स्टेशन पर पहुंच कर डिस्प्ले बोर्ड पर दुरंतो एक्सप्रेस न0.12286 प्लेटफार्म न0 6 पर आ रही थी जबकि मुझे मैसेज़ में प्लेटफार्म न01 था। गाड़ी प्लेटर्फाम पर लगी। मैसेज में 2S और DL1 सीट न08 था, बोगी 2S कहीं नहीं । लोगों से पूछा कि 2S डिब्बा कौन सा है तो उन्होंने S 2 की ओर इशारा किया। मैं S2 में अपनी 8 न0 सीट पर बैठ गई। कुछ देर बाद सवारी आई उसने कहा कि ये सीट उसकी है। मैंने अपनी टिकट दिखाई तो उसने कहा कि ये 2S है। 10 सवारियों और थीं जिनकी मेरी तरह कहानी थी। किसी भी बोगी पर 2S नहीं लिखा था। एक सरदार जी दौड़ दौड़ कर पता करके आये जो सबसे आखिर में डिब्बा है, उसमें बैठना है। बोगी में जाते ही देखा एक कैबिन में आमने सामने 4 -4 सीटें और साइड में इसी तरह एक एक सीट, कुल 10 सीट है। ऊपर सामान रखने की जगह पर भी लोग बैठे हैं। सामान सबका इधर उधर रखा है। मैंने भी अपना लगेज़ अपने आगे रास्ते में रख दिया। समय पर गाड़ी चली। 7न0 सीट के लड़के ने सबका सामान अरेंज कर दिया। वो सिकन्दराबाद जा रहा था। खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी। उसके लिए ये ठंड थी इसलिए उसने खिड़की बंद कर दी। सीट पर बैठते ही आस पास देख कर मैं खुश हो गई कि यहाँ सब बतियायेंगे। पर यहाँ भी जो खड़े थे, सीट पर बैठे थे या नीचे बैठे थे सभी की गर्दनें झुकीं थीं और नज़रें मोबाइल पर टिकी थीं।
आयोजन में जाने का मैसेज़ बहुत पहले आ गया था। अभी तो बहुत दिन हैं ये सोच कर जब मैं 17 सितम्बर को आरक्षण करने लगी तो मुझे सूट करती हुई गाड़ी में वेटिंग था तुरंत झांसी से लौटने की ग्रैड ट्रंक एक्सप्रेस गाड़ी न0 12615 में मुझे B 2, 3 एसी में 17न0 लोअर सीट मिल गई। पर झांसी जाने की ये सीट मिल गई। पहला स्टॉपेज झांसी था। सामने वाले ने मुझे बहुत व्यस्त कर रखा था। वह फोन पर 50000 सबसे मांग रहा था। और मैं बहुत चिंतित थी कि इस बिचारे को मिलेंगे की नहीं। जब उसका कहीं बन्दोबस्त नहीं हुआ तो वह सो गया। अब मेरा साइड सीट पर बैठे अनपढ से़ लड़के पर ध्यान गया। वह कुछ समय बाद एक प्रश्न उछाल देता,’’वारंगल कब आयेगा?’’ कुछ युवा गूगल से उसे सारी जानकारी देते, वह ध्यान से सुन लेता। अच्छे कपड़ों, स्मार्ट फुटवियर में युवा कब तक खड़े रहते, थक कर फर्श पर बैठ गए। उनके बीच से कूदते फांदते मैं वाशरुम गई। वहाँ दो लोग कनस्तर पर बैठे थे। आगरा में स्टॉपेज नहीं था पर गाड़ी रुकी। कुछ सवारियां और खाली जगह में धंस गई। इतने में वारंगल वाले के पास एक लड़का आया और बोला,’मेरी सीट खाली करो।’’वारंगल ने पहले उसकी टिकट देखी फिर सीट देकर, कोने में 50 प्रतिशत कूल्हे टिका कर उसके साथ में बैठा रहा। इतने में टी.टी आ गया। बिना रिर्जवेशन और बिना टिकट की सवारियों को एक तरफ खड़ा कर दिया। जो मुझे सुनाई दे रहा था वह ये टी.टी. उनसे कह रहा था कि घर में बोलो,’’ पैसा ट्रांसफर करें मैं अभी बना देता हूं। कुछ को कहा कि वे झांसी में उतर जायें। इस बोगी में झांसी आने तक टी.टी व्यस्त रहा। मुझे पता चला|
यह सेवा रेलवेज ने कोरोना महामारी के बाद लगभग सभी एक्सप्रेस और सुपरफास्ट गाड़ियों में शुरु की है। 90 से 100 सीटें रिजर्व होती हैं। इसे सेकण्ड सीटिंग क्लास कहते हैं। D1,D2.........D5 को DL1 Second Sitting Class 2 S कहते हैं।
झांसी में उतरते ही बैंच पर बैठ कर डॉ0 महेश पाण्डे जी को फोन करने लगी तो देखती हूँ, मेरे बाजू में वारंगल बैठा है। मैंने उसे पूछा,’’आप तो वारंगल जा रहे थे!’’वह खींसे निपोरता हुआ बोला,’’टी.टी. ने उतार दिया, अभी तेलंगाना एक्सप्रेस आयेगी, उसमें बैठ जाउंगा। मैं तो हमेशा ऐसे ही जाता हूूँ।’’ मैं भी उठ के चल दी। क्रमशः
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