आज पहला दिन था। घर से बाहर 21 दिन तक नहीं जाना है। दोपहर में एक सब्जी़वाला ब्लॉक के अंदर आया। मेरा घर कोने का है। उसकी आवाज सुनते ही मैं खुशी से बाहर आई। अड़ोस पड़ोस में रहने वाली भाभियां भी आ गईं। उसके पास कम वैराइटी की थोड़ी थोड़ी सब्ज़ियां थी। एक साबूत, ताजा हरा कद्दू(सीताफल, भोपला) और एक छोटा टुकड़ा भी था। टुकड़ा एक भाभी ने खरीद लिया। मैं हमेशा छोटा सीताफल साबूत ही खरीदती हूं। उसका रायता और तीखी खट्टी मीठी सब्जी बनाती हूं। मैंने कहा,’’भइया कद्दू तोल दो।’’उसने पूछा,’’कितना?’’मैंने कहा,’’साबूत पूरा?’’वो बोला,’’चालीस रुपए किलो है। एक किलो ही मिलेगा।’’रेट भी ठीक है। जनता र्कफ्यू से पहले मैं फिटमारा सा पका हुआ पीला सा भोपला इसी रेट में लाई थी, जिसे काटने में मेरा चक्कू भी हैंडिल से निकल गया था। मैंने कद्दू के साइज़ का अंदाज लगा कर कहा,’’भइया, आपको बेचने से मतलब है। आपका भोपला चाहे मैं 3 किलो खरीदूं या तीन लोग खरीदें। रुपये तो आपको 120 ही मिलेंगे न।’’उसने जवाब दिया,’’पता नहीं, मेरे बाद और कोई भाजी वाला आए या न आए, मैं तो एक दिन की सब्जी़ ज्यादा से ज्यादा लोगों को ही दूंगा।’’मैं बोली,’’अच्छा आपकी सोच तो बहुत ही अच्छी है। ये सोचकर कि मेरे गमलों में खूब धनिया, पोदीना, करी पत्ता और पालक लगी है। सब्जी नहीं मिली तो जरुरत के समय चटनी और पालक के परांठे तो बन ही सकते हैं। मैं बोली,’ चलो, एक किलों निम्बू दे दो।’’उसने जवाब दिया,’’एक किलो तो मेरे पास कुल होंगे! आप चार ले लो।’’ कोई फालतू रेट नहीं। एक भाभी मटर छांटते हुए दूसरी से बोली,’’मटर तो अभी घर में रक्खीं हैं। मैंने सोचा और लेलूं, टी.वी. देखते देखते दाने निकाल लूंगी।’’सब्जीवाला रुखी आवाज में बोला,’’जब घर में रक्खें हैं तो क्यों ले रही हो? कल आउंगा, तब ले लेना।’’वो गुस्से में पैर पटकती चली गई। एक किलो सब्जी और चार नींबू और उसकी तस्वीर लेकर मैं अपने गमलों के पास बैठ कर सोचने लगी कि जनता र्कफ्यू से पहले मैं, अपने घर के पीछे के स्टोर में गई थी। देखा कि लोग कई कई ट्रॉली भर भर के सामान ले जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि कोरॉना के प्रकोप ये ही बचेंगे बस। और एक ये सब्जी़ वाला! चाहता तो जल्दी से ठेला खाली कर, घर जाकर आराम करता। पर उसे सबका ख्याल था। उसके बाद और भी सब्जी़वाले आ रहें हैं। कुछ लोग बद्गम्नी के कारण भर रहें हैं। वो भी दे रहें हैं। पर वो सब्जीवाला तो जाते हुए नसीहत दे गया कि जितना जरुरत हो उतना बनाओ। ’खाओ मन भर, फैंको न कण भर’। ऐसी अच्छी सोच के लोगों के कारण कोरोना को तो समाप्त होना ही होगा।
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Thursday, 26 March 2020
