क्रमशः
क्रमशः
लो फिर बसंत आया!
इक नाज़नीन ने पहने, फूलों के देखो गहने। #बसंत उत्सव नोएडा हमेशा की तरह लाजवाब! लेकिन इस बार फूलों से बना राम मंदिर ! सबको आकर्षित कर रहा था। नीलम भागी
हमारे टेंट सिटी से 500 मीटर की दूरी पर मणि पर्वत था। यहां पैदल ही चल दिए। वहां खूब बंदर बैठे हुए थे जो किसी को कुछ नहीं कह रहे थे। लेकिन बंदरों का खाना बेचने वाले, आपके पीछे बुरी तरह लग जाते हैं। तोते से भविष्य बताने वाले और सौभाग्यवतियों का सामान बेचने वालों की दुकाने थीं । इसकी ऊंचाई 65 फीट है । इस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। यहां पर कहते हैं कि राम रावण युद्ध में हनुमान जी लक्ष्मण मूर्छा के बाद संजीवनी बूटी की पहचान न होने के कारण पर्वत लिए जा रहे थे तो भरत जी ने अयोध्या की रक्षा के कारण, गलतफहमी में उन्हें तीर मार दिया। वह इस स्थान पर रुक गए। कारण पता लगने पर भरत जी को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने क्षमा मांगते हुए उन्हें तुरंत जाने को कहा। उस पर्वत का एक टुकड़ा यहीं पर गिर गया जो मणि पर्वत कहलाता है। पास ही दूसरा टीला है जो सुग्रीव पर्वत कहलाता है। यहां मंदिरों के समूह हैं। चारों धर्म हिंदू, जैन, बौद्ध एवं सिखों के धर्मस्थल हैं। यहां महात्मा बुद्ध बौद्धित्व प्राप्त करने के बाद 6 साल तक रहे थे और उपासिका विशाखा को दीक्षा दी थी। अपने शिष्यों को धम्म ज्ञान दिया था। अशोक द्वारा बनाया अशोक स्तूप भी है। ऐसा प्रचलित है कि यहां पर श्री राम और सीता झूला झूलते थे ऊपर से अयोध्या का दृश्य बहुत सुंदर लगता है। यहां एक शेयरिंग ऑटो वाला कुछ सवारियों को अयोध्या जी के दर्शन करा रहा था। उससे मैंने पूछा कि वह हमें ले चलेगा। जिन स्थानो पर मैंने जाना था। उनमें से सिर्फ अम्मा जी का मंदिर ही उसकी राह में पढ़ रहा था। वह हमें ₹50 सवारी के हिसाब से वहां छोड़ने को राजी हो गया। हम बैठ गए और उनकी सवारियों के आते ही चल पड़े। यहां रेलवे क्रॉसिंग पर समय बहुत खराब होता है।
क्रमशः
हनुमानगढ़ी से लगभग 500 मी की दूरी पर राम जन्मभूमि है। अब हम रामलाल के दर्शन के लिए चल दिए क्योंकि इतनी बड़ी संख्या श्रद्धालुओं की आ रही थी। अगले दिन हमें दिए गए समय पर दर्शन में बहुत समय लगेगा, ऐसा लग रहा था। और हम बहुत तेजी से चल रहे थे। वहां सामान रखने के लिए बहुत इंतजाम थे। जिसमें स्कैनिंग मशीन तक लगी हुई थी। पर यहां जो लोग सीधे सामान लेकर और जिन्होंने अभी तक कहीं स्टे नहीं लिया था। वे भी आ रहे थे और उनका सामान बड़े-बड़े लॉकर में जमा हो रहा था। हमारे पास तो हैंडबैग ही थे और मोबाइल। हमें कहा गया कि आप आगे चलिए, वहां पर भी हैं । यहां हमें रात हो रही थी, दर्शनों की लालसा में मोबाइल जहां तक ले जा सकते थे। वहां पर भी हमने वीडियो नहीं बनाया, न ही फोटो ली। हमारा लक्ष्य सिर्फ दर्शन था और कुछ याद नहीं आ रहा था। जहां से मोबाइल नहीं ले जा सकते, वहां लाकर पर गए, यहां कई सारी विंडो थी। सब लोग दौड़ दौड़ के छोटी से छोटी लाइन में लग रहे थे। चार नंबर विंडो पर मेरा नंबर आ गया, उस समय हमारा कोई साथ नहीं देख रहा था, जिसका नंबर आता था, उसके बैग में ही अपना समान