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Sunday, 31 May 2020

चैंगी बीच और खानपान संस्कृति सिंगापुर यात्रा भाग 9 Singapore yatra part 9 Changi Beach Neelam Bhagi नीलम भागी




ईस्ट कॉस्ट रोड की सैर करके, चाय पीने से भी मेरी थकान नहीं उतर रही थी। आंखें बंद करती तो एक सी फिटनैस की वर्कआउट करती महिलाएं आंखों के आगे आतीं। काफी देर रेस्ट करते हो गया तो अर्पणा मेरे पास ंएओ को लेकर आई ओर बोली,’’मासी आप बीच पर बहुत खुश थी न इसलिए कल आपको चैंगी बीच लेकर जायेंगे। वीकएंड पर हम चैंगी बीच पिकनिक मनाने गए। रास्ता ही इतना इतना खूबसूरत लग रहा था तो मंजिल की तो कल्पना ही बहुत प्यारी थी। एक जगह खूब साइकिलें खड़ी थीं। पार्किंग में जगह नहीं थी। सड़क के दोनों ओर लाइन से गाड़ियाँ खड़ीं थी। उसी लाइन में हमने भी गाड़ी पार्क कर दी, हमारा इंतजार बिजॉय फैमली कर रही थी, हम उनके पास पहुंचे। यहां बिल्कुल अलग अनुभूति हो रही थी। चैंगी बीच र्पाक सबसे पुराना है। यहां खूब चहल पहल थी। हजारों यहां बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। वीकएंड होने से पिकनिक मनाते हर तरह के लोग दिख रहे थे। कोई स्केटिंग कर रहा है तो कोई जोगिंग कर रहा है। जगह जगह बारबीक्यू का प्रयोग हो रहा था। जहां से रेत शुरु होती है। वहां तक घास ओर पेड़ थें एक पेड़ की जड़ बाहर को इस तरह फैली थी कि उस पर बैठ कर मैंने रेत में पैर फैला लिए। यहां बीच पर किसी को नहाते या तैरते नहीं देखा। मौसम तो उन दिनो था ही अच्छा। वहां देश दुनिया के लोगो को देखना ही बहुत अच्छा लग रहा था। टॉयलेट एकदम साफ। साथ ही चैंगी विलेज, कॉफी शॉप, स्वाद खानों के रेस्टोरैंट थे। इनके पकवानों में चाइनीज, मलय  और भारतीय तीनों संस्कृतियों का प्रभाव देखा जा सकता है। कुछ पकवानों पर एशियाई और पश्चिम का असर है। यहाँ हर बजट पर फिट बैठने का खाना है। बहुसंस्कृतियों के कारण यहाँ खाने की बहुत वैरायटी है। चायनीज और मलय स्टालों में पकवानों का बनाया जाना भी आप देख सकते हैं। हमने जो ऑडर किया उसमें एक डिश ऐसी थी जिसमें स्क्वायर से पीस थें अमन ने मुझसे पूछा ये क्या है बताओ,? मुहं में डालते ही वह घुल जाता था। नहीं बता पाई। अरबी, कचालू, जीमींकंद सबके नाम ले दिएपर वो कुछ और था। जुलाई में सिंगापुर फूड फैस्टिवल का आयोजन वहाँ की सरकार करती है। खाने का स्वाद और प्रैजैंटेशन सराहनीय है। यहाँ सिंगापुर पोर्ट का एक अनुकूल रूट पर होना भी यहाँ खाने की वैराइटी में मददगार हो रहा है। शाम को जब गाड़ी पर लौटे, उस पर चालान की स्लिप लगी थी। वहाँ जितनी गाड़ियाँ खड़ीं थीं, सब पर चालान स्लिप थी। पार्किंग में जगह नहीं थी और जहाँ गाड़ी पार्क की, वो पार्किंग की जगह नहीं थी। वहाँ कोई जाम भी नहीं लगा था। एक दूसरे की देखा देखी सब ने फुटपाथ पर गाड़ियाँ लगा दी थीं। हमने बिजॉय को फोन करके पूछा कि तुम्हारी गाड़ी का भी चालान हुआ है?’’ वो बोला,’’हमारी फैमली तो साइकिलों पर आई है।’’यहाँ लोग साइकिल चलाने का कोई मौका नहीं छोड़ते, उसके साथ ही मुझे पता चला कि यहाँ कि यातायात व्यवस्था बहुत उत्तम है। क्रमशः



Friday, 29 May 2020

ईस्ट कॉस्ट रोड सिंगापुर यात्रा Singapore Yatra भाग 8 East Coast Road Neelam Bhagi नीलम भागी


                          
लंच के बाद मैं गहरी नींद सो गई थी क्योंकि मेरा तो कोई नियम कायदा नहीं था। जब तक नींद आई सो ली। आज तो वैसे भी वॉक की थी। अर्पणा आई मुझे जगा कर बोली,’’मासी, चलो। रेया सो गई है। नो हील, मेरे जूते आपको आ जायेंगे, पहनो। हमने लिफ्ट को बुलाया, इतनी देर अर्पणा मुझे दिखाते हुए बोली,’’समुद्र में जो दूर हरी हरी जमीन दिख रही है वो मलेशिया है। इतने में लिफ्ट आ गई। साइड गेट से हम अण्डर पास गए। वहां कोई सीढ़ी नहीं थी। स्लोब था। पर जिसे देखो वो साइकिल से उतर कर, पैदल चल रहा था। साइकिल से उतरने का राज समझ आ गया। अण्डर पास में साइकिल पर चढ़ने का मतलब था, 1000 डॉलर र्जुमाना। बाहर आए चार लेन की सड़क थी। अण्डर पास के ऊपर से दो सड़कें ट्रैफिक के लिए, एक साइकिल ओर एक पैदल के लिए। समुद्र और पैदल के बीच में ईस्ट कॉस्ट पार्क। मैं और अर्पणा इस्ट कॉस्ट रोड पर पैदल पथ पर घूमने निकल पड़े। मुझे इससे बातें करना बहुत पसंद है। उसके पास मेरे हर प्रश्न का जवाब रहता है। दुनिया जहान की कुछ भी उससे बाते करो या पूछो वो बहुत अच्छे से समझाती हैं। आज तो मैं हैरान होकर अपने दाएं बाएं देख रही थी। सूरज अभी डूबा नहीं था। चारों सड़कें डिवाइडर कि बजाए ग्रीन बैल्ट से बंटी हुई थीं। पेड़ों की छाया सड़कों पर थी। प्रत्येक पाँच सौ मीटर और किमी. पर निशान थे। कोई भी पार्क की घास पर नहीं चल रहा था। बीच बीच में बैंच लगे हुए थे। उस पर बैठ कर सागर दर्शन करते रहो। पार्क में ही कहीं कहीं जगह छोड़ी गई है। जहां खुले में समुद्र किनारे लोग अपनी मैट ले जाकर एक्सरसाइज कर रहें हैं। कुछ दूरी पर ओपन जिम भी है। साइकिल रोड पर सबसे प्यारा सीन होता महिला या पुरुष एक्सरसाइज के लिए साइकिल चला रहे हैं। पीछे सीट लगी है, उसमें उनका बच्चा बैल्ट लगा कर सुरक्षित बैठा, आस पास के नज़ारे देखता घूम रहा है। जो आस पास से गुजरता है वह बच्चे को बाय करता है। बच्चे का घूमना भी हो जाता है। हम घर परिवार की बातें करते हुए ,दो किमी आ गए। गंदगी का कहीं नामो निशान नहीं, सागर किनारे, सिर्फ सीपियां घोंघे आदि दिखे। लोग डस्टबिन का प्रयोग कर रहे थे। किसी किसी बार्बी क्यू में आग जल रही थी, वीकएंड था। लड़के लड़कियां पार्टी कर रहे थे। अर्पणा ने मुझे समझाया कि मासी अण्डर पास का ध्यान रक्खो, कोई मोड़ तो है नहीं जिस रास्ते जाना उसी से वापिस आना और अंडर पास से घर। मासी और चलें!! मैं बोली,’’नहीं घर चलें।’’ टोटल चार किमी. चली पर एक भी मोटा मोटी नहीं दिखा। अब ये तो मेरी मनपसंद जगह बन गई थी। यहां मैं सोमवार से शुक्रवार दिन में दो बार आकर बैठती थी। मुझे ये देखना बहुत अच्छा लगता था कि माँ साइकिल चला रही है जिसके पीछे चेयरनुमा सीट पर बैल्ट से कसा सेफ बच्चा बैठा है। माँ की एक्सरसाइज़ और बच्चे का घूमना एक साथ चल रहा है। उम्र के अनुसार महिलाएँ फिट हैं, तकरीबन सभी शॉटस और टी शर्ट में होतीं। घर आते ही शिखा ने चाय दी और मैंने एलॉन कर दिया कि आज मैं ओर कहीं नहीं जाउंगी। क्रमशः   





