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Thursday, 28 October 2021

बाबा जित्तो 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 23 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

अब मैं बाबा जित्तो के मन्दिर गई। यहां बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी की पूजा की जाती है। जित्तो बाबा का जीवन बहुत प्रेरणादायक है। उन्होंने अन्याय के सामने सिर नहीं झुकाया।   कहते हैं कि कोई साढ़े पांच सौ साल पहले जाजला और रुपचंद ब्राह्मण को भगवान शिव की कृपा से एक पुत्र प्राप्त हुआ। जिसका नाम जितमल रखा गया। मातापिता जित्तो को बचपन में ही उसे छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। उनका पालन चाची जो मौसी भी थी वह करने लगी। जित्तो बचपन से ही बहुत चंचल पर धार्मिक प्रवृति के थे। परिवार की खेती में मदद करने के साथ साथ सुबह शाम #राजा मण्डलीक(गुगा वीर) की पूजा करते थे। बड़े होने पर 12 साल तक प्रतिदिन मां वैष्णों के दरवार जाकर स्नान करके दर्शन करने जाते थे। एक दिन माता वैष्णों ने उन्हें कन्या रुप में दर्शन दिए और कहा कि जित्तो मैं तुझसे प्रसन्न हूं, अब तुझे रोज रोज यहां आने की आवश्यकता नहीं है। तूं जहां चाहेगा वहां मेरे चरणों का जल बहेगा। तूं वहीं स्नान करना। उस जल से दुनिया का भला होगा। तुम रोज मेरे दर्शन करना चाहते हो न तो तेरे एक कन्या होगी जो मेरा ही रुप होगी। जित्तो ने शादी न करने का प्रण लिया था। माता रानी ने कहा कि वह आप शक्ति होगी, तूं उसे बेटी की तरह पालना। तुम दोनों का साथ हमेशा होगा पर ज्यादा नहीं होगा लेकिन दोनों का नाम रहेगा।  दूसरे दिन जित्तो ने पहाड़ों पर जहां पानी के लिए खोदा वहां से जल बहने लगा। एक दिन स्नान के बाद जब वह पगडण्डी के पास से गुजर रहा था, उसने कमल के फूल के बीच एक कन्या को खेलते देखा। ऐसा चमत्कार देखकर जित्तो का दिल बाग बाग हो गया।  उसने कन्या का नाम गौरी रखा जो मां वैष्णों का ही एक नाम है। उसे घर लाकर उसका पालन पोषण करने लगे। जित्तो प्यार से उसे कौड़ी पुकारते थे। चाची अब तक तो बहुत खुश थी कि जित्तो की सारी जायदाद उसके सातों पुत्रों को मिल जायेगी पर जित्तो का कौड़ी पर हद से ज्यादा लगाव देख कर वह परेशान रहने लगी। अब वह नित्य नये कलेश करती। वे सब कुछ त्याग कर बुआ कौड़ी और बैलों की जोड़ी लेकर जम्मू की ओर #झिड़ी नामक स्थान पर आ गए। जागीरदार मेहता विरी सिंह से खेती करने के लिए जमीन मांगी। उसकी जमीन पर खेती हो रही थी। कुछ बंजर जमीन ऐसी थी जिस पर कुछ नहीं उगता था इसलिए विरी सिंह ने तय किया की उपज का 75% जित्तो लेगा और 25% विरी सिंह लेगा। जित्तो ने दिन रात उस जमीन पर अपना पसीना बहाया तो उसका फल उसे बम्फर फसल के रुप में मिला। उसने गेहूं को साफ करके ढेर लगाया और विरी सिंह को संदेश भेजा कि तूं आकर अपना हिस्सा ले जा। विरी सिंह ने जब गेहंू का ढेर देखा तो उसके मन में कपट आ गया। उसने अपने नौकरों से कहा कि सब गेहूं मेरे घर पहुंचाओ।

  जित्तो ने जो तय था उतना उठाने को कहा पर उस बेईमान ने एक न मानी। वह जबरन वसूली करने लगा। कहते हैं कि जित्तो ने मां भगवती का स्मरण किया, जिस पर उन्हें यह प्रेरणा मिली कि अन्याय के खिलाफ अपनी जान कुर्बान कर दे। जित्तो ने इतना कहा’ सुक्की कनक नीं खाया मेहतया, अपना लहु दिना मिलाय’( मेहता सूखी गेहूं नहीं खाना, इसमें मैंने अपना खून मिला दिया ) जित्तो गेहूं के ढेर पर चढ़ गए और कटार निकाल कर अपने को मारा उस गेहूं को अपने खून से रंग दिया। बुआ कौड़ी को जब पता चला तो वह अपने पिता की चिता पर कूद गई। उसके बाद सभी इन्हे देव रुप में मानने लगे। इस स्थान पर बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी का मंदिर है। उनकी याद में वार्षिक तीन दिवसीय झीड़ी का मेला लगता है। जिसमें मुख्य आर्कषण खेती बाड़ी से जुड़े स्टॉल होते हैं।




 जम्मू शहर से 15 किमी से दूर है। लाखों लोग यहां पहुंचते हैं, #क्रांतिकारी ब्राह्मण किसान बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी के दर्शन करनें। पवित्र तालाब में स्नान करते हैं। मन की मुरादें होती हैंऔर बालरुप बुआ कौड़ी के लिए गुड़िया लाते हैं। यहां माथा टेकने पर लइया का प्रशाद मिलता है। इस प्रशाद को अपने आप हाथ पहले माथे से लगाते हैं फिर मुंह में जाता है।  मेरे साथ ऐसे ही हुआ मैं विशाल प्रतिमा बाबा जित्तो के पास जाकर खड़ी होती हूं और सोचने लगती हूं कि इस माता वैष्णों के भक्त ने समाज को अन्याय के खिलाफ नई दिशा दी थी।  बाबा जित्तू ने उस समय की सामंती व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे आज सबसे पहले अपने खेत का अन्न बाबा जित्तो को चढ़ाते हैं। बाद में अपने लिए इकट्ठा करते हैं क्योंकि उन खेतों में जाने वाला पानी बाबा जित्तो की ही देन है। क्रमशः 


