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Friday, 20 May 2022

भालेश्वर महादेव चंद्रगिरी हिल्स नेपाल यात्रा भाग 35 नीलम भागी Nepal Yatra Part 35 Neelam Bhagi


 

 चंद्रगिरी की जिस पहाड़ी पर मंदिर स्थित है, उसकी ऊँचाई 2551 मीटर समुद्र तल से है। यहां से भालेश्वर मंदिर केबल कार से भी जाया जाता है। मंदिर केबल कार द्वारा काठमांडु घाटी से जुड़ा हुआ है। भालेश्वर महादेवी काठमांडू की चंद्रगिरि पहाड़ियों पर स्थित हिन्दु मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर को वास्तुकार शंकर नाथ रिमल द्वारा डिजाइन किया गया है। शिवरात्रि और सावन के सोमवार, इस परिसर में मनाए जाने वाले मुख्य त्यौहार हैं। पौराणिक कथा है कि दक्ष के यज्ञ से सती के शव को क्रोधित शिव अपनी पीठ पर लादे चले जा रहे थे। सती देवी के शरीर के अंग जहां जहां गिरे वह स्थल, तीर्थ बन गए। ऐसा माना जाता है कि भालेश्वर महादेव भी इनमें से एक स्थल पर बना मंदिर है यहां सती का माथा(भाला) गिरा था। इस 1000 साल पुराने मंदिर को इच्छेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ऐसा मानना है कि यहां श्रद्धालू की इच्छा पूरी होती है। मंदिर परिसर में कई हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां भी हैं। शिव जी के वाहन नंदी की चमक देखने लायक है।





   म्ंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है क्योंकि जिस पहाड़ी पर यह स्थित है उसका संबंध नेपाल के एकीकरण अभियान से है। मकवानपुर में अपने ससुराल से गोरखा वापस जाते समय, पृथ्वी नारायण शाह ने इस पहाड़ी से पहली बार काठमांडु घाटी को एकीकृत नेपाल की राजधानी बनाने की योजना बनाई थी। मंदिर परिसर बहुत ही साफ है। पगौड़ा शैली में बने मंदिर की कारीगरी देखने लायक है। गर्भग्रह में जाना और वहां की फोटो लेना मना है। धूप बत्ती, दीपक जैसे भी आप पूजा करना चाहते हैं, जलाने का स्थान अलग बना हुआ है।


27 मार्च को मैं वहां गई हूं। यहां ठण्ड है साथ ही धूप है और हवा की ताजगी! तीनों ने मिल कर मौसम बहुत सुहावना कर रखा है। धूप में बैठ जाती हूं। इतने खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे हैं कि जिधर देखो, वहां से नज़रें नहीं हटतीं। हमारे तीर्थ स्थल गज़ब के प्राकृतिक सौन्दर्य में स्थित हैं। मुझे अगर कभी फिर से अपनी पसंद की जगह पर आने का मौका मिला तो मैं चंद्रगिरी हिल्स पर आना चाहूंगी।




     पहली बार इस यात्रा में गुप्ता जी ने सब को 11.30 बजे आने को कहा है। मन तो वहां बैठे रहने को कर रहा है पर जाकर केवल कार में बैठ गई। बाहर आकर बहुत सुन्दर शेड में बैठने की व्यवस्था है। पार्किंग अलग है। गाड़ियां यहीं आकर टूरिस्टों को छोडतीं और लेतीं हैं। यहां बैठ कर इंतजार करने का अपना ही आनन्द है। देश दुनिया के सैलानी, स्कूल कॉलिज से टूर में आये छात्र छात्राएं और उनका फोटो शूट करना, दीन दुनिया से बेख़बर खिलखिलाना! ये सब देखना मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। लंच के बाद हमारा ओपन डे है यानि अपनी मर्जी से जहां दिल करे शॉपिंग करो, काठमांडु में घूमों। 11.30 से कुछ लोगों की बेचैनी बढ़ गई कि बस क्यों लेट है! गुप्ता जी का जिपलाइन में पहला नम्बर था वे अपने बाद लंबी लाइन देख कर गाड़ियों के पास उन्हें थोड़ा लेट करने के लिए चले गए ताकि सब का नम्बर आ जाए। क्योंकि वेटिंग एरिया में गाड़ी पार्क नहीं कर सकते। सबके आते ही 5 मिनट बाद यानि 12 बजे गाड़ियां आ गईं। पहली गाड़ी से चहकते हुए गुप्ता जी ने जैसे ही पूछा,’’सब लोग आ गए न।’’

     


एक ग्रुप था जो पूरी यात्रा में क्लेश का सबजैक्ट ढूंढता था। उनमें से सबसे बड़ा बुर्जुग, गाड़ियां लेट क्यों हैं कहते हुए गुप्ता जी की ओर झपटा। तुरंत कानपुर की रेखा गुप्ता, सुनीता अग्रवाल और इनकी सखियां एक दम बीच में आ गईं। मैं दूर थी इन्होंने पता नहीं क्या कहा कि वह क्लेशी ग्रुप उसके बाद से क्लेश करना ही भूल गया। ये सहेलिया ंतो मुझे वैसे ही बहुत अच्छी लगतीं हैं। अब और भी भली लगने लगीं। मैं दूसरी बस में भी यात्रा करना चाहती हूं ताकि कुछ उन्हें भी जानूं। पर उस बस में कोई अकेला नहीं था जिसे मैं अपनी बस में भेज कर दूसरी बस में बैठ जाती। सब ग्रुप में आए हैं और परदेस में हैं। क्रमशः     


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