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Monday 30 May 2022

वैष्णव देवी मंदिर, हलेश्वर स्थान सीतामढ़ी नेपाल यात्रा भाग 43 नीलम भागी

 


 शहर के मध्य में स्थित भव्य वैष्णों देवी मंदिर है। जहाँ बड़़ी संख्या में श्रद्धालू दर्शन करने जाते हैं। यहां आटो रोकते ही राजा ने सामने लगे हैण्ड पम्प को दिखा कर कहा कि हाथ पांव धोकर जाना।


हाथ पाँव धोकर  हम मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहां की सफाई उत्तम है। अब आरती की तैयारी हो रही है। सखियां रोशनी, सुरेखा, राजकली, सरला आरती के लिए बैठ गईं। मुझे डॉक्टर ने नीचे बैठने को मना किया है मैं इसलिए इनके साथ नहीं बैठ पाती हूं।

रात हो गई है नई जगह है अभी हलेश्वर स्थान जो सीतामढ़ी से भी 3 किमी. उत्तर पश्चिम में है। वहां भी जाना है। इन्हें आरती के बीच में से ही लेकर आई। पता नहीं कौन सी टूटी सड़कों से ऑटो जा रहा है। इस स्थान पर राजा जनक ने अकाल के समय हलेष्ठी यज्ञ के पश्चात भगवान शिव का मंदिर बनवाया जो हलेश्वर स्थान के नाम से मशहूर है और इसी क्रम में सीताजी मिलीं।




      होटल लौट रहें हैं। मेरे दिमाग में यह सब पढ़ा सुना चल रहा है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री, भगवान राम की पत्नी  की पुनौरा जन्मस्थली है। जनश्रुति के अनुसार एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया। पंडितों पुरोहितों के कहने पर राजा जनक ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिये हल चलाया। पुनौरा के पास उन्हें भूमि में कन्या रत्न प्राप्त हुआ और साथ ही वर्षा होने लगी। अब भूमिसुता जानकी को वर्षा से बचाने के लिये तुरंत एक मढ़ी का निर्माण किया कर, उसमें सयत्न जानकी को वर्षा पानी से बचाया गया। अब वही जगह सीतामढ़ी के नाम से मशहूर है। प्राचीन काल में यह तिरहूत का अंग था। 1908 तक ये मुज्जफरपुर में ही शामिल था। 11 दिसम्बर 1972 में ये स्वतंत्र जिला बना। विष्णुपुराण के अनुसार पुनौरा ग्राम के पास ही रामायण काल के पुंडरीक ऋषि ने तप किया। वृहद विष्णुपुराण के अनुसार अवतरण की भूमि के पास ही रहते थे। महन्त के प्रथम र्पूवज विरक्त महात्मा और सिद्धपुरूष थे। वहीं उन्होंने तपस्या के लिए आसन लगाया जो उनकी तपोभूमि हो गई। कालान्तर में उनके भक्तों ने उसे मठ बना दिया। अब वह गुरू परम्परा चल रही है। उन्होंने नेपाल जनकपुर से लखनदेई तक की भूमि को जनक की हल भूमि को हलभूमि में नापा। ये एक जनश्रुति है और सीतामढ़ी में जामाता राम के सम्मान में सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। यह दूर दूर तक ख्याति प्राप्त मेला चैत्र की राम नवमीं और जानकी राम की विवाह पंचमी को लगता है। सीतामढ़ी पटना से 105 किलोमीटर दूर है। यहाँ का तापमान मध्य नवम्बर से मध्य फरवरी तक 5 से 15 डिग्री और गर्मी में 35 से 45 डिग्री तापमान रहता है। मध्य जुलाई से अगस्त तक बागमती, लखनदेई और हिमालय से उतरने वाली नदियों की वजह से बाढ़ग्रस्थ रहता है। बाढ़ की विभिषिका को भी ये लोग गाकर हल्का कर लेते हैं। लोक गीतों में जट जटनी झूमर जैसा है। झझिया नवरात्र में महिलायें सिर पर घड़ा रख कर नाचती गाती हैं। सोहर जनेऊ के गीत, स्यामा चकेवा, फाग, नचारी जिसमें शिव चरित्र का वर्णन है यहाँ गाये जाते हैं।

 होटल में सबसे देर से पहुंचने वाले हम है। खाना खाया। इतने तीर्थों की जिसमें मुक्तिनाथ की यात्रा को करने का सौभाग्य भी हैं। सब बहुत खुश हैं। कुछ तो अपने कमरों में नाच गा रहीं हैं।


रात दो बजे लिच्छवी एक्सप्रेस से जाना है। स्टेशन बिल्कुल पास में है। एक बजे गुप्ताजी ने सबके कमरों के आगे जय श्रीराम करना शुरु कर दिया। हम सबने अपना सामान लेकर स्टेशन की ओर प्रस्थान किया। क्रमशः




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