वैसे तो मैं कहीं भी अकेली चल देती हूं पर! गुजरात का गीली, काली रेत के तट वाला सूरत के दक्षिण पश्चिम का डुमास बीच! लहर तक न जा सकने वाले विचित्र समुद्र तट के बारे में भूतहा लोक कथाएं प्रसिद्ध हैं। इसलिए मैंने सोचा कोई साथ होना चाहिए। मैंने प्रोफेसर डॉ. राजीव यशवंते (महाराष्ट्र) से पूछा कि वह डुमस बीच चलेंगे? उनके हां बोलते ही मैंने कहा," चलिए।" सूरत साफ सुथरा शहर है। व्यवस्थित ट्रैफिक देखकर और यहां बस स्टैंड को, बस स्टेशन कहा जाता है। इसलिए मैंने यहां बस से जाने का प्रोग्राम बनाया है। बस स्टेशन सूरत लिटरेचर फेस्ट 3 के वेन्यू के सामने था। वहीं पर टिकट मिल रही थी। टिकट देते समय उसने हमें समझा दिया कहां उतरना है और वहां से दूसरी बस लेनी है और यही टिकट उस बस में भी काम आएगी और टिकट कुल ₹20 की । कोई सड़क नहीं क्रॉस करना। स्टेशन पर ही बैठे दूसरी बस आई, उसमें बैठकर डुमस पहुंच गए।
कंडक्टर ने बताया कि हर आधे घंटे में यहां से बस है। बस स्टेशन से पहले सड़क के दोनों और नारियल के पेड़ों से घिरे हुए बहुत पुराने खूबसूरत बंगले हैं। बस से उतरते दुकाने हैं। बहुत अच्छे बैठने के लिए पार्क हैं । सामने दैत्याकार तारों से बनी हुई आकृति है जिसमें वेस्ट पानी की बोतलें भरी हुई हैं और फुटपाथ पर तरह-तरह के फल बिकते हैं। यहां से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर बीच था। हम पैदल ही चल दिए। रास्ते में देखा कि ऑटो भी वहां जा रहे थे। जब बीच दिखने लगा तो देखा वहां एक ओर जबरदस्त कंस्ट्रक्शन चल रही है। आने वाले समय में वे सी फेसिंग इमारतें होंगी। सामने दरियाई गणपति का मंदिर है। काली गीली रेत है। लहरें दूर तक नहीं दिख रहीं हैं। पूरे रास्ते मैं दुखी आई कि मैंने जूते पहन रखे हैं तो वहां मैं जूते कैसे खोलूंगी? जमीन पर नहीं बैठ सकती ना। पैर लहरों से कैसे गीले होंगे? पर यहां तो रेत के बाद दलदल लग रही थी और दूर पानी था, पानी को हम छू ही नहीं सकते। अपने आप में यह भी बहुत शांत जगह है। लेकिन दरिया गणेश मंदिर के पास मेले जैसा माहौल है। ऊंट की सवारी भजिए की दुकाने, छोटे-छोटे रेस्टोरेंट जहां लज़ीज़ चाय मिल रही थी। चाय पी वहां पहुंचते ही राजीव जी को कोई मैसेज आया वह मंदिर की सीढ़ी पर बैठकर अपने काम में व्यस्त हो गए, मैं घूमती रही। कुछ सेल्फी लेने के बाद मैं सोच ही रही थी एक घूंघट वाली महिला ने मेरी तस्वीर लीं 👍। जब धूप तेज़ लगने लगी तो वापस जाने की सोच ही रही थी। राजीव जी का काम खत्म हो गया, उन्होंने सॉरी बोला। मैंने उनसे कहा यह जो पत्थर के ऊंचे ऊंचे बेरिकेट की तरह पहाड़ बने जिस पर लोग चढ़े हुए हैं और उस तरफ देख रहे हैं, मैं एक्सीडेंट के बाद ऐसी जगह पहुंचने में असमर्थ हूं। उन्होंने कहा,"मैं जरा ऊपर जाकर देखूं क्या है अगर आपको देर नहीं हो रही तो?"मैं तो चाह ही रही थी कि मुझे पता तो चले उस तरफ क्या है? राजीव जी ने आकर बताया की मुंबई के मरीना बीच की तरह है और इन पत्थरों को यहां समुद्र छू रहा है। उनके फोन में चार्जिंग नहीं खत्म होने वाली थी। मेरा फोन वह ऊपर ले जाना भूल गए थे। इसलिए तस्वीर नहीं ले पाए। लौटते समय वहां बिना मोल भाव के₹50 में ऑटो मिल गया। यही पास में बहुत बढ़िया पार्क है इसके बाहर डायनासोर वगैरह बने हैं। हम अंदर नहीं गए। सामने बस खड़ी थी। उसमें बैठ गए। यह बीच सूरत एयरपोर्ट से केवल 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां ज़्यादातर मछुआरों की बसाहट है। और कहा जाता है कि इतिहास में यहां नवाबो की बसाहट थी। डुमस समुद्रतट अपनी काली रेत के लिए जाना जाता है और इसे प्रेतवाधित माना जाता है क्योंकि लोककथाओं के अनुसार इसे एक समय हिंदू श्मशान स्थल के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। लोककथाओं के अनुसार, समुद्र तट के प्रेतवाधित होने की किंवदंती स्थानीय लोगों की व्यापक धारणा पर आधारित मानी जाती है कि समुद्र तट पहले एक श्मशान भूमि था और इसका श्रेय समुद्र तट की काली रेत और अलग-थलग स्थान को भी दिया जाता है। मुझे तो ऐसा कुछ भी डर वाली बात नहीं लगी क्योंकि वहां जो पत्थर हैं। वे काले रंग के हैं। मुझे तो यह समुद्र तट अनोखा लगा इसलिए मेरा मानना है यहां जरूर आना चाहिए।