डाल देते थे। वे लेते समय बस एक मोबाइल नंबर रसीद पर लिखते और कितने मोबाइल है उनकी संख्या रसीद पर लिखते और स्लिप दे देते। यह जमा करके आते ही मन बिल्कुल शांत हो गया। अब जो देखना है, हमने मन की आंखों से देखना है और दिल में उतारना है। याद आया चप्पल! वहीं काउंटर के सामने चप्पल उतार के लाइन में लग गए ताकि याद रहे,जो होगा देखा जाएगा। जब बिल्कुल भवन दिखने लगा तो यहां से सुरक्षाकर्मी भी बड़े मुस्कुराते हुए इशारा करते, जल्दी आ जाओ, जल्दी आओ क्योंकि मंदिर बंद होने का समय हो रहा था। बहुत ही भव्य कारीगरी है। यहां चारों तरफ एक अजीब सा श्रद्धालुओं की श्रद्धा के कारण भाव था। जब सीढ़ियां आई तो मैं सहारे के लिए साइड में हो गई। सीढ़ियां सफ़ेद और बहुत चिकनी थीं । सब चल रहे थे पर मैं एक्सीडेंट से ठीक हुई थी इसलिए मैं पकड़ के चल रही थी। लाइन में ऊपर पहुंचने पर बीच में थोड़े-थोड़े लला दिख जाते। बाजू की लाइन में जब व्यक्ति लंबा होता तो वह भगवान राम के बाल रूप का अपने साथ के छोटों को वर्णन करता, पर आंखें सामने लगी हुई थी। लाइन खिसकती जा रही थी। मैं लला के सामने विस्मय विमुग्ध सी उनको निहार रही थी। कोई कह रहा है आगे बढ़िए, नहीं बढ़ पा रही हूं। सुरक्षा कर्मी ने हंसते हुए मुझे थोड़ा सा खिसका दिया। मैं वहां खड़ी हो गई फिर किसी ने थोड़ा उधर कर दिया, मैं वहां खड़ी हो गई फिर किसी ने खिसका दिया, मैं बाहर थी। उस बाल रूप की छवि का तो मैं वर्णन नहीं कर सकती। आप भी देखेंगे तो आपका भी यही हाल होगा। मुझे नहीं लगता कि कोई भी वहां से हटना चाहता होगा। आसपास देख रही हूं। अभी भी निर्माण चल रहा है। अभी इतना खूबसूरत है, भविष्य में तो और भी लाजवाब होगा। कुछ दूरी पर प्रसाद दिया गया थोड़ा सा आगे आई, तो याद आया अपर्णा सिंगापुर से आई है। मैं पहुंचूंगी तो जाएगी। मैं एकदम पलटी, कहा," एक और दे दीजिए। उन्होंने दे दी, इलायची दाना का प्रसाद था। वह मैंने उसके लिए रख लिया। जाएगी तो सिंगापुर में अपने मिलने वालों को इस अमूल्य प्रसाद को देगी। रास्ता इस तरीके से बनाया है कि बस आप लाइन में चलते रहो, हम भी चलते जा रहे थे। लाकर भवन के पास पहुंच गए। देखा उससे पहले जूते चप्पलों को रखने की बहुत बढ़िया व्यवस्था थी! जाते समय हमें तो दर्शनों के कारण दाएं बाएं कुछ दिखाई नहीं दिया। खैर चार नंबर काउंटर पर पहुंचकर रसीद दिखाई। सामान मिला उन्होंने पूछा," मोबाइल नंबर बोलो।" मैंने बोला तो सामान दिया और पूछा जितने मोबाइल लिखें हैं उतने है न?" मैंने धन्यवाद किया अब पीछे मुड़कर देखा जहां चप्पल उतारी थी। वैसी वह जगह नहीं थी। वहां पर तो कुर्सियां रखी थी। वहां खड़ी सिक्योरिटी से पूछा कि हमने सामान जमा कर के यहीं पर चप्पल सामने उतारी थी। वह मिल नहीं रही हैं, उन्होंने कहा इसकी बैक साइड के काउंटर से जमा होता है और यहां से सामान दिया जाता है, लौटती हुई लाइन से। अब हमें फिर पूछते हुए खूब लंबा चक्कर काटना पड़ा। चार नंबर काउंटर डिपॉजिट वाले पर पहुंचे फिर पीछे मुड़ के देखा, वही हमारी चप्पल पड़ी हुई थी। आप सोचिए कितनी उत्तम व्यवस्था है। यही हम चप्पलों को उनके स्थान पर रखते तो हमें इतना लंबा चक्कर काट कर नहीं आना पड़ता। अब वहां पड़ी कुर्सी पर पहले कुछ देर बैठी। पीने के पानी की भी उत्तम व्यवस्था थी। पानी पिया फिर हम चल दिए। अब बिल्कुल खाली खाली। बहुत सुंदर रात के समय रास्ता लग रहा था। पेड़ों को भी बहुत सुंदर सजाया गया था। आते समय इतनी भीड़ देखकर चिंता हो रही थी कि जाते समय सवारी मिल जाएगी! हमारा बाकि ग्रुप कहीं और ठहरा था। जहां से सवारी मिलती है, वहां तक सड़क के दोनों ओर मेले जैसा माहौल था। एक बात मैंने देखी, दुकानों के बोर्ड का साइज सभी का एक सा था। उसके अंदर लिखा मैटर अलग पर सभी बिल्कुल एक सी। जो भी ऑटो, या ई रिक्शा आती, सब उसको फटाफट लपक लेते। हम दो सवारी ई रिक्शा में बैठे। उसे मणि पर्वत की ओर 3 सवारियां नहीं मिल रही थीं। सब 10-5 के टोलों में थी। आते ही रिक्शा भर जाती। हमारा तो आज दर्शन का प्रोग्राम अचानक, दूसरे ग्रुप के साथ बन गया और दर्शन भी हो गया। अब यह ई रिक्शा वाला बोला," मैं अपना टाइम नहीं खराब करूंगा। आप या तो उतर जाओ या पांच सवारी का ₹50 के हिसाब से पेमेंट करना।" हम तीन सवारी उसके लिए कहां से लाते हैं!😃 बोले ," दे देंगे, पहले बोल देते ठंड में बिठाए रखा।" तभी वह चल पड़ा। बहुत तेज चला रहा था। उसे बार-बार टोकना पड़ रहा था। एक बार तो रिक्शा पलटने लगा, बीच सड़क में सड़क से नीचा मेनहोल था। मैं तो डर गई , अभी तो मेरा फ्रैक्चर ठीक हुआ है, फिर दोबारा ना हो। पर वह बाज नहीं आया। वह सिद्धांतवादी 'ज्यादा चक्कर ज्यादा कमाई' के सिद्धांत पर चल रहा था। राम राम करके हम डेरे पर पहुंचे। हैरानी मुझे इस बात की हुई कि खाना उस समय भी मिला और गर्म पानी। चाय तो रहती ही है। अपने रूम में आई, अनु ने दरवाजा खोला। दोपहर को जब मैं सरयू जी के लिए निकली थी तो बहुत हल्का सा जैकेट पहना था क्योंकि गर्मी हो रही थी। अब इस वक्त रात में ठंड हो चुकी थी । मुझे बहुत ठंड लग रही थी। दो मोटे-मोटे कंबल मेरे बैड पर रखे थे, उनमें दुबक गई। मेरे पीछे ही दो महिलाएं और आ गई थी। वह सब सो रही थी। मैंने गर्म पानी पिया। 3:30 बजे यह सब लोग उठ गई। इन्होंने दर्शन के लिए 4:00 बजे निकलना था। अब एक महिला ने बिस्तर छोड़ दिया तो अपने कंबल मेरे ऊपर और डाल दिए, मुझे बहुत अच्छा लगा। जब यह महिलाएं जाने लगे तब मैंने इन्हें लॉकर के बारे में, चप्पल रखने की व्यवस्था पर, पीने के पानी, साफ़ शौचालय आदि के बारे में जानकारी दी। और कहा बिल्कुल व्यवस्था के अनुसार चलना। बहुत अच्छे दर्शन होते हैं। लाइन में चलना बहुत आराम से दर्शन होंगे। व्यवस्था बहुत उत्तम है। इन सब के जाते ही मैं सो गई। 9:00 बजे दरवाजा खटखटाया की सफाई करनी है। तब मैं उठी नित्य क्रम निपटा कर, पैकिंग करके नाश्ते के लिए गई । नाश्ता करके धूप में बैठकर भारत के कोने कोने से आए श्रद्धालुओं को देखती रही, परिचय होता रहा और बतियाती रही। कल पूरा दिन चलायमान रही इसलिए धूप में बैठकर थकान उतर गई। मन में प्लानिंग बना रही थी कि मुझे क्या-क्या देखना है। दशरथ महल तो हनुमानगढ़ से 50 मीटर है राम जन्मभूमि जाते हुए बाहर से देखा था। यहां भगवान जी का बचपन बीता था। राजा दशरथ यहां नाते रिश्तेदारों के साथ रहते थे। इसका अब कई बार जीर्णोद्वार हो चुका है। अब यह मंदिर है जिसमें राम परिवार की मूर्तियां हैं।
