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Monday, 2 May 2022

ख़तरनाक रास्ते का रात में सफ़र नेपाल यात्रा भाग 21 नीलम भागी Travel at night on dangerously narrow mountain roads! Neelam Bhagi Nepal टूर 21

 


     जैसे ही हमारी छोटी गाड़ी चली साथ ही फाइव स्टार की जुबान स्टाइलिश लहजे़ में चलने लगी। जिसमें वे अपनी सखी(इनका प्यारा सा नाम मुझे याद नहीं आ रहा है।) को अपने सोशल वर्क के बारे में बताने लगीं। मसलन उनकी बाई की बेटी ने एमबीए उनकी बदौलत किया। उन्होंने अपनी बाई को समझाया था कि जितने पैसे वे उसके एमबीए की पढ़ाई में खर्चेगी, पढ़ने के बाद, वह उसका दस गुणा कमाएगी। अगर वह उसके एमबीए पर नहीं खर्चेगी तो वह उसे काम से निकाल देगी। यहां मैंने अपनी जुबान रोकी कि मुम्बई में कामकाजी महिला के लिए बाई बहुत बड़ी जरुरत होती है। बाई काम न छोड़ दे इसकी चिंता रहती है। इन्होंने न तो उसकी बेटी की पढ़ाई के खर्च में मदद की है बल्कि उसे जॉब से निकालने की धमकी भी दे डाली! ऐसे ही उसने उसके द्वारा किए गए कई सोशल वर्क के बखान का टेप चालू रखा है। सखी शायद बोर हो रही थी। अब सखी ने मुझ पर प्रश्न दागा,’’आप क्या करतीं हैं।’’ मैंने बताया,’’जर्नलिस्ट हूं।’’ सोशल वर्क का बखान न जाने क्यों बंद हो गया जबकि मैं तो बिना प्रश्न किए सुन रही थी। उल्टी पल्टी वाली महिला का तो मूड ही मेरे बैठते खराब हो गया है क्योंकि मेरे यहां बैठने से उनके पति को बस में जो बैठना पड़ा। जिसके पैर में चोट थी वह पैर के कारण वैसे ही चुप रहतीं हैं। उस समय मैं सोच रही थी कि गुप्ता जी ने ये फेर बदल क्यों की? बहुत ऊंचे पहाड़ थे नीचे तक धूप भी नहीं आ रही थी। न ही धूल थी पर इन तीनों महिलाओं ने सैलीब्रिटी की तरह धूप के चश्में नहीं उतारे। पांच महिलाएं बैठी हुईं पर एकदम चुप। आते समय इन ख़तरनाक रास्ते में राजू मानन्दर ने गाने नहीं बजाए पर कुछ घण्टे की शान्ति के बाद उल्टी वाली महिला ने यादव जी से बड़ी सॉफ्ट आवाज़ से कहा,’’गाने लगाओ।’’यादव जी ने दुखभरी गीतों वाली प्रेम कहानी लगा दी। जो इतनी बेस्वाद थी की बर्दाश्त नहीं हो रही थी। क्या पता बाकियों को पसंद हो इसलिए मन मार कर मैं सुनती रही। पीछे बैठने के कारण वह स्पीकर मेरे सर पर बज रहा था। तीनों पानी खूब पी रहीं थीं। अब यादव जी को इनके लिए टॉयलेट पर रुकना था, वे रुके। मैं आस पास घूमने और फोटो लेने लगी। गाड़ी में मेरी आंखें तो खूबसूरत रास्ते पर लगीं हुईं थीं। फोटो खींच नहीं सकती थी। बेनी से जोमसोम के रास्ते में आते समय पिछले शीशे पर धूल और पानी की बूंदों के निशान पड़ गए थे। फोटो में वे निशान आते इसलिए मैंने नहीं खींची।









