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Sunday, 14 November 2021

लड्डू गोपाल संग 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 32 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

सारस्वत ब्राह्मण धर्मशाला पहुंचते ही सबसे पहले हॉल में गई जहां जलवाले गुरु जी का सत्संग चल रहा था। मेरे पहुंचते ही समापन पर था। उन्होंने सबको प्रशाद लेने के लिए कहा और सत्संग का समापन किया। हॉल से बाहर जाकर देखती हूं, वहां ऐसा लग रहा था मानों कोई साप्ताहिक बाजार लगा हो। स्वरोजगार करने वाले, अपनी बाइक पर सामान लगा कर बेच रहें हैं। अब घर ही तो जाना है, खूब जम कर खरीदारी हो रही थी। बेचने वालों के भी चेहरे खिले हुए और खरीदने वाले भी बहुत खुश थे। जिनके उपहार के लिए खरीदारी की जा रही थी, वे अपनों द्वारा गिफ्ट मिलने पर खुश होगें यानि घर में भी खुशी का माहौल होगा।


इस यात्रा से सभी को कुछ न कुछ मिला है। कुछ बता सकते है, कुछ महसूस कर सकते हैं। रानी हमेशा की तरह कहने आई,’’दीदी, प्रशाद खाने चलो।’’ प्रशाद में सीताफल और आलू की लजीज़ सब्जी़, खीर और गर्मागर्म पूरी थी। खाने के बाद मैं घूम रही थी। बारांडो में कहीं कहीं कुर्सियों के साथ चारपाइयां भी रखीं थीं। एक महिला लेटी थी, जगह देख कर मैं उसके पास बैठ गई। उसने खिसक कर मुझे भी लेटने की जगह दे दी। मैं भी लेट गई। कुर्सियों पर बैठी महिलाओं ने कुर्सियां मेरे पास कर लीं। एक महिला बड़े प्यार से बोली,’’दीदी, आपको वैष्णों देवी ने दर्शन पता है, क्यों नहीं दिए!!’’ मैंने कहा," नहीं।"  तो उसने खुद ही जवाब दिया,’’आपने सब देवियों के नंगे सिर दर्शन किए हैं इसलिए। हमने सोचा था कि आपको टोक दें फिर इसलिए नहीं टोका कि कहीं आप बुरा न मान जाओ।" मैंने उन्हें जबाब दिया कि आप टोक कर तो देखतीं। ये सुन कर उन्होंने मुझे सांत्वना देते हुए कहा कि कोई बात नहीं, मइया आपको फिर बुलाएगी। मेरे भवन पर न जा पाने से ये सब कितनी दुखी थीं!! मैं यात्रा में कम से कम सामान रखती हूं क्योंकि उठाना तो मुझे ही है इसलिए जिंस कुर्ते ले कर जाती हूं। उनसे बात करते करते मैं सो गई। बस चलने से पहले ओमपाल सिंह मुझे बुलाने आए। सब सवारियों के आने पर जलवाले गुरु जी ने चलने का आदेश दिया। बसें चल पड़ी। अब ढोलक नहीं बजी। वैसे ही अशोक भाटी ने सबको जल और मेवे का प्रशाद दिया। जितना मेवा बचा था, वह फिर से दिया। बस में नाचना गाना हंसी मज़ाक सब बंद।  ये देख, मुझे जसोला की उषा जी की बड़ी सरलता से कही बात याद आई, ’दीदी अब घर जायेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे दिल में कुछ टूट सा गया है।’ सब चुप हैं। चाय पानी के लिए एक जगह बस रुकी। हमेशा की तरह सेवादार ने सीटी बजाई। सीटी बजते ही हमेशा सब बस में चढ़ जाते थे। पर आज वही सीटी की आवाज सुन कर, कुछ महिलाएं बड़बड़ाती हुई चढ़ी’’जब भी हम नीचे उतरें, ये धूतारा बजा देवे’’। ’धूतारा’ शब्द मैंने पहली बार सुना था। उषा जी से मतलब पूछा तो उन्होंने बताया ’सीटी’। सब उदास थे, बस सामने विराजमान हमेशा की तरह लड्डू गोपाल, मुस्कुराते हुए सबको देख रहे थे। 
   जाते समय की मुझे यादें आ रही हैं। सलारपुर की श्वेता जब बस रुकती, कहीं भी जाते वह बोनट से लड्डू गोपाल लेकर उतरती, बस में आते ही वहीं उन्हें बिठाती। रात में लड्डू गोपाल से सोने को कहती और उनको डोली में लिटा देती। मैंने उषा जी से पूछा कि ये लड्डू गोपाल को साथ में क्यों लाई है? उन्होंने बताया कि लड्डू गोपाल को बालक की तरह रखते हैं। जैसे तुम घूमने आये हो तो बालक को घर में अकेला छोड कर आओगे!! नहीं न, ये भी तो बालक हैं, लड्डू गोपाल भी घूमने आए हैं। 