Wednesday, 27 October 2021

नौ देवी मंदिर रियासी 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 22 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 


अब हम रियासी जिले के नौ देवी मंदिर जा रहे थे। ये कटरा से 10 किमी. दूर है। रास्ता शिवखोड़ी का है यानि बहुत खूबसूरत! सड़क से सौ सीढ़ियों नीचे की ओर गुफा तक जाती हैं। आने और जाने की दोनों सीढ़ियों के बीच बहुत तेजी से स्वच्छ पानी बहता है।

बायीं ओर की सीढ़ियों के बराबर प्रशाद, श्रृंगार खिलौनों की दुकानें हैं। शौचालय आदि है। और दायीं ओर की सीढ़ियां जिनसे वापिस आते हैं, उसके बाजू में साथ साथ नदी बह रही है। और हरी वादियां मन मोह रहीं हैं। यहां सफाई उत्तम थी। सफाई संतोष बड़ी लगन से कर रही थी।


अगर सब श्रद्धालु डस्टबिन का प्रयोग करें तो वहां गंदगी नहीं हो सकती। नवरात्रे आने वाले थे। इसलिए मंदिर की सजावट रंगरोगन का काम भी चल रहा था। ये सब देखती मैं गुफा पर पहुंच गई। सोशल डिस्टैंसिंग का ध्यान रख कर सब लाइन में लगे थे।


गुफा में फोटो लेना मना था। पंडित जी ने बताया कि यहां नौ देवियां नौ पिंडिंया स्वरुप में हैं। ये प्राचीन मंदिर द्वापर युग से है। जब वे मानवी रुप में थीं तो इन्होंने यहां तप किया था। ये एक जगह दुर्गा के नौ रुप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारणी, चंद्रघण्टा, कूष्मांडा, स्कन्धमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। सभी यहां पिंडी रुप में विराजमान हो गईं। ताकि आने वाले युग में भक्त एक जगह इनके दर्शन करके धन्य होंगे। नवरात्र में एक जगह और एक साथ पूजा होगीं। गुफा में बहुत अच्छा लग रहा था। हर कोई जयकारे बोलता जा रहा था। गुफा में दर्शन करने के बाद बाहर आकर कुछ लोग अपने को धन्य समझ रहे थे। क्योंकि वे किसी कारणवश अर्द्धकुंवारी की गुफा में नहीं जा पाए थे, यहां जाकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। अब मैं ऊपर की ओर सीढ़ियां चढ़ रही हूं। बराबर में कलकल करती नदी बाई ओर बह रही है। दायीं ओर भी किसी ग्लेशियर से तेजी से आता पानी बह रहा है। यहां मेरा बैठने को बहुत मन कर रहा है, थकान से नहीं। बैंच भी हैं साफ सुथरी सीढ़ियों पर भी बैठ कर नेचर एंजॉय  कर सकती हूं। लेकिन नहीं कर सकती न। अभी तो कुल दो ही जगह दर्शन किए हैं। इसलिए नहीं बैठती क्योंकि बैठूंगी तो पता नहीं कब तक बैठी रहूं!! ग्रिल के सहारे कुछ देर खड़ी रहती हूं फिर ये सोच कर लौटती हूं कि अगली बार जब माता रानी बुलाएगी तो ज्यादा समय के लिए आउंगी।


और मेरे दिमाग में एक बात आ रही थी कि वैष्णों देवी के भवन पर हर साल लाखो लोग दर्शन करने आते हैं। ज्यादातर लोग सिर्फ दर्शन करके अगले दिन वापिस चले जाते हैं। इतनी दूर आने के बाद यहां न आना!! मुझे हैरान कर रहा था। खै़र मैं आसपास सब घूमने के बाद अपना अनुभव आपसे शेयर करुंगी। और जाकर ऑटो में बैठ जाती हूं। इस समय में मेरे दिमाग में सीढ़ी के दोनों ओर बहता साफ निर्मल पानी था। मैंने अशोक से पूछा,’’मैं जहां भी गई हूं, झील झरने, छोटी बडी पहाडी नदियां देखने को मिली हैं। कटड़ा में कभी पानी की कमी नहीं होती होगी यानि 24 घण्टे पानी आता होगा। सुनते ही अशोक ने जवाब दिया,’’नहीं जी टाइम से आता है। टंकी भर के रखनी पड़ती है। अब हम अगले दर्शनीय स्थल की ओर जा रहे थे। क्रमशः     


Tuesday, 26 October 2021

बाबा धनसर, 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 22 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

अशोक शर्मा ने साइड में ऑटो रोका और सड़क पार एक चाय की दुकान से चाय बनवाने लगा। चायवाले ने पूछवाया कि चीनी कितनी? मैंने जवाब दिया,’’अपनी मर्जी से बढ़िया चाय।’’चाय लाजवाब थी। ऑटो पर ही बैठ कर मैंने पी। अशोक ने बताया कि अब सबसे पहले वह बाबा धनसर लेकर जा रहा है। ये जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में कटड़ा से 17 किमी. दूर सलाल डैम के रास्ते में है। अशोक की विशेषता थी कि धीरे चलाता था शायद इसलिए की मैं पूछती बहुत थी। उसे बताना भी पड़ता और यदि किसी रास्ते में कोई घटना या दुर्घटना पहले घटी होती तो वह भी बताता। रास्ता तो शिवखोड़ी जैसा बेहद खूबसूरत। ऑटो रुका, उसने साइड पर लगाया। वहां अभी छोटी छोटी जो दुकाने थीं, वे अभी बंद थीं। सड़क से लगभग 200 मी नीचे सीढ़ियों से उतराई थी। तीन छोटी बसें वहां पर खड़ीं थीं।


