Search This Blog

Wednesday 18 May 2022

पशुपतिनाथ, बागमति की संध्या आरती काठमांडु नेपाल यात्रा भाग 33 नीलम भागी

सुबह तीन घण्टे शनिवार होने के कारण लाइन में लग कर पशुपतिनाथ जी के दर्शन हुए। लाइन में खूब बतियाया। नेपाल की तारा और अमृता ने कहा कि आप शाम 6 बजे यहां आरती देखने जरुर आना। मेरे दिमाग में आरती दर्शन करना, बैठ गया था। दिन भर  दुनिया के सबसे पुराने लगातार बसे हुए काठमांडु शहर को जो बागमती प्रांत का हिस्सा है और कई विश्व धरोहर स्थलों का घर हैं, वहां  घूमाते हुए हमारी गाड़ियां 5 बजे होटल पहुंच गईं थीं।

   रूम में जाती जो शायद थोड़ा आराम के मूड में आकर आरती में लेट हो सकती हूं। इसलिए सड़क किनारे एक दुकान में बैठ कर चाय बनवाई। यहां चाय बहुत लाजवाब और जम्बो कप में मिलती है। चाय पीते हुए सड़क से गुजरने वाले पर्यटकों को देखती रही। होटल के पास ही सड़क पार, पशुपतिनाथ जी का मंदिर है। अब तो अण्डर पास से रास्ता पता चल गया है। मैं अकेली ही मंदिर की ओर चल दी। अण्डर पास में लाइट नहीं थी औरों की तरह मैंने भी मोबाइल टॉर्च से अण्डर पास से गुजरती हूं। आरती क्षेत्र में पहुंची, वहां तो बहुत अधिक भीड़ है। 6.30 आरती शुरु होनी है। 6 बजे यहां पर तिल रखने की भी जगह नहीं है। बागमती के दोनों किनारों पर श्रद्धालु बैठे हैं। पुल के ऊपर भी लोग थे। मैं लम्बी नहीं हूं इसलिए जहां भी खड़ी होती मुझे सिर्फ श्रद्धालू ही दिखाई दे रहे थे। मैं एक जगह ये सोच कर खड़ी हो गई कि आरती नहीं देख पा रहीं हूं तो क्या हुआ! इतने भोलेनाथ के भक्तों के अन्दर का जो भक्ति भाव है उससे जो यहां अलग सा भाव फैला है, मैं उसमें तो शामिल हूं। ये मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है।



इतने में एक महिला ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा,’’बैठोगी।’’मैंने जबाब में उससे ही सवाल किया,’’आप आरती नहीं देखोगी!’’ वह उठते हुए बोली,’’मेरी बस का टाइम हो गया है।’’मैं सीढ़ी पर बैठ गई।

मेरे सामने बागमती बह रही है। बाएं ओर कुछ दूर श्मशान में चिताएं जलने से लपटों के  प्रतिबिंब बागमती के बहते जल में पड़ रहें हैं। उधर शव दाह से अग्नि प्रकाश फैला हुआ है।


दाएं ओर, और अपार जन समूह है।


एकदम मेरे सामने बागमती पार शव यात्रा तैयार है। जिसमें शव पर भी पीला वस्त्र है और पीले फूलों की लड़ियां हैं। शायद गेंदे के हैं दूर से पता नहीं चल रहें हैं।

इतने में किसी ने पुल पर खड़े होने से मना किया कि लोगों ने यहां से गुजरना है। लोग चुपचाप हट गए। 


ये सब देख कर मन में वाद विवाद चलने लगा कि इतने लोग और फिर भी शांति और अनुशासन! शायद श्मशान के कारण मन में वैराग्य सा है। भगवान शिव का श्मशान में क्यों वास हैं! शिव तो संसारिक देवता है। जीवन में अपने  कर्त्तव्य पालन करते हुए एक वैरागी का आचरण करों, शायद यही शिव के श्मशान निवास का गूढ़ रहस्य है और शिव सांसारिक होते हुए भी श्मशान में निवास करते हैं। संसार मोह माया का प्रतीक है और श्मशान वैराग्य का इसलिए मोह माया से दूर रहो क्योंकि ये संसार तो नश्वर है।  शिव से 'इ' हटा दे तो शव बचता हैै। शव में 'इ' जोड़ दे तो शिव बन जाता है। शिव के भक्त उन्हें अलग अलग नाम से पुकारते हैं। 

’’जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।’’ 

जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसी ही मूरत नज़र आती है। कहीं ये भी सुनने को मिलता है कि शिवजी का अघोर रुप श्मशान में रहता है।

   आरती शुरु होती है। यहां भी दूर से आरती के बड़े दीपों का प्रकाश दिख रहा है। संगीतमय आरती जिसमें सबकी श्रद्धा से बजाई तालियों की ताल और शखं ध्वनि, गज़ब का समां बांध देती हैं। यहां तक आरती के शब्द नहीं पहुंचते हैं पर धुन और ताल में बजती तालियां ही मेरे लिए अविस्मरणीय पशुपतिनाथ, बागमति की संध्या आरती है। समापन पर भीड़ छटने लगती है। मुझे चंद्रा कौशिक, मंजूषा कौशिक और सुदेश मेहरा दिखतीं हैं। हम चारों होटल को लौटतीं हैं। क्रमशः 


No comments: