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Saturday, 29 June 2024
बालकनी गार्डन नीलम भागी Giving Morning love Balcony Garden Neelam Bhagi
Thursday, 13 June 2024
पंजाबी विकास मंच ने श्रद्धापूर्वक मनाई निर्जला एकादशी और गुरू अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस
जय माता दी।
सत श्री अकाल ।।
*पंजाबी विकास मंच*
*'Unity, Strength and Power
हिंदू धर्म में 24 एकादशियों का बहुत महत्व है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इसकी कथा में हिंदू धर्म की बहुत बड़ी विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता है, सबके योग्य नियमों की लचीली व्यवस्था भी करता है। महर्षि वेदव्यास ने पाडंवों को एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो भीम ने कहा,’’पितामह इसमें प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। पर मैं तो एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता। मेरे पेट में ’वृक’ नाम की जो अग्नि है उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?’’ यह सुनते ही महर्षि ने भीम का मनोबल बढ़ाते हुए कहा,’’आप ज्येष्ठ मास की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो। तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों का फल मिलेगा।’’ इस एकादशी पर ठंडे र्शबत की जगह जगह छबीलें लगाई जातीं हैं। जिसे पीकर भीषण गर्मी में राहगीरों को बड़ी राहत मिलती है। स्वयं निर्जल रह कर जरुरतमंद या ब्राह्मणों को दान दिया जाता है।
सिख समुदाय में गुरु परंपरा के पाँचवें गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस उनकी शहादत को याद करने के लिए मनाते हैं। गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद हैं। इन्होंने धर्म के लिए अपनी शहादत दी। इनके शहीदी दिवस पर जगह जगह ठंडे र्शबत की छबीलें लगाई जाती हैं। गुरु जी ने सिखों को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा धार्मिक और सामाजिक कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित किया।
आज 13 जून 2024,को निर्जला एकादशी और गुरू अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में सेक्टर 55 की बाहरी मेन रोड पर, सेक्टर 22 नौएडा के सामने 11 बजे से दोपहर 2.30 तक पंजाबी विकास मंच द्वारा ठंडे शरबत की छबील का आयोजन किया गया। जिसमें जरूरतमंदों को तौलिये भी वितरित किये गये। यह विशाल कार्यक्रम इकोफ्रैंडली था। कागज के गिलासों का उपयोग किया गया। डस्टबिन की व्यवस्था थी। छबील का उद्घाटन दीपकविग, जे॰एम॰ सेठ जी ओ पी गोयल व जी के बंसल ओर हरीश सभरवाल संजीव पुरी ने रिबन काट कर किया। इस पावन पर्व पर , दीपक विग,जी.के. बंसल, संजीव पुरी,जे ऐम सेठ,ओ पी गोयल,विनोद ग्रोवर,संजीव बांदा, सुनील वाधवा, ऐस पी कालरा,अमरदीपशाह, प्रदीप वोहरा, सुनील वर्मा,हरीश सबरवाल,, वंदना बसंल, अलका सूद, नीता भाटिया,निर्मल हांडा, मंजु सेठ, नीलम भागी, अंजना भागी, प्रभा जयरथ , सवकेश गुप्ता, ऋतु दुग्गल, मंजू शर्मा, पारुल सेठ, गौरव जग्गी यशपालभनोट, एस॰एस॰सचदेवा , संजय खत्री,सुषमा नेब,अजय साहनी अमरजीत कौरअजय अग्रवाल सविता अरोरा ने बढ़चढ़ कर भाग लिया एवं पंजाबी विकास मंच के सदस्यों का योगदान सराहनीय रहा।
प्रेषक.....