मैं सीढ़ियां उतरती जा रही थी। मेरे बायीं ओर हरी घाटी थी और उसमें झरना गिर रहा था जो आगे हरियाली में #करुआ झील बना रहा था।

काफी सीढ़ियां उतरने पर अब साइड में जाली और फाइबर की छत थी।


लगातार करुआ झरना सुरम्य झील में पड़ रहा था। गुफा थी, छोटा सा मंदिर जिसमें प्राकृतिक शिवलिंग है। नागराज उनके परिवार की प्रतिमाएं और बाबा धनसर की प्रतिमा थी। यहां मैं अपनी आदत के अनुसार नहीं बैठी क्योंकि अब मुझेे याद आया कि जब मैं आ रही थी तो मुझे सीढ़ियों पर कोई नहीं मिला। अब ये तीनों बसों की सवारियां मेरे जाते ही लौट गईं। जब मैं वापिस चलने को हुई तो सोचने लगी इतनी सीढ़ियां चढ़नी है!! खै़र चढ़ने लगी। अब विस्मय विमुग्ध सी दायीं ओर देखती चढ़ रही थी। आवाज वहां सिर्फ कलकल पत्थरों के बीच बहते पानी की आ रही थी।


बीच में बस तीन दुकानें थीं। अब मैं थक भी गई थी। सोचा वहां जाकर बैठूंगी। और याद आया फोटो तो मैंने कोई ली ही नहीं। वापिस लौटना स्थगित किया क्योंकि अभी तक जिस भी मंदिर में गई थी। मंदिर के अंदर फोटो लेना मना था। यहां भी हो सकता मना हो। 4 बजे तक मुझे बस में भी पहुंचना था। अभी तो पहली जगह में ही हूं। यहां से ही मैंने फोटो लेनी शुरु कर दी। और जो मैं देख कर आ रही हूं, वह तो मेरे जे़हन में उतर गया है। मैं दुकान के पास खड़ी हुई। उसने स्टूल दिया बैठ गई। जूस लिया और बाबा धनसर के बारे में उनसे पूछने लगी तो वे बताने लगे की ऐसी मान्यता है कि शिवजी अपनी अमरता की कहानी पार्वती को बताने के लिए अमरनाथ गुफा ले गए तो उन्होंने अपने शेषनाग को अनंतनाग में छोड़ दिया। शेषनाग ने मनुष्य रुप धारण कर लिया और उनका नाम वासुदेव था। उनका एक पुत्र धनसर हुआ, वे ऋपि बन गए। एक राक्षस था जो करुआ झरने के पास रहता था। वह करुआ गांव के लोगों पर बहुत अत्याचार करने लगा। ग्रामीणों ने राक्षस से छुटकारा पाने के लिए बाबा धनसर से गुहार की। आगे बाबा धनसर ने भगवान शिव से मदद के लिए प्रार्थना की। भोलेनाथ यहां पहुंचे और दानव को मारने में मदद की। इसके बाद इस जगह का नाम बाबा धनसर पड़ गया। शिवरात्री को यहां मेला लगता है। बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जो भी मनोकामना करो वह पूरी होती है। मैं यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य में इस कदर खो गई थी कि भगवान से कुछ मांगना ही याद नहीं रहा। और अपने देवों पर असीम श्रद्धा आने लगी। जिनके दर्शन के लिए हम देवभूमि पर आकर इतने समृद्ध प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द उठाते हैं।


बाबा धनसर का मंदिर वैष्णों देवी धाम से कुल 23 किमी की दूरी पर है।

जम्मू का रानीबाग एयरर्पोट बाबा धनसर का नज़दीकी एयरर्पोट है। जम्मू से कटरा पहुंचा जा सकता है जिसकी दूरी 50 किमी. है। कटरा से आना तो आसान है। मैं भी तो आई हूं। जैसे ही ऊपर आई तो यह देख कर अच्छा लगा जो सड़क में गड्डा था, वह भरा जा रहा था। आकर ऑटो में बैठी। क्रमशः  


Monday, 25 October 2021

पापा जन्नत!!!! 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 21 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