याद आया गौतम नाच रहे थे उसकी पत्नी कुसुम को भी बस में उसके साथ नाचने को उठा दिया। वह घूंघट निकाल कर नाचने लगी। अशोक भाटी विडियो बना रहे थे। मैंने उषा जी से कहा,’’विडियों में कुसुम की शकल तो नहीं दिखाई देगी।’’वे बोलीं,’’अशोक भाटी, गौतम के मामा हैं। इसके मामा ससुर लगे न, सबके बहुत कहने पर भजन पर नाच रही है।’’ देख भी रही हूं याद भी आ रहा है जाने और आने का फर्क। नौएडा आते ही जिसको जहां पास पड़ रहा है, वहां उतारा जा रहा है। मुझे नहीं याद कहां, बस रुकते ही संदीप शर्मा ने ऑटो का भाड़ा तय करके मेरा लगेज़ भी रख दिया। मैं अपने घर पहुुंच गई।    ़        

 मैं तो लिखते हुए फिर से यात्रा का आनन्द उठा रही थी। ये मेरी कोरोना महाकाल के बाद पहली यात्रा थी। अब जो यात्रा करुंगी आपके साथ शेयर करुंगी।  समाप्त


ब्रह्मसरोवर, सन्निहित तीर्थ, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर कुरूक्षेत्र 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 31 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

नारद पुराण के अनुसार सन्निहित सरोवर का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया था। ग्रहण के समय यहां स्नान करने से सौ अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है और मनोकामना पूरी होती है। यहां पर श्री ध्रुव नारायण के मंदिर के मध्य में भगवान चतुर्भुज नारायण एवं ध्रुव की सुन्दर प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर के आगे टीन का विस्तृत छाया गृह बना हुआ है। जिसमें तीर्थ पर स्नान करने वाले यात्री विश्राम करते हैं। कुछ ऐसा हुआ कि मैं यहां जितनी देर रही वहां कोई न कोई अपने प्रिय स्वर्गवासी का कोई संस्कार करवा रहे थे। जिसमें फोल्डिंग पलंग पर इंसान की जरूरत का सब सामान था। महापंडित के निर्देश में वह सिर मुंडाय पलंग की परिक्रमा कर रहा था। उसके हटते ही दूसरा ही कोई दूसरा ऐसे ही सामान लिए आ गया। पूर्व भाग में तीर्थ की तरफ हनुमान जी की विशाल प्रतिमा और सिंहवाहिनी अष्टभुजी दुर्गा देवी जी की संगमरमर की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस स्थान पर वामन द्वादशी को भारी मेला लगता है। सरोवर के आस पास बहुत ही तीर्थ हैं। मैं सड़क पार करती हूं।




श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर

यह मंदिर सन्निहित सरोवर के पश्चिम में है। इसमें भगवान लक्ष्मी नारायण की बहुत सुन्दर प्रतिमा है। कहते हैं कि बाबा शिवगिरि जी जो कि एक सिद्ध फकीर थे उन्होंने यह मंदिर बनवाया था। यहां यात्रियों के ठहरने और साधुओं के सदाव्रत का प्रबंध होता है।


