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Thursday, 28 April 2022

मुक्तिनाथ की यात्रा ने मेरी जिंदगी बदली! नेपाल यात्रा 17 नीलम भागी Muktinath changed my life and attitude.

           मैं एक साधारण महिला हूँ। हठ योग के कारण अपने शरीर से जबरदस्ती नहीं कर रही थी। बस दर्शन करना चाहती हूं वो भी स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए। अचानक मन में प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि मेरे सहयात्री सब सुबह जा चुके हैं। चाय बिस्किट रखे थे। मैं तो वही खाकर चली हूं। क्योंकि मुझे रुम में आवाजें आ रहीं थीं कि वे कह रहे थे कि हम तो नाश्ता बाबा मुक्तिनाथ के दर्शन के बाद करेंगे। शाम को भी मैं ठंड से कांपती हुई लिहाफ में दुबकी हुई थी। ये फोटोग्राफी कर रहे थे। इसका कारण शायद मेरी सोच है, मैं मान कर ही आई हूं कि मुक्तिनाथ धाम बहुत मुश्किल है कैसे जाउंगी! इसलिए सारी कठिनाइयां मुझ पर सवार हो गईं हैं। हमारे प्रत्येक तीर्थ से संबंधित पौराणिक कथाएं हैं जिन्हें हम बच्चों को सुनाते हैं तो वे र्काटून छोड़ कर बड़े मन से सुनते हैं। अब मैं मन में मुक्तिनाथ की कथा दोहराने लगी।     

जालंधर दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत पतिव्रता थी। उसी के पतिव्रत धर्म से जालंधर शक्तिशाली बन गया। उसको मारना और पराजित करना बहुत मुश्किल हो गया था। अब उसे अपने बल का बहुत अभिमान हो गया। वह देवताओं की स्त्रियों को भी सताने लगा। एक दिन जालंधर शिव का रुप लेकर देवी पार्वती के समीप गया परंतु उन्होंने योगबल से तुरंत उसे पहचान लिया और वहां से अर्न्तघ्यान हो गईं। अब पार्वती क्रोधित हो गई और शिवजी को जालंधर से युद्ध करना पड़ा। वृंदा के सतीत्व से महादेव का हर प्रहार जालंधर पर निष्फल जाता। जालंधर के नाश के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना जरुरी था। भगवान विष्णु जालंधर का वेश धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जालंधर का वध कर दिया। जब वृंदा को सच्चाई का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को कीड़े मकोड़े बनकर जीवन व्यतीत करने का श्राप दिया। विष्णु ने श्राप स्वीकार किया। कालांतर में शालिग्राम पत्थर जीवाश्म है। इसी शालिग्राम में भगवान विष्णु वास करते हैं। इन्हें विष्णु का प्रतीक मान कर इसकी पूजा करते हैं। ये केवल गंडकी नदी में मिलता है। जो विष्णुजी के मंदिर की स्थापना के लिए आवश्यक है। मुक्तिक्षेत्र में विष्णु जी वृंदा के श्राप से मुक्त हुए थे। यह वह स्थान है जहां मोक्ष की प्राप्ति होती है।

    मुक्तिनाथ परिसर के दक्षिणी कोने में, मेबर लखांग गोम्पा नाम की जगह है। जिसे सालमेम्बर डोलम्बार गोम्पा या ज्वाला माई मंदिर भी कहा जाता है। इस र्बोड को ही देख कर मैं खुश होने लगी। यहां प्राकृतिक गैस से लगातार अग्नि जल रही है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि यह वो जगह है जहां ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था। इस अग्नि के साथ जल की धारा भी बह रही है। आग और पानी का यह संयोग बहुत ही दुर्लभ है। इसलिए इस जगह को त्रिशक्ति और पंचतत्व का प्रतीक माना गया है।

   और अंतिम सीढ़ी पार करते ही सामने रखे बैंच पर बैठ कर पहले मैं बाबा मुक्तिनाथ को धन्यवाद देते हुए खूब रोई कि मुझे आपके दर्शन भी होंगे और दित्या से भी मिलूंगी। यहां तो चारों ओर इतना खुशनुमा माहौल है कि मैं लिखने में असमर्थ हूं। सबके मन में उल्लास क्यों न हो! मस्टैंग जिले में, नेपाल के पश्चिम मध्य भाग में, जोमसोम से 25 किमी उत्तर पूर्व में,   दुनिया के सबसे बड़े थोरुंग-ला दर्रे में से 3800 मी की ऊंचाई पर स्थित मंदिर जिसकेे दक्षिण में बर्फ से ढकी अन्नपूर्णा पर्वत की सुंदरता मन मोहती है और उत्तर में तिब्बती पठार का खूबसूरत दृश्य है। वहां हम बाबा मुक्तिनाथ के दर्शन कर रहें हैैं और परिसर में पेड़ पौधे हैं। 




    मेरी तो मनस्थिति एक दम बदल गई। कुछ ही समय में मैं एकदम नार्मल! पहले मैं दर्शनों की लाइन में लगी फिर वहां से हट कर आसपास घूमने लगी फिर लाइन में लगी। वहां बड़ी धुंध सी थी। जो अनजान मेरी स्लोमोशन देखते हुए आए थे, वे दर्शन कर चुके थे अब हम सेल्फी ले रहे थे। वे दर्शन करके खुश थे, मुझे भी दर्शन होंगे मैं इसलिए खुश थी। क्रमशः 






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