होटल में कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। सुबह बस कुछ लोग आते दिखे। अब जो भी आता उसे कहा जाता रुम नहीं है। वहां बैठा लड़का उन्हें लेकर दूसरे होटल, रुम दिलवाने चल देता। यहां सारा दिन मैंने एक बात देखी कि कटरा में लोग सामान रखने और स्नान आदि करने के लिए कमरा आदि लेते हैं। बस सीधे भवन के लिए चल देते हैं। 80% लोग पैदल बाकि घोड़े, पालकी और हैलिकॉप्टर से दर्शन को जाते हैं। अगर पहले लौट आए तो आराम किया और शॉपिंग की फिर वापिस। हर शहर की अपनी विशेषता होती है। वहां का खान पान, वहां के दर्शनीय स्थल और उनसे संबंधित दंत कथाएं। ये सोच कर मैंने अशोक शर्मा से कहा था कि कटरा में कोई भी जगह छूटनी नहीं चाहिए। उसने जवाब में कहा,’’ 7 बजे मेरा ऑटो होटल पहुंच जायेगा। बाण गंगा में मैंने देखा कि आप छूकर नहीं आती हो, वहां समय अच्छे से लगाती हो।’’रात दस बजे प्रेरणा, संगीता, पार्थ और धर्मेन्द्र भडाना दर्शन करके आ गए। उषा जी, सुरभि, राची और गौतम बसंल वहीं रुक गए। वे सुबह फिर दर्शन करके लौटेंगे। मुख्य परिसर जिसमें भवन है। यहां मुफ्त और किराए पर रहने की सुविधा मिल जाती है। इसकेे अलावा यहां शाकाहारी रेस्तरां, चिकित्सालय, कंबल स्टोर, क्लॉकरुम, प्रसाद आदि की दुकाने हैं। इन्हें दर्शन बहुत अच्छे से हो गए थे। इसलिए बहुत खुश थे। खाना वे खा कर आए थे। अब यात्रा की बातें चल रहीं थीं। संगीता पार्थ के साथ बाणगंगा से घोड़े पर गई।  भवन जो 5200 फीट की ऊंचाई पर है। इसके लिए 12 किमी. का ट्रैक लिया। ये रास्ता सुगम है। खड़ी सीढ़ियां चढ़ने का भी विकल्प है। यदि आप रात में यात्रा शुरु करते हैं तो ऊंचाई पर पहाड़ों की चोटियों के बीच सूर्योदय का नज़ारा देखने को मिलेगा। बीच र्में अद्ध कुवांरी की गुफा भी गए। सांझीछत एक खूबसूरत स्थान है। यहां से भरपूर घाटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द लिया जा सकता है। 

 प्रेरणा बताने लगी कि ऊंचाई से बहुत ही खूबसूरत नज़ारे देखते हुए, बिना नीचे देखे मैं चल रही थी एक जगह मैं बोली,’’ पापा जन्नत!!!!’’ पापा ने मुझे संभाला क्योंकि सीढ़ी से मेरे पैर को ठोकर लगी। अब मैं ध्यान से भी चलने लगी। रास्ते में खाने पीने की कोई चिंता नहीं थी। भोजनालय, जलपान ग्रह खूब थे। राजमा चावल, पूरी छोले, कढ़ी चावल, पकौड़े, डोसा आदि सब मिलता है। 

 सुमित्रा घोड़े से गई थी। उसने अद्ध कुवांरी से बैटरी कार की, रानी ओमपाल, बाले, सुधा की टिकट ले ली थी। जब ये लोग पहुंचे तब कुछ समय के लिए काउंटर बंद हो गया था। लोग लाइन में लगे काउंटर खुलने का इंतजार कर रहे थे।  अब ये बैटरी कार से गए। बेैटरी कार सीनियर सीटीजन और बच्चों का साथ हो तब टिकट उन्हें पहले मिलती है। भाड़ा 354रु प्रति व्यक्ति है। अब इनकी यात्रा आसान हो गई थी। भवन से आधा किमी. पहले टॉयलेट, बाथरुम आदि बने हैं। यहां दर्शनों से पहले नहा सकते हैं।


वैष्णों देवी के दर्शन के बाद सब 100रु का आने जाने का टिकट लेकर, रोप वे से भैरोंनाथ के मंदिर गए।
 https://youtu.be/5FcIKuP4eZE

माता रानी का भवन उस स्थान पर है जहां भैरों का वध किया था। उसका शीश भवन से 3 किमी. जिस स्थान पर गिरा, आज वह स्थान भैरोंनाथ का मंदिर जाना जाता है। ऐसी कथा प्रचलित है कि अपने वध के बाद भैरोंनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने देवी से क्षमा याचना की। ऐसा भी कहा जाता है कि वह जान गया था कि वह दिव्य कन्या है। उनके हाथों मर कर वह मोक्ष पाना चाहता था। माता रानी ने भैरोंनाथ को वरदान देते हुए कहा,’’मेरे दर्शन के बाद तुम्हारे दर्शन करने पर ही मेरी यात्रा पूरी मानी जायेगी। लौटते समय ये पैदल ही आए और रात 11 बजे प्रेम आश्रम में रुके।

  पार्थ सो गया तो मैं और संगीता काफी देर बतियाते रहे। संगीता उसकी शैतानी  बता रही कि दीदी बांह में बड़ा दर्द हो रहा है। एक बांह में बच्चे का सामान और इसको पकड़ा हुआ, जहां भी रास्ते में ढोल बजे, ये घोड़े पर नाचना शुरु कर दे। फिर इसे भी संभालना। थकी हुई वह बात करते करते सो गई। मैं भी सो गई। कटड़ा के दर्शनीय स्थल देखने की खुशी में सुबह 7 बजे मैं अशोक शर्मा के ऑटो पर बैठ गई और उसे कहा कि रास्ते में जिस चायवाले की चाय तुम्हें अच्छी लगती है, उसकी चाय पियूंगी। मैंने सुबह चाय भी नहीं पी थी। क्रमशः                 


Sunday, 24 October 2021

बाण गंगा 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 20 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi


बाण गंगा पर एक ओर ऑटो लाइन में लगे हुए थे साथ ही घोड़े वाले खड़े थे। यहां से आद्धकवारी तक घोड़े पर जाने का रेट 650रु था। और भवन तक जाने का 1250रु था। अशोक ने सीमा बता कर कहा कि इससे आगे ऑटो नहीं जा सकता। मैं उतर कर पैदल चल दी। बाजू में क्या देखती हूं जो यहां यात्रियों के माथे पर जै माता लिखी हुई पट्टी मेरे ख्याल से सांकेतिक चुन्नी है, वो लोहे की फैसिंग पर बंधी हुई हैं। शायद ही जरा भी जगह बची हो।



