केबल कार से हम मंदिर प्रांगण में पहुंचे। विडिओ देखें| https://youtu.be/3PHMdH7dLns
जो पैदल जाते हैं वे 5 किमी की यात्रा 3 घण्टे में करके पहुंचते हैं।
यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य देखा जा सकता है। यहां श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ होती है। नवरात्र, दशहरे और नागपंचमी को सबसे अधिक होती है। 5 से 6 घण्टे लाइन में लगना पड़ता है। केवल कार से रास्ता देखने में बहुत मन मोहक है। केबल स्टेशन से बाहर आते ही सामने ही एक बाड़ा नज़र आया, जहां बकरे घूम रहे थे। उसके बाहर दो बकरे खड़े थे, उनके गले में पिंक स्लिप लटकी हुई थी। दिमाग में प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि ये किस लिए? थोड़ा आगे जाते ही वहां बकरों और मुर्गों की तस्वीर वाली दुकान थी। पता चला कि यहां प्रत्येक अष्टमी के दिन बली चढ़ाने की परंपरा है।
मंजूषा कौशिक और चंद्रा कौशिक मेरे साथ थी। हमारा तो बलि सुन कर मन अजीब हो गया पर उनके देश की पूजा पद्धति है। ऊपर ऐसा लगता है जैसे शहर हो। अब सीढ़ियों का रास्ता है। जिसके दोनो ओर पूजा की सामग्री, खाने पीने और वैज़ नानवैज खाने की दुकाने हैं।
पैगोड़ा शैली में बना मंदिर जिसके खुलने का समय सुबह 8 बजे से शाम 6.30 बजे है। यह दो मंजिला है। मंदिर में दांए बाएं दोनो ओर से लाइनें आ रहीं थीं। मंदिर के पीछे एक मंडप था उसमें बकरे, कबूतरो और मुर्गों की बली दी जाती है।
नेपाली किवदंती है कि इसका निर्माण गोरखा के दो राजाओं, राम शाह और पृथ्वीपति शाह के शासनकाल के दौरान हुआ था। जनविश्वास है कि राजा रामशाह की रानी स्वयं मनोकामना भगवती, दुर्गा, महालक्ष्मी का अवतार थीं। उनके अंदर कई आलौकिक शक्तियां थीं। जिसे केवल लखन थापा ही जानते थे। एक दिन राजा ने अपनी पत्नी को मनकामना के रुप में देखा, जो शेर की सवारी पर थी, जब राजा ने अपनी पत्नी को मनकामना के बारे में बताया तो उसकी रहस्यममय तरीके से मृत्यु हो गई। रानी अपने मृत पति की चिता पर सति हो गई। अपनी मृत्यु से पहले उसने थापा से कहा कि वह फिर से आयेगी। 6 महीने बाद, खेत में काम कर रहे एक किसान ने एक पत्थर तोड़ दिया, जिसमें से खून और दूध की धारा शुरु हो गई। थापा यह सुनने के बाद वहां गए और तांत्रिक अनुष्ठान किया जिससे वह धारा रुक गई। बाद में उसी स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया। मनकामना को राजा रामशाह की पत्नी माना जाता है, वह अपने बेटे डंबरशाह के शासनकाल में फिर से प्रकट हुई। यह मंदिर देवी भगवती का पवित्र स्थल हैं। जो गरुण के रक्षक के रुप में लक्ष्मी का अवतार है। विश्वास है कि भगवती अपने भक्तों की इच्छा पूरी करती है इसलिए मनकामना देवी कहलाती है। दर्शनों के बाद मैं रास्ते में बैठ गई। जो बकरा लेकर आता था उसके साथ कई लोग होते, उनकी खुशी देखने लायक होती है। देश विदेश से दर्शनार्थी आ रहे थे। मैं अब लौटने के लिए केबल कार की लाइन में लग जाती हूं। नीचे आकर थोड़ा आगे जाकर बस के इंतजार में बैठ जाती हूं। जिसके पीछे झील है और बहुत प्यारा पिकनिक स्पॉट है। इस ताज़गी भरी हवा में बैठना भी एक सुखद अनुभूति है। धीरे धीरे और साथी भी आने लगे और उनका पहला प्रश्न होता कि बस कहां खड़ी है? मेरा जवाब होता कि बैठो हमें कोई छोड़ कर नहीं जायेगा। इतने में मैम ने हरीश गुप्ता जी को व्यवस्था पर भाषण देना शुरु किया। उन्होंने उनके आगे अपने हाथ जोड़ कर माथे से लगा कर अपना पीछा छुडा लिया। हरीश जी ने खाने के मैन्यु को अपने हाथ में लिया है। अब एक इंसान कितनी जिम्मेवारी लेगा!!़ मैम चुपचाप बैठ र्गइं। गाड़ियां आईं हमें ले गईं। सबने खाना भी खा लिया। काठमांडु जाने के लिए बस में भी बैठ गए। पर 7 सवारियां नहीं आईं। उनका इंतजार करते रहे। अंधेरा होने पर सबकी राय से दो छोटी गाड़ियां और खाना वहां छोड़ा और बसें चलीं। मेरे जैसे लोगों को बहुत बुरा लग रहा था कि कुछ लोगों की वजह से अंधेरे में हम रास्ते की सुंदरता देखने से रह जायेंगे। क्योंकि नेपाल का तो चप्पा चप्पा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है। क्रमशः
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