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Wednesday, 30 November 2022

झांसी का किला और पर्यटन स्थल झांसी यात्रा भाग 9 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 9 Neelam Bhagi

मैं श्री राजा राम सरकार का मंदिर ओरछाधाम में सुबह दर्शन कर आई थी। अब मैंने झांसी के किले को देखना था। जानती थी कि किला इस समय बंद हो गया है। पर बचपन से मेरे मन पर वीरांगना की जो छवि बनी है, जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था और ये किला उसका गवाह है। इसके कारण मैं किले पर जरुर जाना चाहती थी। डॉ. सारिका कालरा सुबह ही लेखक समूह की बैठक में दिल्ली से रातभर का सफ़र करके पहुँची थीं। उनकी 11.30 की गाड़ी थी मेरी 11 बजे की थी। हम दोनों ने एक साथ स्टेशन पर आना था। श्रीराजाराम सरकार की आरती 8 बजे से थी। डॉ. सारिका थोड़ा आराम करके वहाँ जाना चाहतीं थी। मैंने कहा तो मेरे साथ किले के लिए चल दीं। वीना राज जी को स्टेशन छोड़ने जो गाड़ी जा रही थी, वही हमें किले पर छोड़कर आती और वहाँ शो देखकर हम स्टेशन पर अपने आप चले जाते। जाते समय हमें खाने के पैकेट भी पकड़ा दिए। हल्की बूंदाबांदी तो हमारे चलते ही शुरु हो गई थी। झांसी से परिचय करते हुए हम जा रहे थे। ड्राइवर भी शहर के बारे में बताता जा रहा था। स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियाँ चौराहों पर लगी हुई थीं। पर बूंदाबांदी के कारण गाड़ी से उतर कर हम ऐतिहासिक शहर की तस्वीरें नहीं ले पा रहे थे। अंदर से जो लीं वो बरसात से साफ नहीं हैं। 15 एकड़ में फैला झांसी का किला सुबह सात से शाम 6 बजे तक खुलता है। सायं 7.30 बजे शो होता है। बंगरा नामक पहाड़ी पर 1613ई. में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस किले की महत्वपूर्ण भूमिका थी। किला दूर से ही दिखने लगा था, कुछ दूर पर गाड़ी रोक दी। ड्राइवर ने कहा कि आप जाकर पूछ लो कि समान जमा करने की कोई जगह है तो लौटते समय वहाँ से ले लेना। मैं और डॉ. सारिका किले के मुख्यद्वार पर पहुँचे जो कॉफी ऊँचाई पर था। वहाँ  पूछा कि टिकट कब मिलेगी? उसने कहा,’’सात बजे।’’ मैंने पूछा,’’आप हमारा सामान रख लेंगे हम शो के बाद ले लेंगे।’’उसने जवाब दिया,’’नहीं।’’ मैंने पूछा,’’यहाँ से कितनी दूरी पर शो होता है,’’ उन्होंने बताया,’’पहले इधर, फिर उधर, जिधर फिर फाँसी घर आयेगा उसके पास शो होता है। अगर बरसात हो गई तो कैंसिल हो जायेगा।’’ उनके बताए मार्ग में जिधर तक मेरी नज़र गई, बहुत अच्छी बनी हुई है पर सड़क पर चढ़ाई थी। हमारे पास किताबें बहुत थीं। सामान लेकर हम नहीं जा सकते थे। वहाँ ऊँचाई से रात में झाँसी बहुत सुन्दर लग रहा था। उस दिन बारावफात था। किले के आस पास बहुत रौनक थी। लौट कर गाड़ी में बैठ गए और रिर्सोट की ओर चल दिए कि वहाँ सामान रख कर ओरछाधाम चले जायेंगे। कुछ लोगों ने कल जाना था। बहुत कम लोगों ने स्टेशन जाना था। एक गाड़ी समय से स्टेशन पर छोड़ने जाती। रिर्सोट के सामने जा रहे एक ऑटो को ड्राइवर ने रुकवा दिया। दोनों रिर्सोट में सामान रखने गए तो डॉ. संजय पंकज(बिहार) और अरुण जी(राजस्थान) ओरछाधाम के  लिए आ रहे थे। हमने उनसे कहाकि वे जाकर ऑटो पर बैठे और हम आ रहीं हैं। हमारे आते ही ऑटो हमें ले चला। आरती से पहले हम पहुँच गए। क्रमशः 









