9 रोपनी(4578.48 मीटर वर्ग)के क्षेत्र को कवर करते हुए बड़े चक्र-शिला पर गलेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के कारण, मुख्यमंदिर को दूसरे पशुपति के नाम से भी जाना जाता है। पास में ही काली गंडकी और राहु नदी का पवित्र संगम है। धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से स्थान बहुत पवित्र है। गलेश्वर मंदिर प्रत्येक दिशा में आश्चर्यों से घिरा है। पश्चिम में पुलस्त्य पुल्हाश्रम तीन महान शिव को समर्पित, प्रसिद्ध ऋषि पुल्हा, पुलत्स्य और विश्ररवा जो यहां ध्यान, साधना करते थे। पुलस्त्य और पुल्ह भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे और विश्रवा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे। अपने पिता की तरह वह भी महान विद्वान थे। जनश्रुति है कि विश्रवा ऋषि के पुत्र लंकेश्वर रावण का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। पुल्हाश्रम के पास रावण की नाभि दफन स्थान है। इसी के आधार पर पुलस्त्य आश्रम को रावण का जन्मस्थान भी कहा जाता है। उनका विवाह मुक्ति क्षेत्र में ठक-खोला के स्थानीय ठकाली की बेटी मंदोदरी से हो गया था। इस क्षे़़त्र में बहुत ठकाली लोग रहते हैं। और पूर्व में गायत्री माता मंदिर और कृष्ण गंडकी, सप्तऋषियों का प्रायश्चित स्थान, 108 शिवलिंगम और ऋषभदेव के पुत्र की तपस्या गुफा भी है।
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने भी गलेश्वर के ज्योतिर्लिंश्वर के दर्शन किए थे।
एक बार दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया। जिसमें भगवान शिव व सती को नहीं बुलाया क्योंकि वे शिव को अपने बराबर नहीं समझते थे। सती बिना निमंत्रण के वहां गई। जहां वे अपनेे पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ कुंड में कूद गईं। शिवजी को जैसे ही पता चला उन्होंने यज्ञ कुंड से मृत सती को निकाला और वे तांडव करने लगे। ब्रह्माडं में हाहाकार मच गया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सति के शरीर को 51 भागों में अलग किया। जो भाग जहां गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। जब वे सति के शरीर को लेकर कृष्ण गंडकी के किनारे हिमालय पर्वत की ओर जा रहे थे तो यहां सती का गला गिरा और यह गलेश्वर कहलाया। बाद में ज्योतिर्लिंगेश्वर की व्युत्पत्ति होती है। यहां श्रद्धालु जो भी मनोकामना लेकर आता है, सभी की मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं। मर्हिर्षयों और संतों ने यहां ध्यान किया तभी तो गलेश्वरधाम को ध्यान भूमि भी कहते हैं। जलबरहा कुंड शुष्कमौसम में भी नहीं सूखता।
बहुत साफ सुथरा है और प्राकृतिक सौन्दर्य तो चारों ओर बिखरा ही हुआ है। यहां शिवरात्रि, बालाचतुर्दशी और सावन के पूरे महीने उत्सव का माहौल रहता है।
बाहर पूजा अर्चना और धार्मिक सामान की दुकाने लगी हुई थीं। खूब खरीदारी हो रही थी।
नाश्ता किया। अब चाय फीकी बनती है। जिसको फीकी लेना है, पहले फीकी ले लो। बाद में उसमें चीनी पड़ती है। चाय नाश्ते के बाद अब हम मुक्तिनाथ धाम की ओर चल पड़े। गलेश्वर कस्बा पार करते ही नदी यहां से यू-टर्न ले लेती है और इसके साथ ही सड़क भी। अब शुरु होता है कच्चा रास्ता। प्राकृतिक सौन्दर्य जितना मनोहारी है रास्ता उतना ही खतरनाक। कभी कभी तो धूल के गुब्बार में गाड़ी चलती है। हम दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर(ऊँचाई 3800 मीटर) में जा रहें हैं। क्रमशः
2 comments:
और पोस्ट करते रहना, ट्रैवलिंग के स्टोरीज, इंस्पिरेशनल हैं
हार्दिक धन्यवाद
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