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Thursday, 5 May 2022

खूबसूरत रास्ते वाला मनोकामना देवी मंदिर नेपाल यात्रा भाग 23 नीलम भागी Beautifully verdant way to manokamna Devi temple Nepal Tour Part 23 Neelam Bhagi.







केबल कार से हम मंदिर प्रांगण में पहुंचे। विडिओ देखें| https://youtu.be/3PHMdH7dLns

जो पैदल जाते हैं वे 5 किमी की यात्रा 3 घण्टे में करके पहुंचते हैं।




यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य देखा जा सकता है। यहां श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ होती है। नवरात्र, दशहरे और नागपंचमी को सबसे अधिक होती है। 5 से 6 घण्टे लाइन में लगना पड़ता है। केवल कार से रास्ता देखने में बहुत मन मोहक है। केबल स्टेशन से बाहर आते ही सामने ही एक बाड़ा नज़र आया, जहां बकरे घूम रहे थे। उसके बाहर दो बकरे खड़े थे, उनके गले में पिंक स्लिप लटकी हुई थी। दिमाग में प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि ये किस लिए? थोड़ा आगे जाते ही वहां बकरों और मुर्गों की तस्वीर वाली दुकान थी। पता चला कि यहां प्रत्येक अष्टमी के दिन बली चढ़ाने की परंपरा है। 



मंजूषा कौशिक और चंद्रा कौशिक मेरे साथ थी। हमारा तो बलि सुन कर मन अजीब हो गया पर उनके देश की पूजा पद्धति है। ऊपर ऐसा लगता है जैसे शहर हो। अब सीढ़ियों का रास्ता है। जिसके दोनो ओर पूजा की सामग्री, खाने पीने और वैज़ नानवैज खाने की दुकाने हैं।

पैगोड़ा शैली में बना मंदिर जिसके खुलने का समय सुबह 8 बजे से शाम 6.30 बजे है। यह दो मंजिला है। मंदिर में दांए बाएं दोनो ओर से लाइनें आ रहीं थीं। मंदिर के पीछे एक मंडप था उसमें बकरे, कबूतरो और मुर्गों की बली दी जाती है।   

   






नेपाली किवदंती है कि इसका निर्माण गोरखा के दो राजाओं, राम शाह और पृथ्वीपति शाह के शासनकाल के दौरान हुआ था। जनविश्वास है कि राजा रामशाह की रानी स्वयं मनोकामना भगवती, दुर्गा, महालक्ष्मी का अवतार थीं। उनके अंदर कई आलौकिक शक्तियां थीं। जिसे केवल लखन थापा ही जानते थे। एक दिन राजा ने अपनी पत्नी को मनकामना के रुप में देखा, जो शेर की सवारी पर थी, जब राजा ने अपनी पत्नी को मनकामना के बारे में बताया तो उसकी रहस्यममय तरीके से मृत्यु हो गई। रानी अपने मृत पति की चिता पर सति हो गई। अपनी मृत्यु से पहले उसने थापा से कहा कि वह फिर से आयेगी। 6 महीने बाद, खेत में काम कर रहे एक किसान ने एक पत्थर तोड़ दिया, जिसमें से खून और दूध की धारा शुरु हो गई। थापा यह सुनने के बाद वहां गए और तांत्रिक अनुष्ठान किया जिससे वह धारा रुक गई। बाद में उसी स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया। मनकामना को राजा रामशाह की पत्नी माना जाता है, वह अपने बेटे डंबरशाह के शासनकाल में फिर से प्रकट हुई। यह मंदिर देवी भगवती का पवित्र स्थल हैं। जो गरुण के रक्षक के रुप में लक्ष्मी का अवतार है। विश्वास है कि भगवती अपने भक्तों की इच्छा पूरी करती है इसलिए मनकामना देवी कहलाती है। दर्शनों के बाद मैं रास्ते में बैठ गई। जो बकरा लेकर आता था उसके साथ कई लोग होते, उनकी खुशी देखने लायक होती है। देश विदेश से दर्शनार्थी आ रहे थे। मैं अब लौटने के लिए केबल कार की लाइन में लग जाती हूं। नीचे आकर थोड़ा आगे जाकर बस के इंतजार में बैठ जाती हूं। जिसके पीछे झील है और बहुत प्यारा पिकनिक स्पॉट है। इस ताज़गी भरी हवा में बैठना भी एक सुखद अनुभूति है। धीरे धीरे और साथी भी आने लगे और उनका पहला प्रश्न होता कि बस कहां खड़ी है? मेरा जवाब होता कि बैठो हमें कोई छोड़ कर नहीं जायेगा। इतने में मैम ने हरीश गुप्ता जी को व्यवस्था पर भाषण देना शुरु किया। उन्होंने उनके आगे अपने हाथ जोड़ कर माथे से लगा कर अपना पीछा छुडा लिया। हरीश जी ने खाने के मैन्यु को अपने हाथ में लिया है। अब एक इंसान कितनी जिम्मेवारी लेगा!!़ मैम चुपचाप बैठ र्गइं। गाड़ियां आईं हमें ले गईं। सबने खाना भी खा लिया। काठमांडु जाने के लिए बस में भी बैठ गए। पर 7 सवारियां नहीं आईं। उनका इंतजार करते रहे। अंधेरा होने पर सबकी राय से दो छोटी गाड़ियां और खाना वहां छोड़ा और बसें चलीं। मेरे जैसे लोगों को बहुत बुरा लग रहा था कि कुछ लोगों की वजह से अंधेरे में हम रास्ते की सुंदरता देखने से रह जायेंगे। क्योंकि नेपाल का तो चप्पा चप्पा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है। क्रमशः       