Wednesday, 27 May 2020

पानी से आत्मीय सम्बंध!! सिंगापुर यात्रा भाग 7Singpore Yatra part 7 Neelam Bhagi नीलम भागी



हम दोनो घर जाते ही किचन में गए, देखा अर्पणा ने गिलास उठाया नल से भरा और पी लिया, मुझे भी पकड़ा दिया, मैंने भी डरते हुए पी लिया। जब से आई थी शिखा से पानी मांगती थी वो दे जाती थी, मैं पी लेती थी। वह बर्तन साफ कर रही थी। मैंने अर्पणा से हैरान होकर पूछा,’’तुम नल का पानी पीते हो!! उसने हंसते हुए कहा,’’जब से आई हो, आप भी तो यही पी रही हो, कोई परेशानी हुई, नहीं न। रेया भी यही पीती है। मासी यहां नागरिकों का पानी से आत्मीय सम्बंध है। यहां जो रहने आता है वो भी पानी से प्यार करता है। यानि बेफज़ूल पानी र्बबाद नहीं करता। मैंने शिखा के बर्तन साफ करने पर गौर किया उसने जब तक आखिरी बर्तन नहीं मंजा नल नहीं खोला। धोने के समय जितनी धार की जरुरत थी उतना पानी खोला जबकि वह भी भारत से गई है। अर्पणा बोली,’’मासी इण्डिया में मेरे घर, आपके घर और अमन के घर बाई पानी बहुत वेस्ट करतीं हैं। पानी र्बबाद तो गवार करते हैं। यहां एक नागरिक प्रतिदिन पानी की खपत में 2003 से कमी आ रही है। एक शहर राष्ट्र का जल प्रबंधन विश्व में उदाहरण है। जहां प्राकृतिक जल संसाधन नहीं हैं और जमीन भी नहीं है जल भंडारण के लिए। जब 1965 में यह मलेशिया से अलग हुआ तो जोहार नदी तो मलेशिया में है। समझौते के अनुसार, पानी मलेशिया से आता है। पर ये पूरी तरह से पानी के मामले में भी आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं। अलग होने से अब तक आबादी भी बड़ी है। यहां रहने पर मैं बहुत घूमी पर कहीं भी मैंने पानी बचाने के पोस्टर लगे नहीं देखे। चौबीस घण्टे नल में पानी आता है। वर्षा के बाद भी निकली हूं। कहीं जलभराव नहीं दिखा। ये अपने यहां से तीन तरीके से पानी प्राप्त करते हैं। 40 प्रतिशत तो यह गंदे पानी का पुनः शुद्धिकरण करते हैं। दूसरा समुद्री पानी का खार कम करके और तीसरा बरसात के पानी का अधिक से अधिक संग्रह करके, इसके लिए इन्होंने अपने जलाशयों को नालियों के विशाल जाल से जोड़ दिया है। और वर्षा जल का शोधन किया जाता है। पानी से आत्मीय संबंध रखने से ही तो नागरिक पानी के स्रोतों का आनंद उठा रहें हैं। कहीं से भी पानी पी सकते हैं। सफाई में पानी बहुत कम इस्तेमाल होता है। गेट से आप अपने फ्लैट तक पहुचोगे। जूतों का सोल एकदम साफ हो जायेगा। शू रैक घर से बाहर रहने से फर्श इतने साफ कि जरा से पानी से पूरे घर में पोछा लग जाता है। ड्रॉइंग रुम और किचन के बराबर में एक दरवाजा है उसमें गई तो वहां शिखा का कमरा, टॉयलेट और खाली जगह में वाशिंग मशीन उस पर ड्रायर रखा हुआ, छत पर  लाइन से रॉड लगी हुई और एक त्रिशूल जैसा डंडा रखा हुआ था। अगर कपड़े ड्रायर में नहीं सूखाने तो कपड़े मशीन से निकाल कर हैंगर में डाल कर त्रिशूल जैसे डंडे से रॉड पर लटका दो। लेकिन कोई भी बॉलकोनी में कपड़े नहीं फैलाता दिखा मुझे। रात आठ बजे शिखा अपने एरिया में जाकर उसकी मर्जी  कि वह बीच का दरवाजा बंद करे या न करे। अर्पणा बोली,’’मासी लंच के बाद आप रैस्ट कर लेना फिर हम चलेंगे। क्रमशः            । 


Tuesday, 26 May 2020

यहां व्यायाम करना आदत है सिंगापुर यात्रा भाग 6 Singapore Part 6 Neelam Bhagi नीलम भागी



अर्पणा रात डेढ़ बजे सोने चली गई। मेरे तो अभी 11 बजे थे। 12 से पहले मैं कभी सोई नहीं। मैं गई रेया को उसकी कॉट से उठा लाई और अपने साथ लिटा लिया। उसने नींद में मुझे देखा, एकदम उठ गई। मेरे गले में दोनो बाहें डाल कर, बहुत प्यारी मुस्कान देकर बोली,’’नो नो नो, कम कम कम, एओ एओ।’’ बस इतना ही वह बोलना जानती थी। मुझे खुश देखकर, खुशी में बार बार यही बोलती जा रही थी। इतने में धीरे से दरवाजा खुला, अर्पणा मुस्कुराते हुए आई और रेया को उठा लिया ओर बोली,’’मैं आपके पास से गई थीं। ये गहरी में नींद सो रही थी। मैं भी जाकर सो गई। हम इसे देखते रहते हैं। नींद में बेड से गिर ना जाए, कॉट से बच्चा गिरता नहीं है। अमन ने देखा तो रेया अपनी कॉट पर नहीं थी। उसने मुझे जगा कर कहा। मैं समझ गई कि मासी इसे बिगाड़ कर जायेंगी। सुन कर मैं भी हंस पड़ी। वो उसे लेकर चली गई। अब मेरा भी सोने का समय हो गया। मैं सुबह उठी ब्रेकफास्ट किया। अब रात से रेया को मैंने एओ कहना शुरू कर दिया| उसे स्विम सूट पहनाया। उसने स्विमिंग की तैयारी की। बैग एओ की प्रैम में रक्खा, एओ को उसमें  बिठा कर हम स्विमिंग पूल की ओर चल दिए। एओ की कमर में स्विम  र्गाड डाला और पानी में छोड़ दिया, साथ ही अर्पणा उतर गई। मैं हैरान होकर उसे हाथ पैर चलाते, किलकारियां मारते देख रही थी। बहुत छोटी छोटी बच्चियां तैर रहीं थीं। वीकएंड पर तो यहां जिधर देखो, सभी को व्यायाम करते ही देख रही थी। थोड़ी देर में शिखा आई। एओ को ले गई क्योंकि उसके सोने का समय होने वाला था। मैं चेयर पर बैठी आस पास देख रही थी। अर्पणा मेरे पास आकर बोली,’’एओ तो गई। अब जितनी देर मैं स्विमिंग करुंगी, आप पूल के चारों ओर चक्कर लगाओगीे।’’ मैं लगाने लगी। अर्पणा जब बाहर आई तो मै बुरी तरह से थक गई थी। घर की ओर चलते हुए मैंने उससे पूछा,’’यहां की महिलाएं तो एक ही सांचे में ढली हुई्र लगती हैं।’’ जवाब में अर्पणा बोली,’’यहाँ की महिलाएँ बहुत मेहनती, स्टाइलिश और फिट हैं। वे व्यायाम जरुर करती हैं। वीकएंड है, रात पार्टी की है, अब लेट आईं हैं, पर एक्सरसाइज इनकी आदत में शामिल है इसलिए करेंगी जरुर। यहां बेटी अभी खड़ा होना नहीं जानती लेकिन माँ उसे स्वीमसूट पहनाकर अपने साथ स्वीमिंगपूल में तैराती है। मैं भी तो लाई हूं न। तीन साल की उम्र से बैले आदि डाँस सिखना, अनुशासित दिनचर्या और अच्छी शिक्षा की शुरुआत हो जाती है और आलस्य का इनमें नामोनिशान नहीं रहता। पढ़ाई के साथ ,भाषाएँ सीखना, घूमना, नये नये गैजेट का इस्तेमाल कर, अपने को पूरी तरह काबिल बनाती हैं। शादी के लिए तब तक इन्तजार करती हैं जब तक अपनी योग्यतानुसार श्रेष्ठ साथी नहीं मिलता, जिससे जीवन सुरक्षित हो। वे इतना कमायें की बच्चों के लिए घर, शिक्षा और लग्ज़री मुहैया हो। इसलिए बर्थ रेट यहाँ बहुत कम है।
  गर्म देश है महिलाएँ ऑफ व्हाइट रंग के कपड़े ज्यादा पसंद करती हैं। कानून व्यवस्था दुरुस्त होने से महिलाएँ कुछ भी पहन कर, कभी भी, कहीं भी आती जाती हैं।  इन्हें नख से शिख तक सजने संवरने, स्पा और ब्यूटीपार्लर जाने का बहुत शौक है। क्रमशः