अब मैंने नीचे आकर जाली देखी तो वो भी भरने लग गई थी। मैंने अशोक से पूछा,’’यहां किसकी पूजा होती है?’’अशोक ने हाथ जोड़ कर जहां, ’वे टू भवन’ लिखा था और यात्री दर्शन को जा रहे थे और आ रहे थे,

प्रणाम करके बोला,’’बाण गंगा यात्रा का पहला पड़ाव है। ये चुन्नी भी दर्शनों में इनके साथ रही है। इसे जमीन पर कोई श्रद्धालू नहीं रखता और हरवक्त बांध कर घूम भी नहीं सकता। किसी समय कोई गर्मियों में यात्रा करके यहां पहुंचा होगा। ऊपर मौसम ठंडा रहता है। नीचे आते गर्मी लगी और ये तो मां की पवित्र जगह है। उसने चुनरी उतार कर जाली से बांध दी। देखा देखी लौटने वाले भक्तों ने सोचा कि ऐसा करते होंगें। अब यहीं बांध देते हैं। कोरोना न आता तो नीचे की ग्रिल भी भर गई होती। यहां रजीस्ट्रेशन स्लिप से ही जाने दिया जाता है। सड़क के दोनो ओर बाजार हैं। बाण गंगा में दो घाट हैं। यहां कपड़े बदलने और जो बाथरुम में नहाना चाहते हैं, उनके लिए बाथरुम भी है। यहां नहा कर जाने से बहुत ताज़गी आ जाती है और सारी थकावट दूर हो जाती है। मुंडन करवाने के लिए नाई भी बैठे होते हैं। इस नदी को बाणगंगा और बाल गंगा नाम से पुकारने के पीछे भी प्रचलित कथा है।

कटरा के पास हंसली गांव में  पंडित श्रीधर नाम के माता के पुजारी रहते थे। निसंतान होने के कारण वे दुखी थे। एक बार नवरात्री पर उन्होंने कन्या पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलाया तो मां वैष्णव भी रुप कन्या का बनाकर उनमें बैठ गईं। पूजन के बाद सब कन्याएं तो चलीं गईं पर मां वैष्णव तो वहीं आसन पर जम गईं और श्रीधर से बोलीं,’’सबको अपने घर में भंडारे का प्रशाद लेने के लिए आमंत्रित करके आओ।’’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान कर आस पास के सब गांवों को भंडारे में आने का संदेश पहुंचा दिया। साथ ही गुरु गोरखनाथ और बाबा भैरवनाथ को भी उनके शिष्यों सहित भंडारे का निमंत्रण दे दिया। सब को बहुत आश्चर्य था कि ऐसी कौन सी कन्या है जो इतने लोगों को भोजन करवा रही है। सब पहुचे। कन्या एक पात्र से सभी को भंडारा परोसने लगी। जब वह भोजन परोसते हुए भैरवनाथ के पास गई, तो उसने कहा कि मैं तो खीर पूड़ी की जगह मांस मदिरा लूंगा। तब दिव्य कन्या ने कहा कि ये ब्राह्मण के घर का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं परोसा जाता। पर भैरवनाथ जानबूझ अपनी बात पर अड़ा रहा। वह तो कन्या को पकड़ना चाहता था। मां उसके कपट को समझ गई और पवन रुप बदल कर त्रिकुटा पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया। मां के साथ पवनपुत्र हनुमान भी थे। उन्हें प्यास लगी तो मां ने धनुष से पर्वत पर बाण चलाया तो उसमें से यह पवित्र जलधारा निकली जो बाण गंगा कहलाती है। उस जल से मां ने अपने केश धोए। इसे बाल गंगा भी कहते हैं। मैं कुछ देर यहां घूमती रही। जब लौटने लगी तो अशोक से कहा कि मुझे होटल दूसरे रास्ते से लेकर जाना। उसने ऐसा ही किया। कुछ दूर जाने पर बाण गंगा पर एक और पुल आया। उसने बताया कि ये वही बाण गंगा है जिससे मैं मिल कर आ रही हूं। मैं ऑटो से उतर कर पुल से बाण गंगा को देखती रही जो पथरीले रास्ते पर बह रही थी।



बाजारों से निकाल कर उसने मुझे होटल पर छोडा़ और सुबह 7 बजे मुझे लेने आयेगा, ऐसा कह कर वह चला गया। और मेरे अंदर माता वैष्णव देवी के भवन पर न जा सकने की तकलीफ़ कुछ कम हुई। क्रमशः 


Saturday, 23 October 2021

कटड़ा 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 19 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

रास्ते भर माता की भेंटे गाते बजाते पौं फटते ही कटड़ा आ गया। किसी के चेहरे पर कोई थकान नहीं। उषा जी के परिवार ने हैलिकॉप्टर से जाना था और मुझे भी उन्होंने अपने परिवार में शामिल कर लिया। जैसे ही बस रुकी हम लोगों ने सामने काउंटर से यात्रा पर्ची बनवा ली।