ब्रह्मसरोवर 

मैं तो पहले यहां आई हुई थी इसलिए जैसे ही हमारा ऑटो ब्रह्मसरोवर के आगे से गुजरा मैंने उसेे रुकने को कहा। उसने जवाब दिया,’’यहां तो सुबह आपने स्नान किया होगा न।’’ सारी सवारियां कोरस में बोलीं,’’हां जी किया था तो अब क्या देखना चलो।’’वो चलने लगा तो मैं उतर गई। उसे 120 रु जो तय थे दिए। उसने मुझे 20रु वापिस किए। मैंने पूछा,’’ये किस लिए?’’उसने जवाब दिया,’’ये सारी सवारियां 100रु में बैठीं हैं आपसे ज्यादा क्यों लूं!! पास में ही सारस्वत धर्मशाला है।’’ और ये जा वो जा। सुबह हमारी बस के साथी सब ब्रह्मसरोवर में नहाने गए थे। मैं नहीं गई, मुझे घूमना जो था इसलिए मैं जरा भी समय नहीं गवा रही थी। सड़क से ब्रह्मसरोवर के प्रवेश द्वार तक बिल्कुल साफ रास्ता था और कहीं कहीं तो फर्श पर धान भी सूख रहा था। अब मैं अकेली ब्रह्मसरोवर के किनारे धूप में खड़ी थी।   

इस प्राचीन विशाल सरोवर का कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ने अति आधुनिक ढंग से नवनिर्माण किया है। आकार में पहले से छोटा होने पर भी भारत के विशाल सरोवरों में इसकी गणना की जाती है। इस सरोवर की लम्बाई 3600फुट और चौड़ाई 1200 फुट है। इसमें 15 फुट पानी हमेशा रहता है। यात्रियों के विश्राम के लिए चारों ओर बरामदे बने हैं। पक्के घाट और यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेलिंग हैं। महिलाओं के स्नान के लिए अलग घाट हैं। सरोवर के बीच में सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है। यहां ऐसी व्यवस्था की गई है कि सूर्य ग्रहण के समय यहां देश विदेश से आए 5 लाख यात्री एक समय में स्नान कर सकें। इसमें जल भाखड़ा नहर से आता है। बाहर आकर मैं धर्मशाला की ओर चल दी। सुबह स्नान के समय भी सबने कहा कि ब्रह्मसरोवर वो रहा बिल्कुल पास ही है। अब ऑटोवाला भी कह कर गया कि धर्मशाला पास ही है। सड़क पर आकर कुछ कदम चलने पर दो आदमी आपस में बात कर रहे थे। मैं बात बात पर गूगल मैप देखने वाली इस यात्रा में कुछ याद ही नहीं था। उन दोनों से पूछ बैठी,’’सारस्वत धर्मशाला किधर है?इतना तो पता है कि वो ब्रह्मसरोवर के पास है।’’ दोनों सोचने लगे फिर बोले कि आप आगे आ गई हो पीछे कट से दाएं जाकर एक किमी पर है। अब मैं थोड़ी परेशान हो गई। इतने में एक आदमी आया बोला,’’वो जरा सा आगे जाओ बाजू में है। मैं अंदर से सुनकर बाहर आया अब यहां खड़ा हूं जाइए।’’ मैं चल पड़ी और उसकी आवाज़ सुनाई दी वह उन्हें समझा रहा था कि अंदाज से रास्ता मत बताया करो। मैं धर्मशाला में पहुंच गई थी। क्रमशः     








Saturday, 13 November 2021

भद्रकाली मंदिर, बिरला मंदिर, गौड़िया मठ, बाण गंगा कुरूक्षेत्र 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 30 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi


स्थाणु मंदिर से थोड़ी दूरी पर झांसा रोड पर देश के 52 शक्तिपीठों में एक शक्ति पीठ भद्रकाली यहां है। यहां भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कट कर सती के दाहिने पांव की एड़ी यहां गिरी थी। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डवों ने विजय की कामना से मां काली का पूजन यहां किया था। नवरात्रों की जोर शोर से तैयारी चल रही थी।  दशहरे को यहां मेला लगता है। श्रद्धालू कूप पर यहां मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। 




बिरला मंदिर पिहोवा रोड, कुरूक्षेत्र सरोवर के बिल्कुल नजदीक है। मंदिर में बहुत सुन्दर प्रतिमाएं हैं, सफेद संगमरमर का बना है। सफाई सराहनीय है। यह मंदिर जुगलकिशोर बिरला ने 1952 में बनवाया था और इसका नाम भगवद्गीता मंदिर रखा।




