बैठी बैठी रसोई समेटती। तलने में तो अलटना पलटना, समय देना पड़ता है। यहां किसको अपने लिए फुर्सत !!तवे से उतारतीं तो दूसरी ओर भी लाल सिके मूली के मोटे परांठे को हथेली पर रख कर, उस पर मक्खन का पेड़ा रख कर गर्म परांठे को दोनों हथेलियों में दबा कर चुरचुर कर देतीं। इस fiber से भरपूर मक्खन टपकते चुर चुर परांठे को थाली में रख कर दूसरे को तवे पर डाल कर इसे आराम से खातीं। दूसरे परांठे का तो मंदी आंच पर निचला कवर पापड़ की तरह crispy हो जाता। पहला परांठा खत्म करके ही वह दूसरा तवे से उतारतीं थीं। इसमें भी मक्खन का पेड़ा रख कर दोनों हाथों में दबातीं तो आवाज़ होती और परांठा चुरचुर।
मैं भी मूली के परांठे के आटे में 90+की तरह मूली को निचोड़ने से निकले पानी को मिलाकर लगाती हूं। क्योंकि पानी में मूली का स्वाद होता है। परिवार के सदस्यों के नखरे के हिसाब से कम या ज्यादा घी लगाती हूं। अपना पराठा बहुत कम घी में सेकती हूं। तवे से उतार कर उस पर मक्खन रख कर दबा देती हूं। उसका स्वाद लाजवाब होता है। और परांठा सेंकने में आंच का बहुत ध्यान रखती हूं। कभी तेज आंच पर नहीं तलती। जब दादी चूल्हे पर आंच मेनटेन रख लेतीं थीं, हम तो गैस पर काम करते हैं, जहां आंच हमारे कंट्रोल में है। और प्लेट में पहला खत्म होने पर दूसरा परोसती हूं।
मैं भी मूली के परांठे के आटे में 90+की तरह मूली को निचोड़ने से निकले पानी को मिलाकर लगाती हूं। क्योंकि पानी में मूली का स्वाद होता है। परिवार के सदस्यों के नखरे के हिसाब से कम या ज्यादा घी लगाती हूं। अपना पराठा बहुत कम घी में सेकती हूं। तवे से उतार कर उस पर मक्खन रख कर दबा देती हूं। उसका स्वाद लाजवाब होता है। और परांठा सेंकने में आंच का बहुत ध्यान रखती हूं। कभी तेज आंच पर नहीं तलती। जब दादी चूल्हे पर आंच मेनटेन रख लेतीं थीं, हम तो गैस पर काम करते हैं, जहां आंच हमारे कंट्रोल में है। और प्लेट में पहला खत्म होने पर दूसरा परोसती हूं।
2 comments:
Good
हार्दिक धन्यवाद
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