जो निशुल्क बनती है। इसके बिना बान गंगा से कोई भी यात्री आगे नहीं बढ़ सकता। कुछ यात्री यात्रा स्लिप ऑनलाइन बनवा कर, घर से उसका प्रिंटआउट लेकर आए थे और साथ ही त्रिकुट भवन में अपने लिए 100रु में बैड भी बुक करवा रखा था। सामान तो बस में रखा ही था। वे तो बस से कूद कर उतरे और ये जा वो जा। हम लोगों ने उसी होटल में कमरे लिए जिसमें पहले उषा जी का परिवार रुकता था। ये बस स्टॉप के पास ही था। होटल में सामान रखकर धमेन्द्र भडाना और गौतम बंसल हम सबके आई.डी वगैरह लेकर हैलीकॉप्टर की सीट बुकिंग के लिए चले गए। हम सब तैयार होकर उनका इंतजार करने लगे। होटल में मेरे फोन पर वाई फाई आते ही अंकुर का फोन उसने पूछा कि मैं कटड़ा पहुंच गई। उसने बताया कि मौसम खराब होने के कारण आज हैलीकॉप्टर नहीं चलेंगें। पर मैंने किसी को नहीं बताया ये सोच कर कि जो सुबह से गए हुए हैं, शायद मौसम ठीक हो जाए और हमारी बुकिंग हो जाए। एक बजे धर्मेन्द्र और गौतम लौट आए उन्होंने बताया कि हैलीकॉप्टर आज नहीं चल रहे हैं। प्रेरणा तुरंत मुझे बताने आई। अब सब चल पड़े कि बान गंगा से घोड़े पर आद्ध कवारी तक जायेंगे और वहां से बैटरी कार 354रु प्रति सवारी जाती है। उसमें बैठ कर चले जायेंगे। मैंने जाने से मना कर दिया क्योंकि मुझे घोड़े पर बैठने से डर लगता है और पैदल मेरा स्वास्थ साथ नहीं दे रहा था। सब गाड़ी में बैठे और बान गंगा की ओर चले गए। थोड़ी देर बाद मैं पैदल चल दी लंच करने। कुछ भी कटड़ा स्पैशल नहीं। सब यहां जैसा लेकिन शाकाहारी। लंच के बाद थोड़ा पैदल चलती जिस रास्ते से गई थी उसी से वापिस आ गई। सुबह कोने की जिस दुकान से चाय आई थी। उसे एक चाय बनाने को बोला। उसने पहले मुझसे हैरान होकर पूछा,’’आप नहीं गईं दर्शन करने! क्यों नहीं गए?’’ मैंने जवाब दिया,’’हैलीकॉप्टर आज नहीं चले। माता रानी चाहतीं हैं, मैं फिर से आऊं। अब जब बुलावा आयेगा, उस दिन जरुर चलेंगे।’’ उसने चाय बहुत अच्छी बनाई। मैंने रुम में लाकर पी और पैर ऊँचे करके सो गई। जब उठी तो सूजन बहुत कम रह गई थी। अचानक मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि बाण गंगा तक तो गाड़ी जाती है। मैं सबके साथ जाकर लौट आती। मैंने ऐसा क्यों नहीं किया?’’ फिर अपने आप ही जवाब आ गया कि अब कर लेती हूं।  शाम के 5.30 बजे थे। मैं बाहर आई। बस स्टैण्ड के आगे खड़ी हो गई और ऑटो देखने लगी। बस स्टैण्ड जैसे आम तौर पर गंदे होते हैं, वैसे ही गंदा। लेकिन यहां मुझे गंदा होना बुरा लगा क्योंकि कटड़ा वैष्णों देवी यात्रा का आधार शिविर है।

देश विदेश से लोग यहां आते हैं। प्रकृति ने इसके आस पास भरपूर सौन्दर्य बिखेरा है। तो यहां के प्रशासन को भी सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिए। पीछे मुड़ कर देखती हूं। दो खड़ी बसों के बीच में यात्री शायद पॉलिथिन बिछा कर उस पर बैठे देवी मां के गीत गा रहें हैं। जहां की फिजा़ में लोगों की श्रद्धा का भाव हो वहां गंदगी होना शोभा नहीं देता।

इतने में एक खाली ऑटो दिखा। उसे मैंने रोक कर पूछा,’’बाण गंगा जाना है और मुझे यहीं लाकर छोड़ना है। कितना भाड़ा?’’उसने कहा कि 250रु। मैं बैठ गई। कटरा से परिचय करती जा रही थी। बाजार सामान से लदे हुए थे। जगह जगह हाथी जो ट्रक से छोटा होता है, उसमें सेब भरे हुए बिक रहे थे 30रु किलो। दोपहर में मैंने 75रु किलो लिए थे। ऑटोवाले का नाम अशोक था। मैंने उसे अगले दिन कटरे के दर्शनीय स्थल घूमाने को तय कर लिया। उसने कहा वह सुबह 7 बजे ऑटो होटल पर लगा देगा। बाण गंगा पहुुंचा कर वह बताने लगा.... क्रमशः        


Friday, 22 October 2021

शिवखोड़ी से कटरे की ओर 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 18 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

मैं जैसे ही महादेव यात्री निवास में पहुंची, सामने जलवाले गुरुजी। उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने पूछा,’’आप दर्शन करने नहीं गईं!! मैंने जवाब दिया,’’मेरे स्वास्थ्य ने इजा़जत नहीं दी।’’उन्होंने कहा,’’स्वास्थ्य के अनुकूल ही चलो।’’ये सुनते ही मेरे अंदर शिवखोड़ी गुफा में न जा पाने का जो अजीबपन था, वो तुरंत गायब हो गया और अब मुझे अपना निर्णय गलत नहीं लगा। मैं सोचने लगी कि मैं हूं तो शिवालिक की पहाड़ियों में और ये मेरा सौभाग्य है। जहां हमारा स्टे है उसका नाम भी महादेव यात्री निवास है। अब मैं इसमें घूमने लगी। साफ सुथरा बहुत विशाल हॉल है। गद्दे तकिए रखे हैं। इण्डियन वैर्स्टन दोनों तरह के टॉयलेट हैं। बाथरुम अलग हैं। अटैच टॉयलेट वाले कमरे भी हैं। बेसमैंट भी इसी तरह से बना है। यहां बहुत बड़ी किचन है।






