सफेद टाइगर सफारी देखकर कृष्णा राज कपूर ऑडिटोरियम रीवा, जहां अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 17वां अखिल भारतीय अधिवेशन 2025 हो रहा था, पहुंची. ऑटो वाले दीपक कुशवाहा को भाड़ा चुकाया. अभी मुश्किल से मैं दो कदम भी नहीं चली थी, उसने आवाज लगाई. मैंने मुड़कर देखा, उसके हाथ में मेरा सिप्पर कॉफ़ी मग और स्टील की पानी की बोतल थी. दोनों चीजें लेकर धन्यवाद दिया. मेरी कोशिश होती है कि मैं डिस्पोजेबल कम ही इस्तेमाल करूं. इसलिए मग बोतल मेरे पास रहती है. समय कम था सत्र में भी समय से पहुंचना था इसलिए मैंने मग में चाय ली और पानी लिया आने जाने का ऑटो करके मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी के लिए चली गई. दीपक को ही मग, बोतल पकड़ा कर अंदर चली गई. लौटने पर मुझे याद ही नहीं था पर उसने मुझे याद करके दिया! इसी तरह पहले दिन नितिन यादव ऑटो वाले ने भी, हम तीनों को रीवा में घुमाया कोई फालतू पैसा नहीं लिया. हमने उनका फोन नंबर भी लिया था ताकि आगे जाना हो तो उन्हें बुलायें. सफारी जाने से पहले भी उनको फोन किया उन्होंने फोन नहीं उठाया, याद आया कि उन्होंने कुछ साहित्यकारों को चित्रकूट ले जाना था. दीपक कुशवाहा भी ऐसे ही मिले. किसी से कोई पहचान नहीं. मेरा नोएडा में एक्सीडेंट हुआ तब भी कोई भला ऑटो वाला मुझे अस्पताल में छोड़ आया. दीपक भी तो कोई सवारी लेकर, मेरी बोतल और मग के साथ लौट सकता था पर उसने हमारा इंतजार किया. यात्राएं करती हूं अच्छे लोग ही मुझे मिले हैं.
और मुझे वह ऑटो वाला याद आता है. मैं छोटी सी गीता को उसकी पहली रेल यात्रा करवाती हुई नोएडा आई. निजामुद्दीन स्टेशन पर ऑटो वाले हमेशा की तरह घेरा डाल लेते हैं और ऊंट पटांग पैसे मांगते हैं. मैं थोड़ा रुक जाती हूं तो फिर कोई ठीक सा दाम वाला ऑटो मिल जाता था और चल देती हूँ. इस बार मेरे साथ गीता थी. अपना सामान मेरे पास न के बराबर होता है क्योंकि मुंबई में भी मेरे कपड़े रखे रहते थे. नोएडा तो मेरा घर ही है. छोटा सा मेरा पसंदीदा ट्रॉली बैग जिसमें गीता के कपड़े और पॉटी सीट थी. एक ऑटो वाले से बात बनी, वह हमें लेकर स्टेशन के पीछे की तरफ एक ऑटो खड़ा था उसने बैग लेकर सीट के पीछे रख दिया बोला,"बच्चे के साथ आराम से बैठो." घर पर गीता के इंतजार में सब गेट पर ही खड़े थे. गीता को सब अंदर ले गए. ऑटो वाले ने ऑटो स्टार्ट ही रखा. मैंने पैसे दिए उतरी, ऑटो ये जा वो जा. एकदम मुझे याद आया कि समान तो उसमें ही रह गया. फटाफट गाड़ी लेकर पीछा किया. मेन गेट के सामने तीन रास्ते जाते हैं, पता नहीं वह किधर निकल गया. 8 नवंबर रात 8:00 बजे गाड़ी में ही नोटबंदी की खबर सुनी थी. बच्चे के साथ पैसे खर्च हो गए थे. मैं दूसरा ऑटो लेकर फिर स्टेशन पर गई, जहां वह ऑटो हमें खड़ा मिला था. सामने दुकानदार से पूछा तो उसने कहा कि यहां दो तीन ही लोगों का ऑटो खड़ा रहता है. वह सवारी लाते हैं और यहां से बिठाकर ले जाते हैं. क्या पता उसे आगे सवारी मिल गई हो? और वह निकल गया हो. आप किस में बैठकर गई हैं हमें नहीं पता जो भी आएगा उस सामान का पूछेंगे, तो हम सामान लेकर रख लेंगे. मैं कब तक बैठी रहती. गीता को घर छोड़ कर आई थी और वह पहली बार उत्कर्षनी राजीव जी के बिना आई थी. मेरे साथ हिली हुई थी. घर लौटी. अब जो पैसे थे, वह चल नहीं रहे थे. मुंबई के मुकाबले यहां ठंडा मौसम, गीता के पास कपड़े भी नहीं. सबसे मुसीबत पॉटी सीट, पॉटी सीट के बिना गीता पॉटी न करें.अंकुर श्वेता के ट्रैवल बैग में पुम्मू के लिए रखी थी, वह दे गए. और उसी के ही कपड़े आए. अगले दिन गीता को लेकर फिर स्टेशन गई. उनकी यूनियन का लीडर भी आ गया. दुकानदार ने जो नाम बताया था लीडर उस नाम के उन सब को बुलाकर लाया पर वही ऑटो वाला नहीं था. मैं कोई बाहर की सवारी नहीं थी. उसे मेरा घर पता था, ईमानदारी होती तो देकर जाता न.
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