गौड़िया मठ चैतन्य महाप्रभु के समुदाय का है। राधा कृष्ण की प्रतिमाएं है। चैतन्य महाप्रभु फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सम्वत् 1542 को नवद्वीप बंगाल प्रांत में अवतीर्ण हुए और 1580 में ब्रह्मलीन हुए। उन्होंने संर्कीतन की गंगा बहाई। उनको लोग गोेराग महाप्रभु भी कहते हैं। इसलिए इस मठ का नाम गौड़िया मठ पड़ गया है । 


कुरूक्षेत्र में दो बाण गंगा नाम के स्थान हैं। एक दयालपुर गांव के पास व दूसरा नरकातारी गांव में है। कहते हैं कि नरकातारी में अर्जुन ने शरशैया पर पड़े हुए भीष्म की प्यास बुझाई थी और दयालपुर के पास बाण गंगा में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने घोड़ों को पानी पिलाया था। बैसाखी और गंगा दशहरे को यहां मेला लगता है।


ऑटोवाला जहां भी हमें ले जाता, उतारने से पहले बहुत ही संक्षिप्त में हमें उस जगह के बारे में बताता। जिससे उस जगह को देखना बहुत अच्छा लगता था। उसने यह भी बताया कि सिखों के दस गुरूओं में से नौ के चरण भी कुरूक्षेत्र में पड़े हैं। यहां उनके नाम सेे गुरूद्वारे हैं। जब मैं कुछ साल पहले यहां आई थी, तब मैंने श्रीकृष्ण संग्रहालय देखा था। यहां ऐसा लग रहा था जैसे हम महाभारत के युग में पहुंच गए हों। यहां श्रीकृष्ण को कलाकृतियों में महानायक, महान दार्शनिक, कुशल एवं कूट राजनीतिज्ञ एवं प्रेमी के रूप में चित्रित किया गया है। बाईं ओर स्थित साइंस पैनोरमा में महाभारत से संबंधित जानकारी तथा उस युद्ध का चित्रण सजीव लगता है। साथ ही यद्ध में जो आवाजें होती होंगी वेैसी ही आती हैं। मैं तो विस्मय विमुग्ध हो गई थी। क्रमशः      

   


Saturday, 6 November 2021

स्थानीश्वर महादेव मंदिर,कालेश्वर महादेव मंदिर, शेख चिल्ली का मकबरा कुरुक्षेत्र 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 29 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi



 कहा जाता है कि महाभारत युद्ध से पहले भगवान कृष्ण पाण्डवों के साथ यहां आये थे और उन्होंने पाण्डवों सहित स्थाणु का पूजन किया था। कहते हैं कि इस सरोवर में स्नान करने से महाराजा वेन का कुष्ठ दूर हो गया था। कुरुक्षेत्र की यात्रा करने के लिए गया यात्री यदि स्थाणु शिव के दर्शन करने से वंचित रह जाता है तो उसकी कुरुक्षेत्र यात्रा निश्फल हो जाती है। क्योंकि इस भूमि के अधिपति भगवान स्थाणु ही हैं। सत्संग भवन में समय समय पर सत्संग का आयोजन होता है। चैत्र में भगवती जागरण तथा कार्तिक मास में कथा होती है। श्रावण मास के सोमवार को भगवान शंकर की पालकी जलूस के रूप में शहर में लाई जाती है। यहां प्रत्येक शिवरात्री को बड़ा भारी मेला लगता है। श्रद्धालु स्थाणु तीर्थ में स्नान करना अपना सौभाग्य समझते हैं। सरोवर में स्त्रियों के लिए अलग से घाट बनाया गया है। इसके तट पर ही भगवान स्थाणीश्वर का मंदिर है।


रात भर जागरण होता है। पुराणों में विस्तारपूर्वक स्थाणु शिव तथा इस पवित्र सरोवर की महिमा का वर्णन किया गया है।

अकामो व सकामों व प्रविष्ट स्थाणुमन्दिरम्।

विमुक्तः पातकै धोरैः प्राप्नोति परमंपदम्।।

सकाम अथवा निष्काम भाव से स्थाणु मंदिर में प्रवेश करने वाला मनुष्य पातकों से विमुक्त होकर परमपद प्राप्त करता है। स्त्री या पुरूष द्वारा ज्ञान अथवा अज्ञानवश किए गए समस्त पाप यहां के दर्शन से नष्ट हो जाते हैं।