Saturday, 23 May 2020

हैरान करती बातें, सिंगापुर यात्रा Singapore part 5 Neelam Bhagi नीलम भागी


                            रात में जगमगाते सिंगापुर की सड़क पर हम घर की ओर जा रहे थे। घर पहुंचते ही र्काड से दरवाजा खोला। शिखा मुझे कहीं नज़र नहीं आई। खाने के लिए उसे मना करके गए थे। अमन रेया के लिए दूध बनाने लग गए। अपर्णा उसके कपड़े बदलने लगी। हम रेया से खेलने लगे। साढ़े आठ बजते ही अपर्णा रेया को लेकर  कॉट पर लिटा आई। नौ बजे अमन भी अपने बैड रुम में चले गए। अर्पणा दिखी नही तो मैं भी अपने बैड रुम में आ गई। मुझे याद आया कि जब मैं इण्डिया से आ रही थी तो मुझे मेरी बड़ी बहन डॉ0 शोभा(अर्पणा की मां) ने कहा था, नीलम अपना लैपटॉप लेकर जाना, तू घूमने जा रही है। ढाई घण्टे का समय जो यहां से आगे है न, उसमें , लैपटॉप तेरे  बहुत काम आएगा। मैं साथ में ले आई। मैं अभी बैड पर लेटी ही थी। अर्पणा दो कप चाय लेकर आ गई। चाय देखते ही मैं बोली,’’बेटी रात को चाय से मेरी नींद भाग जायेगी।’’अर्पणा बोली,’’आपके अभी साढ़े आठ बजे हैं। मैं आपसे बातें करने आई हूं। चाय पीकर नींद भगाने आई हूं। उसकी हमेशा से आदत है कहीं से भी घर आती थी तो घर में सब से मिल कर, हमारे यहां बतियाने आ जाती। मैंने पूछा,’’शिखा सुबह टाइम से आ जाती है न।’’अर्पणा ने जवाब दिया कि वो यहीं रहती है। उसकी सुबह सात बजे से रात आठ बजे तक ड्यूटी रहती है। हम लोग सात बजे तक घर आ जाते हैं। वो हमें डिनर सर्व करके, किचन साफ करके, आठ बजे अपने रुम में चली जाती है। , मासी हम दोनों को ऑफिस में लंच सर्व होता है। शिखा इण्डिया से नार्थ ईस्ट की लड़की है। जो कुछ भी खाने की इच्छा हो इससे बनवा लेनां। दो दिन हमारा ऑफ है। मैं  पैदल की कुछ जगह आपको ले जाउंगी। आप वहां वॉक पर निकल जाया करना। रोज डिनर के बाद हम दोनेा वॉक पर जाया करेंगे। मैंने आप को इन दिनों इसलिए बुलाया है क्योंकि चाइनीज़ न्यू इयर आने वाला है। आपके यहां रुकने तक मुझे ऑफिस से कहीं भी ट्रैवल पर नहीं जाना है। सुन कर मैं खुश हो गई। ये हमेशा मुझे सिंगापुर बुलाती थी, मैं ये सोच कर नहीं आती थी कि ये तो आज इस देश, कल उस देश, विदेश में मेरा दिल कैसे इसके बिना लगेगा? अब तो यहां आने का मजा़ ही आ गया। वह बोली,’’मासी, यहां क्राइम रेट ज़ीरो है। आप बेफिक्र घूमना। घूमोंगी तो आपको पता चलेगा कि बिना डर कहीं भी जा सकते हो। यहां के नियम तोड़ने पर बहुत ज्यादा जुर्माना है। इंगलिश यहां सभी जानते है। समझ लो प्रधान भाषा, आपका काम चल जायेगा। मलय, चीनी और तमिल भी बोली जाती है। क्योंकि यहां चीनी , मलय और भारतीय रहते हैं। मैंने कहा,’’बेटी, अब तूं जाकर सो जा, ऑफिस भी गई है, घूमने भी गए हैं। वह गुड नाइट करके चली गई। क्रमशः

Wednesday, 20 May 2020

मैरीना बे सिंगापुर यात्राSingapore yatra part 4 भाग 4 Neelam Bhagi Marina Bay नीलम भागी


अर्पणा को साल में कम छुट्टियां मिलती थीं। साल में कम से कम दो बार वो इण्डिया जरुर आती है। आज शुक्रवार था। अर्पणा ने मुझे फोन कर दिया कि मैं तैयार रहूं। वह मीटिंग में गई थी, जल्दी ख़त्म हो गई, इसलिए आ रही है। शिखा ने ठीक दो घण्टे के बाद, रेया को जगा दिया और तैयार कर दिया, साथ ही उसका बैग लगा दिया। उसके आते ही हम रेया को लेकर  से मैरीना बे के लिए टैक्सी स्टैण्ड पर इंतजार करने लगे। अर्पणा की एक विशेषता है। वो किसी भी जगह के बारे में बताती जाती है। यहां पब्लिक ट्रांसर्पोट बहुत अच्छा और सस्ता है। लगभग हर पर्यटन स्थल तक बस या मैट्रो जरुर जाती है। साथ ही साइकिल लेन भी है। टैक्सी के लिए उचक उचक कर देखने की जरुरत नहीं पड़ती। स्टैण्ड से पहले उस पर ग्रीन लाइट जलने लगती है यानि वह खाली नहीं है। रैड लाइट जली होने पर वह खाली है। आप रुकने का इशारा करेंगे तो वह रुक जायेगी। मैरीना बे के रास्ते मुझे ऊँची इमारते ओर हरियाली दिख रही थी। अर्पणा बताती जा रही थी कि मासी ये क्षेत्रफल में मुम्बई से भी कम है। ये शहर  देश एक ही हैै। एकदम हरा भरा देश है। किसी शहर के लिए कहते हैं कि फलां शहर में बहुत सुन्दर बाग हैं। इसके लिए कहते हैं सिंगापुर गार्डन में है। कहीं भी आप जरा सी भी गंदगी ढूंढ नहीं सकते। हम मैरीना बे पहुंचे शाम हो चुकी थी। वैसे यहां का मौसम गर्म और नम है। इन दिनो यहां मौसम बहुत अच्छा था। जिधर देखो आसमान को छूती इमारते। पानी के किनारे बहुत ही बढ़िया हवा चल रही थी। एक जैसी फिटनैस के लोग। रेया मां मासी के साथ बहुत खुश थी। लोग खुश मिजाज रेया को देखते ही बुला कर, हाथ हिला कर जाते। सफाई और लोगों की फिटनैस मुझे हैरान कर रही थी। यहां कुड़ा फैकने पर तगड़ा जुर्माना और फैकने वाले को ही कूड़ा उठाना पड़ता है। अंधेरा होते ही इमारते लाइटों से जगमगा उठी। हम लोग चल पड़े अमन रैस्टोरैंट पर हमारा इंतजार कर रहे थे। रेया प्रैम में थी। सब ओर जिधर देखो, लोग पैदल ही चल रहे थे। गाड़ियां चल रहीं थीं पर पटरियों पर पार्क नहीं थीं। वीकएंड था। अमन रैस्टोरैंट के बाहर वेटिंग में थे। रेया पापा को देख कर खिल गई। अपर्णा बोली,’’मासी मैं रेया को लेकर नर्सिंग रुम में जा रही हूं। मैंने कहा,’’मैं भी चलती हूं।’ एक रुम के बाहर नर्सिंग रुम लिखा था। उसमें हम गए। रेया के लिए र्फामूला मिल्क बनाया। उसने बोतल पी। मैं बैठी देखती रही। दीवार के साथ एक बोर्ड था। उसे खोला,’’उस पर रबर लगा टॉवल, बिछा कर रेया को लिटा कर, उसकी नैपी बदली। पुरानी डस्टबिन में डाली। र्बोड को वैसे ही दीवार के साथ फोल्ड किया। हैण्ड वाश करके हम चल दिए। रैस्टारैंट में हमारा नम्बर आ गया था। हम बताई गई टेबल पर बैठे। उन्होने रेया के लिए इन्फैंट चेयर लगाई। चाइनीज़ खाना खा कर हम चल पड़े। अपनी गाड़ी के लिए।   
वन रैफलेस के पार्किंग की नौवें फ्लोर पर हमारी गाड़ी पार्क थी। लिफ्ट से नौंवी मंजिल पर जाकर गाड़ी पर पहूचे। मैं आगे बैठी। रेया को उसकी कार सीट पर बैल्ट लगा कर बिठाया। उसके साथ अर्पणा बैठी। गाड़ी से राउण्ड लगाते हुए जब ग्राउण्ड फ्लोर पर पहुँचें, तो वहाँ खूब साइकिले खड़ी!! अपर्णा बताने लगी,’’ यहां साइकिल का कहीं भी पार्किंग शुल्क भी नहीं है। हमें साढ़े तीन महीने वेटिंग के बाद ग्यारहवीं मंजिल पर पार्किंग में जगह मिली, पार्किंग शुल्क भी ज्यादा है। उस पार्किंग से दोनो का ऑफिस पास है। वहां से सिर्फ पंद्रह मिनट पैदल की दूरी है।’’अपर्णा की बाते सुनकर मुझे समझ आ गया कि यहां गाड़ी आप सड़क पर पार्क नहीं कर सकते। ये सब कानून पब्लिक ट्रांसर्पोट को बढ़ावा देने के लिए लिए है।क्रमशः