दीपक विग (चेयरमैन - पंजाबी विकास मंच)8130365436
जीके बंसल (अध्यक्ष - पंजाबी विकास मंच)। जे ऐम सेठ ( सरंक्षक व मीडिया प्रभारी )
Sunday, 9 June 2024
संचय करें जल, बेहतर बनाएं कल। नीलम भागी
मानसून आने वाला है। आपके शहर में वाटर हार्वेस्टिंग की तैयारी है! पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण की चिंता की गई। तापमान बढ़ने पर पेड़ लगाने की गुहार जारी है। जल संरक्षण Water Harvesting के लिए क्या किया जा रहा है? क्या वर्षा का पानी यूं ही नदी नालों में बह कर व्यर्थ जाएगा!! नीलम भागी
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सख़्त नारियल खोल से गोलागरी निकालना बेहद आसान! नीलम भागी
मैं नारियल खरीदते समय उसकी जटाएं दुकानदार से ही हटवा लेती हूं। अब मुंडन करा हुआ नारियल घर लाकर तोड़ के पानी पी लेती हूं। और सख्त खोल के साथ चिपका हुआ गोला फ्रिज में कम से कम 24 घंटे के लिए रख देती हूं। उसके बाद चाकू से गरी को सख्त खोल से अलग करना बेहद आसान हो जाता है। पूरा का पूरा फटाफट निकल जाता है। अब आप गरी को इस्तेमाल कैसे भी इस्तेमाल करें।
Saturday, 8 June 2024
भुवनेश्वर प्लेटफार्म और रेल यात्रा में संस्कृति के रंग! Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 29, Orissa Yatra Part 29 नीलम भागी Neelam Bhagi
इस बात ने मुझे बहुत ही हैरान किया कि स्टेशन के बाहर जरा भी गंदगी नहीं थी। स्टेशन में सीनियर सिटीजन के लिए प्लेटफार्म तक पहुंचाने के इलेक्ट्रिक गाड़ी थी। प्लेटफॉर्म एकदम साफ सुथरा, सामने एक दुकान उसे पर लिखा हल्दी वाला दूध। किसी भी शहर में जाकर मुझे दूध देखते ही अपनी गंगा जमुना याद आने लग जाती हैं। उनके दूध जैसा स्वाद कहीं नहीं मिला पर मैं ट्राई जरूर करती हूं। यहां रेट लिस्ट
आप भी देखें, सब कुछ बहुत सस्ता! मैंने दुकानदार को ₹100 पकड़ा दिए और कहा हिसाब बाद में करना मीठा दही, रबड़ी, कुल्फी सब खा लिया। 18 रुपए का हल्दी वाला गरम दूध भी ले लिया। चाय तो ट्रेन में मिलनी थी तब भी मुझे उसने पता नहीं कितने पैसे लौटाए। गाड़ी लग गई। गाड़ी में चढ़ना और उतरना बहुत मुश्किल है आप भी जरा पायदान देखिए। अपनी सीट पर बैठ गई। एक महिला पुलिसकर्मी आई, पूछा, "आप अकेली सफर कर रही हैं, कोई परेशानी हो तो 139 पर फोन करना।" अच्छा लगा। गाड़ी ठीक समय पर चल पड़ी। मेरे सामने गाजियाबाद से राजीव अग्रवाल और उनके एमप्लाई धीरज थे। धीरज बैठे अपने पत्नी को बता रहे थे कि अगले दिन वह कब पहुंचेंगे, उनके लिए क्या बनाना है। शाम को किसी प्रोग्राम में जाना था। पत्नी का एकादशी का व्रत था तो उन्होंने कहा कि मेरे लिए सिर्फ आलू के पराठे बना देना और तुम काम पर चली जाना। मैं आते ही खाकर सो जाऊंगा । उनमें से एक के मोबाइल पर फुल वॉल्यूम पर लगातार सत्संग, कीर्तन चल रहा था। अगर यह संगीत बंद होता है तो एकादशी महात्म पर कथा ऊंची ऊंची लगा दी जाती। जब यह बंद करते हैं तो राजीव जी के भजन शुरू हो जाते हैं। मोबाइल पर पूरा रास्ता सत्संग चला। मैंने मैसेज देखा मेरे फेसबुक मित्र हरि गोपाल गांगिरी ने लिखा था कि मुझे अपनी सीट नंबर गाड़ी नंबर भेजें, मैं आपको टाटानगर पर मिलूंगा। अभी