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Monday 11 July 2016

अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक सोनमूड़ा, श्री यंत्र मंदिर, Madhya Pradesh Part 14 Neelam Bhagi नीलम भागी




 
गाड़ी में बैठते ही शरद ने पूछा कि हम खाना उसके बताये रैस्टोरैंट में खा रहें हैं न। मैं बोली,’’हाँ एक बार खाया है।’’क्योंकि  मैं भी अपनी आदत से मजबूर हूँ। वो ये कि जब भी मुझे कोई खाने की जगह बताता है, तो मैं वहाँ जरूर जाती हूँ। नई जगह और नया खाना भी जरूर ट्राई करती हूँ। यहाँ के खाने ने मुझे निराश नहीं किया। चूल्हे की रोटियाँ, ताजी़ सब्ज़ियों का स्वाद ही अलग था। पाश्चुराइज दूध पीते पीते ताजे दूध का स्वाद ही भूल गये थे। चाय पीने बैठे, मैंने चाय वाले से एक गिलास दूध लिया। उसने दिल खोल कर चीनी डाल कर, स्टील का गिलास ऊपर तक छलकता हुआ भर कर दिया। पहला घूंट भरते ही मुझे मेरठ में पाली अपनी गंगा, यमुना, गोमती .... की याद आई। मेरे घर में गाय का नाम नदियों के नाम पर रखने का रिवाज़ है। नर्मदा नाम मैंने सोचा था, अगली गाय का, पर नौएडा शिफ्ट हो गये। यहाँ आते ही गंगा यमुना ही चोरी हो गई। यहाँ गाय पालना मना है। होशंगाबाद से ही मुझे ताजा दूध, चूल्हे पर उबला, धुएं की महक वाला मिला है। दूध से बनी मिठाइयों का भी स्वाद कढ़हे दूध जैसा मिला। यहाँ से सोनमुदा पहुँचते ही हमारा पहली बार स्वागत हुआ, स्वागत कर्ता थे लंगूर और भूने चने बेचने वाले। लंगूर देखते ही हम डर गये। इस डर का भी एक कारण था। नौएडा में बंदरों ने बहुत उत्पात मचा रक्खा है। जिस सेक्टर वालों ने लंगूर लगा रक्खा है, वहाँ बंदर नहीं आते। लंगूर वाला साइकिल के कैरियर पर एक लंगूर लेकर दस बजे से पाँच बजे के बीच चक्कर लगा जाता है। उसे दस हजार रूपये महीना एक सेक्टर से मिलते हैं। अब कभी कभी बंदर आते हैं, तो वो भी दस से पहले और पाँच से बाद। एक लंगूर के आने से जब बंदरों के झुण्ड भाग जाते हैं, यहाँ तो लंगूूरों के झुण्ड! मैं तो डर गई। शरद बोला,’’ आप डरिये मत, ये लंगूर किसी को कुछ नहीं कहते।’’हमने चने खरीद कर डाल दिये, वे खाने लगे। हम मंदिर में गये। सोनमुड़ा सोन नदी का उदगम स्थल है। विस्मय विमुग्ध करने वाले यहाँ से घाटी और जंगल से ढकी पहाड़ियों के सुन्दर दृश्य देखे जा सकते हैं। सोन नदी, नर्मदा कुण्ड से 1.5 किमी. की दूरी पर मैकाल की ऊँची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहाँ से गिरती है। सोननदी की सुनहरी रेत के कारण इसे सोन कहा जाता है। यहाँ अस्थाई दुकानों का छोटा सा बाजार लगा हुआ था। चाय र्का आडर कर ,हम उसकी कुर्सियों पर बैठ गये। हमारी हथेलियों से चने लेकर लंगूर, आपस में बिना लड़े खा रहे थे। एक दुकानदार ने टी. वी. स्क्रीन पर सी.डी. लगा रक्खी थी जिसमें गायिका लोक संगीत शैली में नर्मदा परिक्रमा का वर्णन कर रही थी कि देश में इकलौती हमारी माँ नर्मदा है। जिसकी परिक्रमा की जाती है। जो सुनने में श्रद्धा को बढ़ा रही थी और अपने आपको अच्छा लग रहा था कि नर्मदा उद्गम, सोन उद्गम, जोहिला उदगम जो आदिकाल से ऋषि मुनियों की तपोभूमि रहा है, मैं वहाँ पर बैठी हूँ। गाने में 2600 किमी की पदयात्रा, जो तीन साल, तीन महीने और तेरह दिन में पूरी होती है, का ज़िक्र था। यहाँ से हम श्री यंत्र मंदिर गये। शरद होटल में छोड़ गया। आराम करने के लिये लेटी। दिमाग में माँ की परिक्रमा चलती रही। उठी चल दी, जहाँ डिनर करना था,  उस रैस्टोरैंट के बाहर कुर्सी रख बैठी ,लोगों से बतियाती रही। इस उम्मीद में कि कोई तो मिलेगा, जिसने माँ कि पैदल परिक्रमा की होगी। लेकिन गाड़ियों से करने वाले मिले। क्रमशः