
ईस्ट कॉस्ट रोड की सैर करके, चाय पीने से भी मेरी थकान नहीं उतर रही थी। आंखें बंद करती तो एक सी फिटनैस की वर्कआउट करती महिलाएं आंखों के आगे आतीं। काफी देर रेस्ट करते हो गया तो अर्पणा मेरे पास ंएओ को लेकर आई ओर बोली,’’मासी आप बीच पर बहुत खुश थी न इसलिए कल आपको चैंगी बीच लेकर जायेंगे। वीकएंड पर हम चैंगी बीच पिकनिक मनाने गए। रास्ता ही इतना इतना खूबसूरत लग रहा था तो मंजिल की तो कल्पना ही बहुत प्यारी थी। एक जगह खूब साइकिलें खड़ी थीं। पार्किंग में जगह नहीं थी। सड़क के दोनों ओर लाइन से गाड़ियाँ खड़ीं थी। उसी लाइन में हमने भी गाड़ी पार्क कर दी, हमारा इंतजार बिजॉय फैमली कर रही थी, हम उनके पास पहुंचे।
यहां बिल्कुल अलग अनुभूति हो रही थी। चैंगी बीच र्पाक सबसे पुराना है। यहां खूब चहल पहल थी। हजारों यहां बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। वीकएंड होने से पिकनिक मनाते हर तरह के लोग दिख रहे थे। कोई स्केटिंग कर रहा है तो कोई जोगिंग कर रहा है। जगह जगह बारबीक्यू का प्रयोग हो रहा था। जहां से रेत शुरु होती है। वहां तक घास ओर पेड़ थें एक पेड़ की जड़ बाहर को इस तरह फैली थी कि उस पर बैठ कर मैंने रेत में पैर फैला लिए। यहां बीच पर किसी को नहाते या तैरते नहीं देखा। मौसम तो उन दिनो था ही अच्छा। वहां देश दुनिया के लोगो को देखना ही बहुत अच्छा लग रहा था। टॉयलेट एकदम साफ। साथ ही चैंगी विलेज, कॉफी शॉप, स्वाद खानों के रेस्टोरैंट थे। इनके पकवानों में चाइनीज, मलय और भारतीय तीनों संस्कृतियों का प्रभाव देखा जा सकता है। कुछ पकवानों पर एशियाई और पश्चिम का असर है। यहाँ हर बजट पर फिट बैठने का खाना है। बहुसंस्कृतियों के कारण यहाँ खाने की बहुत वैरायटी है। चायनीज और मलय स्टालों में पकवानों का बनाया जाना भी आप देख सकते हैं। हमने जो ऑडर किया उसमें एक डिश ऐसी थी जिसमें स्क्वायर से पीस थें अमन ने मुझसे पूछा ये क्या है बताओ,? मुहं में डालते ही वह घुल जाता था। नहीं बता पाई। अरबी, कचालू, जीमींकंद सबके नाम ले दिएपर वो कुछ और था। जुलाई में सिंगापुर फूड फैस्टिवल का आयोजन वहाँ की सरकार करती है। खाने का स्वाद और प्रैजैंटेशन सराहनीय है। यहाँ सिंगापुर पोर्ट का एक अनुकूल रूट पर होना भी यहाँ खाने की वैराइटी में मददगार हो रहा है। शाम को जब गाड़ी पर लौटे, उस पर चालान की स्लिप लगी थी। वहाँ जितनी गाड़ियाँ खड़ीं थीं, सब पर चालान स्लिप थी। पार्किंग में जगह नहीं थी और जहाँ गाड़ी पार्क की, वो पार्किंग की जगह नहीं थी। वहाँ कोई जाम भी नहीं लगा था। एक दूसरे की देखा देखी सब ने फुटपाथ पर गाड़ियाँ लगा दी थीं। हमने बिजॉय को फोन करके पूछा कि तुम्हारी गाड़ी का भी चालान हुआ है?’’ वो बोला,’’हमारी फैमली तो साइकिलों पर आई है।’’यहाँ लोग साइकिल चलाने का कोई मौका नहीं छोड़ते, उसके साथ ही मुझे पता चला कि यहाँ कि यातायात व्यवस्था बहुत उत्तम है। क्रमशः