Tuesday, 19 May 2020

बाग में देश, सागर दर्शन सिंगापुर यात्रा Singapore yatra part3 भाग 3 Neelam Bhagi नीलम भागी





नई जगह पर कहीं भी मैं मुंह उठा कर चल देती हूं पर एक ध्यान रखती हूं कि अपने बाएं हाथ पर रहती हुए जब नहीं समझ आता तो वैसे ही उसी लेफ्ट साइड से ही लौट आती हूं तो जहां से चलती हूं वहीं वापिस पहुंच जाती हूं। यहाँ भी चल तो पड़ी पर इस देश के नियम कायदे कुछ नहीं जानती थी। खिड़की से सामने समुद्र दिखा चल दी। ये तो अच्छा था, मेरे पीछे रेया को लेकर शिखा आ गई। मेरे हाथ में बस मोबाइल था। मैंने अण्डर पास से बाहर आकर खड़ी होकर सब देखा, पर आगे पीछे नहीं गई वैसे ही वापिस आकर कौंडो के गेट पर खड़ी हो गई। वो रेया के कारण पीछे थी। उसने गेट पर र्काड लगाया। गेट खुला मैं अंदर आई। अपने ब्लॉक में जाने के लिए पक्के रास्ते बने थे। सब उसी पर चलते थे। कच्चे में घास, पेड़ पौधे लगाए हुए थे। वहां एक इंच भी जगह बिना पौधों के नहीं थी। जो खाली दिखती उसमें बीज बो रक्खे थे। अब मैं अंदर घूमने लगी। जिम में इस समय सीनियर सीटीजन ही नज़र आ रहे थे। कार्ड स्विप करके ही जा सकते थे। मैंने शिखा से र्काड लिया, अंदर जाकर देखा बिना कोच के सब अपने आप लगे हुए थे। स्विमिंग पूल ओपन था। एक बड़ी प्यारी सी लड़की ट्रेनर, सीनीयर सीटीजन को पूल में खड़ा करके धूप में एक्सरसाइज़ करवा रही थी। स्विम सूट में  सबकी फिटनैस एक सी। मुझे ये देखना बहुत अच्छा लग रहा था। पास में ही बच्चों का प्ले स्टेशन था। जहां झूलों के साथ बच्चों के लिए रेत भी थी। शिखा रेया को लेकर वहां चली गई। छाव में बैठने के लिए हट बनी हुई थी। कुछ ही देर में शिखा आई। मुझसे बोली,’’मासी रेया के सोने का समय हो गया है।’’ जबकि रेया खुशी से खेल रही थी। मैं ये सोच कर चल दी कि पहला दिन है, यहां के नियम कायदे देख लूं। ब्लॉक में जाने के लिए भी र्काड स्विप करना पड़ता था। घर का दरवाजा भी उसी र्काड से खुलता था। अंदर जाते ही उसने रेया को उसके कमरे में उसके बैड पर बिठाया, बैड के चारों ओर जालीदार ऊंची दीवार थी। जिसे पकड़ कर बच्चा खड़ा हो सकता है पर गिर कतई नहीं सकता। उसमें उसके कुछ खिलौने होते हैं। इतनी देर में शिखा उसकी दूध की बोतल ले आई। उसको तकिया लगा कर लिटा दिया और बोतल पकड़ा दी, वह पीने लगी। शिखा बाहर आ गई और मुझे भी बुला लिया। मेरा दिल कर रहा था। मैं उसे गोदी में लिटा कर पिलाऊं। उसने मेरा नाश्ता लगाया और जल्दी जल्दी घर के काम निपटाने लगी। मैं एक महीने के लिए गई थी। यहां का समय इंडिया से ढाई घण्टा आगे है। मैंने अपना समय इण्डिया का ही रक्खा हुआ था। वैसे ही रात को बारह बजे के बाद सोती, सुबह सात बजे उठती। मैं सुबह यहां के साढ़े नौ बजे सोकर उठी थी तो अर्पणा अमन ऑफिस जा चुके थे। उन्होंने मुझे बुलाया ही इस तरह था कि वृहस्पतिवार मैं शाम को पहुंची, जाते ही सो गई। आज फ्राइडे को मैरीना बे जाना था। वीकएंड पर मुझे सिंगापुर घूमाने का प्रोग्राम बनाया जाता था। एक घण्टे बाद वो रेया को उठा लाई। मैंने पूछा,’’ये उठ गई थी। उसने जवाब दिया,’’इस समय इसको एक घण्टे सोने को है। अब तीन घण्टे उसका खेलना, खाना, मालिश और नहाना हुआ। इतने समय शिखा रेया के साथ रही। नहाते ही उसे दूध की बोतल देकर उसके रुम में दो घण्टे के लिए सुला दिया। और अपने काम निपटाए। ड्रांइग रुम और मेरे कमरे और किचन फेसिंग सी थे। मैं दिन भर सागर दर्शन में ही मस्त रही। क्रमशः 

Sunday, 17 May 2020

जो फिट है, वो हिट हैै और फिटनैस का राज!! सिंगापुर यात्रा Jo Fit Hai Wo Hit Hai Singapore Yatra Part 2 Neelam Bhagi नीलम भागी


        एयरपोर्ट से बाहर आते ही अमन ने मुझसे ट्रॉली ले ली और अर्पणा मेरे गले लगी। मैंने फटाफट जैकेट उतारी उसने मेरे हाथ से ले लीं। गाड़ी में सामान रख कर हम सिंगापुर के चैंगी एयरपोर्ट से घर की ओर जा रहे थे। अमन गाड़ी चला रहे थे। मैं विस्मयविमुग्ध, यहाँ की सुन्दरता और सफाई देख रही थी। अर्पणा मुझसे सफ़र, घर के लोगों के बारे में पूछ रही थी। मेरा इस तरह से सिंगापुर को देखना देख कर वह मुझे सिंगापुर के बारे में बताने लगी। मैं उसे सुन रही थी, लेकिन मेरा ध्यान उस शहर की खूबसूरती ने अपनी ओर खींच रखा था। मैं सिर्फ अपनी बाईं ओर ही देख रही थी। एक साइन र्बोड पर चैंगी कॉस्ट लिखा था। सड़क पर गाड़ियाँ थी और एक समूह साइकिल सवारों का जिनकी पीठ थी मेरी ओर । उन्हें देखते ही मैंने मन में कहा कि अरे यहां गाड़ी के साथ लोग साइकिल चलाते हैं।