मंदिर की सफाई उत्तम है। ज्यादा नहीं रूक सकती थी। जितनी देर भी यहां रही अलग सा महसूस हुआ। शनिमंदिर और बाला जी मंदिर के दर्शन करके बाहर आती हूं।

कालेश्वर महादेव मंदिर


वैसे तो यह तीर्थ स्थाणेश्वर मंदिर जाते समय बाईं ओर पड़ता है। पर यहां हमने स्थाणेश्वर से लौटते समय दर्शन किए। यह प्राचीन शिव मंदिर है। जिसके पूर्वी तट पर पक्का घाट है। यहां माघ महिने में स्नान करने का विशेष महत्व है। कहा जाता है लंकेश्वर रावण ने भी यहां भगवान रुद्र की प्रतिष्ठा की थी।

शेख चिल्ली का मकबरा

 



थानेश्वर के उत्तर पश्चिम कोने  में यह मकबरा है जो भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा सुरक्षित इमारतों में से है। शाहजहां जब लाहौर से दिल्ली आते हुए थानेसर फौज के साथ रुके तो कुतुबसाहब ने एक प्याला जल और आधी रोटी से सारी मुगल सेना को भोजन करवाया। शाहजहां इससे प्रभावित हुए और उन्होंने यह मकबरा कुतुबसाहिब के लिए बनवाया। शेखचिल्ली की इसी मकबरे में समाधि है। क्रमशः        



Friday, 5 November 2021

गीता जन्मस्थली ज्योतिसर तीर्थ कुरुक्षेत्र 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 28 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 


हमारी बसें यहां से रात आठ बजे सब यात्रियों के आने पर जलवाले गुरुजी के आदेश से चलीं। अब फिर दिमाग में आ गया कि पता होता कि यहां से आठ बजे निकलेंगे तो मैं हैलीकॉप्टर से वैष्णों देवी जा सकती थी। पर देरी का कारण तो छः बसों में किसी न किसी सहयात्री का लेट होना था। अगर सब यात्री होते और मैं लेट होती तो मेरे कारण सब परेशान होते न। पर मेरी यात्रा तो बहुत लाजवाब रही और दोबारा आने का भी मकसद मेरे पास है ’वो है वैष्णों माता का दर्शन करना।’ बस चली तो एक ही दिल में कसक थी कि अंधेरे के कारण रास्ते की खूबसूरती मिस कर रही थी। आरती भजन हुआ अशोक भाटी ने जल और मेवे का प्रशाद दिया। ओम पाल सिंह ने सबको बताया कि अब हमारी यात्रा अंतिम चरण में कुरुक्षेत्र की ओर चलती है। कुरुक्षेत्र में पहुंचने पर बताया गया कि आप ब्रह्मसरोवर में स्नान करके दर्शनीय स्थानों को देखकर लौटेंगे तो भंडारा तैयार मिलेगा। प्रसाद ग्रहण करके, आप सत्संग का भी लाभ उठाएंगे। और हमारी बस सारस्वत धर्मशाला, भगवान परशुराम धाम, उत्तरी तट ब्रह्म सरोवर  पर रुकती है। पास में ही ब्र्ह्मसरोवर था। जिसने वहां स्नान करना था वे वहां चल दिए। अचानक मन में विचार उठा कि कुछ साल पहले मैं यहां घूमने आई थी तब कैमरे में तस्वीरें लीं थीं। लौटने पर दुबई चली गई थी, तीन महीने बाद वहां से लौटी। फोटो कहीं मिस हो गई। पर उस यात्रा को ये सोच कर नहीं लिखा कि ये तो नौएडा के पास ही है। कभी दोबारा जाना होगा तो यात्रा का रिविजन भी हो जायेगा और फोटो भी ले लूंगी। आज इस यात्रा के कारण मौका मिल गया। सारस्वत धर्मशाला साफ सुथरी बहुत अच्छी बनी हुई थी।

