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Monday, 25 April 2022

मुक्तिनाथ में रुकना Overnight Stay at Muktinath नेपाल यात्रा भाग 15 नीलम भागी Muktinath Nepal Yatra Part 15



     पैदल चल तो मैं पड़ी पर थोड़ा चलने पर ही थकने लगती फिर रुकती और चलती। जब से मैंने नीलकंठ की पैदल यात्रा की है तब से मुझे चलने में कोई परेशानी नहीं होती है। अच्छा हुआ कि उस समय मेरे दिमाग में यह नहीं आया कि लैटिट्यूड और ऑक्सीजन की कमी से ऐसा हो रहा है। अगर ऐसा होता तो सब सिम्ट्म्स मेरे में आ जाते। बस यही दिमाग में आ रहा था कि होटल बहुत दूर है। रास्ते के दोनों ओर होटल ही होटल थे पर मोनालिसा नहीं था। मेरे से पीछे वाले भी आगे निकल गए। दोनों छोटी गाड़ियां सबको ढो रही रहीं थी। खैर होटल पहुंच गई। रुम लेते समय कुछ लोगों की वजह से बदग़मनी सी मच जाती थी वैसा ही नज़ारा है। सबसे आखिर में मैंने चाबी ली। रुम में दो खिड़कियां और दोनों बैड अलग थे मैंने शुक्र किया। मैंने खिड़की की ओर का बैड लिया। ये सोच कर की मैम कोस्टल एरिया की, और 70+ हैं दीवार के साथ का उनके लिए छोड़ा। मुझे बहुत ठंड लग रही थी। अपने गर्म कपड़ों शॉल समेत मैं कंबल ओढ़ के लेट गई पर ठंड लगे जा रही थी, साथ ही प्यास भी लग रही थी। देखा मेरे पास पानी भी नहीं था। इस टूर में पानी की एक लीटर की बोतले थीं, जितना मर्जी लो। मेरी आदत है न खाना जूठा छोड़तीं हूं न ही पानी की एक बूंद भी बरर्बाद करती हूं। एक बोतल खत्म होंने पर ही दूसरी लेती हूं। रास्ते में पानी भी कम पी रही थी, ये सोच कर की पता नहीं इस खतरनाक रास्ते पर कब वाशरुम मिलें। मुक्तिनाथ पहुंचने की खुशी में, मैं पानी की बोतल उठाना भूल गई। इतने में मैम आई, उनके हाथ में दो घूंट पी हुई पानी की बोतल थी और उनका अंग्रेजी में टेप चालू कि जब वे कश्मीर गईं थीं तो उनसे लोग बहुत इम्प्रेस हुए थे। उन्हें गिफ्ट में टोपी, दस्ताने, जुराबें ऊनी दीं थीं। वे यहाँ लाना भूल गईं। होटल के रास्ते में और बाहर बहुत सुन्दर हाथ से बुना सब कुछ बहुत कम दामों में बिक रहा था। मेरा मन हुआ कि बोलूं बाहर से खरीद लो। पर मैंने सोच रखा था कि रुम के अन्दर सिर्फ जरुरी बात और बाहर जाते ही इनके पास भी नहीं खड़े होना है। मैंने पूछा,’’क्या बाहर पानी रखा है, मैं लाना भूल गई। बड़ी प्यास लगी है।’’ सुनते ही वो तुरंत बाहर गई दो पानी की बोतल लाई और अपने बैग में रख लीं। मैं हैरान! हमारे यहां तो भंडारे छबीलें लगाते हैं और ये! मैं बाहर गई। नाज़िर दिखा मैंने पूछा,’’पानी कहाँ रखा है? उसने कहा कि यहां जो रखा था वो खत्म हो गया। गाड़ी से लाता हूं और तुरंत पेटी लाकर रखी उसने मुझे दो बोतल पकड़ा दीं और कहा बाकि बोतलें बस में रखीं हैं। मैंने रिसेप्शन पर कहा कि दो रजाई और दे दो। रजाई देने आया तो उसे कहा कि एक मैम पर फैला दो और दूसरी मेरे पर। मैंने बादाम और छुआरे आप भी लिए इसे भी दिए। अब कुछ ठंड लगनी कम हुई। बाहर गुप्ता जी को बुखार लगने लगा। सब उनके उपचार में लगे हुए थे। हमारा रुम किचन के पास था, सब आवाजें आ रहीं थी। इधर मैम का अंग्रेजी टेप चालू था कि रोगी क्यों आतें हैं? नर्सिंग होम में जाकर मरें। हर वाक्य में उसने वाहियात गालियां भी पिरों रखीं थीं। मेरे अंदर तो मोबाइल देखने की भी हिम्मत नहीं थी। सबके खाने के बाद मैं खाना खाने गई। और आते ही सो गई। सुबह मुझे पहले से ठीक लग रहा था। मैम हमेशा की तरह पहले तैयार होकर बाहर थीं। मैंने खिड़की से बाहर देखा, नीचे पत्तियां झड़े हुए वनस्पतियां हैं कहीं कहीं बर्फ है और ऊपर देखने पर सूरज की रोशनी से चमकती पहाड़ों की चोटियां हैं।





मन एकदम खुश हो गया। मुक्ति क्षेत्र में आई हूं जो होगा देखा जायेगा। कमरे में नहीं बैठूंगीं, जितनी देर भी यहाँ रहूंगी, इस क्षेत्र के प्राकृतिक सौन्दर्य को अपने दिमाग की मैमोरी में फीड करुंगी। गर्म कपड़ों से लैस होकर, सर्दी से पूरी मोर्चाबंदी करके नाश्ता किया एक पेपर कप में चीनी भर कर कुर्ते की जेब में रखी और एक मीठे बिस्किट का पैकेट और पानी की बोतल ली और चल दी। बाहर आकर नाज़िर से पूछा,’’कोई गाड़ी है तो सीढ़ियों तक पहुंचा दे। सुनकर वह हंसते हुए बोला,’’वो देखिए पास में तो सीढ़ियां है।’’



मैं आस पास की दुकानों को देखती हुई, मुक्तिबाबा के द्वार पर पहुंच गई। ऊपर देखती हूं तो बाबा तक जाने के लिए सीढ़ियों का अंत नहीं दिख रहा है। पहाड़ों से सूरज झांक रहा है। मेरा गला भर गया। मैंने मन में बाबा से प्रार्थना की,’’बाबा मैं खतरनाक सड़क के रास्ते बस से आपके दर्शन करने आईं हूं। क्या मैं ऐसे ही लौट जाऊं?’’क्रमशः   




       


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