   एक क्रॉसिंग पर रेडलाइट पर हम रुके। साइकिल पर कुछ लोगों को देखकर मेरे मुहँ से निकला,’’ये अच्छा है, यहाँ बच्चे साइकिल खूब चलाते हैं।’’मेरी बात सुनते ही दोनों हंस पढ़े और एक साथ बोले,’’ये सब उम्र में पचास साल से ज्यादा हैं। वर्किंग डे था और शाम का समय था। वे सब ऑफिस से आ रहे थे। चेहरे देखे तो युवक और प्रौढ़ में फर्क नज़र आया, लेकिन फिटनैस सबकी एक सी थी। कुछ साइकिलों  पर बॉक्स लगे थे। मुझे अर्पणा ने बताया,’’ यहाँ लोग फिटनैस पर बहुत ध्यान देते हैं। इसलिए वे साइकिल से ऑफिस आते हैं और ऑफिस के पास वाले जिम की मैंम्बरशिप ले लेते हैं। साइकिल के बॉक्स में उनका बिज़नेस फॉरमल रक्खा होता है। एक्सरसाइज़ तो रास्ते में, ऑफिस का रास्ता कवर करने के लिये, साइकिल चलाने से ही हो जाती है। जिम में तो थोड़ी बहुत की, बाकि वहां शॉवर लेकर कपड़े बदलते हैं। अपने कौनडो(मल्टीस्टोरी अर्पाटमेंट) के बेसमेंट में गाड़ी पार्क की, वहाँ एक ओर साइकिलें भी लाइनों में खड़ी थीं। और लिफ्ट की ओर चले, 15 वीं मंजिल पर घर। सभी घरों के बाहर शू रैक। हमने जूते चप्पल वहीं उतारे और घर में प्रवेश किया। 10 महीने की रेया मेड को छोड़ मम्मी पापा की ओर लपकी। मैंने थर्मल पहना हुआ था। पार्किंग से घर तक आने में पसीने से लथपथ थी। अपर्णा ने मुझे मेरा रुम दिखाया। मैं नहा कर गर्मी के कपड़े पहन कर आई। मेरा डिनर पर इंतजार हो रहा था। मैंने सबसे पहले रेया को गोद में लेकर प्यार किया। वो मुझे पहली बार मिल रही थी पर मेरे गले ऐसे लगी जैसे पहले से जानती है। शायद विडियो कॉल के कारण पहचान गई हो। डिनर करते ही, मैं सुबह से घर से निकली हुई थी। थक गई  थी, अपने कमरे में आकर लेट गई। मेरे बैड के बाई ओर बड़ी खिड़की थी। बाहर देखने पर सब कुछ काला था और आधे घेरे में लाइटें जल रहीं थी। जो बहुत सुंदर लग रहीं थीं। अर्पणा मेरे पास बैठने आई। मेरी थकावट देख कर वो चली गई। सुबह आँख खुलते ही सामने समुद्र और उसमें शिप खड़े देख कर, समझ आया कि रात में दिखने वाली लाइटें जहाजों की थी। एकदम उठकर बैठ गई। सामने ईस्ट कॉस्ट रोड, चार सड़कें, प्रत्येक रोड ग्रीनबेल्ट से अलग की गई थी। दो ट्रैफिक के लिए एक साइकिल और एक पैदल चलने वालों के लिए। पैदल रोड और समुद्र तट की रेत के बीच में ईस्ट कॉस्ट पार्क था।
   अपने कन्डोमिनियम से बाहर निकलते ही अण्डरपास दिखा। उसमें से जो भी साइकिल सवार निकल रहा था। वो साइकिल नहीं चला रहा था। साइकिल के साथ पैदल चल रहा था। वहाँ ऐसा नियम है। कैमरे लगे हैं जुर्माना बहुत अधिक है इसलिये कोई नियम नहीं तोड़ता। उससे मैं साइकिल रोड पर पहुँची। जिस पर साइकिल सवार थे। डबल साइकिल भी जिस पर दो लोग पैडल मार रहे थे। मैं पैदल वालों की रोड पर चलने लगी। मेरे एक ओर समुद्र की लहरों का शोर था। दूसरी ओर एक सी फिटनैस के साइकिल सवार लोग थे। हमारे यहाँ की रिक्शा जैसी गाड़ी, जिसमें छोटे दो बच्चे बैठे हुए थे, इसे रिक्शावाला नहीं, बच्चों के माँ,बाप चला रहे थे क्योंकि इसमें चार पैडल थे। कई महिला, पुरुष साइकिल चला रहे थे। साइकिल के कैरियर पर एक सीट लगी थी। जिस पर सीट बैल्ट से बंधा बच्चा बड़ा खुश बैठा था। बस, मैट्रो पब्लिक ट्रांसपोर्ट यहाँ सस्ता है। फिर भी लोग साइकिल खूब चलाते हैं।क्रमशः
 

Saturday, 16 May 2020

भारत से सिंगापुर यात्रा भाग 1 Singapore Yatra Part 1 Bharat Se Singapore Neelam Bhagi नीलम भागी




ये मेरी तीसरी विदेश यात्रा थी पर इस बार मैं अकेली और पहली बार सिंगापुर जा रही थी। 6 जनवरी थी। कड़ाके की ठंड थी। सिंगापुर में तो मुंबई जैसा मौसम रहता है। गर्म कपड़े ले जाने नहीं थे।पर नौएडा से अपने को ठंड से बचाने के लिए शरीर पर लादने तो जरूरी थे। दोपहर बारह बजे की फ्लाइट थींु सुबह सात बजे घर से निकली ताकि ऑफिस टाइम में जाम में न फस जाउं। दिल्ली इंदिरा गांधी एयरर्पोट के टर्मिनल 3 में प्रवेश करते ही मैं सिंगापुर एयरलाइंस का काउंटर लगेज़ चैक इन के लिए पढ़ ही रही थी कि वहीं खड़े एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा,’’सिंगापुर एयरलाइंस।’’मेरे हाँ करते ही उसने सामने लाइन में लगने का इशारा किया। मैं लाइन में लग गई। जैसे ही मेरा नम्बर आया, मुझसे पासर्पोट ,वीजा, टिकट आदि मांगा। मैंने दिया। उन्होने मेरे पेपर लौटाए। साथ ही मुझे बैग़ेज़ चैक रिसिप्ट और र्बोडिंग पास और एक फोर्म भरने के लिए दिया। सबसे ज्यादा प्रभावित मुझे इस बात ने किया कि जो भी पेपर मुझे दिया आगे क्या करना है उसके बारे में समझाया। सभी कार्यवाही पूरी करने के बाद मैं बोर्डिंग के लिए गेट न0 10 पर जाकर बैठ गईं। बोर्डिंग के समय भी सब मजे़ से सीटों पर बैठे थे। एक व्यक्ति एक सीट दिखाता, मसलन 47 से 51 उसी सीट नम्बर की सवारियां उठती और चल पड़ती। इससे भीड़ भी नहीं लग रही थी और बाकि सवारियाँ सॉरी और एक्सक्यूज़ मी कहने से बच गई। प्लेन में कैबिन क्रू आपकी मदद के लिए तत्पर। मैं अपनी सीट पर खड़ी होकर हैंडबैग को उठा ही रही थी। इतनी देर में तो दुबली सी दिखने वाली एयरहोस्टेज़ ने उसे उठा कर रख भी दिया और मेरा पर्स लेकर अगली सीट के नीचे मेरे पैरों के पास एडजस्ट भी कर दिया। मेरी साथ की सीट पर बैठी महिला ने आगे न्यूजीलैंड जाना था, उसने एयरहोस्टेज़ को एक दूसरा बोर्डिंग पास दिखा कर कई प्रश्न पूछे। उसने ध्यान से सुने और इंतजार करने को बोलकर चली गई और जब आई तो सभी प्रश्नों का जवाब लेकर आई और उस महिला को समझाया। समय पर विमान ने उड़ान भरी। अन्दर एयरहोस्टेज़ का फुर्तीलापन देखने लायक था। उनकी सर्विस में कोई कमी नहीं थी। यहाँ मुझे एक एयरलाइन्स का वाक्या याद आता है। एक लड़के के कई बार वाइन माँगने पर, एयरहोस्टेज़ ने वाइन के बदले नसीहत देते हुए कहा,’’शर्म नहीं आती, दिन के साढ़े तीन बजे कोई इतनी शराब पीता है।’’ यहाँ कोई जितनी बार भी माँगे शराब मांगने पर शराब ही मिल रही थी न कि उपदेश। विमान के लैंड करने पर सब कुछ बदल गया था जैसे देश ,समय, मौसम, तापमान बिना कुछ किये थकी हुई सवारियाँ आदि। अगर कुछ नहीं बदला था तो वो था एयरहोस्टेज़ का चेहरा, उनकी चेहरे की मुस्कान और ताज़गी वैसी ही रही जैसी उड़ान भरने के समय थी। खैर.....
    मुस्कुराकर ही उन्होंने हमें विदा किया। एयरर्पोट पर एराईवल के निशान के अनुसार मैं चलती रही, किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा। इमीग्रेशन फॉर्म भर कर , लगेज़ लिया जैसे ही पीठ घुमाई। शीशे के बाहर अमन और अर्पणा खड़े हाथ हिला रहे।क्रमशः