सफाई  यहां बहुत है। इसकी छत से बाहर देखना भी बहुत अच्छा लग रहा था।

नरेन्द्र कहने आए कि कन्या जीम रहीं हैं। उनके बाद आप सब भी प्रशाद लेना शुरु कर दो क्योंकि श्रद्धालु दर्शन करके आने शुरु हो गए हैं। फूली फूली गर्म पूरियां और आलू की सब्जी प्रशाद में थी। खाने के बाद मैं अपने उसी गद्दे पर आकर सो गई। शाम को 6 बजे मेरी नींद खुली। मैं नीचे चाय पीने गई। वहां बाले और सुधा और भी कई दूसरी बसों के यात्री बैठे थे। बाले सुधा पहली बार घोड़े पर बैठीं थीं, वे अपना अनुभव शेयर करने लगीं।

चाय पीते ही पता चला कि जलवाले गुरुजी का सत्संग, उसी हॉल में है जिसमें हम सोये थे। नीचे हॉल के भी श्रद्धालु ऊपर आ गए। मैं थोड़ा आगे जाकर बैठ गई। उनका प्रवचन मैंने बहुत ध्यान से सुना। उस पर अमल करके आम आदमी का पारिवारिक जीवन खुशहाल हो जायेगा। यात्रा से तो मैं प्रभावित थी ही। अब जो उन्होंने कहा कि इस आठ दिन की यात्रा में सिगरेट, बीढ़ी, पान, तम्बाकू, गुटका, पान मसाला आदि खाना मना है। आठ दिन बहुत होते हैं अब जिसने आठ दिन तक छोड़ दिया अब अगर अपनी इच्छाशक्ति से वह छोड़ना चाहता है तो वह जीवन भर के लिए छोड़ सकता है। क्योंकि आठ दिन किसी भी व्यसन की आदत को छोड़ने के लिए कम नहीं होते हैं। तो मैंने गौर किया कि मैं तो यात्रियों के बीच में ही रही हूं। अपनी बस वालों के साथ दर्शन के लिए निकलती तो अपनी स्लो मोशन के कारण सबसे पिछड़ जाती फिर दूसरी बसों वाले मेरे साथ कुछ दूर तक चलते पर रास्ते में आते जाते मैंने किसी को भी सिगरेट, बीढ़ी, पान, तम्बाकू, गुटका, पान मसाला आदि का सेवन करते नहीं देखा। अब जिस परिवार में ये सब वर्जित होगा उसमें तो खुशहाली आयेगी ही। साल में दो बार ये यात्रा आती है। न जाने कितने लोगों ने इन चीजों को छोड़ा होगा। ये कोरोना काल के बाद पहली यात्रा थी जिसमें सबसे कम यात्री थे। यानि 6 बसें। मैंने अपने जीवन में पहला ऐसा प्रवचन सुना जो सरल भाषा में सबके मन की बात था, जिसे श्रोता आत्मसात कर रहे थे। मैंने पहले शब्द से लेकर आखिरी वाक्य तक सुना। अब उन्होंने कहाकि प्रशाद तैयार है। पहले महिलाएं और बच्चे लें और आगे के कार्यक्रम की सूचना दी कि सुबह तीन बजे यहां से कटरा जाने के लिए निकलेंगे। आप एक जोड़ी कपड़ा ले लो। कम से कम सामान रखना क्योंकि चढ़ाई में सामान उठा कर चलना मुश्किल हो जाता है। बाकि सामान आपका बस में ही रहेगा। बस स्टॉप के सामने ही यात्री पर्ची बनती है। सबसे पहले उसे बनवाना। बान गंगा तक ऑटो टैंपू जाते हैं। वहां से आध क्वारी तक पैदल या घोड़े , पालकी से जा सकते हैं। आधक्वारी से बैटरी कार भी मिलती है। जो यात्री वहां रात को रुकेंगे। कंबल किराए पर मिल जाते हैं। आगे भैरो बाबा के दर्शन के लिए केबल कार से जा सकते हैं। बसे पार्किंग में खड़ी रहेंगी और अगले दिन हमेशा की तरह वही पुरानी जगह सीआरपीएफ कैंप के पास 2 बजे से भण्डारा होगा। आप प्रशाद लेकर शॉपिंग कर सकते हैं। 4 बजे के बाद यहां से निकलेंगे। दाल चावल, पूरी आलू की सब्जी का प्रशाद लिया और सब जल्दी से सो गए। रात 11 बजे से खूब बारिश, बिजली चमक रही। सब गहरी नींद में सो रहे। सेवादारों ने आकर खिड़कियां दरवाजे बंद दिए। बारिश देख कर मैं खुश हो गई ये सोच कर कि अब तो सुबह निकलेंगे, शिवखोड़ी का खूबसूरत रास्ता देखते हुए। पर रात दो बजे से जाने की तैयारी में सब अपने आप उठने लगे। 3 बजे बसें चल पड़ी। अब कटरे की ओर जा रहें हैं तो माता की भेंटें बज रहीं हैं।  क्रमशः       




 


Thursday, 21 October 2021

शिवखोड़ी धाम 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 17 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

ये पर्वतीय यात्रा तो बड़ी मनमोहक है। रास्ता समृद्ध प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। कलकल बहते झरने, हर तरह के पेड़ पौधे कोई भी हरे रंग का शेड नहीं बचा था जो इन वनस्पतियों न हो।


बरसात लगभग जा चुकी थी इसलिए पेड़ पौधे नहाए से लग रहे थे। जहां भगवान शिव ने वास किया है वो स्थान क्यों नहीं इतना सुन्दर होगा!! जन्नत

