21 दिन के लॉकडाउन की खबर सुनते ही अंकुर ने गाड़ी की चाबी उठाई और जरुरी सामान लेने घर से चल पड़ा कुछ दूर जाने पर उसे एक सब्जी का ठेला दिखा। उसे सबसे जरुरी तो सब्जियां ही लगी। श्वेता से सलाह करके तो आया नहीं था। ये सोच कर कि फोन पर कर लूंगा, वो बैंक से आते ही खाना बनाने में लगी हुई थी। अंकुर घर से काम कर रहा था। पांचवीं में पढ़ने वाला शाश्वत, केजी में पढ़ने वाले छोटे भाई एडी को भी संभालता था। क्योंकि जनता र्कफ्यू के दिन से दोनों मेड को भी आने से मना कर दिया था। श्वेता को बैंक तो शायद जाना ही होगा, ये सोच कर वो जरुरत का सामान लेनेे तुुुरंत चला गया। ग्रोसरी की लिस्ट श्वेता वाट्सअप कर देगी। एक सब्जी के ठेले पर सब्जी़ लेने लगा, देखा तो फोन घर भूल आया था। सब्जीवाला बोला,’’आप सब लेलो, मैं तो गांव जा रहा हूं।’’ अंकूर के हम उम्र तीनों दोस्तों की गृहस्थी भी उसकी तरह है। उसने सोचा चारों बांट लेंगे। घर जाते ही उनको फोन कर दूंगा कि सब्जी न खरीदें। इसमें जुकनी, ब्रोकली, मशरुम आदि सब कुछ है। सात हजार में सौदा तय हो गया। सब्जी़वाले ने मण्डी से माल लाने वाले बोरों में पैक करके, गाडी में रखवा भी दिया। पेटीएम से पेमैंट हो गई। घर आते ही इतनी सब्जी देखकर श्वेता का माथा गर्म होने लगा। अंकुर उससे कुछ भी बोले बिना दोस्तों को फोन करने लगा कि उनके लिए सब्जी ले ली हैं, आकर ले जाओ। ज्यादातर का जवाब था कि संडे को हमने काफी ले ली थी। अभी तो फ्रिज में जगह नहीं है। अभी आप रख लो फ्रिज में जगह बनते ही हम ले जायेंगे। मतलब इतनी सब्जी़ को संभालना!! जल्दी जल्दी दोनो ने सब्ज़ियां खोली। आलू, प्याज को छोड़ कर उसमें सब वैराइटी की सब्जियां थी। अंकुर ने अपने ज़िगरी दोस्त अमन को कहा कि तूं जल्दी से मेरे घर आ। दोनो बच्चों को टी.वी. बंद करके कहा कि अब घर में टी. वी. तब चलेगा, जब सब मटर के दाने निकल जायेंगे।, चाहे जितने दिन मर्जी लगें। हमें कोई जल्दी नहीं है। वो सब्जियों से खेलना छोड़ कर, शांति से मटर छिलने लगे। श्वेता उनकी छटाई करके फ्रिज में पैक करने लगी। इतने में अमन आ गया। अंकुर ने उसे कहा,’’जरा भी सब्जी बरबाद नहीं होनी चाहिए। पालक, मेथी, बथुआ और धनिया पौदीना तू ले जा, बचे तो बाकि दोनो को भी दे देना। श्वेता का तो बैंक में मार्च में बहुत काम होता है। मेड भी नहीं है। हम इस समय इन हरी सब्ज़ियों पर मेहनत अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। उसके ले जाने से जगह खाली हुई। कुछ के आचार डाले। कचरे छिलकों से कम्पोस्ट किट की बाल्टी पूरी भर गई। बच्चों को बाहर कोरोना के कारण खेलने नहीं जाना है। टी.वी. बंद था। उन्होंने तीन दिन में मटर छील दिए। उसे वे साथ साथ फ्रीज़र में पैक करते रहे। अब वे वही सब्जी़ खा रहे थे, जिसका जल्दी खराब होने का डर था। हरी ब्रोकली का रंग पीले में न तब्दील हो जाये। उसे खाना मजबूरी है। सारा दिन मास्क लगाये, उचित दाम पर सब्जी़ बेचने वाले आते हैं। पर इनकी मजबूरी है जु़कनी और मटर मशरुम खाना। पर अमन के सहयोग से इन्होंने भी जरा भी सब्जी़ बरबाद नहीं होने दी।
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Tuesday, 31 March 2020