Friday, 15 May 2020

अयप्पा मंदिर नौएडा Ayyappa Temple Noida Neelam Bhagi नीलम भागी



भगवान अयप्पा के जन्म की कथा है। मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध किया। उसकी बहन महिषी भाई का बदला लेना चाहती थी। उसे ब्रह्मा से वर मिला हुआ थां इसलिए वह अविनाशी थी। पर उसका वध हरिहर पुत्र से होगा। विष्णु ने जब सागर मंथन के समय मोहिनी का रुप धारण किया तो भगवान शिव उसके रुप पर मोहित हो गए। और अयप्पा का जन्म हो गया। अयप्पा शिव और मोहिनी से उन्पन्न भगवान शिव के तीसरे पुत्र हैं। उन्होंने इस पुत्र को पंपा नदी के किनारे छोड़ दिया। एक किंवदंति यह भी है कि उनकी गर्दन के चारों ओर घंटी बांध कर छोड़ा था। पांडलस राजवंश केे राजा राज शेखर संतानहीन थे। उन्होंने अयप्पा को गोद ले लिया। कुछ समय बाद उनको भी पुत्र पैदा हो गया। दोनो राजकुमार एक साथ पले बढ़े। अयप्पा मार्शल आर्ट में निपुण और शास्त्रों के बहुत ज्ञानी थे। राजकुमारों ने जब प्रशिक्षण और अध्ययन समाप्त किया तो राजा अयप्पा की योग्यता देखते हुए, उसे राजा बनाना चाहते थे। रानी स्वयं के पुत्र को बनाना चाहती थी। इसलिए वह अयप्पा के लिए एक के बाद एक मुसीबतों के पहाड़ खड़े रखती थी। एक बार उसने अपनी बिमारी का इलाज बाघिन के दूध ही बताया। अयप्पा चले गए। वहां उन्होंने राक्षसी महिषी का वध किया। वह मोक्ष को प्राप्त हुई। और अयप्पा शेर पर सवार होकर महल लौटे। यह देख सब हैरान रह गए। राजा रानी को समझ आ गया कि यह साधारण बच्चा नहीं है। उन्होंने सिंहासन स्वीकार करने का अयप्पा से अनुरोध किया, वह नहीं माने और महल छोड़ कर स्वर्ग चले गए।
    राजा राजशेखर ने अयप्पा को देव अवतार मान कर सबरीमालई में देवताओं के वास्तुकार विश्कर्मा से डिजाइन करवा कर अयप्पा  का मंदिर बनवाया। ऋषि परशुराम ने उनकी मूर्ति की रचना की ओर मकर संक्रांति को स्थापित की। आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अयप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर तीन दिन में सबरीमाला पहुंचती है। मलयालम और कोडवा में उनके जीवन चरित्र का वर्णन, उनकी कहानियां और गीत प्रसिद्ध हैं।   
 नौएडा का मशहूर अयप्पा मंदिर सी 47, सी ब्लॉक, सेक्टर 62 में जाना बहुत आसान है। कुछ ही दूरी पर मैट्रो स्टेशन है। वैसे भी शेयरिंग ऑटो एक एक मिनट में वहां से गुजरते हैं। यहां महत्वपूर्ण त्यौहार प्रतिष्ठा दिवस, र्कककीदकम, विनायक चतुर्थी, कन्नी आयिल्या पूजा, नवरात्रि उत्सव, मंडला पूजा बहुत हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। आधुनिक ऑडिटोरियम है। मंदिर में एक झलक दक्षिण के तीर्थ सबरीमाला की भी दिखती है। सबरीमाला उस शबरी के नाम पर है, जिसने भगवान राम को जूठे बेर खिलाए थे और राम ने उसे नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। मैं जब भी यहां आई हूँ श्रद्धालुओं को बहुत अनुशासित देखा है। जूता चप्पल के स्थान पर सब बिना कहे वहीं उतारते हैं। भोजन प्रसाद के लिए सब शांति से लाइन में लगे होते हैं। दो हॉल में प्रसाद खिलाया जाता है। एक में पुरुष खिलाते हैं,ं एक में महिलाएं। जहां मरजी हो खाएं। कोई जूठा नहीं छोड़ता। खाने के बाद अपना केले का पत्ता मोड़ देते हैं। श्रद्धालुओं की श्रद्धा से वहां अलग सा भाव था। हमारा सौभाग्य है कि हमारे शहर में अयप्पा मंदिर है।










Thursday, 14 May 2020

मैया तो कहती थी तुमको कन्हैया, घनश्याम कहते थे बलराम भैया, वृदावन मथुरा यात्रा Mathura yatra भाग 16 नीलम भागी



   

सुबह कद्दू की सब्जी और कचौड़ी का नाश्ता करके हम वृंदावन चल दिए। श्रीमदभागवत के अनुसार कंस से कन्हैया की पहचान छिपाने के लिए और उसके अत्याचारों से बचने के लिए, नंद अपने कुटुंबियों और सजातियों के साथ वृंदावन आ गए। विष्णुपुराण में भी कृष्ण लीलाओं का वर्णन है। अष्टछाप के महाकवि सूरदास ने तो यहां तक कहा हे कि ’हम न भई वृंदावन रेणु’। यह यमुना जी से तीन ओर घिरा है। पुरातन तथा नवीन मंदिर मठ हैं। महाराज केदार की पुत्री वृंदा ने कृष्ण को पाने के लिए यहां  तप किया था इसलिए इसका नाम वृंदावन पड़ा। यहां सैकड़ो आश्रम, गौशालाएं और मठ हैं। भक्तों की श्ऱद्धा का केन्द्र है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, श्री हितहरिवंश, महाप्रभु वल्लभचार्य आदि अनेक भक्तों ने इसके वैभव को सजाने सवारने में जीवन लगाया है। हमने रास्ते में ही प्रोग्राम बना लिया था कि मंंिदरों में दर्शनों का समय हैं वहां सुबह शाम को दर्शन करेंगे। दोपहर में निधिवन, घाट और खाना। प्रेम मंदिर, पागल बाबा का मंदिर, गरुण गोविंद जी का मंदिर, बांके बिहारी जी का मंदिर, श्री राधा रमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, कृष्ण बलराम 1975 में बना इस्कॉन मंदिर, देखे। दिन भर घूमते रहे। बांके बिहारी मंदिर के आसपास कुल्हड़ में मलाई लस्सी और मिठाई का आनंद उठाया। निधिवन गए। यहां के बंदर बहुत योग्य हैं। वे चश्मा झपटते नहीं है। चुपचाप आकर उतार कर ले जाते हैं। नीचे एक घास का तिनका तक नहीं है। कुछ लताओं की जड़े खोखली हैं। पर ऊपर से सब हरी हैं और नीचे की ओर नमन करती लगती हैं। कहा जाता है कि आज भी दिन की लताएं रात  को गोपियां बन जाती हैं। कृष्ण यहां रास रचाने आते हैं। बंदर दिन भर खेल करते रहते है। पक्षियों की चहचहाटे रहती हैं लेकिन निधिवन में ऐसा कुदरती अनुशासन है कि शयन आरती के बाद सब चले जाते हैं। निधिवन के आस पास जितने भवन हैं वो भी इस ओर की  खिड़कियां बंद कर देते हैं। यहां आनन्दप्रद युगल किशोर श्री कृष्ण ओर राधा की नित्य अदृभुत विहार लीला होती रहती है।, कोई भी अगर यह देखने के लिए यहां  रुका है तो वह अगले दिन बताने के काबिल ही नहीं रहा है। निधिवन हरिदास जी का निवास कुंज भी है। कुछ श्रद्धालुओं की टोलिया ंतो ंनिधि वन गाते बजाते हुए दर्शन करने आती हैं। मन करता है कि वे गाते रहें और हम सुनते रहें। सैंकड़ों मंदिर वाले वृंदावन में प्रेम भक्ति का साम्राजय है। यमुना तट पर अनेक घाट है। श्री वराहघाट, कालियादमन घाट, सूर्य घाट, युगलघाट, श्री बिहारघाट, श्री आंण्ेार घाट, इमलीतलाघाट, श्रृंगार घाट, श्री गोविंदघाट आदि अनेक घाट हैं पर सबसेे सुंदर केशी घाट है। नौका विहार करके पेड़े खरीद कर हम घर की ओर चल दिए। कहते हैं कि आपने चारों धाम की यात्रा कर ली, यदि ब्रजधाम की यात्रा नहीं की तो यात्रा अधूरी है। मैंने ब्रजधाम की यात्रा करली। अब चारों धाम की यात्रा पुरी करने की कोशिश करुंगी। घर आ गई हूं पर आज भी वहां सुना भजन कानों में गूंज रहा है
कोई कहे गोविंदा, कोई कहे गोपाला।
मैं तो कहूं सावंरिया, बांसुरीवालां । समाप्त 