        

       


Sunday, 27 November 2022

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की लेखक समूह की राष्ट्रीय बैठक, झांसी यात्रा भाग 8 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 8 Neelam Bhagi

 


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भारतीय भाषाओं का देशव्यापी राष्ट्रीय संघटन अखिल भारतीय साहित्य परिषद की 9 अक्टूबर को लेखक समूह की राष्ट्रीय बैठक का आयोजन, ओरछा तिगेला स्थित रॉयल गार्डन में किया गया। इस बैठक में देशभर के 15 राज्यों के सैंकडा़ से अधिक प्रतिष्ठित लेखकों ने सहभागिता करते हुए समाज, संस्कार सहित राष्ट्रीय चिंतन से जुड़े विभिन्न विषयों पर चर्चा परिचर्चा करते हुए देश के विकास व संस्कृति के उत्थान में लेखकों का दायित्व कैसा हो, इस पर मंथन व मनन किया।




बैठक के मुख्य अतिथि परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व देश के वरिष्ठ लेखक श्रीधर पराड़कर ने वर्तमान समय के लेखकों  से ईमानदारी व सत्यता के साथ लिखने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि लेखक समाज की धूरी होते हैं। इन्हें अपने दायित्वों का निर्वाह सजगता पूर्वक करना चाहिए। समय बदला है पाठकों की मानसिकता बदली है, लेखन में भी इसका प्रभाव आ रहा है।  मुख्य वक्ता श्रीधर पराड़कर और अन्य वक्ताओं में श्रीकृष्ण उपाध्याय ने कहाकि कुछ समय पहले तक साहित्य का अर्थ था जिस पर कुछ विशेष लोगों का कब्जा़। नये लोगों के लेखन की खिल्ली उड़ाना, जिससे कुछ तो लिखना ही छोड़ देते थे। साहित्य परिक्रमा पत्रिका के संपादक इंदुप्रकाश ’तत्पुरुष’ ने लेखकों को बताया कि इस वैचारिक पत्रिका में किस प्रकार के लेख, कहानियाँ, कविता, गज़ल, लधु कथा, यात्राएँ(संवेदना) ललित निबंध, पुस्तक समीक्षा छपते हैं। परिषद  के राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिकुमार मिश्रा और राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ0 पवनपुत्र बादल, उन्होंने संस्कृति, संस्कार व लेखन का आपस में संबंध कैसा और किस प्रकार हो, इस पर भी चर्चा की। साहित्य लेखन के विकृत रुप पर भी चर्चा की गई। इसके अलावा अन्य आमन्त्रित वक्ताओं ने अपने अपने विचार व्यक्त कर लेखकों को समाज हित में लेखन के लिए आह्वाहन किया।