ऐसी ही होती होगी! यहां से गुजरती हमारी बस ने शिवयात्री निवास पर विश्राम लिया। मेरे हैण्डबैग में जरुरत का सामान और आज पहनने के कपड़े थे। मैंने हॉल में जाते ही एक गद्दे पर अपना बैग रखा और स्नान आदि करके बैग पर पैर ऊँचे रख कर लेट गई ताकि पैरों की सूजन कम हो जाए। मुझे डॉक्टर ने पालथी मार कर बैठने को मना किया है। लगातार लटका कर बैठने से पैर इतने सूज गए थे कि चप्पल में फंस रहे थे। ये सहयात्री तो मेरे परिवार जैसे थे। मैं लेटे लेेटे ही सबसे जानकारी ले रही थी। इंटरनेट यहां बंद था। जिन महिलाओं से दूरी के बारे में पूछा, किसी ने भी किमी. में नहीं बताया बस वे यही कह रहीं थीं कि वैष्णव देवी से थोड़ी कम है। 12 अप्रैल से 18 मई तक कोरोना होने के कारण मैं दवाओं पर रही थी। इसलिए अंकुर ने इसी शर्त पर मुझे भेजा था कि मैं वैष्णों देवी आना जाना हैलीकॉप्टर से करुंगी। आज यहां तो स्टे था। मैं सो गई। जब नींद खुली तो सब लोग जा चुके थे। दो चार लोग आराम कर रहे थे। मैंने पूछा,’’आप नहीं गए!! वे अपने पति की ओर इशारा करके बोली,’’जब हम नौएडा से चले थे तो इनकी तबियत थोड़ी खराब थी। अब ठीक है। हम यहां पहले आ चुके हैं। हम वैष्णोंदेवी पैदल जायेंगे इसलिए आज रैस्ट करेंगे। मेरे बराबर के गद्दे पर बैठे पति पत्नी विचार विमर्श कर रहे थे कि जाने से पहले नाश्ता करे या नहीं। क्योंकि प्रशाद तो 1बजे सर्व होगा। पति बोले,’’ब्रेकफास्ट और लंच में 4 घण्टे का अंतराल होना चाहिए। ये सुनते ही पत्नी ने गुस्से से पूछा,’’आपको किसने कही?’’ पति ने जवाब दिया,’’डाक्टर ने।’’पत्नी ने डांटते हुए कहा,’’ डॉक्टर से एक पर्ची बनवालो कित्ती सांस लेनी, कित्ता पानी पीना, जिंदगी पर्ची के अनुसार चलाओ।" और दोनों चल दिए। ये 66 साल के थे। शिवखोड़ी, वैष्णों देवी सब जगह इन्होंने पैदल आना जाना किया था। 

दंत कथाओं के अनुसार भस्मासुर ने भोलेनाथ की घोर तपस्या की। जिससे शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। उसने वरदान मांगा कि वह जिसके सर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाए। शंकर जी ने कह दिया कि ऐसा ही हो। वरदान मिलते ही वह तो अहंकारी हो गया और शिवजी के पीछे लग गया वह उनके ही सिर पर हाथ रखना चाहता था। रणसू जिसे रनसू भी कहते हैं यहां दोनों का भयंकर युद्ध हुआ वह उन्हें भस्म करना चाहता है। तब भोलेनाथ ने शिवालिक पर्वतश्रंखला में यहां गुफा बनाई और परिवार सहित यहां छिप कर रहने लगे। यही गुफा शिवखोड़ी हैं। यह गुफा जम्मू कश्मीर के रयासी जिले में स्थित है। बाद में भगवान शंकर ने मनमोहनी का रुप धारण करके भस्मासुर को मोहित किया। सुन्दरी के साथ नृत्य करते हुए वह वरदान भूल गया। नृत्य के दौरान जैसे ही शिवजी ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा तो भस्मासुर ने उनका अनुसरण करते हुए उसने भी अपने ही सर पर हाथ रखा और भस्म हो गया।





शिवखोड़ी गुफा में शिव के साथ पार्वती, गणेश, कार्तिकेय नंदी पिण्डियों के दर्शन होते हैं। पीण्डियों का जलाभिषेक गुफा की छत से प्रकति करती है यानि जल की बूंदें स्वयं गिरती हैं। गुफा दो भागों में बंट जाती हैं। कहते हैं जिसका एक रास्ता अमरनाथ गुफा में निकलता है।  शिवखोड़ी धाम की अलौकिक और गुफाओं का दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु आधार शिविर रनसू पर, जम्मू, कटरा, उधमपुर या फिर अन्य किसी भी स्थान से किसी भी वाहन के जरिए पहुंचते हैं। आधार शिविर से गुफा तक पौने चार किमी. तक सरल चढ़ाई है। इसके अलावा घोड़ा, पालकी की भी सेवा ली जा सकती है। पहले शिवद्वार के पास बने काउंटर से यात्रा पर्ची बनवाते हैं। 500रु में घोड़ा आने जाने का लेता है।


गुफा में जाने को बनी सीढ़ियों से से थोड़ा पहले मोबाइल कैमरा आदि जमा कर लिए जाते हैं। 

पैदल ट्रैक पर सभी सुविधाएं हैं मसलन पीने का पानी, शौचालय आदि।

पैरों की सूजन कम होते ही मैं बाहर निकली थोड़ा सा सड़क पर आते ही मुझे शेयरिंग ऑटो मिल गया। 20 रु में उसने मुझे शिवद्वार पर उतार दिया यहां घोड़े वालों ने मुझे घेर लिया। पता नहीं कहां से कोरोना के समय सांस ठीक से न ले सकने की तकलीफ़ याद आ गई। यहां गुफा में प्रवेश था। मैंने वहीं से भोलेनाथ को दिल से प्रार्थना की कि यहां भी रोपवे शुरु करवा दो ताकि मेरे जैसों को आपके द्वार से वापिस न जाना पड़े। मैं सोच में डूबी हुई थी और एक घोड़े वाला तो 400रु आना जाना बताने लगा। पर मैं लौट आई। क्रमशः