Wednesday, 13 May 2020

कह कर तो गए आउंगा परसों, पर आए न बरसों। गिरिराज जी परिक्रमा मथुरा यात्राMathura yatra part 15 भाग 15 नीलम भागी



कोई कहे गोविंदा, कोई कहे गोपाला, मैं तो कहूं सांवरिया बांसुरी वाला। एक टोली लोक धुन में भगवान को कौन किस नाम से पुकारता है, कन्हैया को पुकारे जाने वाले नामों को इतना सुंदर गाते हुए जा रहे थे कि उनकी धुन पर लोग नाचते हुए चल रहे थे। 21 किमी के परिक्रमा मार्ग पर शायद 21 ही पूजनीय स्थल हैं सब का अपना महात्म है,अपना इतिहास है। एक के बाद एक कुछ न कुछ दिखता है। एक आदमी साइकिल से जा रहा था, साइकिल से दूध के डिब्बे लटके हुए थें एक डिब्बे से पतली दूध की धार रास्ते में गिरती जा रही थी। ये देखकर मैं जोर से चिल्लाई,’’भैया दूध लीक हो रहा है। सुन कर बिना रुके जवाब में उसने कहा,’’राधे राधे।’’मुझे राह चलते श्रद्धालुओं ने समझाया कि ये दूध की धार से परिक्रमा कर रहा है। जतीपुरा में मुखारविंद की पूजा हैं। यह वल्लभ संप्रदाय का मुख्य केन्द्र है। उनके मंदिर हैं। श्रीवल्लभाचार्य एवं विटठलनाथ की यहां बैठकें हैं। अष्टछाप के कवि सूरदास यहां कीर्तन किया करते थे। ये स्थान प्राचीनता, ऐतिहासिकता जताती है।
 पूंछरी का लौठा यहां तो हाजरी न लगाई तो यात्रा अधूरी मानी जायेगी। कसं के कारण कन्हैया को ग्वालों की तरह पाल रहे थे। वे भी विद्याध्ययन के लिए किसी आचार्य के आश्रम में न जाकर, गौए चरा रहे थे और बंसी बजा रहे थे। लौठा का मतलब पहलवान होता है। ये गोपाल का सखा था जब वे जाने लगे तो उसे गोपाल कह गये कि मैं परसों आ जाउंगा पर बरसों बीत गए वे न आए। वो तो द्वारकाधीश बन गए। ये उनके इंतजार में खड़ा रहा। ये स्थान राजस्थान के भरतपुर इलाके में आता है। दिन में यहां बंदरों का जमावड़ा रहता है। हनुमान जी का विग्रह स्थापित है।
 कुसुम सरोवर गोवर्धन और राधाकुण्ड के बीच में स्थित है। यहां बलुआ पत्थर से बनी स्मारक है। स्मारक के पास ही नारद कुण्ड है। यहां नारद जी ने भक्ति सूत्र छंद लिखे थे। राधा वाना बिहारी मंदिर भी है। इस खूबसूरत स्थान पर गोपाल राधा से मिला करते थे।
मनसा देवी यहां एकचक्रेश्वर महादेव का मंदिर है।
मानसी गंगा की भी अलग कोई परिक्रमा करता है। कंस का असुर कन्हैया की गौउओं में बैल के वेश में चरने लगा। कन्हैया ने उसका वध कर दिया। राधा ने उन्हें कहा कि गौ वंश की हत्या के पाप की मुक्ति के लिए तुम्हें गंगा नहाना चाहिए। कान्हा ने मन से वहां गंगा उत्पन्न कर दी। यहां आषाढ़ी पूर्णिमा और कार्तिक की अमावस्या को मेला लगता है।
हरजी कुंड यहां नंदकिशोर गाय चराते थे। बड़ी परिक्रमा के बाद चूतर टेका है। सीताराम ,लक्ष्मण और राधाकृष्ण का मंदिर है। विटठल कुण्ड, राधाकुंड है। श्यामकुण्ड में नहाने से सब पाप कट जाते हैं। यहां सभी तीर्थों को विराजमान किया है। कहते हैं इस मार्ग पर पहले 108 कुण्ड थे। दानघाटी में वे दूध दहीं का दान लेते थे। चलते हुए हम अपने गैस्ट हाउस में पहंुच गए। रास्ता पता ही नहीं चला। अब बुरी तरह थकान होने लगी। खाना तैयार था। ये पहला खाना हमने ब्रज भूमि में खाया। अब तक खाने को छोड़ कर सब कुछ खाया। सादा खाना बेहद स्वाद। गिलास में बूंदी का रायता साथ में। खाना खाते ही थकान के मारे अपने कमरे में जाना मुश्किल हो गया। कमरे में पहुंचते ही कर्मचारी ने र्गम पानी की बाल्टी और तौलिया बैड के पास रख कर कहा कि पैर इसमें डूबो कर बैठ जाइए। आराम मिलेगा। दरवाजा बंद करकें टांगे र्गम पानी में डाल दीं। पानी गुनगुना होते ही रजाई में। पैरों का दर्द गायब। सुबह धूप निकलने पर ही नींद खुली। क्रमशः   

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Tuesday, 12 May 2020

अन्नकूट, गोवर्धन पूजा, गिरिराज परिक्रमा मथुरा यात्रा भाग 14Mathura Yatra Part 14 नीलम भागी