सबका साथ, सबका विकास, सबका ख़्याल नीलम भागी Sab ka Sath, Sab ka Vikas, Sab ka khyal Neelam Bhagi
आज पहला दिन था। घर से बाहर 21 दिन तक नहीं जाना है। दोपहर में एक सब्जी़वाला ब्लॉक के अंदर आया। मेरा घर कोने का है। उसकी आवाज सुनते ही मैं खुशी से बाहर आई। अड़ोस पड़ोस में रहने वाली भाभियां भी आ गईं। उसके पास कम वैराइटी की थोड़ी थोड़ी सब्ज़ियां थी। एक साबूत, ताजा हरा कद्दू(सीताफल, भोपला) और एक छोटा टुकड़ा भी था। टुकड़ा एक भाभी ने खरीद लिया। मैं हमेशा छोटा सीताफल साबूत ही खरीदती हूं। उसका रायता और तीखी खट्टी मीठी सब्जी बनाती हूं। मैंने कहा,’’भइया कद्दू तोल दो।’’उसने पूछा,’’कितना?’’मैंने कहा,’’साबूत पूरा?’’वो बोला,’’चालीस रुपए किलो है। एक किलो ही मिलेगा।’’रेट भी ठीक है। जनता र्कफ्यू से पहले मैं फिटमारा सा पका हुआ पीला सा भोपला इसी रेट में लाई थी, जिसे काटने में मेरा चक्कू भी हैंडिल से निकल गया था। मैंने कद्दू के साइज़ का अंदाज लगा कर कहा,’’भइया, आपको बेचने से मतलब है। आपका भोपला चाहे मैं 3 किलो खरीदूं या तीन लोग खरीदें। रुपये तो आपको 120 ही मिलेंगे न।’’उसने जवाब दिया,’’पता नहीं, मेरे बाद और कोई भाजी वाला आए या न आए, मैं तो एक दिन की सब्जी़ ज्यादा से ज्यादा लोगों को ही दूंगा।’’मैं बोली,’’अच्छा आपकी सोच तो बहुत ही अच्छी है। ये सोचकर कि मेरे गमलों में खूब धनिया, पोदीना, करी पत्ता और पालक लगी है। सब्जी नहीं मिली तो जरुरत के समय चटनी और पालक के परांठे तो बन ही सकते हैं। मैं बोली,’ चलो, एक किलों निम्बू दे दो।’’उसने जवाब दिया,’’एक किलो तो मेरे पास कुल होंगे! आप चार ले लो।’’ कोई फालतू रेट नहीं। एक भाभी मटर छांटते हुए दूसरी से बोली,’’मटर तो अभी घर में रक्खीं हैं। मैंने सोचा और लेलूं, टी.वी. देखते देखते दाने निकाल लूंगी।’’सब्जीवाला रुखी आवाज में बोला,’’जब घर में रक्खें हैं तो क्यों ले रही हो? कल आउंगा, तब ले लेना।’’वो गुस्से में पैर पटकती चली गई। एक किलो सब्जी और चार नींबू और उसकी तस्वीर लेकर मैं अपने गमलों के पास बैठ कर सोचने लगी कि जनता र्कफ्यू से पहले मैं, अपने घर के पीछे के स्टोर में गई थी। देखा कि लोग कई कई ट्रॉली भर भर के सामान ले जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि कोरॉना के प्रकोप ये ही बचेंगे बस। और एक ये सब्जी़ वाला! चाहता तो जल्दी से ठेला खाली कर, घर जाकर आराम करता। पर उसे सबका ख्याल था। उसके बाद और भी सब्जी़वाले आ रहें हैं। कुछ लोग बद्गम्नी के कारण भर रहें हैं। वो भी दे रहें हैं। पर वो सब्जीवाला तो जाते हुए नसीहत दे गया कि जितना जरुरत हो उतना बनाओ। ’खाओ मन भर, फैंको न कण भर’। ऐसी अच्छी सोच के लोगों के कारण कोरोना को तो समाप्त होना ही होगा।
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