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Wednesday 4 May 2022

लाइन में लगना उनकी इगो के रिर्वस था!!नेपाल यात्रा भाग 22 नीलम भागी

 


सुबह नींद खुली तो मैम पैकिंग कर रहीं हैं। जैसे ही वह बाहर निकलीं, मैंने दरवाजा बंद करके अपनी तैयारी शुरु की। आज हमें पोखरा से चैक आउट करके आस्था का दूसरा सबसे बड़ा केन्द्र मनोकामना मंदिर को जाना है। नेपाल सबसे पहले पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। दूसरा मनोकामना देवी के मंदिर के नाम से जाना जाता है। लगेज़ लेकर बाहर आई और बस में रखवाया तो उल्टी पल्टी के पति दौड़े हुए मेरे पास आए और पूछा,’’आप छोटी गाड़ी में नहीं जायेंगी।’’ मेरे न करते ही वे खुशी से छोटी गाड़ी की ओर चले गए। मैं नाश्ते के लिए गई तो 5 लोग ही रह गए थे। हमारे ग्रुप की महिलाएं बहुत सहयोग करती हैं। चंद्रा कौशिक, मंजूषा कौशिक सैंडविच बना रहीं थी। कपिल जी सर्विस कर रहे थे।





मैन्यु तो हरीश गुप्ता जी ही तय करते थे। मैं नाश्ता करके आई और बाहर बस के आगे खड़ी होकर आस पास के नजारों का आनन्द उठाने लगी। देखा इडेन होटल और छोटी गाड़ी के आस पास फाइव स्टार और उनके ग्रुप का फोटो शूट चल रहा था। जिसके पैर में चोट थी वो भी डण्डी के सहारे अपने पति की मदद से बस में ही बैठ गई। शायद मेरी तरह वो भी स्टाइलिश, बोरियत भरा बातचीत का लहज़ा नहीं झेल पा रही थी। बस में कभी कभी चढ़ने उतरने की ही तो तकलीफ़ थी। मैं तो जब फाइव स्टार गुप्ता जी से लड़ रही थी तब उसकी कर्कश आवाज़ सुन चुकी थी। मुझे तो इसलिए उनकी बनावटी आवाज़ से कोफ्त हो रही थी और छोटी गाड़ी में रह रह कर देश भर के टी.वी. डिबेट की एंकर याद आ रहीं थीं जो सटीक बोलती हैं पर उनके बोलने में कभी बनावटीपन नहीं होता है। चोट वाली महिला को ये आपस में उसे महारानी कहतीं थीं और बोलतीं कि सबसे बढ़िया सीट पर बैठी हैं। अब फाइव स्टार आगे बैठ गई। गुप्ता जी मेरे से आकर पूछने लगे,’’ आप छोटी गाड़ी में क्यों नहीं बैठीं!! जवाब में मैंने हाथ जोड़ दिए। गाड़ियां चलीं। हम खूबसूरत पोखरा से जिला गोरखा की ओर चल दिए, जहां मनोकामना शक्तिपीठ है।




खूबसूरत रास्ता और आपस में बतियाते सहयात्री एक दूसरे से अपने अनुभव शेयर कर रहें हैं। रास्ता बहुत ही अच्छा कट रहा था। कोई भी मामूली घरेलू टॉपिक होता, उस पर बातचीत चलती। मसलन सूती खेस जिसे सर्दी और गर्मी के बीच के मौसम में पहले ओढ़तीं थीं। अब बहू बेटियों को उसका लुक नहीं अच्छा लगता। बाइयों को दे दिए। अब ए.सी. में पतले सुन्दर प्रिंट के दोहर ओढ़ने पड़ते हैं न जाने किस मैटिरियल के होते हैं। खेस जैसा जरा स्वाद नहीं आता। कहते हैं न पुरानी बातों को कहने और सुनने का भी नशा होता है, जिसे हम उम्र सहयात्री खूब कर रहे थे। और हम मनोकामना मंदिर प्रवेश द्वार पर पहुंचे। जो पोखरी थोक बाज़ार से 12 किमी. दक्षिण, तनहू के आबूखैरेनी से 5 किमी. पूर्व और चितवन के मुग्लिन से 26 किमी. उत्तर में  समुद्र सतह सें 1306 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर के परिसर से दक्षिण की ओर महाभारत झील और उत्तरी भाग में अन्नपूर्णा हिमालय और मनास्लु हिमालय की चोटियां देखी जा सकती हैं। 

    मंदिर के प्रवेश द्वार से प्रवेश करके हम मन की कामना पूरी करने वाली देवी के दर्शनों के लिए केबल कार की लाइन में लगते हैं।



बहुत लंबी लाइन है पर पूरी तरह अनुशाषित आई.डी., वैक्सीनेशन सर्टीफिकेट का होना और मास्क लगाना जरुरी है। मन कामना केबल कार ने लोगों के मनोकामना मंदिर की यात्रा करने के तरीके को बदल दिया है। जिससे गोरखा की एक पहाड़ी चोटी पर स्थित हिन्दू महत्वपूर्ण तीर्थ की यात्रा कर सकते हैं। हमें टिकट दी गई। फाइव स्टार की गाड़ी बाद में आई पर वे आकर आगे जाकर लाइन के बिना पहले जाने की कोशिश करने लगीं। वहां से भगा दिया तो वे आकर मेरे आगे लग गईं। मेरे पीछे वालों को उनकी ये हरकत बुरी लगी। मैंने एक ही बार उन्हें कहा,’’लोग तीर्थों पर दान करते हैं आप सोच लो, थोड़ा अपना समय इन र्स्माट लेडीज़ को दान कर दिया है। हमें लौटना तो सबको एक साथ ही है। जाने दो।’’ वे भली महिलाएं चुप हो गईं और श्रद्धा  से लाइन में लगी रहीं। यहां 34 केबल कार हैं। जिसमें 31 यात्रियों के लिए है और 3 कार्गो हैं। 2.8 किमी. की दूरी ये 10 मिनट में तय करती है। एक बार में 6 यात्रियों को बिठाती है। क्रमशः 


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