क्रमशः
मुख्य मार्ग छोड़कर पतली पतली गलियों से बृजेश जी के सुपरविजन में, हमारी ई-रिक्षाएं हनुमानगढ़ की ओर जा रही थीं। बीच में मेन होल दोनों साइड में खुली नालियां हैं। एक जगह पर तो मेन हॉल का मुंह खुला हुआ था, ढक्कन पास में भी नहीं रखा था। वैसे इस समय अयोध्या जी में हर जगह विकास चल रहा है। थोड़ा समय तो लगेगा ही। अगले दिन मोनी अमावस के कारण बहुत ज्यादा भीड़ थी। सामने से कोई रिक्शा आ जाती तो ऐसे लगता, हमारी रिक्शा का पहिया नाली में जाएगा, पर ऐसा नहीं हुआ। मेरा हनुमानगढ़ की ओर ध्यान बिल्कुल नहीं था। रास्ते को मैं देख रही थी। एक जगह पर हमें उतार दिया क्योंकि आगे वाहन नहीं जा सकते थे। यहां से पैदल जाना था। रास्ता बिल्कुल साफ सुथरा है। रास्ते के दोनों और लड्डू और पेड़े की दुकाने थीं। यहां इन दुकानों में लड्डू पेड़े बन नहीं रहे थे, बिक रहे थे और कहीं से बनकर दुकानों पर आते जा रहे थे। रेट भी नोएडा दिल्ली से बहुत कम था। बिल्कुल अनुशासित लाइन थी। श्रद्धालु भक्ति भाव से चल रहे थे और मन में जाप कर रहे थे। मंदिर दिखने लगा जो 76 सीढ़ियां चढ़ने के बाद है। प्रथा है कि रामलला के दर्शन से पहले उनके परम भक्त हनुमान जी के दर्शनों के लिए हनुमानगढ़ आना होता है। न आने पर आपकी यात्रा अधूरी होगी। दूर तक व्यवस्थित लाइन थी। हमने एक प्रसाद की दुकान पर चप्पल जूते उतारे और जल्दी से दर्शनों के लिए चल दिए। यह मंदिर दसवीं शताब्दी से है। सुबह 4:00 बजे से रात 10:00 बजे तक खुलता है। रेलवे स्टेशन से 1 किलोमीटर की दूरी पर किले की तरह है और 52 बाघे का इसका परिसर है। यह मुगल कालीन और नागर शैली में निर्मित सिद्धपीठ है। 300 साल पहले महंत बाबा अभयराम जी ने इसका निर्माण करवाया था। इसके बारे में एक दंत कथा है। नवाब सिराजूदौला के शहजादे बहुत गंभीर बीमार हुए। बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए। तब हिंदू मंत्रियों ने नवाब से कहा कि आप बाबा अभयराम को दिखा दीजिए। अभयराम जी हनुमान जी का चरणामृत ले कर आए, शहजादे को पिलाया। अपने साथ लाए जल को मंत्र पढ़ कर शहजादे पर छिड़का। शहजादा ठीक हो गया।
यहां पर हनुमान जी मां अंजनी की गोद में है। जहां बहुत भीड़ है। एक साथ तीन पुजारी अटेंड करते हैं। उस दिन शुक्रवार था। मंगल और शनिवार को तो क्या हाल होता होगा! पर दर्शन सबको हो जाते हैं। लंका विजय करके महावीर, श्री राम के साथ ही आ गए थे। श्री राम ने यह स्थान उनका निवास बनाया। कहते हैं हनुमान जी अयोध्या जी के कोतवाल है। अभी रामकोट की रक्षा करते हैं। यहां लंका से लाई से निशानियां हैं। दीवारों पर संगमरमर में चौपाइयां, हनुमान चालीसा उकेरी हुई हैं। श्रद्धालु पढ़ते हुए चलते हैं। दर्शन के बाद हम लोगों ने 9 तारीख की रात में ही श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन का प्लान बना लिया। वैसे हमें समय 10 तारीख को 10:00 बजे समय मिला था पर इतनी भीड़ बढ़ती देखकर, हमने आज ही दर्शनो की कोशिश करने चल दिए।
https://youtu.be/DQ7L7H3BEbw?si=lgUk_MM0nf1uo6VF
क्रमशः
