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Sunday 28 June 2020

हम अब समधी नहीं, संबंधी हैं!! अमृतसर यात्रा भाग 11 नीलम भागी Neelam Bhagi Amritsar yatra 11



यहां सबसे अच्छी बात यह है कि रीति रिवाज सब करते हैं लेकिन अगर जरुरत हो तो उसमें दूसरे की सुविधा देखकर बदलाव भी कर लेते हैं। रिश्ता होते ही लड़के का पिता, लड़की के पिता से कहेगा,’’हमें आप समधी नहीं, संबंधी समझो। रिंग सैरामनी को चुन्नी चढ़ाना कहते हैं। कई बार तो चुन्नी चढ़ाने आयेंगे साथ ही हंसी खुशी फेरे करवा कर लड़की ले जाते हैं और अपने घर प्रीतिभोज(रिसेप्शन) कर लेते हैं। कभी दूसरे शहर से बारात आती है। तो जनवासे में स्वागत सत्कार के बाद, वहीं सगाई दे देते हैं फिर वे लोग चुन्नी चढ़ाने आते हैं। लड़की का अपनी परंपरा अनुसार श्रृंगार करते हैं, साड़ी वगैरहा पहनाते हैं। वह इतनी सुंदर लगती है कि लगता है ये तो जयमाला के लिए ही तो तैयार है। उनके जाने के बाद, लड़की फिर ब्राइडल मेकअप के लिए पार्लर जाती है। जब वहां से आती है तो पहले से अलग लगती है। रात को बारात बारातियों के नाचने के कारण जितनी मर्जी लेट आए पर शादी की रस्में सब होंती हैं। मुहूर्त पर ही सप्तपदी होगी। शादी लोकल है तो तारों की छावं में विदाई होती है। यानि एक दिन में सब कुछ और नववद्यु के स्वागत में अगले दिन रिसेप्शन किया जाता है। ये सब पहले आपस में बैठ कर, हंसी ठहाकों के बीच में तय किया जाता है। रस्में कोई कम नहीं होतीं कम से कम दो दिन का शादी जश्न तो रहता ही है। तीन चीजें यहां मैंने पहली बार देखीं थी लड़कियां बारात को अंदर नहीं आने देतीं। दूल्हे से तय बाजी करती हैं, जब नेग मिल जाता हैं तब रिबन कटवा कर उन्हें अंदर आने देती हैं। और तब जयमाला होती है| दूसरा गोलगप्पे(पानी पूरी) तैयार कर, पानी से भरे हुए वेटर आपको प्लेट में लगा कर सीट पर देकर जायेगा। तीसरा आइसक्रीम हाफ प्लेट में पहाड़ जितनी आपके पास आयेगी। वैसे बूुफे लगा होता है आप जाकर अपनी सुविधानुसार ले सकते हैं वरना वह आगमन से उपस्थिति तक, आप जहां बैठे हैं, वहां देने आता ही रहेगा। और ड्राइफ्रूट की सब्ज़ी में किशमिश की मात्रा इतनी होती है कि सब्जी में हल्की सी मिठास, उसके स्वाद को कई गुणा बढ़ा देती है।यहां मेहमान खाना खाकर घर नहीं दौड़ते, ज्यादातर शादी एंजॉय करते हैं। सप्तपदी में भी प्रत्येक भंवर पर चावल से भरा बर्तन, रिश्तेदार वर को देते हैं। सबका ऐसे समारोहमें  आपस में मिलना होता है। वे आपस मे बतियाने में इतने मशगूल रहते हैं कि कन्यादान, विवाह संपन्न होने पर उन्हें पता चलता है। फिर वे चाैंक कर सबको बधाई देते हैं। लावां फेरों केे बाद लड़की ससुराल का सूट पहनती है। उसी में उसकी बिदाई होती है।   विवाह स्थल से आकर रात भर के सब जगे होते हैं। मेहमानों की विदाई शुरु होती है। मैं एक दिन बाद लौटती हूं। दोपहर को सब सो लेते हैं। बेटी की बिदाई के बाद घर में एक दिन पहले जैसी रौनक नहीं रहती है। अगले दिन बिटिया ने फेरा डालने आना है। शाम को उसकी तैयारी भी हो जाती है। गुड्डी दीदी महाराज को खाना बनाने को कह कर, हम सब गोल्डन टैंपल जाते हैं। रास्ते में हमेशा एक ही बात मेरे ज़हन में आती है कि ये अम्बरसर का पानी है जो यहां मैंने कभी किसी रिश्तेदार को खुशी के मौके पर नाक मुंह फुलाए नहीं देखा।    क्रमशः    ं