जिस छात्र को पूरा विश्वास हो कि वह कक्षा में फेल होगा पर वह पास हो जाए! तो वह कितना खुश होता है!! वही फीलिंग मुक्तिनाथ के दर्शन करने के बाद मेरी थी। होटल में आते ही मैंने ब्लड प्रेशर की गोली खाई। देखा सुम्मो और स्कौरपियो छोटी गाड़ी की सवारियों को छोड़ कर सब जा चुके हैं। हलवाइयों ने और मैंने नाश्ता करना था। अब खाने का मैन्यू हरीश कुमार गुप्ता जी ने अपने हाथ में ले लिया है इसलिए यात्रा और मज़ेदार हो गई है। मैंने पूरी सब्ज़ी खाई और चाय पी कर होटल से बाहर आकर एक स्टूल पर बैठ गई। और वहां से मुक्तिनाथ जाने वालों को देखने लगी। कुछ तो नाचते, गाते, बजाते जा रहे थे। मुझे भी दो चार कदम उनके साथ चलना अच्छा लगता।
सुनिता अग्रवाल (दिल्ली), रेखा सिंघानियां (कानपुर), अनिता अग्रवाल (गुरुग्राम) और रेखा गुप्ता (कानपुर) ये इसलिए रुक गईं थीं कि बस तक इन्हें भी छोटी गाड़ी छोड़ आयेगी और मेरे पास खड़ी बतिया रहीं थी। अनिता अग्रवाल बोली,’’गलती हो गई उनको(पति) को भी साथ ले आतीं तो फायदा हो जाता। भई पैकेज़ के पैसे तो हमने अपनी सेविंग से दे दिये। शॉपिंग के लिए उनकी जे़ब हल्की करवाते न। वे सब इतनी खुश थीं कि अगली यात्रा की प्लानिंग शुरु करने लगीं। सुनिता अग्रवाल बोली,’’सुन लो! मैं अमरनाथ नहीं जाउंगी?’’मैंने न जाने का कारण पूछा तो वे बोलीं कि उनकी एक सहेली के पति वहां मर गए थे।’’ फिर बाकियों ने समझाया कि उनको वहीं देह छोड़नी थी, तभी तो वहां गए। वरना इतनी दुनिया दर्शन करके आती है न। और ये बतियाती हुई बस की ओर पैदल ही चल दीं।
पहले दिन बीरगंज में अरुणा अग्रवाल, मुन्नी गुप्ता, राज दुलारी, मुन्नी, उषा बागड़िया गुरुग्राम से, इन पांचों भली महिलाओं को कहते ही गुड़गांवा वाली थे। बस का क्लेश शांत इन्होंने एक छोटी गाड़ी मंगवा कर किया, गुप्ता जी से कह दिया था कि जो भी एक्स्ट्रा पैसा होगा वे देगीं। बस में इनके कारण 5 सीटें खाली हो गईं। दो पर अकेली तो मैम बैठतीं हैं। बाकि पिछली चार पर सामान वगैरहा रखा रहता था। बस में गाना, बतियाना, अन्ताक्षरी आदि चलती रहती थी। सब गाड़ियां हमारी बस के पीछे रहतीं थीं। गुड़गांवां वाली गाड़ी के जाते ही, मैंने देखा एक महिला जो काला धूप का चश्मा लगा कर छोटी गाड़ी में ही बैठती है गुप्ता जी से चिल्ला चिल्ला के खूब लड़ कर कमियां निकाल रही है। मैंने जाकर शांत करने के लिए बोला,’’हमारा लाइफ स्टाइल कुछ भी हो लेकिन टूर में जैसा...’’ वह बीच में ही बोली,’’मैं हमेशा फाइव स्टार होटल में ही ठहरती हूं।’’ये सुनते ही मुझसे अपनी हंसी रोकनी मुश्किल हो गई । मैं जाकर उसी स्टूल पर होटल के आगे बैठ गई। सोचने लगी कि 20 हजार रुपए का पैकेज़ हैं। जिसमें स्पष्ट लिखा था कि अच्छा होटल होगा पर बिना स्टार का, नाश्ता और दो समय का भोजन, ट्रॉली केबिल कार, कहीं का भी टिकट सब कुछ पैकेज़ में है। नेपाल में यात्रा 2×2 की बसों में होगी। 3 ए.सी. गाड़ी में 20 मार्च की शाम 5 बजे से 31 मार्च की सुबह तक जाना था। ट्रेन का खाना हमारा अपना होगा। इस पैकेज़ की सर्विस को फाइव स्टार से तुलना करना!! एक छोटी गाड़ी कूक और उनके सामान के लिए थी। एक महिला के पैर में चोट की वजह से उसे छोटी गाड़ी में बिठाया गया, बुकिंग उसकी पहले थी पैर में चोट तो बाद में लगी न। उसकी इच्छा पूरी करने के लिए सहयोग तो करना ही चाहिए। अब तो मेरा टूर और मजे़दार हो गया। बाद में पता चला कि ये सारा फाइव स्टार क्लेश मेरी वजह से हुआ है।
हुआ यूं कि कल मैं बस से होटल तक पैदल आई थी। मन में वहम आ गया था कि शायद मेरी इसलिए तबियत खराब़ हुई होगी। आज मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। इतनी मुक्तिनाथ धाम की चढ़ाई उतराई करके आईं हूं। बस तक जाने में फिर से न तबियत बिगड़ जाए। मैं ये सोच कर बैठ गई कि जब हलवाई और उनका सामान जायेगा तो मैं उस छोटी गाड़ी में बैठ कर बस पर चली जाउंगी। उस महिला ने सोचा कि मैं छोटी गाड़ी में दखल कर रही हूं । गुप्ता जी उसे बस में जाने को न कह दें। उसने पहले ही क्लेश कर दिया।
जैसे ही सामान के साथ हलवाई छोटी गाड़ी में बस के लिए चले, मैं भी जाकर उसमेें बैठ गई। बस में मैं अपनी आगे की सीट पर बैठी थी। चलने से पहले गुप्ता जी आए और बोले,’’नीलम आप जाकर छोटी गाड़ी में बैठो।’’ मैं फाइव स्टार के आर्कषण में जाकर छोटी गाड़ी के पीछे की एक सीट पर बैठ गई और दूसरी सीट पर पैर फैला लिए।
यहां यादव जी ड्राइवर हैं उनके बाजू में पैर में चोट वाली महिला है। पीछें फाइव स्टार और उनकी सहेली हैं। चौथी महिला को बस में उल्टी आती है इसलिए वो छोटी गाड़ी में ही बैठती हैं। जहां मैं बैठी हूं वहां वोमैटिंग वाली के पति बैठते हैं कि अगर उनको उल्टी हो गई तो वे उसे संभालेंगे। लेकिन अब उनके पति को बस में बैठा दिया और मुझे छोटी गाड़ी में, मैं उनकी जगह बिठा दिया। इस खतरनाक रास्ते में 6 लोग ही बैठाने की परमिशन है। क्रमशः
No comments:
Post a Comment