रात में जगमगाते सिंगापुर की सड़क पर हम घर की ओर जा रहे थे। घर पहुंचते ही र्काड से दरवाजा खोला। शिखा मुझे कहीं नज़र नहीं आई। खाने के लिए उसे मना करके गए थे। अमन रेया के लिए दूध बनाने लग गए। अपर्णा उसके कपड़े बदलने लगी। हम रेया से खेलने लगे। साढ़े आठ बजते ही अपर्णा रेया को लेकर कॉट पर लिटा आई। नौ बजे अमन भी अपने बैड रुम में चले गए। अर्पणा दिखी नही तो मैं भी अपने बैड रुम में आ गई। मुझे याद आया कि जब मैं इण्डिया से आ रही थी तो मुझे मेरी बड़ी बहन डॉ0 शोभा(अर्पणा की मां) ने कहा था, नीलम अपना लैपटॉप लेकर जाना, तू घूमने जा रही है। ढाई घण्टे का समय जो यहां से आगे है न, उसमें , लैपटॉप तेरे बहुत काम आएगा। मैं साथ में ले आई। मैं अभी बैड पर लेटी ही थी। अर्पणा दो कप चाय लेकर आ गई। चाय देखते ही मैं बोली,’’बेटी रात को चाय से मेरी नींद भाग जायेगी।’’अर्पणा बोली,’’आपके अभी साढ़े आठ बजे हैं। मैं आपसे बातें करने आई हूं। चाय पीकर नींद भगाने आई हूं। उसकी हमेशा से आदत है कहीं से भी घर आती थी तो घर में सब से मिल कर, हमारे यहां बतियाने आ जाती। मैंने पूछा,’’शिखा सुबह टाइम से आ जाती है न।’’अर्पणा ने जवाब दिया कि वो यहीं रहती है। उसकी सुबह सात बजे से रात आठ बजे तक ड्यूटी रहती है। हम लोग सात बजे तक घर आ जाते हैं। वो हमें डिनर सर्व करके, किचन साफ करके, आठ बजे अपने रुम में चली जाती है। , मासी हम दोनों को ऑफिस में लंच सर्व होता है। शिखा इण्डिया से नार्थ ईस्ट की लड़की है। जो कुछ भी खाने की इच्छा हो इससे बनवा लेनां। दो दिन हमारा ऑफ है। मैं पैदल की कुछ जगह आपको ले जाउंगी। आप वहां वॉक पर निकल जाया करना। रोज डिनर के बाद हम दोनेा वॉक पर जाया करेंगे। मैंने आप को इन दिनों इसलिए बुलाया है क्योंकि चाइनीज़ न्यू इयर आने वाला है। आपके यहां रुकने तक मुझे ऑफिस से कहीं भी ट्रैवल पर नहीं जाना है। सुन कर मैं खुश हो गई। ये हमेशा मुझे सिंगापुर बुलाती थी, मैं ये सोच कर नहीं आती थी कि ये तो आज इस देश, कल उस देश, विदेश में मेरा दिल कैसे इसके बिना लगेगा? अब तो यहां आने का मजा़ ही आ गया। वह बोली,’’मासी, यहां क्राइम रेट ज़ीरो है। आप बेफिक्र घूमना। घूमोंगी तो आपको पता चलेगा कि बिना डर कहीं भी जा सकते हो। यहां के नियम तोड़ने पर बहुत ज्यादा जुर्माना है। इंगलिश यहां सभी जानते है। समझ लो प्रधान भाषा, आपका काम चल जायेगा। मलय, चीनी और तमिल भी बोली जाती है। क्योंकि यहां चीनी , मलय और भारतीय रहते हैं। मैंने कहा,’’बेटी, अब तूं जाकर सो जा, ऑफिस भी गई है, घूमने भी गए हैं। वह गुड नाइट करके चली गई। क्रमशः






