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Saturday 16 April 2022

पोखरा मुक्तिनाथ की ओर नेपाल यात्रा भाग 7 नीलम भागी Pokhara Nepal Yatra Part 7 Neelam Bhagi


   टूर मैनेज़र नाज़िर ने चाय का आर्डर किया सबको बिस्कुट का पैकेट दिया। फर्नीचर बहुत प्राकृतिक था। पेड़ का चौड़ा तना मेज के साइज़ में सेन्ट्रल टेबल था। पतले छोटे तने स्टूल की तरह थे। मैं बैठ गई। चाय आई मैंने लेकर पीनी शुरु कर दी। मेरे साथ बैठी महिलाओं ने ली। एक एक घूट भरा और मीठी है कह कर पीछे फैंक दी। मुझे उनका इस तरह चाय फैंकना अच्छा नहीं लगा। खाने की बर्बादी मुझे वैसे ही नहीं पसंद। फिर उनमें में एक अपने आप बोली कि जूठी हो गई थी न इसलिए फैंकी। अब फीकी चाय बनी तो उसका घूट भर कर बोलीं कि मज़ा नहीं आ रहा है। इसमें आधा आधा कप मीठी चाय मिलाते हैं। नेपाल में हर जगह चाय बहुत अच्छी मिली। चीनी पत्ती दूध सब दिल खोलकर और जम्बो कप। घर में मैं कई कप दिन में चाय पीती हूं इसलिए फीकी पीती हूं। बाहर जैसी मिल जाए वैसी पी लेती हूं। यहाँ की लाजवाब चाय दिन में दो बार ही पीती थी। मेरी चाय खत्म हो गई थीं। मैं इतनी खूबसूरत जगह में टहलना अपना सौभाग्य समझ रही थी। बस चलते ही मेरी आँखें फिर बाहर टिक गईं। बीच बीच में छोटे छोटे गांव आते। नदी पर बीच बीच में लोहे का पुल पार करने के लिऐ था।

कभी कभी पहाड़ों में ऐसा लगता जैसे पौधे चल रहे हों पास आने पर पता चलता कि वह इनसान पशुओं के लिए चारा ला रहा है।

नदी के दोनों ओर रेत की बजाय पत्थर हैं। इसलिए बड़ी मात्रा में थ्रैशर लगे हैं ब्लॉक बनाने का काम चल रहा है। रोड़ी बजरी बन रही है। रेत तो मिलती ही है। ये सब इमारतें बनाने में उपयोग हो रहीं हैं। और इमारतें भी बनी हुईं हैं मसलन गंडकी यूनिर्वसिटी का भवन दूर से दिखाई दे रहा है। अब पोखरा शहर में चल रहे हैं।



लोगों ने घरों के आगे बहुत सुन्दर गार्डिनिंग की हुई है। 11 बजे का समय हो गया। बस में एक महिला ने सलाह देनी शुरु कर दी कि अब तो पहुंच कर आलू के परांठे और दहीं कर दो बस, खाना भी हो जायेगा और नाश्ता भी क्योंकि इतनी जल्दी तो यही हो सकता है। उनकी सखियों ने हामी भर दी। ये मैन्यू पास हो गया। 11ः45 पर हम पहुंचे। मैं इस हिसाब से चलती थी कि ये लाए हैं स्टे भी देगें और खाना भी इसलिए आराम से इंतजार करती थी। कुछ लोग तो गुप्ता जी का घेरा बना कर भगदड़ सी मचा देते थे कि हमें इस मंजिल में, उस मंजिल में हल्ला, क्लेश सा मचा देते थे। इडन होटल में रुम खत्म हो गए तो सामने ही लांज में हमें ग्राउण्ड फ्लोर पर रुम दिया गया। औरो को भी वहीं मिला। मैम का फिर मुझे पर बरसना शुरु,’’ अगर पहले चाबी लेती तो हमें होटल मिलता। मैं यहां नहीं रहूंगी। मैं वापिस लौट रही हूँ।’’एक जूनियर राजू छोटी उमर का क्लीनर है वो मैम से बोला,’’इधर बस अड्डा, उधर एयरर्पोट, थोड़ी दूर स्टेशन, जिससे भी जाना है जाओ।’’मैम उसकी तरफ गुस्से से झपटी। मैंने मुड़ कर नहीं देखा क्योंकि जब से आई थी, मैं जा रही हूं का जाप कर रही थी। मैंने सोचा चली जायेगी। मुझे ये जगह पसंद आई। खूब हरियाली और फूलों की क्यारियों की बाउण्ड्री पौदीने की थी। दूर से देखने पर रंग बिरंगे फूलों को गहरे हरे रंग के बॉडर ने घेर रखा था। रुम खोलते ही सब कुछ सफेद और साथ ही मैम की एन्ट्री। वह गुस्से में वाहियात गालियां दे रही थी क्योंकि कोई पूछ रहा था कि ये आदमी है या औरत। मैं मोबाइल लेकर लग गई। ये सोच कर कि जब ये तैयार हो जायेगी तब मैं अपनी तैयारी करुंगी। क्रमशः     





2 comments:

Raj Sharma said...

Fine thoughts.Visited Pokhara back in early nineties.Beutiful place.

Neelam Bhagi said...

🙏 हार्दिक आभार