कुछ लोग गोवर्धन की दण्डौती परिक्रमा कर रहे थे। इसमें जो दण्डवत लेटता है, जहां उसके हाथ धरती को छूते हैं, वहां लकीर खीच दी जाती है फिर लकीर से अगला दण्डवत किया जाता है। ये वो ही लोग करते हैं जिन्होंने मनोकामना के लिए मन्नत मानी होती है। मनोकामना पूरी होने पर वे दण्डवत परिक्रमा करते हैं। ये परिक्रमा पूरी होने में एक या दो हफ्ते लगते हैं। रास्ते में श्रद्धालु सखिभाव से राधा बने नाचते जा रहे थे। कहीं बिना होली के ही सूखा रंग खेल रहे थे। पहले   इक्कीस किलोमीटर का रास्ता नंगे पांव चलना बहुत मुश्किल लग रहा था!! पर अब बड़ा  मनोरंजक था। यहां लीलाएं कन्हैया ने रचाई पर श्रद्धालु राधे राधे करते चल रहे थे।
   जन मानस से जुड़ी लीला तो गोवर्धन पूजा है जिसे दुनिया के किसी भी देश में रहने वाला कृष्ण प्रेमी मनाता है। जो पर्यावरण और समतावाद का संदेश भी देता है। कन्हैया बड़े हो रहें हैं। अब वे बात बात पर प्रश्न और तर्क करते हैं। हर वर्ष की तरह इस बार भी घरो में दिवाली के अगले दिन पूजा की तैयारी और पकवान बन रहे थे। बाल कृष्ण मां से प्रश्न पूछने लगे,’’किसकी पूजा, क्यों पूजा?’’ मां ने कहा,’’ मुझे काम करने दे, जाकर बाबा से पूछ।’’वही प्रश्न कन्हैया ने नंद से पूछे। नंद ने कहा,’’ये पूजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। वह वर्षा करता है।’’ कन्हैया ने  सुन कर जवाब दिया कि हरे भरे गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। उस पर गौए चरती हैं। जब बहुत वर्षा होती है। तो हम सब अपना गोधन लेकर गोवर्धन की कंदराओं में शरण लेते हैं। इसकी पेड़ों की जड़े वर्षा का पानी सोख कर हरा भरा रखती हैं। बादलों को रोकता है। अपनी कंदराओं में जल संचित कर, झरनों के रूप में देता  है। इस बार पूजा गोवर्धन की करनी चाहिए। सबको कन्हैया की बात ठीक लगी। प्रकृति ने ग्रामीणों को जो दिया था सब लाए। बाजरा की भी उन्हीं दिनों फसल आई थी, उसकी भी खिचड़ी बनी। दूध दहीं मक्खन मिश्री से बने पकवान, जिसके पास जो भी था वह उसे लेकर गोवर्धन पूजा के सामूहिक भोज में अपना योगदान देने पहुंचा। पूजा में अग्रज गोवर्धन को बनाया, बीच में कन्हैया रहे। गोधन, गिरिराज जी की पूजा की। प्रकृति की गोद में सबने मिलकर भोजन प्रशाद खाया और गीत संगीत के बिना उत्सव कैसा!! इसलिए  कन्हैया ने बंसी बजाई। इस तरह हर्षोल्लास से पूजा संपन्न हुई। इंद्र को अपना बहुत अपमान लगा। उसने भीषण वर्षा शुरु कर दी। पूरा क्षेत्र डूबाने लगा। कन्हैया ने सब ब्रजवासियों को गोधन के साथ गिरिराज पर आने को कहा और कनिष्ठ अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठा कर सबको सुरक्षित किया। प्रलय के समान वर्षा देख, कुछ तो कान्हा को कोसने लगे। उन्होंने सुदर्शन से पर्वत पर वर्षा की गति को नियंत्रित करने को कहा। शेषनाग से मेड़ बन कर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकने को कहा। इंद्र सात दिन तक अपना प्रकोप दिखा कर, ब्रहाा जी के पास कृष्ण की शिकायत करने पहुंचा। ब्रह्मा जी ने सुन कर जवाब दिया कि कृष्ण, विष्णु के अंश पूर्ण पुरुषोत्तम नारायण हैं। इंद्र ने कृष्ण से क्षमा मांगी। तब से अन्नकूट में कृष्ण की पूजा की जाती है। और हमें भी संदेश मिलता है कि वन पर्वत नहीं, तो वर्षा नहीं। हम अपने घरों में अन्नकूट का त्यौहार बड़ी भावना से बनाते हैं। पूरी कोशिश रहती है कि 56 भोग ही बने। बनाते समय सबका ध्यान मिर्च पर रहता है कि ज्यादा मिर्च हो गई तो कन्हैया को मिर्च लग जायेगी।  मिक्स वैजीटेबल भी मुझे लगता है कन्हैया के समय से चली है। गिरिराज जी की पूजा में उस समय कई वैराइटी की सब्जियां आई होंगी। कोई थोड़ी भी ला पाया होगा। लीलाधर ने सब मिला कर एक बनवा दी होगी। मिक्स सब्जी और सब कुछ बिना लहसून प्याज का अन्नकूट में बहुत स्वाद बनता है। अन्नकूट का प्रशाद ही शायद बाहर नौकरी कर रहे बच्चों को घर लाता है। इस खाने को कोई जूठा नहीं छोड़ता। क्रमशः 





Monday, 11 May 2020

गोर्वधन वही आते हैं, जिन्हें गिरि जी बुलाते हैं मथुरा यात्रा भाग 13 Mathura yatra Part 13 Goverdhan नीलम भागी



दोपहर ढलने लगी थी। हम गोर्वधन की ओर चल पड़े पर दिमाग में बरसाना छाया हुआ था। मुझे श्वेता की बरसाना यात्रा याद आ गई। उसने बताया कि उनके परिवार और मित्रों का ग्रुप देवबंद से बरसाना की होली देखने होली से दो दिन पहले आये। वो ये सोच कर अपना सबसे सुन्दर सूट पहन कर, लाडली महल की ओर सबके साथ चल दी कि रंग तो होली के दिन ही खेला जायेगा। यहां सब लड़कियों को राधा ही कहते हैं। रास्ते की दुकानों से साथ की सारी राधाओं ने चूड़ियां, कंगन और माला भी खरीद कर पहन लीं।  रंगीली गली के पास किसी ने छत से उन पर रंग डाल दिया। सब राधाएं बहुत दुखी हुईं क्योंकि सभी अपने बैस्ट कपड़े पहन कर गईं थीं। मथुरा स्टेशन से गोर्वधन 22 किमी दूर है। वहां से बस, जीप, टैक्सी खूब मिलती है। हम जब पहुंचे तो सात दिसम्बर था। इसलिए शाम जल्दी हो गई थी। गैस्ट हाउस में अपने रुम में जाते ही मैं लेट गई। रास्ते में हमने प्रोग्राम बना लिया था कि चाय पीते ही  गिरिराज जी की परिक्रमा शुरु कर देंगे। कुछ चाहते थे कि सुबह जल्दी उठ कर परिक्रमा शुरु करें। मैंने कहा कि सुबह जल्दी उठने के चक्कर में रात को ठीक से नींद नहीं आयेगीं। रात को करने से सुबह देर तक सो लूंगी। इतने में चाय के लिए बुलावा आ गया। ढोकला और चाय का आनन्द उठा कर, नंगे पांव चल दिए। दानघाटी में दानराय जी के मंदिर से परिक्रमा शुरु की। हरा भरा गोवर्धन पर्वत, कहीं पर रेत में चलते हैं तो कहीं पर पक्का रास्ता था। सात कोसी यानि 21 किमी की यात्रा थी। कभी पर्वत से र्सर से नील गायं दौड़ती निकल जाती। पूर्णिमा थी अंधेरा होत ही चंादनी फैल गई। पता नहीं कहां कहां से देश के कोने से लोग आए हुए थे। हरेक ग्रुप में एक ज्ञानी था जो गोवर्धन से सम्बधिंत कहानियां, कथा सुनाता था। मैं किसी भी ग्रुप के साथ सुनती, बतियाती चल पड़ती। परिक्रमा र्माग तो एक ही है, भटकने का सवाल ही नहीं पैदा होता था। बचपन से ही दीवाली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिप्रदा को घर में अन्नकूट का त्यौहार मनाते हैं। क्यों मनाते हैं? इसकी कहानी सुनते थे। गाय के गोबर से बने गिरिराज जी की परिक्रमा करते और भगवान को भोग लगाते हुए कहते ’जिसने खाया छप्पन भोग, उसके कट गए सारे रोग।’
और आज कन्हैया की लीलास्थली गोवर्धन पर्वत की कथाएं सुनती हुई परिक्रमा कर रहीं हूं। ऋषि पुलस्त्य इस पर्वत की खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुए। वे द्रोणाचल पर्वत से इसे उठा कर लाने लगे तो उसने कहा कि मैं आपके साथ चलता हूं, लेकिन आप पहली बार मुझे जहां रक्खेंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब उनकी ऊंचाई 3000मीटर थी। यहां पहुंच कर ऋपि का साधना का समय हो गया। गिरिराज जी को रख कर वे साधना में लीन हो गए। जब वे साधना से उठे तो पर्वत को उठाना चाहा। वो तो हिले भी नहीं। ऋषि ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया कि तुम धीरे धीरे घटते जाओगे और आज उनकी ऊंचाई तीस मीटर रह गई है।
एक जगह लाल रंग से लिखी इन पंक्तियों पर नज़र अटक जाती है।
इरादे रोज बनते हैं लेकिन, बन कर बिगड़ जाते हैं।
गोर्वधन वही आते हैं, जिन्हें गिरि जी बुलाते हैं।
 क्रमशः