कुछ लोग ट्रैकिंग कर रहे थे। यहां महिलाएं बहुत मेहनती हैं पीठ पर बच्चा बांधा हुआ है या सामान है। बहुत फुर्ती से चलती हैं। जरा सा पानी ने दूसरी ओर रुख कर लिया तो उस जमीन पर खेती कर ली। रास्ते में ऐसे ही मनमोहक नज़ारे थे। बिना टोंटी के काले रबड़ पाइप थे जिनमें से पानी हर वक्त बहता था। तीनों गाड़ियों के आने पर हम फिर चल पड़े। एक रैस्टोरैंट पर खाने के लिए रुके और साथ ही चाय बनने लगी। जो बनाकर खाना लाए थे। वो खराब  हो गया था, फेंका गया। मैं आकर गाड़ी में बैठ गई। चाय मैंने मना कर दी बिस्कुट का पैकेट आ गया। इतने में राजू मानन्दर को मैसेज़ आ गया कि 2 बजे ब्लास्ट होगा फिर 4 घण्टे के लिए रास्ता बंद हो जायेगा। उसने तुरंत बस र्स्टाट कर दी। मैं देख रही थी दो महिलाएं वाशरुम चलीं गई। उनको देख कर दो तीन और चल दीं। खैर गाड़ियां चलीं वहां पहुंचे गुड़गांवां वाली गाड़ी आगे थी वह निकल गई। सबसे आगे हमारी बाकि तीन गाड़ियां 7 बजे तक के लिए अटक गईं। ये सबसे खराब रास्ता जोमसोम से बेनी के बीच का था। गहरी नदी के बिल्कुल किनारे पर गाड़ियां खड़ीं हैं। वहां से पत्थर हटेंगे तब रास्ता मिलेगा। यहां तो तस्वीर खींचने की भी जरा भी सुध नहीं आई 4 घंटे जबकि रुके थे।अब फिर चर्चा कि बेकार वहां से चले इतनी देर में खाना बन जाता खा भी लेते। राजू ने बताया कि रास्ता खुलते ही पहला नम्बर हमारा होगा। वरना पीछे अटके रहते। जितना जातेे समय डर रही थी। लौटते समय सब डर निकल गया। अब खतरनाक रास्ता रात में पार होगा वो भी गाड़ी की लाइट में। यहां अंधेरा भी जल्दी होता है। 7 बजे आने वाली गाड़ियों को रोक दिया गया। हमारी गाड़ियां पहले नम्बर पर राजू की गाड़ी के पीछे चल रहीं थी। अंधेरे में रास्ते की मोहकता तो दिखने का सवाल ही पैदा नहीं होता। मेरी आंखें राजू की गाड़ी का पीछा कर रहीं थीं। झूमते हिलते ढुलते हम बैठे हुए रास्ता काट रहे थे। मुक्तिनाथ जी ने हमें हर तरह से अपने रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को  दिखाया। दिन में और रात का भी रास्ता पार करवाया। अगर रास्ते में पत्थर गिरने की समस्या न आई तो हम रात को 2बजे तक पोखरा पहंचेंगे।

      खतरनाक रास्ता पार करते ही जैसे ही नेटवर्क मिला नाज़िर ने खाने का ऑर्डर कर दिया था। गाड़ियां श्री गलेश्वर होटल मदरलैंड इन, जिला मैग्दी पर डिनर के लिए रुकीं। इस खाने को मैं हमेशा याद रखूंगी।


इतने कम समय में छोटी सी जगह में 70 लोगों के लिए खाना तैयार किया। यहां तो खाने की भी डिमाण्ड थी कि बिना लहसून प्याज का खायेंगे। बाबा मुक्तिनाथ को हाथ जोड़ कर मैंने प्रशाद की तरह इस खाने को खाया।




   खाने के बाद देखना शुरु किया। वहां रिसेप्शन पर टायर का फर्नीचर था। बाजू की खाली जगह पर एक बस खड़ी थी और दो चूल्हों पर खाना बन रहा था। एक पर खीर और दूसरे पर चावल। अंधेरे की वजह से ठीक से तस्वीर नहीं ले पाई। मैंने बात की ये नेपाल के जनकपुर की तरफ के किसान थे जो हमारे साथ ही बाबा मुक्तिनाथ के दर्शन करके आए थे। इसके मुखिया हैं परिनाथ चौधरी और परशुराम चौधरी हैं। ये किसान परिवार वैसाख और आषाढ़ में सब मिल कर बस से तीर्थ यात्रा पर निकलते हैं। राशन बर्तन साथ लाते हैं मिलजुल कर खाना बनाते हैं। भारत दर्शन वे कर चुके थे। सबके आते ही अब हम ऑन रोड थे। रात दो बजे होटल पहुंचे और मैंने तो जाते ही घर पर मैसेज़ किया कि मुक्तिनाथ के दर्शन कर आई हूं और उन्हीं कपड़ों में सो गई। क्रमशः    


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