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Friday, 6 May 2022

पशुपति नाथ काठमांडु नेपाल यात्रा भाग 25 नीलम भागी



   होटल आए तो मैम रिसेप्शन पर उसे धमकाने लगी। मैंने कहा,’’चाबी दीजिए मुझे जाना है।’’अब रिसैप्शनिष्ट को छोड़ कर मुझ पर चिल्लाने लगी कि मैं उससे रुडली क्यों बोली? जो मैं नहीं बोली थी। पर मैं रुम में आई मैम का टेप बंद होते ही मैं सो गई क्योंकि सुबह मुझे पशुपतिनाथ के मंदिर में समय बिताना है। इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। यह सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक खुलता है। मंदिर परिसर में घूमने के लिए 90 से 120 मिनट लगते हैं। वीकएंड है लाइन भी लंबी होगी उसमें भी तो समय लगेगा। मैं मैम पर ध्यान ही नहीं देती हूं। वो न जाने कौन से डिर्पाटमैंट से रिटायर है जिसका गुरुर उसके सिर पर अब तक है। मुझे जान कर करना भी क्या है? गुप्ता जी 66 साल के हैं। अपने आप में वन मैन आर्मी हैं। टूर उनसे ठीक से ऑरगनाइज़ नहीं हो रहा है। खाना कभी कम नहीं होता है क्योंकि मैं तो पहुंचती ही आखिर में हूं। जो बना होता है मिलता है और बच भी जाता है। अब रोटी गैस पर फूली चाहिए और गर्म एक बर्नर पर तवा होता है दूसरे पर रोटी फुलाई जाती है। सब को एक साथ तो मिल नहीं सकती। मैंने इस यात्रा में पहले दिन बीरगंज में ही गुप्ता जी से सीख लिया कि सामने वाले को बोलने दो, गुस्सा नहीं करो। प्रैक्टिस के लिए मैम हैं हीं। रुम में आते ही मैम बैठी सबको अंग्रेजी में कोसती रहतीं हैं और मैं मन में दिन भर की सहयात्रियों की प्यारी प्यारी बातें याद करती हुई सोचतीं हूं कि अभी मेरे पास लैपटॉप होता तो तुरंत लिखती। ये सब सोचते सो जाती। सुबह मैम जब तैयार होकर ब्रेकफास्ट के लिए जाती तब तक मैं मोबाइल पर लगी रहती हूं। उनके जाते ही अपनी तैयारी शुरु करती हूं। रात में तो ध्यान नहीं दिया। होटल से बाहर आते ही देखा की पशुपतिनाथ के दर्शनों के लिए देश विदेश के पर्यटकों की संख्या बढ़ने से यहां कंसट्रक्शन का काम बहुत चल रहा है। जिससे भी पूछा वह होटल ही बना रहा है। जो सड़क किनारे घर है वे या तो दुकाने हैं या रैस्टोरैंट। पशुपतिनाथ जी ने सबको रोजगार दे रखा है। साइकिल पर बिना पत्तों की मोटी मोटी मूलियां बिक रहीं हैं।



अगर हरी भाजी लेनी है तो उसकी सुबह सुबह फुटपाथ पर थोड़ी सी जगह पर दुकानें लगी है जिसमें मेथी, राई, सरसों, शलगम, धनिया, सोमसूर, सोहा, हरा प्याज़, पौदीना आदि है। नाश्ता बनाने में भी ग्रुप से पुरुष भी मदद कर रहे थे।

मैं नाश्ता करके ये सब देखती पशुपतिनाथ जा रही हूं। सीढ़ी चढ़ कर मेनरोड पर आती हूं। सामने पशुपतिनाथ के मंदिर का एक गेट है।

सड़क पार कर गेट पर पहुंचती हूं। उस समय आठ बजे थे। हमारे सहयात्री दर्शन करके लौट रहे थे। कुछ तो मुझे देख कर हंस रहे थे, मैं भी हंस देती। 4 बजे रात को सोई थी। मैं अकेली इस समय जाने वाली थी। मेरे दाएं हाथ पर बागमति नदी के किनारे शमशान घाट है।


वो भी देख आई पर वहां रुका नहीं गया। बाएं हाथ पर बहुत सुन्दर कारीगरी से बनी जालीदार भवन हैं।

आगे जाकर चारों दिशाओं से आने वाले श्रद्धालु हैं और एक गेट आता है।


जिसके बाहर जूता चप्पल उतार दिया जाता है। अब इस गेट से ही लाइन लगी हुई है। जो जैसे आता जा रहा है अपने क्रम से लगता जा रहा है। अंदाज हो गया था कि दर्शन तीन चार घण्टे में ही होंगे। मुक्तिनाथ जी की यात्रा ने मुझमें पता नहीं ऐसा क्या कर दिया है कि धूप है कोई परेशानी नहीं हो रही है। मेरे आगे पीछे नेपाल की सपना पाठक और पूजा बिष्ट है। इनके साथ खूब बतिया रही हूं और लाइन के साथ खिसक भी रहे हैं। क्रमशः        


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