Wednesday, 4 May 2022

लाइन में लगना उनकी इगो के रिर्वस था!!नेपाल यात्रा भाग 22 नीलम भागी

 


सुबह नींद खुली तो मैम पैकिंग कर रहीं हैं। जैसे ही वह बाहर निकलीं, मैंने दरवाजा बंद करके अपनी तैयारी शुरु की। आज हमें पोखरा से चैक आउट करके आस्था का दूसरा सबसे बड़ा केन्द्र मनोकामना मंदिर को जाना है। नेपाल सबसे पहले पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। दूसरा मनोकामना देवी के मंदिर के नाम से जाना जाता है। लगेज़ लेकर बाहर आई और बस में रखवाया तो उल्टी पल्टी के पति दौड़े हुए मेरे पास आए और पूछा,’’आप छोटी गाड़ी में नहीं जायेंगी।’’ मेरे न करते ही वे खुशी से छोटी गाड़ी की ओर चले गए। मैं नाश्ते के लिए गई तो 5 लोग ही रह गए थे। हमारे ग्रुप की महिलाएं बहुत सहयोग करती हैं। चंद्रा कौशिक, मंजूषा कौशिक सैंडविच बना रहीं थी। कपिल जी सर्विस कर रहे थे।





मैन्यु तो हरीश गुप्ता जी ही तय करते थे। मैं नाश्ता करके आई और बाहर बस के आगे खड़ी होकर आस पास के नजारों का आनन्द उठाने लगी। देखा इडेन होटल और छोटी गाड़ी के आस पास फाइव स्टार और उनके ग्रुप का फोटो शूट चल रहा था। जिसके पैर में चोट थी वो भी डण्डी के सहारे अपने पति की मदद से बस में ही बैठ गई। शायद मेरी तरह वो भी स्टाइलिश, बोरियत भरा बातचीत का लहज़ा नहीं झेल पा रही थी। बस में कभी कभी चढ़ने उतरने की ही तो तकलीफ़ थी। मैं तो जब फाइव स्टार गुप्ता जी से लड़ रही थी तब उसकी कर्कश आवाज़ सुन चुकी थी। मुझे तो इसलिए उनकी बनावटी आवाज़ से कोफ्त हो रही थी और छोटी गाड़ी में रह रह कर देश भर के टी.वी. डिबेट की एंकर याद आ रहीं थीं जो सटीक बोलती हैं पर उनके बोलने में कभी बनावटीपन नहीं होता है। चोट वाली महिला को ये आपस में उसे महारानी कहतीं थीं और बोलतीं कि सबसे बढ़िया सीट पर बैठी हैं। अब फाइव स्टार आगे बैठ गई। गुप्ता जी मेरे से आकर पूछने लगे,’’ आप छोटी गाड़ी में क्यों नहीं बैठीं!! जवाब में मैंने हाथ जोड़ दिए। गाड़ियां चलीं। हम खूबसूरत पोखरा से जिला गोरखा की ओर चल दिए, जहां मनोकामना शक्तिपीठ है।