  बैठक के चौथे सत्र में लेखकों का अलग अलग विधाओं का समूह बना दिया गया। मुझे कथा समूह में रखा गया और हमें गाइड डॉ0 दिनेश प्रताप सिंह ने किया। मंच पर बैठने वाले विद्वान वक्ता समूह के साथ गोल घेरे में बैठकर हमसे प्रश्न पूछ रहे थे, हमारे प्रश्नों का जवाब दे रहे थे। ऋषिकुमार मिश्रा जी ने सबको गिफ्ट भी दिया। प्रो0 नीलम राठी(राष्ट्रीय मंत्री), डॉ0 साधना बलवटे(राष्ट्रीय मंत्री), उत्तर प्रदेश के महामंत्री डॉ0 महेश पाण्डेय, परिषद् के कानपुर प्रांत के अध्यक्ष डॉ0 प्रहलाद बाजपेयी, प्रांतीय उपाध्यक्ष डॉ0 पवन गुप्ता तूफान, प्रांतीय संगठन मंत्री डॉ0 महेन्द्र शुक्ला, प्रांतीय मंत्री शिव कमल मिश्रा, शिवमंगल सिंह, रीता तिवारी लखनऊ, आदि राज्यों के लोग मौजूद रहे। स्थानीय लोगों में परिषद के जिला अध्यक्ष प्रताप नारायण द्विवेदी, महामंत्री विजय प्रकाश सैनी, उपाध्यक्ष के. एन. श्रीवास्तव, बृजलता मिश्रा आदि लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन क्रमवार डॉ0 पवनपुत्र बादल, ऋषि कुमार मिश्र व अन्य लोगों ने अलग अलग सत्रों में किया। अतिथियों का स्वागत धीरज मिश्रा व रवि मिश्रा एवं आभार व्यक्त डॉ0 महेश पाण्डे बजरंग ने किया। आठ घण्टे कैसे बीत जाते पता ही नहीं चलता। मान. श्री रामरतन कुशवाहा एड. विधायक ललितपुर भी आकर सबके बीच में बैठ कर विद्वान वक्ता को सुनते रहे और उस सत्र के समापन पर ही गए। और हमारी लेखक समूह की राष्ट्रीय बैठक का समापन हुआ। रात 11 बजे की गाड़ी थी अब पर्यटन की तैयारी शुरु।  क्रमशः    






Saturday, 26 November 2022

श्री राम राजा सरकार मंदिर जी ओरछा धाम झांसी यात्रा भाग 7 नीलम भागी Jhansi Yatra Part7 Neelam Bhagi

 


गाड़ी स्टार्ट होते ही प्रोफेसर नीलम राठी अपने फोन में लग गई पर फोन काम नहीं कर रहा था। इतने में प्रवीण गुगलानी जी बोले," एक एक प्लेट पोहा खाते हैं।" प्रो. नीलम  बोली," बिल्कुल नहीं, पहले धीरज मिश्रा से पूछ लो कि हम लोग इतनी देर से आ रहे हैं, हमें खाना मिल जाएगा! अगर खाना नहीं मिल रहा है तो खाना पैक करवा लो ताकि खाने में भी समय खराब ना हो।" मैंने कहा," आप बिल्कुल चिंता न करें। यहां कल रात को जो 2:00 बजे भी आ रहा था, उसे भी गरम खाना मिल रहा था। अब देखना जाकर ऐसा ही होगा।" जब हम पहुंचे हमें खाना तैयार मिला। फुल्के गरम गरम थाली में आ रहे थे।  रूम में आते ही प्रो. नीलम ने फोन पर मेहनत की पर फोन नहीं चला। जब  प्रवीण गुगलानी जी की जप साधना समाप्त होने के इंतजार में  प्रो. नीलम सबके  साथ बैठी थीं, तब उन्हें कोने में जगह मिली। वहां से गुजरने वाले किसी श्रद्धालु की लात लगने से उनका फोन गिर गया और खराब हो गया। उसी में उनकी टिकट भी थी। फोन नंबर आजकल कोई याद नहीं रखता यानि बहुत परेशानी! कल संचालन भी करना था। सुबह उठते ही वह मीटिंग के लिए गई। आकर बताया कि जल्दी से  बाहर आ जाओ, राजाराम के दर्शन करने जाना है। मैं तो तैयार ही बैठी थी तुरंत उनके साथ चल दी। श्रीधर पराड़कर जी, ऋषि कुमार मिश्रा जी, प्रोफ़ेसर दिनेश प्रताप सिंह जी, डॉ. देवी प्रसाद तिवारी हम चल दिए। श्रीधर पराड़कर जी रास्ते में उस जगह के बारे में बताने लगे और नृत्यकी राय प्रवीण, कवि केशव, चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताया। सड़क के दोनों ओर  हरियाली से भरे रास्ते में श्रीधर पराड़कर जी को सुनते हुए जा रहे थे। बहुत जल्दी मंदिर आ गया। एक ओर खूबसूरत मंदिर का भवन खड़ा है। सामने महल जैसा मंदिर है जिसमें राजा राम विराजमान है।