बोर्डिंग के समय भी सब मजे़ से सीटों पर बैठे थे।
एक व्यक्ति एक सीट दिखाता, मसलन 47 से 51 उसी सीट नम्बर की सवारियां उठती और चल पड़ती। इससे भीड़ भी नहीं लग रही थी और बाकि सवारियाँ सॉरी और एक्सक्यूज़ मी कहने से बच गई। प्लेन में कैबिन क्रू आपकी मदद के लिए तत्पर। मैं अपनी सीट पर खड़ी होकर हैंडबैग को उठा ही रही थी। इतनी देर में तो दुबली सी दिखने वाली एयरहोस्टेज़ ने उसे उठा कर रख भी दिया और मेरा पर्स लेकर अगली सीट के नीचे मेरे पैरों के पास एडजस्ट भी कर दिया। मेरी साथ की सीट पर बैठी महिला ने आगे न्यूजीलैंड जाना था, उसने एयरहोस्टेज़ को एक दूसरा बोर्डिंग पास दिखा कर कई प्रश्न पूछे। उसने ध्यान से सुने और इंतजार करने को बोलकर चली गई और जब आई तो सभी प्रश्नों का जवाब लेकर आई और उस महिला को समझाया। समय पर विमान ने उड़ान भरी। अन्दर एयरहोस्टेज़ का फुर्तीलापन देखने लायक था। उनकी सर्विस में कोई कमी नहीं थी। यहाँ मुझे एक एयरलाइन्स का वाक्या याद आता है। एक लड़के के कई बार वाइन माँगने पर, एयरहोस्टेज़ ने वाइन के बदले नसीहत देते हुए कहा,’’शर्म नहीं आती, दिन के साढ़े तीन बजे कोई इतनी शराब पीता है।’’ यहाँ कोई जितनी बार भी माँगे शराब मांगने पर शराब ही मिल रही थी न कि उपदेश। विमान के लैंड करने पर सब कुछ बदल गया था जैसे देश ,समय, मौसम, तापमान बिना कुछ किये थकी हुई सवारियाँ आदि। अगर कुछ नहीं बदला था तो वो था एयरहोस्टेज़ का चेहरा, उनकी चेहरे की मुस्कान और ताज़गी वैसी ही रही जैसी उड़ान भरने के समय थी। खैर.....





कुछ ही दूरी पर मैट्रो स्टेशन है। वैसे भी शेयरिंग ऑटो एक एक मिनट में वहां से गुजरते हैं।
यहां महत्वपूर्ण त्यौहार प्रतिष्ठा दिवस, र्कककीदकम, विनायक चतुर्थी, कन्नी आयिल्या पूजा, नवरात्रि उत्सव, मंडला पूजा बहुत हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं।
आधुनिक ऑडिटोरियम है। मंदिर में एक झलक दक्षिण के तीर्थ सबरीमाला की भी दिखती है। सबरीमाला उस शबरी के नाम पर है, जिसने भगवान राम को जूठे बेर खिलाए थे और राम ने उसे नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। मैं जब भी यहां आई हूँ
श्रद्धालुओं को बहुत अनुशासित देखा है। जूता चप्पल के स्थान पर सब बिना कहे वहीं उतारते हैं। भोजन प्रसाद के लिए सब शांति से लाइन में लगे होते हैं। दो हॉल में प्रसाद खिलाया जाता है। एक में पुरुष खिलाते हैं,ं एक में महिलाएं। जहां मरजी हो खाएं। कोई जूठा नहीं छोड़ता। खाने के बाद अपना केले का पत्ता मोड़ देते हैं। श्रद्धालुओं की श्रद्धा से वहां अलग सा भाव था। हमारा सौभाग्य है कि हमारे शहर में अयप्पा मंदिर है।




















