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Monday, 19 February 2024

बंदरों को भगाने का अनोखा उपाय! श्री राम लला तीर्थ क्षेत्र अयोध्या धाम की यात्रा भाग 1 नीलम भागी

 





 अखिल भारतीय साहित्य परिषद दिल्ली प्रांत प्रतिनिधि मंडल की सदस्य श्री राम लला प्राण प्रतिष्ठा में कुछ ही समय बाकि था। हमें 19 जनवरी को एबीपी चैनल में डिबेट में बुलाया था। स्टूडियो के अंदर मंदिर का छोटा रूप रखा था। उसे देख रही थी, इतने में श्री प्रवीण आर्य राष्ट्रीय मंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद का फोन आया कि दिल्ली  प्रांत से 5 प्रतिनिधि सदस्य , 10 तारीख को 10:00 बजे दर्शन के लिए जाएंगे, जिसमें मैं भी हूं। आप जल्दी से टिकट करा लीजिए। थोड़ा  समय निकल गया। अब जहां भी टिकट कराया, सब में वेटिंग! ऐसा लग रहा था सबको अयोध्या जी जाना है। खैर  लौटने का कंफर्म एक लंबी दूरी की गाड़ी में टिकट मिल गई गाजियाबाद तक। अंकुर ने कहा," मैं आपको गाजियाबाद से पिक अप कर लूंगा।" अब जाने का वेटिंग में मिला पर वह कंफर्म हो गया। हमारे प्रवीण जी की विशेषता है कि सूचना देकर  बैठते नहीं हैं। जब तक जाओगे तब तक संज्ञान लेते हैं। फिर उनका फोन आया," संजीव सिन्हा जी आपकी प्रवेशिका बनवाएंगे, उन्हें जो डिटेल चाहिए, भेज दो।" संजीव सिन्हा जी  प्रवेशिका ले आए। उन्होंने बताया कि एक ट्रेन चली है आस्था, जो रात 11: 55 को  8 तारीख को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से जाएगी।  मैंने उनकी आगे बात ही नहीं सुनी। यही कहा कि हमारी तो टिकट हो चुकी है जबकि उन्होंने भी दूसरी ट्रेन में रिजर्वेशन करवा रखा था। जाने से पहले मेरी 95 वर्षीय  अम्मा बताने लगी कि वे मेरी बड़ी बहन डॉ.शोभा जो 3 वर्ष की थी, उसे लेकर राम जन्मभूमि गए थे। पंडित जी ने शोभा के गले में माला डाल दी वह घुटने तक की माला पहने बड़ी खुशी से चल रही थी। एक मोटा सा बंदर आया उसकी माला खींची और कंधों से पकड़ कर  झटके दिए और माला  लेकर चला गया । बंदर सुनकर मैं भी थोड़ा सावधान हो गई। हमारी रात की गाड़ी गरीब नवाज थी। हमारे आसपास कर्नाटक का एक मुस्लिम परिवार था जो भाषा वह बोल रहे थे, वह नवाओथ थी जो नौ भाषाओं  का मिश्रण है। और दक्षिण पश्चिम भारत में बोली जाती है, मैंने पहली बार  सुनी थी। वह भी यात्राएं करते आ रहे थे और अब लखनऊ जा रहे थे इसलिए सब जल्दी सो गए। गाड़ी ने हमें सुबह, समय से अयोध्या कैंट स्टेशन पहुंचा दिया था। बहुत साफ सुथरा स्टेशन! स्टेशन से बाहर भी सफाई, बंदर थे पर किसी से कोई छीना झपटी नहीं  कर रहे थे। कोई आगे रिक्शा, टेंपो, ऑटो, गाड़ियां नहीं। चालक  सवारी पकड़ के दूर बैरिकेड से बाहर खड़ी, अपनी गाड़ियों पर बैठा कर ले जाते थे। मैंने डॉक्टर विनोद बब्बर जी( कार्यकारी अध्यक्ष ) को फोन पर पूछा है,"आप कहां है?" उन्होंने जवाब दिया, "गाड़ी में और हमारी गाड़ी 1:00 बजे पहुंचेगी और पिकअप करने के लिए गाड़ी आएगी और जहां स्टे है, वहां पहुंचा देगी? प्रवेशिका पर  एड्रेस लिखा है, आप वहां पहुंचे।"  