यहां यात्री तीन दिन तक भोजन सहित निशुल्क रह सकते हैं। अजीत जी भंडारा बनाने में लग गए और नरेन्द्र और उनके साथी उनका सहयोग कर रहे थे।

मैं जल्दी से तैयार होकर बाहर आई तो तीन शेयरिंग आटो खड़े थे। मैंने एक से कहा,’’दो बजे तक जितना कुरुक्षेत्र दिखा दो। कितने पैसे?’’उसने जवाब दिया,’’एक सवारी 120रु औरों को ले आओ।’’इतने में तो ऑटो भर गए। ड्राइवर के बराबर जरा सी जगह खाली थी। मैं तुरंत बैठ गई।

ऑटो भी तुरंत चल पड़ा। ड्राइवर की खासियत थी कि वह साथ साथ कुरुक्ष्ेात्र का वर्णन करता जा रहा था। उसका कहना था कि कुरुक्षेत्र धार्मिक नगरी है। यहां तीर्थों की संख्या 360 मानी गई है। इतनी जगह के दर्शन करना बहुत कम यात्रियों के बस में है। हम ज्योतिसर तीर्थ की ओर जा रहे थे। 

 यह रेलवे स्टेशन से 8 किमी. दूर है और पेहवा जाने वाली सड़क पर है। शास्त्रानुसार यह स्थान ज्योतिश्वर महादेव का है। उन्हीं के नाम पर तीर्थ और ग्राम का नाम है। ऐसी भी मान्यता है कि यही वह पावन धरती है, जहां भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता रुपी अमृतपान कराया था। 


यहां एक प्राचीन सरोवर और एक पवित्र अक्षय वट है जो भगवान श्रीकृष्ण के गीता उपदेश का एकमात्र साक्षी माना जाता है। दूसरा वट वृक्ष एक प्राचीन शिव मंदिर के भग्नावशेष पर खड़ा है। लगभग 150 साल पहले कश्मीर के नरेश ने शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। दूसरा मंदिर पहले का बना है। सन् 1960 में स्व महाराजा दरभंगा ने अक्षय वट के चारों ओर चबूतरे का निर्माण करवाया और एक छोटे कृष्ण मंदिर का निर्माण किया। यहां का सरोवर अति पवित्र माना जाता है।





अब कुरुक्षेत्र विकास र्बोड ने वहां एक सुन्दर झील का निर्माण किया है। जिसे देख कर बहुत अच्छा लगता है। चप्पल की कोई टैंशन नहीं थी। उतरने से पहले ऑटोवाला मुझे कहता,’चप्पल ऑटो में उतार कर जाओ।’’  क्रमशः      


Thursday, 4 November 2021

भूमिका मंदिर कटड़ा हंसाली 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 27 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

एक प्रचलित दंतकथा है कि लगभग 700 साल पहले मां वैष्णव ने कन्या रुप में पंडित श्रीधर को दर्शन दिए थे।


जो उनके अनन्य भक्त थे। वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे और मां वैष्णव की भक्ति करते थे। एक बार भैरव नाथ ने उन्हें चैलेंज किया कि जिसकी तूं इतनी श्रद्धा भक्ति करता आ रहा है वो सिर्फ एक कल्पना है। अगर तेरी भक्ति सच्ची है और जिसके प्रति तेरी इतनी श्रद्धा है तो तूं हमें और पूरे गांव के लिए भंडारे का आयोजन कर। सबको न्योता दो। साथ ही अपनी मां वैष्णों को भी भंडारे में आने का निमंत्रण दो। भैरव नाथ की इस बात से श्रीधर बहुत असमंजस में पड़ गए। अब वे मां से प्रार्थना करने लगे कि न तो उनके पास पैसा है न अन्न फिर वे कैसे इतना बड़ा आयोजन करें? श्रीधर की पत्नी ने उन्हें समझाया कि माता रानी जरुर उनकी विनती सुनेगी और भंडारा वितरण होगा। और इसी विश्वास के सहारे उन्होंने भैरवनाथ सहित पूरे गांव को भंडारे के लिए आमंत्रित कर लिया।

