Search This Blog

Showing posts with label # Natur Walk. Show all posts
Showing posts with label # Natur Walk. Show all posts

Friday, 20 January 2023

गाँव सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 9 नीलम भागी Sahitya Samvardhan Yatra Part 9 Neelam Bhagi


भगवान बोधायन मंदिर के पुजारी शिवम दास जी हमें वहाँ मस्त बैठे देख कर, सबके के लिए भोजन बनाने के लिए उठने लगे तो श्रीधर पराड़कर जी ने उन्हें मना कर दिया। जितेन्द्र झा ’आज़ाद’ जी ने अपने घर भोजन के लिए आमन्त्रित कर दिया था। पराड़कर जी ने उन्हें कह दिया था कि रात के समय 18 लोगों के भोजन में सिर्फ एक ही व्यंजन तैयार करना है। मैं बहुत खुश थी। क्योंकि अब तक जिस भी पैकेज़ टूर में मैं गई हूँ, जिसमें नेचर वॉक, विलेज वॉक भी शामिल होता है, उसमें प्रकृति भ्रमण के लिए पहले हमें ड्रैस अप किया गया था मसलन घुटने तक के जूते, जैकेट, खूबसूरत अम्ब्रैला, वाटर बॉटल, गाइड और अंग्रेजी। विलेज़ वॉक में आर्टीफिशियल बनाया हुआ गाँव और उसमें व्यवसायिक मुस्कान के साथ डेªसअप प्रशिक्षित आवभगत के लिए तैयार किए गए, महानगरों में पढे लिखे गाँव वाले यानि सब कुछ बनावटी।

 यहाँ जितेन्द्र जी हमें लेने आए। हम जैसे थे वैसे ही पैदल पैदल रात में बतियाते हुए उनके पीछे पीछे चल दिये। पुजारी शिवम दास जी भी हमारे साथ थे। ये रात में असली प्रकृति भ्रमण और गाँव भ्रमण था। गाँव तो प्रकृति का वरदान है। रात में हम प्राकृतिक सौन्दर्य और हरियाली तो नहीं देख पाए। पर न वाहनों का कोलाहल और न ही प्रदूषण था। जल्दी सोना और जल्दी जागने के नियम का पालन हो रहा था क्योंकि कोई गलियों में नहीं दिखा। वैसे भी मैं धीरे चलती हूँ और मैंने हील पहनी थी इसलिए मंदिर से घर काफी दूर लग रहा था। सब आगे निकल गए थे। मेरे साथ धीरज मोन्टी मोबाइल से रोशनी दिखाते हुए और जर्नादन यादव जी (अररिया बिहार) रामचरितमानस का प्रसंग सुनाते चल रहे थे। इतने महमानों को देख कर जितेन्द्र जी का परिवार बहुत खुश था। उन्होंने पराड़कर जी का कहना नहीं माना और दो व्यंजन बनाये थे। दोनों मैंने पहली बार खाए थे। अरहर की दाल की खिचड़ी और आलू का भुर्ता साथ में आंवले का आचार। बच्चे बहुत चाव से खिला रहे थे। उनकी माता जी भी बड़े दुलार से और खाने का आग्रह करतीं। परिवार मेहनती पढ़ने वाले बच्चों का लग रहा था। बेटियों ने दीवार पर पूरी कलाकारी दिखा रखी थी, उसमें छोटे छोटे शीशे जड़े थे। बच्चों में सरलता के साथ एक चहक सी थी।

   मुझे जो भी व्यंजन पसंद आता है, मैं उसकी रैस्पी जरुर लेती हूँ। यहाँ डॉ0 ख्याति पुरोहित ने खिचड़ी की बनाने की विधि पूछी। डॉ0 मीनाक्षी मीनल ने बताया कि पहले अरहर की दाल को भून लेते हैं फिर उबलते पानी में डाल देते हैं जब दाल गलने लगती है तब धो कर भिगोए हुए चावल डाल देते हैं। आलू का भुर्ता बनाने के लिए आलुओं को चूल्हे में भूना गया था। दोनों का कॉम्बिनेशन बहुत स्वाद लगा। मैंने घर आकर बनाया पर खिचड़ी में वो स्वाद नहीं आया। जिसका कारण मेरी 94 साल की अम्मा ने बताया कि वहाँ दाल चावल बिना पॉलिश के मिलते हैं। वहाँ बैठ कर बतिया कर रात 11बजे वहाँ से हम चले। पुजारी जी ने भोजन नहीं किया, शायद कोई सन्यासी नियम होगा। हम चार लोग पुजारी जी के साथ अलग रास्ते से आए थे। रात में तालाब के किनारे चलना अच्छा लग रहा था। दिन में तो और खूबसूरत लगता होगा। भगवान बोधायन को नमन कर लौटे। अच्छा लगा यह सोच कर कि वहाँ बिजली नहीं गई थी। क्रमशः