Search This Blog

Saturday 19 November 2022

धूमावती देवी, माँ पीताम्बरा शक्तिपीठ माँ बगलामुखी देवी दतिया झांसी यात्रा भाग 6 Dhoomawati Devi नीलम भागी Jhansi Yatra Part 6 Neelam Bhagi

इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में परम तेजस्वी स्वामी जी द्वारा की गई थी।  सिद्वपीठ में माँ बगलामुखी चर्तुभुजी देवी के एक हाथ में गदा दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में बज्र और चौथे हाथ में दैत्य की जीभ है। यहाँ कभी किसी श्रद्धालु को देवी पीताम्बरा के सामने खडे होने या छूने का अवसर नहीं मिलता। 

यहाँ राजनीतिक लोग और फिल्मी हस्तियाँ, सैलिब्रिटी दर्शन करने आती हैं। यहाँ आने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। मैं बगलामुखी देवी के सामने हाथ जोड़े उनकी छवि को दिल में उतार रहीं हूं। पीले वस्त्र आभूषण, पीले रंग के जितने भी शेड के फूल होते हैं, उनसे मां का श्रृंगार किया गया था। प्रशाद और पूजन सामग्री सब कुछ पीला और साधक भी पीले वस्त्रों में। इस स्थान की बहुत महिमा है। मां बगलामुखी शत्रुनाशिनी है। शत्रु तो काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह भी हैं। मुकदमें में फंसे लोग, पारिवारिक कलह व जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए, वाक सिद्धि प्राप्ति के लिए हवन करवाते हैं और बाधाओं से मुक्ति पाते हैं। मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठंवा स्थान प्राप्त है। एक राक्षस ने ब्रह्मा जी का ग्रंथ चुरा लिया और जल में छिप गया। ब्रह्मा ने मां भगवति की अराधना की। इससे शत्रुनाशिनी देवी की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुले का रुप धारण कर उस राक्षस का वध कर, ब्रह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया। मां का नाम बगलामुखी हो गया। इन्हें त्रेतायुग में रावण की ईष्ट देवी के रुप में भी पूजा जाता था। लंका विजय के दौरान श्री राम को इस बात का पता चला तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाथ और परशुराम मां की आराधना करते थे।  एक र्बोड पर लिखा था सौभाग्यवती महिलाएं माँ धूमावती का दर्शन न करें। 

धूमावती माँ को शक्तिरुपा देवी के रुप में पूजा जाता है। मैंने देवियों के दर्शन में उन्हें श्रृंगार में और सजी हुई चम चम  करती पोशाक में देखा है। पर यह देवी श्रृंगारविहीन, मैली सी(off white) सफेद साड़ी, बिखरे खुले घने बाल और कौवा उनकी सवारी है। माता विधवा का रुप है। जिन्हें तंत्र में विश्वास होता हैै, वे देवी धूमावती में विशेष आस्था रखते हैं। आम लोगों के लिए इनके दर्शन शनिवार को ही होते हैं और उस दिन शनिवार ही था और आरती में शामिल होने का भी सौभाग्य मिल गया।

म्ंादिर बंद होने से कुछ पहले ही प्रवीण जी का जाप खत्म हुआ। हमें उस गेट पर जाना था, जहाँ चप्पल उतारी थी। वो गेट भी बंद हो गया। दूसरे रास्ते से वहाँ पहुँचे। वहाँ अलग अलग दिशाओं में सिर्फ हमारी चप्पलें पड़ीं थीं। अब गाड़ी भी वहाँ आ गई। क्रमशः  









No comments: