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Saturday 19 November 2022

माँ पीताम्बरा शक्तिपीठ माँ बगलामुखी देवी दतिया झांसी यात्रा भाग 5 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 5 Neelam Bhagi

बैठक संपन्न होते ही जिन्हे लौटना था, वे जाने लगे हमने दतिया में माँ पीताम्बरी के दर्शन का प्रोग्राम बना लिया। खूब बारिश हुई पर हमारे जाने के समय रुक गई। कल 9 अक्तूबर को प्रो0 नीलम राठी ने संचालन करना था। जिसके लिए उन्हें मीटिंग करनी थी। उन्होंने वरिष्ठों से पीताम्बरी दर्शन के लिए पूछा, उन्होंने कह दिया कि लौटने पर मीटिंग कर लेंगे। डॉ0साधना वनखड़े ने कहा कि वे कोशिश करेंगी कि हमें लाइन में न लगना पड़े। गाडी में सब कल की बैठक में भाग लेने वाले लेखक थे। भाषा पर चर्चा करते हुए दतिया पहुँचे। भीड़ को देखते हुए वाहनों का रास्ता अलग कर दिया था।  शक्तिपीठ से एक किमी दूर गाड़ी खड़ी कर दी गई। हम पैदल चल दिए। चप्पल गाड़ी में नहीं उतारी क्योंकि बारिश के कारण बहुत कीचड़ हो रहा था। मंदिर पहुँचे। इन्दुप्रकाश ’तत्पुरुष’ जी ने चप्पल चोरी न हो, इसकी तरकीब बताई कि दोनों चप्पलें अलग अलग रखो। गेट से बाहर सैंकड़ो जोड़ी चप्पलों में हमने अपनी चप्पल जोड़ी में नहीं रखी। यहाँ नमकीन सेव और पीले लड्डू का प्रशाद चढ़ाते हैं। गेट में जाते ही दो लाइनें थीं। और र्बोड लगा था ’फोटो खींचना, जयकारे लगाना और पॉलिथिन लाना मना है’ जो पहले तस्वीर ली बस वही है। पर अब नियम पढ़ लिया इसलिए मोबाइल पर्स में रखा। हम लाइन में नहीं लगे पर बहुत लंबी दोनों लाइनों के साथ चलने वाले रास्ते से गुजरते हुए हम भवन पर पहुँच गए। जहाँ से बिना लाइन के दर्शन थे। डॉ0 साधना बलवटे के पति ने यहाँ से शायद दीक्षा ले रखी है, वे बात करने गईं। मेरी नज़र बोर्ड पर पड़ी उस पर लिखा था। यहाँ से प्रवेश पैंट, पजामा, सलवार वालों का नहीं है। धोती पहन कर प्रवेश कर सकते हैं। केवल डॉ0साधना साड़ी में थीं। प्रवीण गुगलानी पैंट में थे पर वहाँ रुक गए। प्रो0 नीलम राठी, इन्दु प्रकाश जी, आशा शर्मा और मैं, जो गेट यहाँ से पास पड़ रहा था, वहाँ जल्दी जल्दी लाइन में लगने चले गए। क्योंकि 9.30 बजे मंदिर बंद हो जाता है। सवा सात बजे हम लाइन में लगे। वैसे यहां पर महिला और पुरुष की लाइन अलग होती है पर उस दिन ऐसा नहीं था प्रो. नीलम राठी जो लाइन तेजी से चल रही होती उस में चली जाती, हम भी उनके पीछे चल जाते फिर दूसरी लाइन में लगता कि वह तेजी से चल रही है फिर उस लाइन में शिफ्ट हो जाते ऐसा करते हुए हम हंस भी रहे थे। फिर प्रोफेसर नीलम कहने लगी, अब जिस लाइन में है, उसी में रहेंगे। एक घण्टे में हमें माँ के अच्छे से दर्शन हो गए। सामने से प्रवीण गुगलानी जी पीली धोती पहने और एक धोती हाथ में पकड़े आए और बोले,’’मैं तो इन्दु प्रकाश जी के लिए भी इंतजाम कर लाया । एक हॉल में वे जाकर बैठ कर जाप करने लगे। हम सब भी उनके पीछे हॉल में गए। यहाँ श्रद्धालु जूट की पट्टियों पर बैठे जप साधना कर रहे थे। हमारे चारों साथी कोने में फर्श पर बैठे प्रवीण जी का इंतजार कर रहे थे। मुझे डॉक्टर ने जमीन पर और पालथी मारकर बैठने को मना कर रखा है। हल्की बूंदा बांदी के कारण कहीं भी ऐसी जगह नहीं थी, जहाँ मैं टाँगे लटका कर बैठ जाऊँ। जब खड़े खड़े थक गई तो मंदिर परिसर में घूमती रही जो लिखा वह पढ़ती रही। जयकारे लगाने की मनाही क्यों है! ये भी समझ आ गई। किसी की जप साधना में व्यवधान न हो इसलिए। क्रमशः     





       

   




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