Search This Blog

Monday 9 May 2022

दर्शन की लाइन! पशुपतिनाथ नेपाल यात्रा भाग 26 नीलम भागी


 

 दर्शन की लाइन में लगना और श्रद्धालुओं से बतियाना भी बहुत रोचक है। यहां मंदिर से संबंधित जनश्रुतियां सुनने को मिल रहीं हैं। तरह तरह से श्रृंगार किए अघोरी साधु भी दिख जाते हैं।


सामने से फाइव स्टार सोशल वर्कर और सखि दर्शन करके चलीं आ रहीं हैं। सखि तो रात को भी पानी और रुम के लिए मदद करना चाह रही थी। यहां मुझे इतनी लंबी लाइन में लगा देख कर फिर सखि के मन में मेरे लिए हमदर्दी आई। वे मुझे तरकीब समझाने आईं कि कैसे लाइन में लगे बिना दर्शन हो सकते हैं? मुझे सखी अच्छी लगी। पर मुझे तो अपने क्रम से ही जाना है। मैं अनजान श्रद्धालुओं की पशुपतिनाथ की अध्यात्मिक कहानियां सुनने का लोभ भी कैसे छोड़ सकती हूं भला! लाइन में मेरा देश विदेश के हिंदुओं से परिचय हो रहा है।




करोड़ो हिंदुओं की आस्था का केन्द्र भव्य पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में सोमदेव राजवंश के ’पशुप्रेक्ष’ राजा ने करवाया। ऐतिहासिक मत पर विश्वास करें तो मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में किया गया है। हिंदु धर्म में पशुपतिनाथ मंदिर का बहुत महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो भी इनसान इस स्थान के दर्शन कर लेता है उसे कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है। पशु से मतलब जीव जंतु या प्राणी दोनों से है जबकि पति से तात्पर्य स्वामी या भगवान है। इस प्रकार पशुपतिनाथ का स्पष्ट अर्थ है समस्त जीवों के स्वामी। देवो के देव कहे जाने वाले महादेव का दूसरा नाम पशुपतिनाथ भी है।  

   नेपाल महात्म और हिमखंड पर आधारित स्थानीय किंवदंती के अनुसार भगवान शिव वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़ कर यहां बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली गए और चिंकारे का रुप धारण कर निद्रा में चले गए थे। जब देवताओं ने खोजा और उन्हें काशी लाने का प्रयास किया तो उन्होंने बागमती के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहा जाता है कि इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया था। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रुप में यहां प्रकट हुए।

 दूसरी कथा- एक चरवाहे की गाय का इस स्थान पर रोज अपने आप दूध बहने लगता था। गाय के इस प्रकार जमीन पर दूध चढ़ाने से गाय के मालिक को कुछ संदेह हुआ। जब उसने एक दिन इस रहस्य का पता लगाने के लिए थोड़ा वहां खुदाई किया तो देखा यहां ज्योतिर्लिंग है, जिसका गाय अपने दूध से अभिषेक करती थी। धीरे धीरे अधिक से अधिक लोग यहां पूजा के लिए आने लगे और भगवान पशुपति लोकप्रिय हो गए और ये स्थान तीर्थस्थल बन गया।

   पौराणिक कथा है जिसका सम्बंध उत्तराखंड राज्य से है जिसके अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है। कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्गप्रयाण के लिए हिमालय की ओर जा रहे थे तो उस समय शिवजी ने भैंसे के रुप में उन्हें दर्शन दिए थे। जो बाद में धरती में समाने लग गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है। पुराणों में पंचकेदार के नाम से इस कथा का उल्लेख मिलता है।    

  पशुपतिनाथ मंदिर में सालभर में कई त्यौहार मनाए जाते हैं और हजारों लोग यहां पहुंच कर त्यौहारों का आनन्द उठाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार महाशिवरात्री, बाला चतुर्थी त्योहार और तीज त्यौहार है। पर आज तो शनिवार है साप्ताहिक छुट्टी का दिन है अब इतने दर्शनार्थी हैं तो त्यौहारों पर क्या हाल होता होगा!! तीज पशुपतिनाथ मंदिर में सबसे प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है। यह हिंदु नेपाली महिलाओं द्वारा लंबे समय तक अपने पति की आयु के लिए मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि उस दिन उपवास रखने से पति पत्नी के बीच संबंध मजबूत होते हैं। क्रमशः


2 comments:

kulkarni said...

Super good

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद कुलकर्णी जी