बाबा जित्तो की याद में जम्मू में झड़ी का ऐतिहासिक मेला 7 नवंबर से 16 नवंबर तक लगता है। उत्तर भारत के इस सबसे बड़े मेले में लाखों लोग पंजाब, हरियाणा से पहुंचते हैं और अपने हक के लिए लड़ने वाले ब्राह्मण किसान बाबा जित्तो को माथा टेकते हैं और बुआ कौड़ी के लिए गुड़िया ले जाते हैं।
मेले तो पूरे देश
में कहीं न कहीं लगते ही हैं और पशुओं के भी लगते हैं। लेकिन कार्तिक पूर्णिमा से
शुरु होने वाला पुष्कर का ऊँट मेला विदेशी सैलानियों को भी आकर्षित करता है। इस
बार पुष्कर मेला 31 अक्तूबर से शुरु
होकर 9 नवम्बर को समाप्त होगा।
कई किलोमीटर तक यह मेला रेत में लगता है जिसमें खाने, झूले, लोक गीत, लोक नृत्य होते हैं। कालबेलिया नृत्य ने तो
विदेशों में भी धूम मचा दी है। ऊँटों को पारंपरिक परिधानों में सजाया जाता है। ऊँट
नृत्य करते हैं और इनसे वेट लिफ्टिंग भी करवाई जाती है। रात को आलाव जला कर गाथाएं
भी सुनाई जाती हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखांे श्रद्धालु पुष्कर झील में
स्नान करके ब्रह्मा जी के मंदिर में दर्शन करते हैं। अगर ऊँट खरीदना हो तो खरीदते
हैं। सबसे सुन्दर ऊँट और ऊँटनी को इनाम मिलता है।
जैन का धार्मिक
दिवस प्रकाश पर्व है।
वंगाला(11नवंबर)मेघालय में गारो समुदाय द्वारा फसल कटाई
से सम्बन्धित वंगाला उत्सव है। गारो भाषा में ’वंगाला’ का अर्थ ’सौ ढोल’ है। वर्षा अधिक होने के कारण सूर्यदेवता(सलजोंग) के सम्मान
में गारो आदिवासी अक्तूबर नवम्बर में ’वांगला’ नामक त्योहार
मनाते हैं। यह त्यौहार लगभग एक हफ्ते तक मनाया जाता है। मौखिक पीढ़ी दर पीढ़ी
परम्परा से सूर्य की आराधना की जाती है। सूर्य देवता फ़सल के अधिदेवता भी माने जाते
हैं। रंगीन वेषभूषा में सिर पर पंख सजाकर अंडाकार आकार में खड़े होकर ढोल की ताल पर
नृत्य करते हैं।
रण उत्सव(1नवंबर से 20 फरवरी) गुजरात का रण उत्सव अपनी रंगीन कला और संस्कृति के
लिए विश्व प्रसिद्ध है। तीन महीने तक मनाये जाने वाले इस उत्सव में कला, संगीत, संस्कृति के साथ इसमें बुनकर, संगीतकार,
लोक नर्तक और राज्य के श्रेष्ठ व्यंजन
निर्माताओं के साथ कारीगर भी आते हैं। इस दौरान कलाकार रेत में भारत के इतिहास की झलक पेश करते हैं।
सोनपुर मेला(6नवंबर से 7 दिसम्बर) गंडक नदी के तट पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला
है। यह कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरु होता है। चंद्र गुप्त मौर्य,
अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुँवर सिंह ने भी यहाँ से हाथियों की
खरीद की थी। सन् 1803 में रार्बट
क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े के लिए अस्तबल बनवाया था। यहाँ घोड़ा, गाय, गधा, बकरी सब बिकता था। पर आज
की जरुरत के अनुसार यह आटो एक्पो मेले का रुप लेता जा रहा हैं। हरिहर नाथ की पूजा
होती है। नौका दौड़, दंगल खेल
प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। यह मेला 15 किमी. तक फैल जाता है।
बूंदी महोत्सव(11से 13) राजस्थान के
हड़ौती क्षेत्र में छोटा सा बूंदी अपनी ऐतिहासिक वास्तुकला और संस्कृति के लिए जाना
जाता है। इसके खूबसूरत दर्शनीय स्थलों और प्रसिद्ध मंदिरों में हनुमान जी मंदिर,
राधाई कृष्ण मंदिर, नीलकंठ महादेव बूंदी के कारण यह छोटी काशी के रुप में जाना जाता
है। इसमें किलों का भी मेल है। बूंदी उत्सव में बिना किसी शुल्क के सांस्कृतिक
गतिविधियों, विभिन्न
प्रतियोगिताओं और रंगारंग कार्यक्रमों का आनन्द उठाने के लिए दुनिया भर से लोग
हड़ौती पहुंचते हैं। राजस्थानी व्यंजनों के स्वाद के साथ खरीदारी कर सकते हैं कार्तिक
पूर्णिमा की रात में महिला पुरुष दोनों पारंपरिक वेशभूषा पहनकर चंबल नदी के तट पर
दिया जला कर, आर्शीवाद लेते
हैं। क्रमशः
प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के नवंबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।
No comments:
Post a Comment