मैं कहीं जा रहा हूं पर गाड़ी के समय पर आ जाऊंगा और कल विशाखापट्टनम के लिए निकलूंगा। क्योंकि वह स्टेशन पर ही होंगे, मैंने भेज दिया। वरना मैं भेजती नहीं हूं, कोई कितनी दूर से मिलने आएगा यह सोच कर। टाटानगर से पहले गाड़ी रुक गई, काफी देर तक रुकी रही। पता नहीं मौसम या एसी के कारण, मेरी तबीयत कुछ बिगड़ने लगी। मैं लेट गई, गाड़ी टाटानगर पर 2 मिनट के लिए रूकी। तुरंत फल लेकर हरि गोपाल जी आए और कहने लगे," अगर गाड़ी स्टेशन से बाहर कुछ देर न रूकती तो मैं आपसे नहीं मिल पाता। आप गेट पर आ जाइए।" और वे नीचे खड़े हो गए। अपना फोन नंबर दिया और कहाकि कोई जरूरत हो तो मुझे फोन कर दीजिएगा। बस इतना सुनकर ही मेरी तबीयत में सुधार होने लगा। पहले सोच रही थी कि अगर तबियत ज्यादा बिगड़ गई तो क्या करूंगी! और गाड़ी चल पड़ी। मैंने बेटी उत्कर्षनी को उनके लाए फ्रूट की फोटो भेजी और बताया। उसने टाइटल भेजा 'फ्रेंड विद फ्रूट ' और कहा,"आपको फोटो लेनी थी, टाइम निकाल कर आपको वे मिलने आए। "
मेरे आस-पास सीट से ज्यादा लोग थे। कुछ ने तो बड़े-बड़े लगेज जगह-जगह फिट कर दिए। सीट का जरा सा भी कोना खाली होता, उस पर दखल कर लेते । खाना ऐसा की दाल पानी बिलकुल अलग जो गाड़ी की चाल के साथ दाल पानीकूद रहा था। आने जाने के इतने लंबे सफर में दिसंबर के महीने में हर बार डेजर्ट में आइसक्रीम ही मिली जबकि मेनू में बहुत कुछ लिखा होता है। शाम को इन फालतू लोगों की कहानी शुरू हो गई। किसी को जर्मनी जाना था। किसी को मिडिल ईस्ट जाना था। रिजर्वेशन नहीं मिला, सबकी अगले दिन फ्लाइट थी। मुझे उन सब के साथ बड़ी हमदर्दी होने लगे की कैसे करेंगे ये लोग, अगर फ्लाइट में मिस गई तो! वह लोग अपर सीट किसी की भी खाली होते ही, खर्राटे मार के सोने लग जाते हैं। बीच में उठकर राजीव अग्रवाल या उनके चेले से कहते कि मोबाइल का वॉल्यूम कम कर लो क्योंकि भजन और कथा की ओवरडोज हो चुकी थी। डिनर के बाद रिज़र्व वालों ने अपनी सीट लेनी ही थी। अभी तक तो सब अपने साथियों के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। यह फालतू वाले इतनी देर में सामान कहीं भी टीका कर सो रहे थे। मैं भी उठकर अपने डिब्बे में चक्कर लगाने चल दी। देखा विनोद बब्बर जी(संपादक राष्ट्र किंकर) एक परिवार के साथ, इस तरह बैठे बतिया रहे थे जैसे उस परिवार के सदस्य हों। उनके किसी मित्र को पता चला कि वे यहां से गुजर रहे हैं वह गया में उन्हें लेकर ही जाएगा, अपने साथ। कुछ देर वहां बतिया कर चल दी। सामने टी. टी. देखकर मैंने उनसे कहा," सर मेरे केबिन में दो लोगों की कल विदेश की फ्लाइट है, देखिए कोई सीट हो तो उनको एडजस्ट कर दें।" टी. टी. ने जवाब दिया," मैडम रोज का यही काम है बिना रिजर्वेशन के यह लोग आ जाते हैं। हमें इनसे निपटना आता है। आप उनके लिए चिंतित मत रहिए।" रात को स्टेशन से एक महिला मेरे सामने की लोअर बर्थ पर आई। अब सोना शुरू हो गया । काफी देर बाद एकादशी महात्मा, पता नहीं जितने भी सोशल मीडिया पर होंगे, सब सुनने के बाद बंद हुआ। मैं मन में सोचने लगे कि सुनना अच्छी बात है पर जबरदस्ती औरों को भी सुनाना तो ठीक नहीं है। सुबह 5:00 बजे राजीव ने धीरज को आवाज लगानी शुरू कर