दर्शनों की लाइन में लगी हूं। यहां लिखा है तस्वीर लेना सख्त मना है। जहां भी ऐसा लिखा होता है, मैं वहां नियम का उल्लंघन कभी नहीं करती। मोबाइल पर्स में रखकर यहां फोटो खींचने और सेल्फी लेने से अब मुक्त हूं। यहां की सुन्दरता, श्रद्धालुओं के चेहरे से टपकती श्रद्धा को आंखों के कैमरे से दिल में उतारती हूं। नहीं लिख पा रहीं हूं कि कैसा माहौल है !! असीम मानसिक शांति मिल रही है। आवाज़ है तो केवल मुक्तिधारा के पवित्र पानी की और भक्तों द्वारा बजाए जा रहे घण्टों की। मंदिर का स्वरुप ऐतिहासिक है। 14 फीट ऊंचा और 8 फीट चौड़ा यह मंदिर पगौड़ा शैली में बनाया गया है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले सामने दो मुक्ति कुंड हैं देवी लक्ष्मी और सरस्वती कुंड। इसमें गंडकी और दामोदर कुंड की जलधारा आती है। ऐसा विश्वास है कि जो इसमें डुबकी लगाता है। वह नकारात्मक गतिविधियों से मुक्त होगा। बर्फीला ठंडा पानी है आस्था में ठंड का क्या काम भला! डुबकियां लगाई जा रहीं हैं। ’’मुक्तिनाथ’’ नाम के महत्व का एक धार्मिक अर्थ है। यह दो शब्दों का मेल है। ’’मुक्ति’’ मोक्ष या निर्वाण का प्रतीक है और नाथ शब्द स्वामी या भगवान का प्रतीक है।
दो मुक्ति कुंड के सामने मुक्तिनाथ मंदिर की शक्ति को गंडकी चंडी और भैरव को चक्रपाणी के रुप में संबोधित किया जाता है। माना जाता है कि सति का सिर यहां गिरा था। यह शक्तिपीठ है। दीपक, धूप अगरबत्ती आदि सब प्रवेश के बाहर स्थान पर जलाई जाती है इसलिए यहां धुआं सा है। अंदर तो सिर्फ भगवान की छवि आंखों से दिल में उतारनी है इसलिए नम्बर जल्दी आता है। लाइन के चलने से अब मैं मुक्ति-नारायण क्षेत्रम में आ गई हूं। मेरे बाएं हाथ पर अग्निकुंड है
और सामने श्री मुक्तिनाथ का निवास स्थान है ’’मुक्ति’’लक्ष्मी और सरस्वती और गरुण के साथ सामने हैं। मुक्तिनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की सोने की मूर्ति है।
मैं हाथ जोड़े दर्शन करती हूं। मेरे तिलक लगता है और बाहर आती हूं। भगवान विष्णु, मूर्ति देवी श्री देवी और भू देवी को जीवन मुक्ति देने वाला माना जाता है। इसलिए इसे मुक्तिनाथ कहते हैं।
अब मुझे कोई लैटिट्यूड और ऑक्सीजन की तकलीफ़ नहीं है। सुबह ब्लड प्रैशर की गोली खाना भी भूल गई थी क्योंकि मुझे तो लग रहा था कि मैं नहीं जा पाउंगी। मंदिर का कोना कोना घूम रहीं हूं और मुझे अपनी 94 साल की अम्मा याद आने लगीं। जो जाते ही मुझसे पशुपति नाथ के दर्शनों के बारे में पूछेंगी क्योंकि श्री मुक्तिनाथ मेरा जाना तो उनके सपने में भी नहीं होगा। ऐसा इसलिए कि मैं माता वैष्णों देवी दर्शनों के लिए गई तो बिना दर्शन किए कटरे से लौट आई क्योंकि मौसम खराब होने से उस दिन हैलीकॉप्टर सेवा बंद थी। घोड़े पर मुझे डर लगता है।
शिवखोड़ी गई तो आगे मैं पैदल चढ़ाई से डर गई। जहां से घोड़े 500रु में मिलते हैं वहां से लौट आई क्योंकि घोड़े पर बैठने से डरती हूं। आज मैं दुनिया के सबसे ऊंचे भगवान विष्णु के मंदिर सड़क के रास्ते बस द्वारा आईं हूं। इस खुशी ने मेरे अंदर दुगुनी उर्जा का संचार कर दिया। मेरे ऊपर मुक्तिनाथ ने इतनी कृपा की है इसलिए मैं अपने ऊपर कोई प्रयोग नहीं कर रही थी।
मंदिर के पीछे 108 मुक्ति धाराएं गौमुखों से लगातार बहतीं हैंं। दामोदर कुंड से गंडकी उद्गम का जल गौमुख से लगातार बहता है। मुक्ति यानि मोक्ष, धारा मतलब वेग। इस ठंडे जलधारा में स्नान करना बहुत साहस का काम है। मैंने तो हथेली में जल लेकर अपने पर छिड़क लिया। ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि मुक्ति धाराओं के नीचे फर्श ऐसा है कि कोई फिसल नहीं सकता। इसके लिए मंदिर प्रशासन को साधूवाद। यहां श्रद्धालू भागते हुए स्नान करते हैं लेकिन प्रत्येक बेहद ठंडी धारा से होकर गुजरते हैं। वीडियो देख सकते हैं।
108 पानी की धारा यह संख्या हिन्दू दर्शन में बहुत महत्व रखती है। एक उदाहरण के रुप में ज्योतिष में 12 राशियां और 9 ग्रह जो कुल 108 का संयोजन देते हैं। 108 जलस्रोतों के इस पवित्र जल से स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ऋषिकेश से आए हेमंत तिवारी ने यहां स्नान किया। मैंने उनसे पूछा,’’आपको 108 मुक्तिधाराओं के नीचे स्नान करने पर कैसा लगा?’’ उन्होंने जवाब दिया कि उस अनुभूति को बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं।
तिब्बती बौद्ध परंपरा में कहा गया है कि गुरु रिनपोछे, जिन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक पह्मसंभव के नाम से भी जाना जाता है ने तिब्बत जाते समय मुक्तिनाथ में ध्यान लगाया था।
हिन्दू और बौद्ध दोनों की आस्था है मुक्तिनाथ धाम में यह धाम यह दिखाने का एक आदर्श उदाहरण है कैसे दो धर्म एक ही पवित्र स्थान को आपसी सम्मान और समझ के साथ साझा कर सकते हैं। क्रमशः
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