  नियत समय पर भैरोनाथ और सभी गांववासी वहां पहुंच गए। पर वहां तो न खाने को अन्न न बैठने को स्थान था। पंडित श्रीधर और उनकी पत्नी अपनी मजबूरी मां को बताते हुए प्रार्थना करते हुए रो पड़े। अब माता रानी अपने सच्चे भक्त को कैसे कष्ट में देख सकती है? माता वैष्णों ने अपना चमत्कारी खेल शुरु किया। उनकी दिव्य और अद्भुत शक्तियों ने पंडित श्रीधर के घर को बड़ा किया। ताकि भंडारा ग्रहण करने आए सभी भक्त अच्छी तरह बैठें। ग्रामवासी अभी तो ये देखकर ही हैरान थे। इसी बीच मां वैष्णों ने 56 पकवान भी परोस दिए यह देख भैरोंनाथ गुस्से में आ गए। मां ने अपने भक्त की लाज रखी और त्रिकुट पर्वत की ओर प्रस्थान करने लगी। भैरवनाथ ने मां वैष्णों का पीछा किया।



   इस मंदिर का नाम भूमि मंदिर भी है। जैसे एक कहानी की पुस्तक में भूमिका होती हैं। ऐसे ही ये पवित्र स्थान मां वैष्णव की महान कथा की शुरुआत का प्रतीक है।










भूमिका मंदिर में दर्शन ,माता वैष्णों की मूर्ति के साथ साथ देवी की एक और मूर्ति के रुप में हैं। शिव जी का भी मंदिर है। यहां बहने वाले झरने से गिरते हुए जल की आवाज बहुत अच्छी लगती है। बिल्कुल स्वच्छ पानी है। इस बहते पानी में स्नान भी कर रहे थे। और पानी भी ले जा रहे थे। इस पर पुल भी था। जिससे दूसरी ओर ऊंचाई पर बने मंदिर पर जाया जाता है। मंदिर में पुराने पेड़ों ने भी कई आकृतियां बना रखी हैं। प्राकृतिक गुफा हैं। दर्शन के बाद अब मुझे सी.आर.पी.एफ कैंप के पास जाना था। जलवाले गुरुजी ने 2 बजे से वहां भंडारे का आयोजन किया था। हम वहां चल पड़े। वहां हमें कोई नहीं दिखा। अब अशोक जहां जहां भंडारे होते हैं, मुझे लेकर गया। पर कहीं भी अपने लोग नहीं दिखे। अब मेरा कटड़ा भ्रमण, और अच्छी तरह से हो गया। मैंने अशोक से कहा कि मुझे बस स्टैण्ड पर ले चलो। वहां दूर से हमारी बसे खड़ी दिखी। मैं बसे देख कर खुश हो गई और मेरी टैंशन दूर हो गई। ऑटो से उतर कर उसे भाड़ा चुकाया और इनाम दिया। किराया मैं नहीं लिखूंगी। क्योंकि यहां ऑटो मीटर से नहीं चलते हैं। तय किया जाता है। अशोक बता रहा था कि नवरात्रों में यहां झाकियां निकलती हैं। एक जगह से दूसरी जगह जाने में खूब तेल फुकता है और समय लगता है। नवरात्रे आने वाले थे जोर शोर से होने वाली तैयारियां मै जगह जगह देख रही थी। अपनी बस में देखा कुछ लोग प्रशाद के लिए जा रहे थे। मैं भी उनके साथ चल दी। व्यवस्था कैंप के पास ही एक बड़े गेट वाले प्लॉट में थी। अजीत जी के पास एक कुर्सी खाली थी मैं वहां बैठ गई। फूली फूली पूरियां, सब्जी और हलवा परोसा गया। पहला कौर मुंह में रखते ही मैं अजीत जी से बोली,’’यात्रा के हलवाई खाना बहुत स्वाद बनाते हैं।’’वे हंसते हुए बोले,’’यहां कोई हलवाई नहीं है। सब सेवादार हैं। प्रसाद स्वाद ही होता है।’’फिर उन्होंने जिस विभाग में काम करते हैं उसका नाम बताया जो मुझे याद नहीं आ रहा है। कुछ महिलाएं जो मेरे जाने पर प्रशाद खा चुकीं थीं, वे मेरे खाने तक रुकीं और मुझे साथ लेकर बस पर आईं। क्रमशः