चप्पल संभालने की व्यवस्था अच्छी है। सबसे अच्छी बात लगी जैसे ही मैंने जूते रैक में रखे, तुरंत  बोतल के ढक्कन में कई छेद करके, उसमें पानी भरा हुआ था। बिना कहे उस बोतल की फुहार से मेरे हाथ धुलवा दिए।  हाथ धोने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। मंदिर के अंदर फोटो लेना मना है इसलिए मोबाइल पर्स में रख कर हाथ जोड़ें हम लाइन में लगे थे।  कीर्तन चल रहा था। बहुत श्रद्धा भाव से गाया जा रहा था। जिससे  मन में एक अलग सा भाव आ रहा था। लाइन में चल रहे थे और कानों में भक्ति भाव से गाए भजन सुनाई दे रहे थे। बहुत अच्छे से दर्शन हुए। घर के लिए प्रसाद खरीदा। प्रसाद ले जाने की व्यवस्था बहुत पसंद आई।  अलग-अलग रेट से थी। आपको प्रसाद छोटी-छोटी पैकिंग में मिलेगा जो मित्रों पड़ोसियों को देने में बहुत आसान है। साथ में जितने बॉक्स उतने पान ।






मंदिर के आसपास सौभाग्यवती महिलाओं के सामान की दुकाने हैं। मिठाई खानपान , गिफ्ट आइटम, पूजा का सामान आदि।  मंदिर के आसपास की दुकानें देखते हुए बाहर आए। एक महिला जमीन से ताजी निकाली हुई कच्ची मूंगफली बेच रही थी। 

प्रोफेसर दिनेश नहीं आए हम गाड़ी में उनका इंतजार करते रहे। कुछ देर बाद आए तो उनके हाथ में खूबसूरत दीपक जलाने वाला पीतल का लैंप था। उनके बैठते ही गाड़ी चल पड़ी। श्रीधर पराड़कर जी ने उसे देखने के लिए लिया और सोच में पड़ गए कि इसके अंदर दीपक कैसे रखा जाएगा! इस चर्चा में  आयोजन स्थल आ गया।   लेखक समूह की बैठक थी इसलिए हम जल्दी आ गए । मुझे धार्मिक स्थल में कुछ देर बैठना,  अच्छा लगता है।  हमेशा ग्रुप में गई हूं।  जहां नहीं  बैठ पाती, वहां अपने आप से कहती हूं,  मैं कौन सा मरने वाली हूं, मैं फिर आऊंगी। आयोजन स्थल पर पहुंचे तो  बहुत लाजवाब दक्षिण भारतीय पर मिठाई उत्तर भारतीय, नाश्ता लगा हुआ था। बतियाते हुए नाश्ते का आनंद उठाया और लेखक समूह की बैठक के लिए हॉल में गए। क्रमशः

Saturday, 19 November 2022

धूमावती देवी, माँ पीताम्बरा शक्तिपीठ माँ बगलामुखी देवी दतिया झांसी यात्रा भाग 6 Dhoomawati Devi नीलम भागी Jhansi Yatra Part 6 Neelam Bhagi

इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में परम तेजस्वी स्वामी जी द्वारा की गई थी।  सिद्वपीठ में माँ बगलामुखी चर्तुभुजी देवी के एक हाथ में गदा दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में बज्र और चौथे हाथ में दैत्य की जीभ है। यहाँ कभी किसी श्रद्धालु को देवी पीताम्बरा के सामने खडे होने या छूने का अवसर नहीं मिलता। 

