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Tuesday, 24 May 2022

नौलखा मंदिर जनकपुर नेपाल यात्रा भाग 38 नीलम भागी Janakpur Dham Nepal Yatra Part 38 Neelam Bhagi

बस मारवाड़ी धर्मशाला पर रुकी। हमेशा की तरह एक ग्रुप कमरों के आवंटन में बदगमनी सी फैला देता है। मैं कुर्सी पर बैठी देखती रहती हूं। मैम बेचैनी से मुझे देखती जा रहीं हैं। आखिर में गुप्ता जी ने मुझे ग्राउण्ड फ्लोर के रुम की चाबी दी। मैंने रुम खोला वो 5 बैड 3 पंखों वाला बहुत बड़ा साफ सुथरा कमरा है जिसमें दोनों को रुकना है। टॉयलेट खोलते ही मैम अंग्रेजी में मुझ पर चिल्लाई कि सीट वैस्टर्न नहीं है। ये देखकर मैं भी परेशान हो गई। पर मैंने शांति से कहा,’’जिनको पैसा दिया है। जाइए उनसे शिकायत कीजिए।’’ मैम चुपचाप बैठ गई। मैं जनकपुर पहले भी आ चुकी हूं। इसलिए आराम से लेट गई। नेटवर्क बहुत स्लो है  मैम को बार बार शिकायत लेकर ऑफिस जाने का काम मिल गया है। उस दिन के बाद से गाली बकना भी बंद है। मैं चाय के लिए बाहर आई तो सरोज गोयल रुंआसी सी मुझसे उनकी सहेलियों के बारे में पूछने लगीं। गुप्ता जी ने बताया धर्मशाला के बाहर ई रिक्शा वाले खड़े हैं जो 100रु सवारी लेते हैं। 5 सवारी होते ही जनकपुर घूमा रहे हैं। अपनी सुविधा अनुसार जब दिल करे जाओ। पेमेन्ट गुप्ता जी कर रहे है। धनुषा हमें कल बस से जाना है। सब जा चुके हैं। सरोज की सहेलियां सब घूम कर अब गंगा जी की आरती देखने के लिए बैठीं हैं। मैंने सरोज से कहा कि आप को मैं घूमा लाती हूं। मैम को भी बुला लाती हूं। ई रिक्शा वाला हम तीनों को ही लेकर चल दिया। सरोज ने कहा,’’मुझे बस सहेलियों के पास छोड़ दो।’’उन्हें  सहेलियों के पास छोड़ कर, हम नौलखा मंदिर की ओर चल दिए। नेपाल में जनकपुर प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी माना जाता है।  यहां के राजा जनक थे। जो सीता जी के पिता जी थे। यह भगवान राम की ससुराल के नाम से विख्यात है।  यहां की भाषा मैथिली, हिन्दी और नेपाली है। यहां पर अयोध्या से बारात आकर राम जी और जानकी का विवाह माघ शीर्ष शुक्ल पंचमी को जनकपुरी में संपन्न हुआ। जनकपुर में राम जानकी के कई मंदिर हैं। जिसमें राजस्थानी वास्तुकला को दर्शाता  नौलखा भव्य मंदिर है। अब मंदिर की ओर चल दिए। मंदिर में चप्पल रखने की बहुत उत्तम व्यवस्था है। चप्पल जमा करके आदत के अनुसार मैंने घूमना और पूछताश शुरू कर दी। मंदिर का नाम नौलखा मंदिर है। पुत्र इच्छा की कामना से टीकम गढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने इस मंदिर को नौ लाख में बनाने का संकल्प लिया था और एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने पु़त्र को जन्म दिया। 4860 वर्गमीटर में मंदिर का निर्माण शुरू हो गया था। बीच में महारानी का निधन हो गया था। स्वर्गीय महारानी के पति से उनकी बहन नरेन्द्र कुमारी का विवाह हो गया। अब नरेन्द्र कुमारी ने मंदिर को पूरा करवाया। इसके निर्माण में अठारह लाख रूपये लगे पर मंदिर नौ लखा के नाम से ही मशहूर है।






1657 में सूरकिशोर दास को सीता जी की प्रतिमा मिली, उन्होंने उसकी स्थापना की थी। मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र के लोग भी नेपालियों के साथ दर्शनाभिलाषी हैंे। उत्तर की ओर ’अखण्ड कीर्तन भवन’ है। यहाँ 1961 से लगातार कीर्तन हो रहा है। एक जगह सीढ़ी पर चलचित्र लिखा है। मात्र दस रूपये की टिकट है। वहाँ जानकी की जन्म से बिदाई तक को र्दशाने के लिये गीत और मूर्तियां हैं। सोहर, विवाह और बिदाई के गीत नेपाली में हैं। मैं वहाँ खड़ी महिलाओं से भाव पूछती जा रही हूं।

एक महिला ने बताया कि यहाँ के रिवाज बिहार और मिथिलंाचल से मिलते हैं। जानकी विवाह के बाद कभी मायके नहीं आईं। हमारी जानकी ने बड़ा कष्ट पाया है। इसलिये कुछ लोग आज भी बेटी की जन्मपत्री नहीं बनवाते हैं। न ही उस मर्हूत में बेटी की शादी करते हैं। नीचे गर्भगृह में कांच के बंद शो केस में जेवर, मूर्तियां  पोशाकें संभाली गईं हैं। यहाँ ’ज्ञानकूप’ के नाम से संस्कृत विद्यालय हैं। जहाँ विद्यार्थियों के रहने और भोजन की निशुल्क व्यवस्था है। मंदिर की सफाई उत्तम है। 2018 में जब मैं आई थी। तब मार्ग में  सौन्दर्यीकरण चल रहा था। और मंदिर के अन्दर फोटो नहीं ले सकते थे। अब तो पूजा के साथ फोटो भी खूब ली जा रही हैं। परिसर के भीतर ही राम जानकी विवाह मंडप है। मंडप के खंभों और दूसरी जगहों को मिलाकर कुल 108 प्रतिमाएं हैं। अब हम भूतनाथ मंदिर की ओर चल दिए। क्रमशः


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