प्रवेशिका पर लिखा था 'तीर्थ क्षेत्र  श्री राम जन्मभूमि अयोध्या धाम।' बैरिकेड पर बैठी पुलिस से पूछा कि हमें यहां जाना है। उन्होंने कहा कि सामने चौराहे से बस जाएगी और यहां से ऑटो, ई रिक्शा जाते हैं। उनसे बात कर लीजिए और यह एरिया फैजाबाद कहलाता है। वहां शेयरिंग ऑटो  थे और ई रिक्शा थे। पर एक ऑटो में बैठें, उसमें और सांवरिया भी बैठी हुई थीं उन्होंने उसी एरिया के होटल में जाना था। दूसरा  ऑप्शन था कि हम अयोध्या धाम के स्टेशन पर जाकर, एक बजे तक इंतजार करें, जब दिल्ली  से आस्था गाड़ी आयेगी तो जो बस लेने आएगी उसके साथ ही स्टे पर पहुंच जाएंगे। पर मेरे सर पर तो वास्कोडिगामा सवार हो गया था और मैं जल्दी से स्टे खोज कर, सामान टिका कर अयोध्या धाम घूमना चाहती थी। यहां से तीर्थक्षेत्र की ई रिक्शा की सवारी 40₹ है और शेयरिंग ऑटो 50₹ मांग रहे थे। उस समय ऑटो कोई नहीं था इसलिए मुझे रेट नहीं पता। इस बहाने से थोड़ा सा फैजाबाद से भी परिचय हो गया। ऑटो चालक शहर के बारे में कुछ न कुछ  बताता जा रहा था और बहुत  खुश था। उसकी खुशी का कारण उसने बताया, रामलाल के टिक कर बैठने से है अब 'जितने चक्कर लगाओ, उतना कमाओ'। हमें पतली पतली गलियों से ले जाकर वहां ले गया, जहां से कोई सवारी नहीं जाती थी। अब पैदल चलना था।  पर हमें तो पहले स्ट पर जाना था। उसे कहा तो उसने जवाब दिया कि इन सवारियों को होटल में पहुंच कर फिर आपको पहुंचता हूं। बस इनका होटल 1 किलोमीटर के अंदर है। मैं तो वैसे ही हैरान सी देख रही थी। सब जगह भगवान राम के केसरिया झंडे लहरा रहे थे। बंदर किसी को कुछ नहीं कह रहे थे। ऐसे घूम रहे थे जैसे उनके लिए राम राज्य है। श्रद्धालुओं की भीड़ चलती ही जा रही थी। यह सब देखना भी अपने आप में बहुत सुखद था। ऑटो वाला उनके होटल का एड्रेस लेकर उतर उतर कर ,जगह-जगह से पूछ रहा था और लोग बहुत कोऑपरेटिव अच्छे से समझ रहे थे। आखिर उनका होटल मिल गया। होटल के रिसेप्शन पर न कोई महिला, न ही महिला का पोस्टर। एक बहुत ही भीभत्स पोज़ में लंगूर का पोस्टर लगा हुआ था!! मैं झट से ऑटो से उतर कर रिसेप्शन पर गई, उससे पूछा," भैया यह पोस्टर होटल के रिसेप्शन पर क्यों लगाया है?" उसने जवाब दिया, "वृंदावन में बंदर चश्मा, मोबाइल सामान छीन लेते हैं तो बाहर से जो श्रद्धालु यहां आते हैं, वह बंदरों के कारण डरे रहते हैं। ये बंदर तो किसी को कुछ कहते नहीं, बड़े सीधे हैं। पोस्ट देखते ही भाग जाते हैं। तो जो यात्री यहां रुकते हैं आसपास घूमने से बंदरों से डरना बंद कर देते हैं।  नोएडा के बंदर तो बहुत उत्पाति हैं। उनके लिए एक लंगूर वाला आता था सुबह 9 से 5 बजे तक। लंगूर उसकी साइकिल के पीछे बैठा घूमता था। बंदर नहीं आते थे फिर बंदरों ने 9 से पहले और 5:00 बजे के बाद आना शुरू कर दिया।  अयोध्या जी के बंदर, लंगूर के पोस्टर से भाग जाते हैं!! क्रमशः