कर भला, पर हो..........!! Lockdown नीलम भागी Ker Bhala Per ho..... Neelam Bhagi
21 दिन के लॉकडाउन की खबर सुनते ही अंकुर ने गाड़ी की चाबी उठाई और जरुरी सामान लेने घर से चल पड़ा कुछ दूर जाने पर उसे एक सब्जी का ठेला दिखा। उसे सबसे जरुरी तो सब्जियां ही लगी। श्वेता से सलाह करके तो आया नहीं था। ये सोच कर कि फोन पर कर लूंगा, वो बैंक से आते ही खाना बनाने में लगी हुई थी। अंकुर घर से काम कर रहा था। पांचवीं में पढ़ने वाला शाश्वत, केजी में पढ़ने वाले छोटे भाई एडी को भी संभालता था। क्योंकि जनता र्कफ्यू के दिन से दोनों मेड को भी आने से मना कर दिया था। श्वेता को बैंक तो शायद जाना ही होगा, ये सोच कर वो जरुरत का सामान लेनेे तुुुरंत चला गया। ग्रोसरी की लिस्ट श्वेता वाट्सअप कर देगी। एक सब्जी के ठेले पर सब्जी़ लेने लगा, देखा तो फोन घर भूल आया था। सब्जीवाला बोला,’’आप सब लेलो, मैं तो गांव जा रहा हूं।’’ अंकूर के हम उम्र तीनों दोस्तों की गृहस्थी भी उसकी तरह है। उसने सोचा चारों बांट लेंगे। घर जाते ही उनको फोन कर दूंगा कि सब्जी न खरीदें। इसमें जुकनी, ब्रोकली, मशरुम आदि सब कुछ है। सात हजार में सौदा तय हो गया। सब्जी़वाले ने मण्डी से माल लाने वाले बोरों में पैक करके, गाडी में रखवा भी दिया। पेटीएम से पेमैंट हो गई। घर आते ही इतनी सब्जी देखकर श्वेता का माथा गर्म होने लगा। अंकुर उससे कुछ भी बोले बिना दोस्तों को फोन करने लगा कि उनके लिए सब्जी ले ली हैं, आकर ले जाओ। ज्यादातर का जवाब था कि संडे को हमने काफी ले ली थी। अभी तो फ्रिज में जगह नहीं है। अभी आप रख लो फ्रिज में जगह बनते ही हम ले जायेंगे। मतलब इतनी सब्जी़ को संभालना!! जल्दी जल्दी दोनो ने सब्ज़ियां खोली। आलू, प्याज को छोड़ कर उसमें सब वैराइटी की सब्जियां थी। अंकुर ने अपने ज़िगरी दोस्त अमन को कहा कि तूं जल्दी से मेरे घर आ। दोनो बच्चों को टी.वी. बंद करके कहा कि अब घर में टी. वी. तब चलेगा, जब सब मटर के दाने निकल जायेंगे।, चाहे जितने दिन मर्जी लगें। हमें कोई जल्दी नहीं है। वो सब्जियों से खेलना छोड़ कर, शांति से मटर छिलने लगे। श्वेता उनकी छटाई करके फ्रिज में पैक करने लगी। इतने में अमन आ गया। अंकुर ने उसे कहा,’’जरा भी सब्जी बरबाद नहीं होनी चाहिए। पालक, मेथी, बथुआ और धनिया पौदीना तू ले जा, बचे तो बाकि दोनो को भी दे देना। श्वेता का तो बैंक में मार्च में बहुत काम होता है। मेड भी नहीं है। हम इस समय इन हरी सब्ज़ियों पर मेहनत अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। उसके ले जाने से जगह खाली हुई। कुछ के आचार डाले। कचरे छिलकों से कम्पोस्ट किट की बाल्टी पूरी भर गई। बच्चों को बाहर कोरोना के कारण खेलने नहीं जाना है। टी.वी. बंद था। उन्होंने तीन दिन में मटर छील दिए। उसे वे साथ साथ फ्रीज़र में पैक करते रहे। अब वे वही सब्जी़ खा रहे थे, जिसका जल्दी खराब होने का डर था। हरी ब्रोकली का रंग पीले में न तब्दील हो जाये। उसे खाना मजबूरी है। सारा दिन मास्क लगाये, उचित दाम पर सब्जी़ बेचने वाले आते हैं। पर इनकी मजबूरी है जु़कनी और मटर मशरुम खाना। पर अमन के सहयोग से इन्होंने भी जरा भी सब्जी़ बरबाद नहीं होने दी।
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