गाड़ी स्टार्ट होते ही प्रोफेसर नीलम राठी अपने फोन में लग गई पर फोन काम नहीं कर रहा था। इतने में प्रवीण गुगलानी जी बोले," एक एक प्लेट पोहा खाते हैं।" प्रो. नीलम बोली," बिल्कुल नहीं, पहले धीरज मिश्रा से पूछ लो कि हम लोग इतनी देर से आ रहे हैं, हमें खाना मिल जाएगा! अगर खाना नहीं मिल रहा है तो खाना पैक करवा लो ताकि खाने में भी समय खराब ना हो।" मैंने कहा," आप बिल्कुल चिंता न करें। यहां कल रात को जो 2:00 बजे भी आ रहा था, उसे भी गरम खाना मिल रहा था। अब देखना जाकर ऐसा ही होगा।" जब हम पहुंचे हमें खाना तैयार मिला। फुल्के गरम गरम थाली में आ रहे थे। रूम में आते ही प्रो. नीलम ने फोन पर मेहनत की पर फोन नहीं चला। जब प्रवीण गुगलानी जी की जप साधना समाप्त होने के इंतजार में प्रो. नीलम सबके साथ बैठी थीं, तब उन्हें कोने में जगह मिली। वहां से गुजरने वाले किसी श्रद्धालु की लात लगने से उनका फोन गिर गया और खराब हो गया। उसी में उनकी टिकट भी थी। फोन नंबर आजकल कोई याद नहीं रखता यानि बहुत परेशानी! कल संचालन भी करना था। सुबह उठते ही वह मीटिंग के लिए गई। आकर बताया कि जल्दी से बाहर आ जाओ, राजाराम के दर्शन करने जाना है। मैं तो तैयार ही बैठी थी तुरंत उनके साथ चल दी। श्रीधर पराड़कर जी, ऋषि कुमार मिश्रा जी, प्रोफ़ेसर दिनेश प्रताप सिंह जी, डॉ. देवी प्रसाद तिवारी हम चल दिए। श्रीधर पराड़कर जी रास्ते में उस जगह के बारे में बताने लगे और नृत्यकी राय प्रवीण, कवि केशव, चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताया। सड़क के दोनों ओर हरियाली से भरे रास्ते में श्रीधर पराड़कर जी को सुनते हुए जा रहे थे। बहुत जल्दी मंदिर आ गया। एक ओर खूबसूरत मंदिर का भवन खड़ा है। सामने महल जैसा मंदिर है जिसमें राजा राम विराजमान है।
चप्पल संभालने की व्यवस्था अच्छी है। सबसे अच्छी बात लगी जैसे ही मैंने जूते रैक में रखे, तुरंत बोतल के ढक्कन में कई छेद करके, उसमें पानी भरा हुआ था। बिना कहे उस बोतल की फुहार से मेरे हाथ धुलवा दिए। हाथ धोने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। मंदिर के अंदर फोटो लेना मना है इसलिए मोबाइल पर्स में रख कर हाथ जोड़ें हम लाइन में लगे थे। कीर्तन चल रहा था। बहुत श्रद्धा भाव से गाया जा रहा था। जिससे मन में एक अलग सा भाव आ रहा था। लाइन में चल रहे थे और कानों में भक्ति भाव से गाए भजन सुनाई दे रहे थे। बहुत अच्छे से दर्शन हुए। घर के लिए प्रसाद खरीदा। प्रसाद ले जाने की व्यवस्था बहुत पसंद आई। अलग-अलग रेट से थी। आपको प्रसाद छोटी-छोटी पैकिंग में मिलेगा जो मित्रों पड़ोसियों को देने में बहुत आसान है। साथ में जितने बॉक्स उतने पान ।
मंदिर के आसपास सौभाग्यवती महिलाओं के सामान की दुकाने हैं। मिठाई खानपान , गिफ्ट आइटम, पूजा का सामान आदि। मंदिर के आसपास की दुकानें देखते हुए बाहर आए। एक महिला जमीन से ताजी निकाली हुई कच्ची मूंगफली बेच रही थी।
प्रोफेसर दिनेश नहीं आए हम गाड़ी में उनका इंतजार करते रहे। कुछ देर बाद आए तो उनके हाथ में खूबसूरत दीपक जलाने वाला पीतल का लैंप था। उनके बैठते ही गाड़ी चल पड़ी। श्रीधर पराड़कर जी ने उसे देखने के लिए लिया और सोच में पड़ गए कि इसके अंदर दीपक कैसे रखा जाएगा! इस चर्चा में आयोजन स्थल आ गया। लेखक समूह की बैठक थी इसलिए हम जल्दी आ गए । मुझे धार्मिक स्थल में कुछ देर बैठना, अच्छा लगता है। हमेशा ग्रुप में गई हूं। जहां नहीं बैठ पाती, वहां अपने आप से कहती हूं, मैं कौन सा मरने वाली हूं, मैं फिर आऊंगी। आयोजन स्थल पर पहुंचे तो बहुत लाजवाब दक्षिण भारतीय पर मिठाई उत्तर भारतीय, नाश्ता लगा हुआ था। बतियाते हुए नाश्ते का आनंद उठाया और लेखक समूह की बैठक के लिए हॉल में गए। क्रमशः
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