खूबसूरत रास्ता और आपस में बतियाते सहयात्री एक दूसरे से अपने अनुभव शेयर कर रहें हैं। रास्ता बहुत ही अच्छा कट रहा था। कोई भी मामूली घरेलू टॉपिक होता, उस पर बातचीत चलती। मसलन सूती खेस जिसे सर्दी और गर्मी के बीच के मौसम में पहले ओढ़तीं थीं। अब बहू बेटियों को उसका लुक नहीं अच्छा लगता। बाइयों को दे दिए। अब ए.सी. में पतले सुन्दर प्रिंट के दोहर ओढ़ने पड़ते हैं न जाने किस मैटिरियल के होते हैं। खेस जैसा जरा स्वाद नहीं आता। कहते हैं न पुरानी बातों को कहने और सुनने का भी नशा होता है, जिसे हम उम्र सहयात्री खूब कर रहे थे। और हम मनोकामना मंदिर प्रवेश द्वार पर पहुंचे। जो पोखरी थोक बाज़ार से 12 किमी. दक्षिण, तनहू के आबूखैरेनी से 5 किमी. पूर्व और चितवन के मुग्लिन से 26 किमी. उत्तर में  समुद्र सतह सें 1306 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर के परिसर से दक्षिण की ओर महाभारत झील और उत्तरी भाग में अन्नपूर्णा हिमालय और मनास्लु हिमालय की चोटियां देखी जा सकती हैं। 

    मंदिर के प्रवेश द्वार से प्रवेश करके हम मन की कामना पूरी करने वाली देवी के दर्शनों के लिए केबल कार की लाइन में लगते हैं।



बहुत लंबी लाइन है पर पूरी तरह अनुशाषित आई.डी., वैक्सीनेशन सर्टीफिकेट का होना और मास्क लगाना जरुरी है। मन कामना केबल कार ने लोगों के मनोकामना मंदिर की यात्रा करने के तरीके को बदल दिया है। जिससे गोरखा की एक पहाड़ी चोटी पर स्थित हिन्दू महत्वपूर्ण तीर्थ की यात्रा कर सकते हैं। हमें टिकट दी गई। फाइव स्टार की गाड़ी बाद में आई पर वे आकर आगे जाकर लाइन के बिना पहले जाने की कोशिश करने लगीं। वहां से भगा दिया तो वे आकर मेरे आगे लग गईं। मेरे पीछे वालों को उनकी ये हरकत बुरी लगी। मैंने एक ही बार उन्हें कहा,’’लोग तीर्थों पर दान करते हैं आप सोच लो, थोड़ा अपना समय इन र्स्माट लेडीज़ को दान कर दिया है। हमें लौटना तो सबको एक साथ ही है। जाने दो।’’ वे भली महिलाएं चुप हो गईं और श्रद्धा  से लाइन में लगी रहीं। यहां 34 केबल कार हैं। जिसमें 31 यात्रियों के लिए है और 3 कार्गो हैं। 2.8 किमी. की दूरी ये 10 मिनट में तय करती है। एक बार में 6 यात्रियों को बिठाती है। क्रमशः