यहाँ राजनीतिक लोग और फिल्मी हस्तियाँ, सैलिब्रिटी दर्शन करने आती हैं। यहाँ आने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। मैं बगलामुखी देवी के सामने हाथ जोड़े उनकी छवि को दिल में उतार रहीं हूं। पीले वस्त्र आभूषण, पीले रंग के जितने भी शेड के फूल होते हैं, उनसे मां का श्रृंगार किया गया था। प्रशाद और पूजन सामग्री सब कुछ पीला और साधक भी पीले वस्त्रों में। इस स्थान की बहुत महिमा है। मां बगलामुखी शत्रुनाशिनी है। शत्रु तो काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह भी हैं। मुकदमें में फंसे लोग, पारिवारिक कलह व जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए, वाक सिद्धि प्राप्ति के लिए हवन करवाते हैं और बाधाओं से मुक्ति पाते हैं। मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठंवा स्थान प्राप्त है। एक राक्षस ने ब्रह्मा जी का ग्रंथ चुरा लिया और जल में छिप गया। ब्रह्मा ने मां भगवति की अराधना की। इससे शत्रुनाशिनी देवी की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुले का रुप धारण कर उस राक्षस का वध कर, ब्रह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया। मां का नाम बगलामुखी हो गया। इन्हें त्रेतायुग में रावण की ईष्ट देवी के रुप में भी पूजा जाता था। लंका विजय के दौरान श्री राम को इस बात का पता चला तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाथ और परशुराम मां की आराधना करते थे।  एक र्बोड पर लिखा था सौभाग्यवती महिलाएं माँ धूमावती का दर्शन न करें। 

धूमावती माँ को शक्तिरुपा देवी के रुप में पूजा जाता है। मैंने देवियों के दर्शन में उन्हें श्रृंगार में और सजी हुई चम चम  करती पोशाक में देखा है। पर यह देवी श्रृंगारविहीन, मैली सी(off white) सफेद साड़ी, बिखरे खुले घने बाल और कौवा उनकी सवारी है। माता विधवा का रुप है। जिन्हें तंत्र में विश्वास होता हैै, वे देवी धूमावती में विशेष आस्था रखते हैं। आम लोगों के लिए इनके दर्शन शनिवार को ही होते हैं और उस दिन शनिवार ही था और आरती में शामिल होने का भी सौभाग्य मिल गया।

म्ंादिर बंद होने से कुछ पहले ही प्रवीण जी का जाप खत्म हुआ। हमें उस गेट पर जाना था, जहाँ चप्पल उतारी थी। वो गेट भी बंद हो गया। दूसरे रास्ते से वहाँ पहुँचे। वहाँ अलग अलग दिशाओं में सिर्फ हमारी चप्पलें पड़ीं थीं। अब गाड़ी भी वहाँ आ गई। क्रमशः  









माँ पीताम्बरा शक्तिपीठ माँ बगलामुखी देवी दतिया झांसी यात्रा भाग 5 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 5 Neelam Bhagi

