श्री राम जानकी विवाह उत्सव(28 नवम्बर) ’विवाह पंचमी’ श्री राम और सीता जी की शादी की वर्षगांठ को हम उत्सव की तरह मनाते हैं।
सीतामढ़ी से जनकपुर नेपाल यात्रा के दौरान मैंने
इन दिनो महसूस किया कि ज्यादातर गीत जानकी विवाह या उनकी विदाई के सुनने को
मिले। हमारे पहुंचने पर नौलखा मंदिर चार बजे खुलना था। मंदिर परिसर घूमने के बाद
वहाँ सत्संग में बैठ गई। श्रद्धालुओं ने जानकी विवाह का लोकगीत इतना ग़ज़ब का गाया
कि मेरे दिमा़ग में धुन सहित छप गया। गीत में ही जयमाला के समय का हास परिहास का
सीन बना दिया।
राजा जनक ने देश विदेश के राजाओं को निमंत्रण
भेजा कि जो शिव धनुष की प्रत्यंचा चढ़ायेगा, उसी से जानकी का विवाह होगा। किसी भी राजा से धनुष हिला तक
नहीं। जनक जी बहुत निराश हो गये। विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण भी गये थे। तब
लक्ष्मण के कहने पर, गुरू की आज्ञा
लेकर राम जी ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और धनुष तीन टुकडों में टूट गया। गीतों में
भी स्वयंबर के समय का तनाव का माहोैल था, उससे पहले जानकी गौरी पूजन के लिये जाती है। वहाँ उन्हें श्रीराम की एक झलक
मिल जाती है। उनकी सखियाँ उनसे दिल का हाल पूछती है। इस गीत का कोरस बहुत अच्छा
लगा गीत संवाद में है...
छोटी सखियां
जनकपुर की हो, पूछें सिया जी से
हाल 2
कौन...... पुरूष
मन मोह लियो रे, कौन सजना तोहार 2
सीता जी जवाब
देती हैं
सांवला सलोना
सजनवा हो, हाथ में जिसके धनुष और
बाण।
वो ही पुरूष मन
मोह लियो रे, वो ही सजना हमार
.... राम सिया राम सियारामा, बोलो जै सिया
रामा।(कोरस)
धनुष टूट गया अब
विवाह की चुहलबाजी शुरू और लोकगीत ने ही जयमाला का सीन दिखा दिया।
लेकर खड़ी जयमाला हो ...देखो सिया
सुकुमारी।
सिया सुकुमारी देखो जनक दुलारी। ले
कर....
राम बड़े और जानकी
छोटी, पहुँचे न वो रघुवर की
चोटी।
कैसे वो डाले
जयमाला हो...... देखो सिया सुकुमारी........2
इक सखि बोली मधुर
वचनवा, तनिक जरा झुक जाओ सजनवा।
डाल दे जयमाल
हो....देखो सिया सुकुमारी.....2
अब श्रीराम तो उस समय दूल्हा हैं वो भला क्यों
झुकेंगें!!
करके विनय जब सखियां हारी, तब सीता लक्ष्मन को निहारी।
देवर समझ गये बात हो, देखो सिया सुकुमारी। लेकर......
तब लक्ष्मण हरि चरनन लागे, झुककर राम उठावन लागे।
डाल दी जयमाल हो..... देखो सिया
सुकुमारी......
इधर गीत मे राम
जानकी विवाह सम्पन्न हुआ और मंदिर दर्शनों के लिए खुला। अब भी पाँच साल में
अयोध्या जी से श्री राम बारात जगह जगह स्वागत करवाती हुई 15 दिन में जनकपुर नेपाल विवाह पंचमी के दिन पहुंचती है।
तेलुगु स्कंद
षष्ठी सुब्रमण्यम षष्ठी(28 नवंबर) को कुमार
षष्ठी भी कहते हैं। दक्षिण भारत तमिल हिन्दुओं में इसे प्रमुख त्यौहारों में से एक
माना जाता है। भगवान स्कंद जो शिव पार्वती के पुत्र हैं गणेश के बड़े भाई हैं को
मुरुगन, कार्तिकेयन, सुब्रमण्यम के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन
संतान प्राप्ति खुशहाली के लिए व्रत रखा जाता है। सभी षष्ठी भगवान मुरुगन को
समर्पित हैं, लेकिन चंद्र मास
कार्तिक के दौरान शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रद्धालु
छ दिनों का उपवास रखते हैं। जो सूर्यसंहारम के दिन चलता है। सूर्यसंहारम के अगले
दिन को तिरु कल्याणम के नाम से जाना जाता है।
कार्तिक मास में
तीर्थस्थान पर स्नान करते हैं। धर्म और लोककथाओं के बाद उत्सव की एक महत्वपूर्ण
उत्पत्ति कृषि है। धार्मिक स्मरणोत्सव और अच्छी फसल के लिए धन्यवाद दिया जाता है।
रवि की फसल की बुआई हो जाती है फिर बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उत्सव मनाते हैं। इन
सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और जल है।
No comments:
Post a Comment