चालक भरत कुमार रास्ते के बारे में भी बताता जा रहा था और अयोध्या जी का वर्णन भी करता जा रहा था यानि ₹30 सवारी में वह गाइड का काम भी कर रहा था। मैंने उससे पूछा कि राम मंदिर बनने से क्या फर्क पड़ा है? उसने जवाब दिया, "अब राम जी टिक गए हैं तो हमारा भी काम बन गया है। पहले दाल रोटी भी मुश्किल से निकलती थी, अब खूब सवारी है। जितने चक्कर लगाओ, उतना कमाओ। कई बार तो बाहर से ऐसी सवारी मिल जाती है कि 3000 तक बन जाते हैं। अधिक चक्कर लगाने हैं, शायद यही कारण था, रिक्शा बहुत तेज चल रहे थे। रेलवे क्रॉसिंग आ गया तो थोड़ी देर इंतजार करते थे फिर बैक करके दूर के रास्ते से चल रहे हैं। यानि समय बचाना। किसी गली में जरा सा ट्रैक्टर आ गया। बैक करके दूसरा रास्ता। उसने हमें सरयू जी के किनारे ऑटो रोक कर कहा," ( बस वो घाट है, इसके किनारे टहलते चले जाओ, आरती स्थल पर पहुंच जाओगे। गुप्ता जी यहां पहले टूर ला चुके हैं इसलिए उन्होंने कहा," राम पैड़ी के पास पहुंचाओ। वह चल पड़ा। राम की पैड़ी से काफी पहले पुलिस ने वाहनों को रोक रखा था। आप पैदल जा सकते हैं क्योंकि बहुत भीड़ थी। बस सब चलते जा रहे हैं। साथी सब स्नान की तैयारी से आए थे। अब शबरी घाट और कई सारे घाट आए। हम वहां गए जहां पर लेजर शो होता है। वहां पहुंच कर साथियों ने सरयू जी में स्नान किया। शाम का समय है लेजर शो भी देखेंगे और और सरयू जी की आरती में भाग लेंगे। जहां पर प्राकृतिक रूप में सरयू जी हैं। राम पैड़ी स्थान बहुत खूबसूरत है। सफाई बहुत उत्तम है। महिलाओं के चेंज करने के लिए केबिन बने हुए हैं जगह-जगह तिलक लगाने वाले घूम रहे हैं और एक बच्चों के लिए रिमोट से चलने वाली बड़ी गाड़ी है। आप अगर बच्चे लाते हैं, उनको उसमें बिठा दीजिए, बच्चा आसपास के नजारे देखेगा और आप साथ-साथ घूम सकते हैं। कोई प्रैम लाने का झंझट नहीं। शाम के समय खूब ठंडी थी ये सब नहाए। राम की पैड़ी के पास में ही भगवान राम के पुत्र द्वारा निर्मित नागेश्वर नाथ मंदिर है। दंत कथा है कि कुश सरयू जी में स्नान करते थे। एक दिन उनका बाजूबंद गिर गया। जो एक नाग कन्या ने जल से निकाल कर, उन्हें दिया। कुश ने नागनाथ को समर्पित यह मंदिर बनवाया। वर्तमान 1750 का बना हुआ है। शिवरात्रि को यहां विशाल मेला लगता है। अब आरती स्थल की ओर चल पड़े। यहां सरयू जी प्राकृतिक रूप में है। जगह-जगह पंडितों के स्थान हैं। आप नाव में सैर करने जा सकते हैं। हमारे सब साथी गए, मैं नहीं गई, मुझे डर लगता है। आरती के लिए भीड़ बढ़ती जा रही थी। जैसे मेरे साथी आए। हम भी आरती स्थल के पास सेटल हो गए। यहां दिल्ली से आए आचार्य अनमोल भी मिल गए। उन्होंने कहा," आरती खत्म होने पर भीड़ एकदम छूटेगा।" खत्म होने से थोड़ा पहले हम लोग यहां से निकल लेते हैं।
https://youtu.be/UKwuWlKmhzY?si=Lc6preQj40zIWUxH
अब हम फिर राम की पैड़ी में आ गए। यहां लेजर शो हो रहा था। बहुत ही खूबसूरत लग रहा था। कुछ देर देखा और पहचान के लोग मिलते जा रहे थे। बहुत बड़ा ग्रुप हो गया है। हम लोग हनुमानगढ़ी की ओर चल पड़े। रास्ते में प्रसाद पूजा की सामग्री, खाने पीने की दुकान आदि खूब थी। यहां से 4 ई रिक्शा से हनुमानगढ़ी के लिए चल दिए।
https://youtu.be/bNIJHpjshY4?si=8P6Sxv3oJM20u4AK
क्रमशः