रात को सोने से पहले और सुबह उठते ही विदेश में रहने वाली अपनी बेटी उत्कर्षिणी का मैसेज़ देखती हूं। 27 दिसम्बर को सुबह उसका मैसेज़ था कि उसे कोरोना हो गया है। मैसेज पढ़ते ही मैंने उसे कॉल किया। वह बताने लगी कि उसकी बेटी गीता का शायद स्कूल खुलेगा। उससे पहले सब पेरेंट्स का कोरोना टैस्ट होगा। वह अपना टैस्ट करवाने चली गई। राजीव जी और गीता बाद में करवा लेंगे। हॉस्पिटल से फोन आया कि वह कोरोना पॉजिटिव है। मैं चिन्ता कर रही कि कैसे मैनेज़ होग? गीता तो अभी छ साल की है। बेटी बोली,’’गीता बहुत रो रही है कि मैं उसे 15 दिन तक गले नहीं लगा सकती। मेरे कमरे में उसे आने को मना कर रखा है। आज तो सामने कुर्सी पर बैठने की बजाए स्टूल लाकर कमरे की जो हमने लक्षमण रेखा खींची है। वहां बैठी है।’’
यहां मुझे भी चैन नहीं था। मेरी 92साल की अम्मा मुझे लैपटाप खोलते न देखकर, रात को परेशान हो गई। मैं पढ़ती लिखती हूं। वे मेरे बराबर सोती हैं। ज्यादातर मैं पढ़ते हुए सो जाती हूं। वे ही रात में लाइट बंद करती हैं। उनके पूछने पर मैंने बताया कि उत्कर्षिणी को कोरोना हो गया। उन्होंने अपनी पूजा का समय और बढ़ा दिया। सारा परिवार उत्कर्षिणी के ठीक होने की और राजीव जी, गीता के ठीक रहने की प्रार्थना करने लगा और इतनी दूर से कर भी क्या सकते थे? श्वेता अंकुर दिन में मुझे कई बार फोन करते।
राजीव जी चाय के सिवाय कुछ बनाना नहीं जानते। गीता के जन्म पर राजीव जी हॉस्पिटल से आते तब हॉस्पिटल मैं जाती थी। एक दिन दाल बनाई। कूकर में प्रैशर था, दाल का छौंक साथ ही रक्खा था। वे आ गए। मैं छौंक दाल में मिलाए बिना चली गई। अगले दिन उत्कर्षिणी मुझसे पूछती है,’’मां कल आपने क्या बनाया था? मैंने राजीव जी से पूछा था कि आज क्या खाकर आए हो? उन्होंने बताया कि काली उबली हुई दाल थी, सब्जी पता नहीं किस चीज की थी उसमें नमक नहीं था। हम दोनों हसने लगीं कि दाल अलग खा ली। छौक सब्जी समझ कर खा लिया। लेकिन अब बेटी से पूछ कर खाना बनाना भी सीख रहे थे। यहां से जो काढ़ों की रैस्पी जा रही थी, उसे भी तीनों के लिए बना रहे थे। नखरों से खाने वाली गीता पापा का बनाया खाना खा और काढ़ा पी रही थी।
गीता को राजीव जी ने समझाया है कि जब मम्मा को हग करना हो उन्हें आवाज लगाना, वह सब काम छोड़ कर बेटी को हग करेंगे। मैं उत्कर्षिणी के साथ विडियो कॉल पर थी। इतने में रसोई से कुछ टूटने की आवाज़ आई। साथ ही अंगुली पर कट लिए गीता, लक्ष्मण रेखा पर खड़ी थी यह सोच कर कि अब तो मां उठ कर दौड़ेगी। पर मां कि जगह पापा दौड़े आए। शुक्र, मामूली कट था!! बैंडेड लगा दिया। वह समझ गई है कि उसे भी सहयोग करना है। मां को खुश रखना है। झाड़ू लगाती मां के कमरे के आगे ही कूड़ा बाएं से दाएं और दाएं से बाएं करती।
एक्सरसाइज़ करके दिखाती मौका देखते ही लक्ष्मण रेखा पार करने लगती तो....
गाना सुनाती
खाना भी वहीं मां के सामने खाती
नाटक करके दिखाती
गीता मां को हग करने के लिए एक एक दिन गिनती और मैं स्वस्थ उत्कर्षिणी को उसकी बेटी को हग करते हुए देखने के लिए एक एक दिन गिन रही थी और वह दिन आ गया।