दी," उठ जाओ।" जिससे हम दोनों महिलाएं भी उठ गई। धीरज नहीं उठा। मैंने उनसे कहा कि यह सो रहा है तो उसे सोने दीजिए, उठकर भी क्या करेगा?। वे बोले," मुझे तो 5:00 बजे सुबह उठने की आदत है।" इस पर वह महिला बोली,"सुबह उठना बहुत अच्छी बात है। पर दूसरों को उठाना तो अच्छी बात नहीं है।" पता चला कि वे हर महीने जगन्नाथ जी के दर्शन करने आते हैं। मैंने पूछा," धीरज भी आता है!" वे बोले, "नहीं, बदल बदल के लड़के लाता हूं, वे भी दर्शन कर जाते हैं।" हम दोनों बतियाती रहीं। वे स्पोर्ट्स टीचर थीं। राजीव ने अपनी मिडिल सीट उठाई नहीं। टीचर को जब बैठना होता है तो गर्दन टेढ़ी करके बैठती फिर मजबूरी में लेट जाती। राजीव लेटे लेटे मोबाइल के साथ भजन गाते रहे। फिर अपने मिलने वालों को फोन पर जोर जोर से अपने पहुंचने की सूचना देने लगे, पहला वाक्य यही था 'सो रहे थे'। सुनते ही हम दोनों की हंसी निकल जाती।
और हमारा नई दिल्ली स्टेशन आ गया। मेरी यात्रा को विराम मिला।
समाप्त
Friday, 7 June 2024
कार्यकर्त्ता प्रबोधन कार्यशाला का समापन! भुवनेश्वर! Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 28, Orissa Yatra Part 28 नीलम भागी Neelam Bhagi
अखिल भारतीय साहित्य परिषद कार्यकर्त्ता प्रबोधन कार्यशाला में पूरे देश से चयनित कार्यकर्ताओं का सहभाग रहा । इस आयोजन का केन्द्रीय विषय था, भाषा की एकात्मता और इसके अतिरिक्त कई उप विषयों पर गहन चिंतन हुआ । सार्थक आयोजन रहा।
जहां देश की सभी भाषाओं के साहित्यकारों ने भाग लिया। हमें वरिष्ठ साहित्यकारों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। समापन के साथ ही घूमने जाने वालों ने अपनी लौटने की टिकट पुरी से करवाई थी, वे ग्रुप में गाड़ियां बुक कर रहे थे जो उन्हें भुवनेश्वर ,कोणार्क दर्शन कराते हुए पुरी छोड़ेंगे। वे जगन्नाथ जी के दर्शन करके वहां से अपने शहर लौटेंगे। ग्रुप में कैब करने पर भी शेयर पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बराबर ही पड़ रहा था। मैं तो आयोजन से पहले ही सब दर्शन कर आई थी। मुझे अगले दिन सुबह 9:00 की राजधानी में रिजर्वेशन मिला था। यहां शेयरिंग ऑटो बहुत सस्ता है ₹10 में दूर-दूर तक ले जाते हैं। मुझे कोई काम तो था नहीं। भुवनेश्वर घूम चुकी थी अब शहर से परिचय करने के लिए घूमती रही। साइकिल ट्रैक, दीवारों पर चित्रकारी, साफ सुथरी सड़कें , व्यवस्थित ट्रैफिक। सबसे ज्यादा मुझे प्रभावित किया कुछ जगहों पर सेंट्रल वर्जेज जिसमें लोहे की जगह बांस से पौधों की सुरक्षा की गई है। कल स्टेशन जाने की भी चिंता नहीं थी, क्योंकि होटल स्टेशन के पास था। अब रात्रि भोज के लिए बहुत जल्दी, आयोजन स्थल पर गई। वहां चाय कॉफी स्नैक्स लगे हुए थे और साथ ही डिनर भी। जिसको भी गाड़ी पकड़नी है, वह कुछ भी खा कर जा सकता है यानि उत्तम व्यवस्था। मैं भी खाना खाकर होटल आ गई और पैकिंग करके जल्दी सोने लगी लेकिन सुमधुर गाने की आवाज़ से नींद खुल गई लिंक लगा रही हूं।
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रात 12:00 बजे आकर सोई। सुबह 8:15 बजे मैं स्टेशन पर पहुंच गई थी।
क्रमशः
Thursday, 6 June 2024
जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ! भुवनेश्वर! Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 27, Orissa Yatra Part 27 नीलम भागी Neelam Bhagi
सम्मान समारोह से लौटने के बाद लंच के लिए हाल में एकत्रित हुए। विश्वविद्यालय से जलपान करके लौटे थे। मैंने सोचा आख़िर में लंच करूंगी। कार्यक्रम को छोड़ कर, मेरी आदत है, जब भी खाली होती हूं, मैं कहीं भी मोबाइल खोलकर उस पर लग जाती हूं और मैं लग गई। मुझे आसपास का कुछ ध्यान नहीं रहता है।
धीरज शर्मा मोंटी(ग्वालियर) मेरे पास बैठे और बोले, "नीलम जी, मोबाइल तो आपके पास हमेशा ही रहेगा लेकिन यह जो आसपास साहित्यकार हैं, अगली बार पता नहीं आपको कब मिलेंगे!" और मोंटी बहुत व्यस्त रहते हैं, यह कह कर वे चले गए। मैंने तुरंत मोबाइल पर्स में रखा और मेरे आस-पास जो थे और उनसे परिचय होने लगा। मुझे बहुत अच्छा लगा विभिन्न प्रदेश के साहित्यकारों की अपनी बातें जो किसी पुस्तक में नहीं हैं। अब तो ब्रेक में अपने रूम में भी नहीं जाती थी। किसी भी मेज पर जाकर बैठ जाती। मेरा संकोची स्वभाव पर कुछ देर बाद मुझे लगता ही नहीं था कि मैं उन्हें जानती नहीं हूं ।सब परिचित लगते । ट्रेन में मैं अपने साथ के यात्रियों से आराम से बतियाती आती हूं। साहित्य परिषद में सभी बहुत विद्वान हैं। वह आपस में किसकी कितनी किताबें छपी हैं, उस पर चर्चा करते हैं। मेरी तो एक भी नहीं छपी है। मैं यह सोचकर हीन भावना में रहती थी कि कोई मुझसे पूछेगा कि आपकी कितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं? तो मैं नालायक लगूंगी शायद इसलिए मैं अलग थलग सी रहती। मैं बैठने लगी तो देखा पुस्तक छपाई की बात तो कुछ देर में ही खत्म हो जाती है और कभी किसी ने भी मुझसे नहीं पूछा कि आपकी कितनी पुस्तक छपी है? इस सबके लिए धीरज शर्मा की अभारी हूं कि मैं मोबाइल की दुनिया से हटकर इन विद्वानों की चर्चा को शांति से सुनती । अगले सत्र में हमारी प्रदेश अनुसार टोलिया बना दीं। प्रत्येक टोली में पुरस्कृत साहित्यकारों को भी साथ किया। उनके साथ संवाद किया। उन्होंने अपने अनुभव शेयर किये। बहुत अलग सा लगा। इसमें कोई भी अपने मन की बात कर सकता था और सम्मानित साहित्यकार उसमें शामिल थे। चाय का समय हो गया है पर मस्त बैठें थे। रात्रि में हमारे लिए जगन्नाथ जी का महा प्रसाद था। वैसे तो हर जलपान, भोजन में उड़ीसा का स्थानीय व्यंजन जरूर रहता था। पर महाप्रसाद की अलग से खुशी थी। और इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति थी।
जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ! महाप्रसाद के लिए सबको नीचे बैठकर खाना था। मैं और मेरे जैसे कुछ नीचे नहीं बैठ सकते तो हमारे लिए मेज कुर्सी लगाई गई। कुछ ने मुश्किल से नीचे बैठ कर महाप्रसाद लिया। केले के पत्ते पर हाथ से महाप्रसाद खाना बहुत अच्छा लगा। महाप्रसाद के बाद हम सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने के लिए हम हॉल में गए। यहां ओडिसी लोक नृत्य और ओडिसी शास्त्रीय नृत्य गजब के प्रस्तुति थी। आज का पूरा दिन समारोह के आनंद में बीता। खूब मोटिवेट हुए और रात्रि विश्राम के लिए हमें हमारे होटल में पहुंचा दिया गया।
क्रमशः