बैठक संपन्न होते ही जिन्हे लौटना था, वे जाने लगे हमने दतिया में माँ पीताम्बरी के दर्शन का प्रोग्राम बना लिया। खूब बारिश हुई पर हमारे जाने के समय रुक गई। कल 9 अक्तूबर को प्रो0 नीलम राठी ने संचालन करना था। जिसके लिए उन्हें मीटिंग करनी थी। उन्होंने वरिष्ठों से पीताम्बरी दर्शन के लिए पूछा, उन्होंने कह दिया कि लौटने पर मीटिंग कर लेंगे। डॉ0साधना वनखड़े ने कहा कि वे कोशिश करेंगी कि हमें लाइन में न लगना पड़े। गाडी में सब कल की बैठक में भाग लेने वाले लेखक थे। भाषा पर चर्चा करते हुए दतिया पहुँचे। भीड़ को देखते हुए वाहनों का रास्ता अलग कर दिया था।  शक्तिपीठ से एक किमी दूर गाड़ी खड़ी कर दी गई। हम पैदल चल दिए। चप्पल गाड़ी में नहीं उतारी क्योंकि बारिश के कारण बहुत कीचड़ हो रहा था। मंदिर पहुँचे। इन्दुप्रकाश ’तत्पुरुष’ जी ने चप्पल चोरी न हो, इसकी तरकीब बताई कि दोनों चप्पलें अलग अलग रखो। गेट से बाहर सैंकड़ो जोड़ी चप्पलों में हमने अपनी चप्पल जोड़ी में नहीं रखी। यहाँ नमकीन सेव और पीले लड्डू का प्रशाद चढ़ाते हैं। गेट में जाते ही दो लाइनें थीं। और र्बोड लगा था ’फोटो खींचना, जयकारे लगाना और पॉलिथिन लाना मना है’ जो पहले तस्वीर ली बस वही है। पर अब नियम पढ़ लिया इसलिए मोबाइल पर्स में रखा। हम लाइन में नहीं लगे पर बहुत लंबी दोनों लाइनों के साथ चलने वाले रास्ते से गुजरते हुए हम भवन पर पहुँच गए। जहाँ से बिना लाइन के दर्शन थे। डॉ0 साधना बलवटे के पति ने यहाँ से शायद दीक्षा ले रखी है, वे बात करने गईं। मेरी नज़र बोर्ड पर पड़ी उस पर लिखा था। यहाँ से प्रवेश पैंट, पजामा, सलवार वालों का नहीं है। धोती पहन कर प्रवेश कर सकते हैं। केवल डॉ0साधना साड़ी में थीं। प्रवीण गुगलानी पैंट में थे पर वहाँ रुक गए। प्रो0 नीलम राठी, इन्दु प्रकाश जी, आशा शर्मा और मैं, जो गेट यहाँ से पास पड़ रहा था, वहाँ जल्दी जल्दी लाइन में लगने चले गए। क्योंकि 9.30 बजे मंदिर बंद हो जाता है। सवा सात बजे हम लाइन में लगे। वैसे यहां पर महिला और पुरुष की लाइन अलग होती है पर उस दिन ऐसा नहीं था प्रो. नीलम राठी जो लाइन तेजी से चल रही होती उस में चली जाती, हम भी उनके पीछे चल जाते फिर दूसरी लाइन में लगता कि वह तेजी से चल रही है फिर उस लाइन में शिफ्ट हो जाते ऐसा करते हुए हम हंस भी रहे थे। फिर प्रोफेसर नीलम कहने लगी, अब जिस लाइन में है, उसी में रहेंगे। एक घण्टे में हमें माँ के अच्छे से दर्शन हो गए। सामने से प्रवीण गुगलानी जी पीली धोती पहने और एक धोती हाथ में पकड़े आए और बोले,’’मैं तो इन्दु प्रकाश जी के लिए भी इंतजाम कर लाया । एक हॉल में वे जाकर बैठ कर जाप करने लगे। हम सब भी उनके पीछे हॉल में गए। यहाँ श्रद्धालु जूट की पट्टियों पर बैठे जप साधना कर रहे थे। हमारे चारों साथी कोने में फर्श पर बैठे प्रवीण जी का इंतजार कर रहे थे। मुझे डॉक्टर ने जमीन पर और पालथी मारकर बैठने को मना कर रखा है। हल्की बूंदा बांदी के कारण कहीं भी ऐसी जगह नहीं थी, जहाँ मैं टाँगे लटका कर बैठ जाऊँ। जब खड़े खड़े थक गई तो मंदिर परिसर में घूमती रही जो लिखा वह पढ़ती रही। जयकारे लगाने की मनाही क्यों है! ये भी समझ आ गई। किसी की जप साधना में व्यवधान न हो इसलिए। क्रमशः     





       

   




Wednesday, 16 November 2022

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय बैठक, झांसी यात्रा भाग 4 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 4 Neelam Bhagi

 

अब तक मैं परिषद के जिस भी कार्यक्रम में गई हूँ उसमें एक बतियाना सत्र श्रोताओं का अपने आप बन जाता है। जिसका कोई फॉर्मेट नहीं होता। ये चाय पर या भोजन पर समूहों में अलग अलग होता है। मसलन पवन पाण्डे पाली(राजस्थान) ने, अपना परिचय देते हुए बताया कि वे जहाँ से हैं वहाँ पानी ही बहुत कमी रहती हैं। भू जल स्तर बहुत गिर गया है। वाटर हारवेस्टिंग की ज़रुरत पर बात होने लगी। उनकी चर्चा सुनते हुए मेरी आँखों के आगे पानी बर्वाद करने वाले लोग आने लगे, उनको क्या नाम दें? पाठक बताएं।

और हमारी बैठक का समय हो गया और हम हॉल में गए।






बृजलता जी की गाई बिना किसी साज के सरस्वती वंदना के शब्द, स्वर और भाव ने ऐसा समां बांधा कि समापन पर मेरी तंद्रा टूटी। 

