हमारी 90 प्लस महिलाओं को परांठों से ज्यादा पूरी कचौड़ी बनाना आसान लगता था। ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ा संयुक्त परिवार था। परांठा तो एक एक सेका जाता था जो तवे से सीधा थाली में आता। दो दो सदस्य खाते। बाकियों को दादी कहानी किस्सों में उलझाए रहती थी। पूरी कचौड़ी बड़ी कड़ाही में एक बार में 5-6 तली जातीं। एक तलता और एक बेलता। कचौड़ी के लिए पहले कड़ाही में बड़े प्रेम से पीठी भूनी जाती। इसके लिए उड़द की धुली दाल अच्छी तरह धोकर भीगो दी जाती 4 घण्टे बाद दाल को पीसा जाता। कडा़ही में जीरा घी में चटका कर उसमें हींग, सौंफ, अदरक हरी मिर्च पेस्ट लाल मिर्च, धनिया पाउडर, हथेली पर मसल के अजवाइन आदि डाल कर इस पीठी को भून कर सूखा लिया जाता है। आटे में नमक मिला कर रोटी की तरह, पर थोड़ा सख्त गूंध लेते हैं। ज्यादा सख्त नहीं गूंधना, मुलायम आटे में पीठी धस जाती है। जिससे कचौड़ी फूलने और फटने पर पीठी बाहर नहीं आयेगी। तेल आखिरी कचौड़ी तलने तक साफ रहेगा। अब आटे की लोई में थोड़ी थोड़ी पीठी रख कर घी लगा कर बेलते जाओ। कड़ाही के तेल में जरा से आटे की गोली डालो, अगर वह तुरंत ऊपर आ जाए तो कचौड़ी डालते जाओ। जो सिक जाए उसे कड़ाही से निकालते जाओ।
झटपट कचौड़ी मैं भी उनके जैसी ही बनाती हूं पर अलग तरीके से बनाती हूं। इसके लिए दाल मिक्सी में पीसते समय सब मसाले, अदरक हरी मिर्च साथ में पीस लेती हूं। पीठी में जीरा भूनने लायक घी मिला कर माइक्रोवेव में सूखा लेती हूं। आटा बहुत अच्छी तरह मलती हूं। जिससे सभी कचौड़िया बिना फूलाए अपने आप फूलती हैं। मैं फटाफट बेल बेल के कड़ाही में डालती जाती हूं। जो पकती जाती है उसे निकालती जाती हूं। इस समय अपने पास किसी को खड़े नहीं होने देती। बस खिलाने वाला आये और गर्म गर्म कचौरियां लेकर जाए। जो कचौरियां बच जाती हैं उसे फ्रिज में रख दो। अगले दिन तवे पर सेक लो खाकरे जैसी लगती है। चाय के समय चटनी आचार के साथ बहुत अच्छी लगती हैं।
1 comment:
Ye toh try kara jayega zaroor
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