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Tuesday 26 April 2022

बाबा मुक्तिनाथ की पैदल चढ़ाई Tough Climb to Muktinath नेपाल यात्रा भाग 16 नीलम भागी Muktinath Nepal Tour Part 16 Neelam Bhagi

पहले सोचा वापिस लौट जाऊं, उसी समय खिली हुई धूप निकली और मैं धूप के लालच में पहली सीढ़ी पर बैठ गई। यहां मेरी बस का कोई सहयात्री नहीं था। मेरे साथ सिर्फ मेरी सोच थी। सोचने लगी कि कल होटल कितना दूर लग रहा था और गुस्सा आ रहा था आज मुक्तिनाथ द्वार के कितना पास है! कुछ लोग चार कन्धों पर सवार होकर दर्शनों के लिए जा रहे थे। उसी समय विचार आया कि ये चारों कम से कम दिन में एक बार तो श्रद्धालू का भार उठा कर इतनी ऊंचाई पर चढते उतरते होंगे। मुझे तो सिर्फ अपने आप को ले जाना है। यहां तीन सीढ़ियां और चौथी सीढ़ी इतनी चौड़ी कि उस पर पालकी को रख कर चारों रैस्ट कर लेते हैं। और मुझे हैरानी इस बात पर हो रही थी कि रैस्ट के समय पालकी पर लेटा व्यक्ति उठ कर आस पास के नज़ारों का भी आनन्द नहीं लेता है।



मैं उठ कर खड़ी हो गई और मन में बाबा मुक्तिनाथ से प्रार्थना की,’’बाबा मैंने मेरी बेटी उत्कर्षिनी की छोटी बेटी दित्या  का अमेरिका में जन्म होने के कारण मैंने उसको देखा भी नहीं है, अगर मुझे कुछ हो गया तो वो मुझे तस्वीर में ही देखेगी और मैं आपके दर्शनों के बिना भी नहीं जाना चाहती। जहां तक मुझसे आया जायेगा आऊंगी, उसके बाद लौट जाउंगी।

कम से कम मन में ये तो मलाल नहीं रहेगा कि मैंने कोशिश नहीं की है।" आज मुझे अपने ओवरवेट होने का बहुत मलाल था। मैं चढ़ने लगी। दर्शन करके लौटने वाली हैदराबाद की रोजा मुझसे बोली,’’बस, जाने में आपको तकलीफ़ होगा। दर्शनों के बाद मन खुशी से भर जायेगा और ये दूरी कुछ नहीं लगेगी।"🙏 और मेरी तस्वीर खींच दी।


अब मैं दुगने जोश से धीरे धीरे चल दी। जब नहीं चला जाता तो बैठ जाती। सोच का कितना असर होता है! जहां चढ़ना ही इतना कठिन लग रहा था वहीं कुछ श्रद्धालु कभी नाचते हुए चढ़ रहे हैं या नाच रहे हैं। उनका कहना था कि जब थकान हो तब नाचो तो थकना गायब हो जाती है फिर चढ़ने लगो। जब ये श्रद्धा में नाचना चढ़ना दोनों कर रहें हैं तो मैं भी चढ़ सकती हूं। और चढ़ने लगी। 

             देखा सामने से नाज़िर आ रहा है। मेरे पास आते ही बोला,’’मैं तो लौट भी आया, आप अभी तक यहीं हो! मैं हंस दी। वो बोला,’’ऐसे ही चढ़ती जाओ, पहुंचोगी जरुर।’’और चला गया। इतनी व्यवस्था करते हुए वह मुक्तिनाथ भी होकर आ गया।


अब मैं काफी सीढ़ियां चढ़ गई। अचानक मुझे लगा कि अब मैं नहीं चढ़ पाऊंगी, एक कुत्ता मेरे साथ आकर चलने लगा। मैंने नीचे ऊपर सीढ़ियों पर देखा कोई और कुत्ता नहीं है। मैं रुकती ये रुक जाता, मैं चलती ये चलने लगता। पता नहीं कहां से एक कथा इस समय दिमाग में आ गई कि महाराज युधिष्ठिर जब स्वर्ग जा रहे थे तो उनके साथ एक कुत्ता भी गया था। मैंने पानी पिया और बिस्कुट का पैकेट खोलने लगी फिर रुक गई और कुत्ते से बोली,’’देख कुत्ते तूु मेरा यहां इंतजार कर, अगर मैं स्वर्ग से लौट आई तो इस पैकेट से तूु पार्टी करना।’’


मुंह में चीनी डाली और पानी पिया और चल दी। कुछ समय बाद पीछे मुढ़ कर देखा कुत्ता जी साइड में धूप में बैठा हुआ था और आखिरी सीढ़ी तक श्रद्धालु थे यानि  हजारों लोग तो आते ही होंगे और मैं इसे अपनी स्वर्ग यात्रा मान रहीं हूं। मेरी आंखों के आगे दित्या की तस्वीरें आने लगीं।

           थोड़ा बैठती, चीनी खाती, पानी पीती और गहरे सांस लेती फिर चढ़ने लगती। अब मैं लाल गेट से कुछ दूरी पर थी यानि पहुंचने वाली थी। मुंह से और नाक से गहरे सांस लेती मैं पहुंच गई। नीचे देखती हूं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा! हाय! मैं पहली सीढ़ी से लौटने वाली यहां तक आ गई!



अपने आप अपनी खुशी मना कर जैसे ही छोटे दरवाजे़ से अंदर आती हूं तो सीढ़ियां ही नज़र आ रहीं हैं जो ज्यादा नहीं हैं पर यहां पहुंचने पर सब उल्लास से बाबा मुक्तिनाथ के जयकारे लगाते हैं। और अब बहुत तेजी से सीढ़ी चढ़ते हैं। लेकिन यहां से चढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है। नथुने फुला फुला के सांस ले रही हूं। लौटने वाले मेरा बहुत उत्साहवर्धन कर रहे हैं। क्रमशः    




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