   ’किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति को आगे बढ़ाने में मीडिया का अहम योगदान होता है। वर्तमान में सोशल मीडिया ने प्रिंट मीडिया के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर दी हैं। ऐसी स्थिति में पत्रकारों को अपनी लेखनी का प्रयोग अत्यंत सूझबूझ के साथ करना होगा जिससे लोग सूचना और समाचार में अंतर स्पष्ट कर सकें।’ उक्त विचार भारतीय जनसंचार संस्थान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के महानिदेशक डॉ0 संजय द्विवेदी ने झांसी परिपेक्ष में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद की बैठक में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भारतीय भाषाओं का देशव्यापी राष्ट्रीय संघटन अखिल भारतीय साहित्य परिषद की 8 अक्टूबर को मीडिया समूह की राष्ट्रीय बैठक का आयोजन ओरछा तिगेला स्थित रॉयल गार्डन में किया गया। इस बैठक में देशभर के 15 राज्यों के सैंकडा़ से अधिक प्रतिष्ठित पत्रकारों ने सहभागिता करते हुए पत्रकारिता, समाज, संस्कार सहित राष्ट्रीय चिंतन से जुड़े विभिन्न विषयों पर चर्चा परिचर्चा करते हुए देश के विकास व संस्कृति के उत्थान में मीडिया का दायित्व कैसा हो इस पर मंथन व मनन किया। बैठक के मुख्य अतिथि परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व देश के वरिष्ठ लेखक श्रीधर पराड़कर ने वर्तमान समय के पत्रकारों से ईमानदारी व सत्यता के साथ समाचार लिखने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि पत्रकार समाज की धूरी होते हैं। इन्हें अपने दायित्वों का निर्वाह सजगता पूर्वक करना चाहिए। मुख्य वक्ता के रुप में डॉ0 संजय द्विवेदी, मुख्य अतिथि श्रीधर पराड़कर अन्य अतिथियों में परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिकुमार मिश्रा, राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ0 पवनपुत्र बादल, उत्तर प्रदेश के महामंत्री डॉ0 महेश पाण्डेय बजरंग रहे। बैठक में डॉ0 संजय द्विवेदी ने सूचना, समाचार व प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बारीकियां बताते हुए आम जनमानस को पत्रकारिता और पत्रकार के दायित्व बताए। उन्होंने संस्कृति, संस्कार व लेखन का आपस में संबंध कैसा और किस प्रकार हो, इस पर चर्चा भी की। इसके अलावा अन्य आमन्त्रित वक्ताओं ने अपने अपने विचार व्यक्त कर पत्रकारों को समाज हित में आगे आने का आह्वाहन किया।  बैठक में प्रवीण आर्य जी(राष्ट्रीय प्रचार मंत्री),डॉ दिनेश प्रताप सिंह, प्रो0 नीलम राठी, डॉ0 साधना बलवटे(राष्ट्रीय मंत्री), लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार डॉ0 अतुल मोहन संह, परिषद् के कानपुर प्रांत के अध्यक्ष डॉ0 प्रहलाद बाजपेयी, प्रांतीय उपाध्यक्ष डॉ0 पवन गुप्ता तूफान, प्रांतीय संगठन मंत्री डॉ0 महेन्द्र शुक्ला, प्रांतीय मंत्री शिव कमल मिश्रा, डॉ. नृत्यगोपाल शर्मा (मीडिया प्रमुख दिल्ली प्रांत) शिवमंगल सिंह, रीता तिवारी लखनऊ, आदि राज्यों के लोग मौजूद रहे। स्थानीय लोगों में परिषद के जिला अध्यक्ष प्रताप नारायण द्विवेदी, महामंत्री विजय प्रकाश सैनी, उपाध्यक्ष के. एन. श्रीवास्तव, बृज लता मिश्रा आदि लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन क्रमवार डॉ0 पवनपुत्र बादल, ऋषि कुमार मिश्र व अन्य लोगों ने अलग अलग सत्रों में किया।


अतिथियों का स्वागत धीरज मिश्रा व रवि मिश्रा एवं आभार व्यक्त डॉ0 महेश पाण्डे बजरंग ने किया। क्रमशः