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Thursday 7 April 2022

दिल्ली से रक्सोल, मुक्तिनाथ की ओर! नेपाल यात्रा भाग 1 नीलम भागी Nepal Yatra Part 1 Neelam Bhagi

 


फेसबुक मित्र ने मुझे मुक्ति नाथ यात्रा के रास्ते का विडियो भेजा, जो मार्च 2020 का था। जिसमें खूबसूरत रास्ते से गुजरने वाली जीप में नेपाली गीत बज रहा था और काली सड़क के दोनों ओर सफेद बर्फ पड़ी हुई थी। मैंने तभी मुक्तिनाथ जाने का निश्चय कर लिया था। कोरोना के कारण दो साल जाना टल गया। फेसबुक में जयप्रकाश गुप्ता जी का नेपाल यात्रा टूर देखा तो उन्हें फोन किया। वे मुक्तिनाथ नहीं जाते थे। कारण पूछने पर उन्होंने मुझे रुट समझाना शुरु कर दिया। मैंने कहा,’’जब कभी मुक्तिनाथ टूर ले जायेंगे तो मुझे बताइयेगा।’’ मुझे गुप्ता जी का मैसेज आया कि 20 मार्च से 31 मार्च तक नेपाल का टूर है। उसमें मुक्तिनाथ पढ़ते ही मैंने जाने का मन बना लिया। जनकपुर और सीतामढ़ी मेरा देखा हुआ था, कोई बात नहीं फिर से देख लूंगी। अंकुर ने गुप्ता जी का नेपाल टूर बुक कर दिया। अब मैं मुक्तिनाथ के यूट्यूब पर वीडियो देखने लगी और डरने लगी। जिसमें बाइक वालों ने तो ऐसे ऐसे वीडियो बनाए हैं, जिसे देखने के बाद ऐसा लगता था जैसे ये मुक्तिधाम से नहीं, मौत के कुएं से बच कर आयें हैं। मैंने अब फैसला कर लिया कि मैं मुक्तिनाथ नहीं जाउंगी। गुप्ता जी को भी फोन किया कि मैं मुक्तिनाथ नहीं जाउंगी। सुनते ही उन्होंने कहा,’’कोई बात नहीं, आप पोखरा में रुक जाना।’’अब मेरा मन शांत हो गया। अंकुर सुन कर बहुत खुश हुआ और बोला,’’इतने खराब सड़क के रास्ते में आप टैंशन में रहतीं। अगर आपका मन है तो मैं फ्लाइट बुक कर देता हूं।’’मैंने मना कर दिया क्योंकि यात्रा में मुझे मंजिल से ज्यादा रास्ता, नए लोगों से मिलना और नेचर को एंजॉय करना, अच्छा लगता है। गुप्ता जी ने जो लिस्ट भेजी उसके अनुसार गाड़ी 3 ए.सी. है बिस्तर अभी मिलता नहीं इसलिए रास्ते के लिए एक कम्बल लेना है और मुक्तिनाथ के लिए एक जोड़ी गर्म कपड़े लेने है क्योंकि वहां रात को रुकना है। अगले दिन दर्शन करने हैं। वहां बहुत ठंड होती है। बाकि जगह नेपाल में यहां जैसा मौसम है। मैं यात्रा की तैयारी में लग गई। हमेशा की तरह कंबल की जगह हल्की और बहुत गर्म शॉल ली। मुक्तिनाथ मैंने जाना नहीं था। पता नहीं क्यों फिर भी मैंने थरमल, हुडी, गर्म मोजे रखे और कम्बल जैसी शॉल तो ट्रेन में ए.सी. के कारण ले जानी ही थी। स़फर में सामान  मैं उतना ही लेती हूं, जितना उठा सकूं इसलिए बाकि कम से कम वजन के मैंने कपड़े लिए पर गर्म कपड़ों को नहीं निकाला!    

   20 मार्च को शाम 5.30 पर सत्याग्रह एक्सप्रेस आनन्द विहार रेलवे स्टेशन से पकड़नी थी। यह स्टेशन मेरे घर से 20 मिनट की दूरी पर है। इस स्टेशन पर मैं पहली बार जा रही थी। गुप्ता जी को टिकट के लिए फोन किया। उन्होंने कहा प्लेटर्फाम नम्बर 5 पर 4.30 पर पहुंच जाना टिकट वहीं दे दूंगा। स्टेशन पर पहुंच गई। साफ सुथरा स्टेशन देखते ही मन खुश हो गया। मैंने सोचा कि 5 नम्बर प्लेटफॉर्म पर लगेज़ के साथ सीढ़ी चढ़ कर जाउंगी फिर उतरुंगी। कुली दिख रहें हैं तो बुला लेती हूं। इतने में मेरे पास एक बैटरी गाड़ी रुकी। मैंने उसी से पूछा,’’प्लेटफॉर्म न0 5 जाने का क्या लोगे?’’वो तपाक से बोला,’’150 रु।’’ पास से गुजरने वाली एक लड़की ने कहा,’’मुझे भी सत्याग्रह एक्सप्रेस पकड़नी है आप मेरे साथ चलिए।’’ मैं चल दी। लगेज़ खींचते हुए जरा सा चले लाल रंग से लिखा था प्लेटर्फाम न0 5 की ओर, और बाजू में लिफ्ट। लिफ्ट से प्लेटर्फाम पर पहुंचे। इतना बढ़िया स्टेशन सामान तो उठाना ही नहीं पड़ा। गुप्ता जी को फोन किया। वे बोले,’’बी 2 डिब्बे के आगे आ जाओ।’’ वहाँ जाकर देखा कोई भी मेरा परिचित नहीं है। ग्रुप फोटो हो रहा था। मैं भी किनारे पर खड़ी होकर ग्रुप फोटो में शामिल हो गई। गुप्ता जी को परिचय देते हुए कहा,’’मैं नीलम भागी।’’ उन्होंने तुरंत मुझे आने जाने का टिकट दिया और मैं बी 2 में 20 न0 लोअर सीट पर आकर बैठ गई।   क्रमशः       



        


1 comment:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

बहुत कठिन यात्रा खूब सूरत वर्णन